समय से संवाद करता शीला पांडे का निबन्ध-संग्रह -‘समय में घेरे’

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shila-pandayआई एन वी सी न्यूज़
लखनऊ,

शीला पाण्डे की कृति ‘समय में घेरे’ पुस्तक पर चर्चा के दौरान  वक्ताओं ने कहा कि व्यंगात्मक शैली में अपनी बात को लोगों तक पहुंचाने में सफल शीला पांडे का निबंध- संग्रह ‘ समय में घेरे’ वैविध्य पूर्ण निबंध- संग्रह है। संग्रह की भाषा शैली सहज सरल तथा प्रभावशाली व प्रवाहमयी है। इसके लिए लेखिका साधुवाद की पात्र है।

पुस्तक मेला,मोती महल वाटिका में आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए हरिमोहन बाजपेयी माधव ने कहाकि वैसे इस संग्रह में विभिन्न विषयों पर लिखे गये निबंध समाहित हैं लेकिन महिलाओं से जुड़े कई आयामों पर लिखे निबंध प्रभावी हैं।इन निबंधों की विशेषता यह है कि इनमें तंज़ है, व्यंग्य है और पीड़ा के घेरों से बाहर निकलने के निराकरण भी हैं। व्यंग्य का उदाहरण- एक लेख में आपने महावत व हाथी के प्रतीक का बखूबी इस्तेमाल किया है। दोनों की मनोदशा को बहुत ही मनोवैज्ञानिक रूप से निरूपित किया है।महावत(पुरुष)एन केन ज्ञप्रकारेण हाथी (नारी शक्ति) को नियंत्रण में रखने का व्यूह रचना है और उसे अपनी शक्ति के बोध होने से भटकाये  रहता है।अपना प्रभाव बनाये रखने के लिये अकारण ही अंकुश से बेधता रहता है।

प्रो.त्रिभुवननाथ शुक्ल ने कहा कि हिन्दी  में निबन्ध लेखन के क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका अत्यल्प है इस दृष्टि से ‘समय में घेरे’ निबन्ध संग्रह के माध्यम से श्रीमती शीला पांडे ने इस विधा में महिलाओं का लेखन हो इस संभावना का श्री गणेश किया है । साहित्यकार अपने धर्म का निर्वाह वहीं कर पाता है जहाँ वह अपने  समय , समाज, देश, राष्ट्र और संस्कृति को लेकर के चलता है । इनसे विमुख लेखन को साहित्य कहना समीचीन नही होगा ।

उन्होंने कहाकि इस निबन्ध संग्रह के सभी निबन्ध अपने समय से संवाद करते हुए से लगते हैं यही लेखिका का सबसे बड़ा अवदान है । वक्तता राजेश्वर वशिष्ठ जी ने कहा की निबन्ध संग्रह में  किसानों की समस्या में भी आपके निबंध की शुरुआत व्यंग्य शैली में होती है और संभवत: कवयित्री होने के कारण ही आपके निबंधों में महादेवी वर्मा के स्मृति चित्रों व रेखा चित्रों  की जैसी लयात्मकता है। कार्यकम की अध्यक्ष करते हुए प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने प्रसंशा करते हुए इसके संवादो को समय की आवयश्कता बताया।

इस अवसर पर लेखिका शीला पांडे ने निबंध संग्रह पर विचार व्यक्त करते हुए  कहाकि वर्तमान समय मे मानव के मौलिक रसायन उपेक्षित हैं। व्यवस्था और समाज की परतों के भीतर का सत्य क्या है । वर्तमान मानवीय व्यवस्था में कितना सार्थक और कितना निरर्थक समाहित हो गया है इनका मूल्यांकन , पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है । इसी दृष्टिकोण से विविध निबंध विभिन्न अनुकूल  शैली में लिखे गए हैं  जिससे रोचक और पठनीय बन पाएं ।

कार्यक्रम के अंत में पद्मकान्त शर्मा प्रभात ने अतिथियों का आभार व्यक्त किया । वाणी वंदना का गान शोभा दीक्षित ने किया ।

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