सत्रहवीं कहानी -: भूमिका

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लेखक  म्रदुल कपिल  कि कृति ” चीनी कितने चम्मच  ”  पुस्तक की सभी कहानियां आई एन वी सी न्यूज़ पर सिलसिलेवार प्रकाशित होंगी l

-चीनी कितने चम्मच पुस्तक की सत्रहवीं कहानी –

_______ भूमिका ________

mradul-kapil-story-by-mradul-kapil-articles-by-mradul-kapilmradul-kapil-invc-news111111111पहली किताब का आपके हाथो तक आना  मेरे लिए कुछ वैसा ही जैसा आपके लिए अपने पैरो पर खड़े हो कर पहला कदम बढ़ाना  था ( जानता हूँ वो पल अब याद नही होगे पर यकीं जानिए उस वक्त आप अपने अबोध मन में बहुत खुश हुए होगे ) , जैसे जब आपको पहली बार परीक्षाफल मिला  होगा और आप भाग कर घर आ कर माँ के गले लग गए होगे , जैसे पहली बार आपने अपने प्यार के हाथ को अपने हाथो में थामा होगा , जैसे पहली बार खुद के कमाए पैसे से माँ के लिए साडी और घर के लिए मिठाई  ले  जाना , जैसे आपके बच्चे का (  अगर है तो) आपको पहली  बार माँ या पापा बोलना . अपने जहन से निकले  हर्फो को काली स्याही से सफेद पन्नो पर पहली बार  देखना खुद को एक अलग एहसास दिलाता है .

जब ज़िंदगी के बिखरे पन्ने पलटे तो लगा की इतनी कड़िया बिखरी हुयी है की समेटने बैठू तो पूरी किताब बन जाये : … खैर हमारा  उद्धव और विकास उस दौर में हुआ जब भारत  श्वेत श्याम  टेलीविजन से रंगीन  के  सफर पर चल पड़ा था , बड़े बुजुर्गो  की माने तो इस दौर में  ही  कुछ बहुत बड़े लोगो   के हाथ में मोबाईल नामक यंत्र भी दिखने लगा था , हमारे अवतार का दौर बदलाव का  दौर था , और हम इन बदलावों से दूर छोटे से हरे भरे गांव में श्रीकृष्णा से  शक्तिमान तक , छोटे से बड़े ख्वाबो तक पंचवर्षीय योजनाओ के साथ साथ जिंदगी भी बढती रही .
हर इंसान की तरह हमे भी समय ने बहुत कुछ दिया , और बहुत कुछ छीना भी।  जो छीना उसमे  गांव भी था , घर भी और अपने भी। । जो मिला उसमे कांच की बंद इमारतों के बीच Target, Growth, Appraisal, Meeting, भागमभाग  और आप सब का प्यार है।
समय के साथ बहुत कुछ छोड़ना पड़ा पर हिंदी में लिखना , बोलना , हर रात सपने में आने वाला गांव के खेत , खलिहान और अपने अंदर बहुत मुश्किल से बचा पाया बचपना नही छोड़ पाया .

मजेदार बात ये की मुझे खुद नही मालूम की हमने लिखना कब शुरू किया , शायद तब जब ये नही मालूम था की प्यार क्या है लेकिन दिल टूटने का एहसास जरूर हो गया था , या शायद तब जब ज़िंदगी के कुछ अंधरे हादसों को इतने करीब से देखा की उन्हें किसी से बयां नही कर पाया , तो कागज कलम से दोस्ती कर ली।

एक वक्त तक खुद को ही अलग अलग रूपों में आपके सामने लाता रहा , इतनी थोड़ी सी ज़िंदगी में जो देखा समझा उसे अल्फाजो में लपेट आपको समझाता  रहा , फिर  अचानक से लगा की हमारे हर तरफ न जाने कितने  किस्से  बिखरे हुए है ,  कभी हंसती तो कभी रुलाती है ज़िंदगी , कभी लगता है बस अब एक नई शुरुवात  और कभी अब सब खत्म करती ज़िंदगी  , कभी उम्मीदों की रोशनी से नहायी तो कभी  निराशा के अंधेरे में डूबी ज़िंदगी     ………..सीलन भरी, चुभती, सहलाती, खुशबूदार ज़िंदगी, लेकिन हरदम चलने वाली ज़िंदगी   तो बस दोस्तों ज़िंदगी के इन्ही हजारों  रंग  के अफसानों को अपने अल्फाज दे आप के सामने रख दिया .खुशियों का पल ढूंढने की जगह हर पल में खुशियां तलाशने लगा.

