समान नागरिक संहिता से पहले…

0
24

–   तनवीर जाफरी –

tanveer-jafri,-article-by-tभारतवर्ष की पहचान दुनिया के उन सबसे बड़े देशों में एक के रूप में बनी हुई है जहां विभिन्न धर्मों के लोग शताब्दियों पूर्व से एक साथ रहते आ रहे हैं तथा अपनी सभी प्रकार की धार्मिक मान्यताओं,विश्वासों तथा रीति-रिवाजों का पूरी स्वतंत्रता के साथ पालन करते आ रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में लगभग 80 प्रतिशत बहुसंख्य हिंदू धर्म की जनसंख्या है तो इस्लाम धर्म के मानने वाले लगभग 14.5 प्रतिशत  लोग हैं। ईसाई धर्म के अनुयाईयों की संख्या अनुमानत: 2.3 प्रतिशत है जबकि सिख धर्म के मानने वाले लोगों की तादाद करीब 1.8 प्रतिशत है। जैन समाज के लोग तकऱीबन 0.4 प्रतिशत हैं तथा इसके अतिरिक्त अन्य धर्मों के मानने वालों की तादाद लगभग 0.7 प्रतिशत है। उपरोक्त आंकड़े यही दर्शाते हैं कि हिंदू धर्म के लोगों की बहुसंख्य आबादी होने के बाद भी दूसरे सभी धर्मों के लोगों का पूरी स्वतंत्रता के साथ अपनी-अपनी धार्मिक पूजा पद्धति पर अमल करना निश्चित रूप से पूरे विश्व के लिए धर्मनिरपेक्षता का एक ज़बरदस्त उदाहरण पेश करता है। हमारे देश में समान संविधान तथा भारतीय पैनल कोड में उल्लिखित कायदे-कानून समस्त देशवासियों के लिए एक समान हैं। इसके बावजूद क्षेत्र,भूगोल,क्षेत्रीय सभ्यता व संस्कृति के संरक्षण के नाम पर देश के कई राज्यों खासतौर पर कई पहाड़ी राज्यों में कुछ विशेष अधिकार भी दिए गए हैं। ऐसे अधिकारों का संरक्षण भारतीय संविधान के एक विशेष अनुच्छेद धारा 370 के तहत किया गया है।

हालांकि धारा 370 से संबंधित कई प्रावधान देश के अन्य राज्यों में भी लागू हैं। परंतु जम्मू-कश्मीर राज्य में धारा 370 के अंतर्गत् कुछ विशेष रियायतें इस राज्य के लोगों को दी गई हैं। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी व इसके सहयोगी दूसरे राजनैतिक संगठन जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को समाप्त करने की पुरज़ोर मांग करते रहे हैं। यह सही भी है कि जम्मू-कश्मीर में लागू धारा 370 की कई धाराएं ऐसी भी हैं जो देश के अन्य राज्यों व जम्मू-कश्मीर के मध्य भेद पैदा करती हैं। उदाहरण के तौर पर देश के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है तो जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्ष का क्यों? देश के उच्चतम न्यायालय के आदेश जम्मू-कश्मीर में मान्य क्यों नहीं हैं? यह ऐसा कानून है कि यदि इस राज्य की कोई महिला भारत के किसी दूसरे राज्य के व्यक्ति से शादी करे तो उस महिला की राज्य की नागरिकता समाप्त परंतु यदि वही महिला पाकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह करे तो उस पाकिस्तानी नागरिक को जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिलने का प्रावधान? जम्मू-कश्मीर में आरटीआई व सीएजी जैसे कानून लागू क्यों नहीं? राज्य में पंचायत के अधिकार नहीं हैं? इस राज्य में धारा 370 के कारण देश के अन्य भागों के लोग कश्मीर में ज़मीन नहीं खरीद सकते। हालांकि देश के और भी पहाड़ी राज्यों में दूसरे राज्यों के लोगों के ज़मीन खरीदने पर प्रतिबंध है। ऐसे और भी कई कानून हैं जो धारा 370 के अंतर्गत् कश्मीर के लोगों को अतिरिक्त अधिकार व संरक्षण प्रदान करते हैं। मुखरित रूप में जम्मू-कश्मीर से धारा 370 समाप्त करने की आवाज़ बुलंद करती रही है। यह बात और है कि सत्ता में आने के बाद पार्टी ने इस मुद्दे को न केवल खंूटी पर लटका दिया है बल्कि धारा 370 की प्रबल पक्षधर क्षेत्रीय पार्टी पीडीपी के साथ राज्य में सत्ता की भागीदार भी बनी बैठी है। और धारा 370 के मुद्दे को कुछ इस तरह भूल चुकी है गोया यह विषय कभी पार्टी का मुद्दा ही न रहा हो। जबकि गत् लगभग एक दशक से जम्मू-कश्मीर में चलरही भारत विरोधी गतिविधियों से यह साफ ज़ाहिर हो रहा है कि कश्मीर के विद्रोही प्रवृति के लोग तथा अलगाववादी नेता इसी धारा 370 का लाभ उठाकर या इसकी आड़ में अपनी हर मनमजऱ्ी को अंजाम देते आ रहे हैं। सवाल यह है कि क्या कश्मीर में लागू धारा 370 को भारत सरकार हटा सकती है? खासतौर पर वर्तमान उन सकारात्मक राजनैतिक परिस्थितियों में जबकि भारतीय जनता पार्टी केंद्र में पूर्ण बहुमत से सत्तारूढ़ होने के साथ-साथ राज्य में भी सत्ता की बराबर की भागीदार है? परंतु भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से धारा 370 को कश्मीर से समाप्त किए जाने की उम्मीदें लगाने से भाजपा द्वारा वर्तमान समय में विभिन्न राज्यों में एक ही विषय को लेकर बनाए जाने वाले अलग-अलग कानूनों पर नज़र डालना भी ज़रूरी है।

भारतीय जनता पार्टी ने 2014 से पूर्व अपने पक्ष में राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन जुटाने वाले मुद्दों में एक प्रमुख मुद्दा गौहत्या विरोधी कानून बनाना भी बताया था। यह मुद्दा जहां देश के बिहार जैसे बड़े राज्य में जनता ने पिछले विधानसभा चुनाव के समय स्वीकार नहीं किया तथा इस मुद्दे से अधिक अहमियत राज्य के विकास के मुद्दे को दी। वहीं निश्चित रूप से कई राज्यों में इस मुद्दे ने भाजपा के पक्ष में माहौल भी बनाया। पिछले दिनों एक के बाद एक कई राज्यों में गौहत्या तथा गौतस्करी के विरोध में कई भाजपा शासित राज्यों में कानून भी बनाए गए। ज़ाहिर है गाय तथा गौवंश के प्रति प्रेम-सम्मान तथा आस्था हिंदू समुदाय के लोगों का एक राष्ट्रीय विषय है। इसलिए भाजपा शासित सरकारों को चाहिए कि वे इस संबंध में पार्टी शासित सभी राज्यों में एक जैसे कानून बनाकर यह साबित करे कि पूरे देश में गौमाता का समान रूप से सम्मान किया जाता है। परंतु ऐसा दिखाई नहीं दे रहा है। छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार गौ हत्या में शामिल लोगों को सज़ा-ए-मौत देने की घोषणा कर चुकी है। खुद मुख्यमंत्री रमनसिंह मीडिया के समक्ष कह चुके हैं कि गौ हत्या जैसे अपराधों में शामिल होने वालों को ‘लटका’ दिया जाएगा, वहीं गुजरात में इसी अपराध के लिए आजीवन कारावास की सज़ा का प्रावधान है। हरियाणा में गौ हत्या के अपराधी को दस साल के कारावास का प्रावधान तो महाराष्ट्र में इसी अपराध के लिए पांच वर्षों की जेल। ठीक इसके विपरीत गोआ,असम तथा मणिपुर जैसे भाजपा शासित राज्यों में गौ हत्या करने वालों के विरुद्ध कोई कानून नहीं है। जम्मू-कश्मीर राज्य में भी गौ हत्या के विरुद्ध कोई कानून नहीं है। केरल,बंगाल तथा उत्तरपूर्व के और कई उन राज्यों की बातें तो छोड़ ही दें जहां भाजपा की सरकारें नहीं हैं।

उपरोक्त परिस्थितियों में यह सवाल उठना लाजि़मी है कि जो भारतीय जनता पार्टी देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की दुहाई देती रही है तथा इसी प्रकार के मुद्दों को अपने पक्ष में ज़ोर-शोर से उठाती रही है वही पार्टी गौ रक्षा जैसे अति संवेदनशील तथा धार्मिक भावनाओं से सीधे तौर पर जुड़े हुए विषय पर पूरे देश में समान कानून बनाए जाने का साहस क्यों नहीं कर पाती? खासतौर पर भाजपा शासित राज्यों में? यह सवाल केवल भाजपा के आलोचकों का ही नहीं है बल्कि भाजपा की प्रमुख सहयोगी पार्टी शिवसेना भी भाजपा से यह पूछ चुकी है कि क्या वह गोआ में गौ मांस खाने वालों को फांसी पर लटकाएगी? शिवसेना ने भाजपा द्वारा देश के कई राज्यों में गौ वध को मंज़ूरी देने तथा कुछ राज्यों में गौ हत्या विरोधी कानून बनाने की नीति पर सवाल उठाते हुए यह कहा है कि यदि हम इस मुद्दे पर देश में एक समान नीति नहीं बना सकते तो लेाग सोचते हैं कि आिखर हम एक समान नागरिक संहिता को कैसे बना सकेंगे और इसे कैसे लागू कर सकेंगे? लिहाज़ा समान नागरिक संहिता पर राजनीति करने से पहले ऐसे विषयों पर समान कानून बनाए जाने की भी सख्त ज़रूरत है।

_______________________

tanveer jafri, article by tanveer jafri, story by tanveer jafre,About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

Contact – :
Email – tjafri1@gmail.com –  Mob.- 098962-19228 & 094668-09228 , Address – Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar,  Ambala City(Haryana)  Pin. 134003

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here