कमाल की बात कभी ये नही सोचा था कभी कुछ लिख पाउँगा पर लिखना शुरू किया तो यक़ीन हुआ हाँ लिख सकता हूँ और उस से भी  कमाल की बात आपको मेरा लिखा कभी कभी पसंद भी आ जाता है…

अच्छा लिखता या बुरा नही पता पर तमाम कामो से इतर लिखना मेरे लिये खुद से मिलने का एक जरिया बन गया है., फेसबुक या मेल पर एक दुक्का लोग तरीफ करते रहे . और आप सब के प्यार और साथ ने मेरी कहानियों को एक किताब का रूप दिलवा दिया . अब “ जिस्म की बात नही है “ के रूप में मेरी पहली किताब आपके लिए हाजी  नजीर है . अब आपका प्यार , दुलार और साथ बातएगा की मै  कितना सफल  हुआ .
और हमारे लिए तो हरिवंश जी बहुत पहले ही बोल गए थे :
” मिट्टी का तन, मस्ती का मन, हर पल जीवन, मेरा परिचय.

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mradul-kapilwriter-mradul-kapilmradul-kapil-writer-author-mradul-kapilmradul-kapil-invc-news-mradul-kapil-story-teller1111परिचय – :

म्रदुल कपिल

लेखक व् विचारक

18 जुलाई 1989 को जब मैंने रायबरेली ( उत्तर प्रदेश ) एक छोटे से गाँव में पैदा हुआ तो तब  दुनियां भी शायद हम जैसी मासूम रही होगी . वक्त के साथ साथ मेरी और दुनियां दोनों की मासूमियत गुम होती गयी . और मै जैसी दुनियां  देखता गया उसे वैसे ही अपने अफ्फाजो में ढालता गया .  ग्रेजुएशन , मैनेजमेंट , वकालत पढने के साथ के साथ साथ छोटी बड़ी कम्पनियों के ख्वाब भी अपने बैग में भर कर बेचता रहा . अब पिछले कुछ सालो से एक बड़ी  हाऊसिंग  कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर हूँ . और  अब भी ख्वाबो का कारोबार कर रहा हूँ . अपने कैरियर की शुरुवात देश की राजधानी से करने के बाद अब माँ –पापा के साथ स्थायी डेरा बसेरा कानपुर में है l

पढाई , रोजी रोजगार , प्यार परिवार के बीच कब कलमघसीटा ( लेखक ) बन बैठा यकीं जानिए खुद को भी नही पता . लिखना मेरे लिए जरिया  है खुद से मिलने का . शुरुवात शौकिया तौर पर फेसबुकिया लेखक  के रूप में हुयी , लोग पसंद करते रहे , कुछ पाठक ( हम तो सच्ची  ही मानेगे ) तारीफ भी करते रहे , और फेसबुक से शुरू हुआ लेखन का  सफर ब्लाग , इ-पत्रिकाओ और प्रिंट पत्रिकाओ ,समाचारपत्रो ,  वेबसाइट्स से होता हुआ मेरी “ पहली पुस्तक “तक  आ पहुंचा है . और हाँ ! इस दौरान कुछ सम्मान और पुरुस्कार  भी मिल गए . पर सब से पड़ा सम्मान मिला आप पाठको  अपार स्नेह और प्रोत्साहन . “ जिस्म की बात नही है “ की हर कहानी आपकी जिंदगी का हिस्सा है . इसका  हर पात्र , हर घटना जुडी हुयी है आपकी जिंदगी की किसी देखी अनदेखी  डोर से . “ जिस्म की बात नही है “ की 24 कहनियाँ आयाम है हमारी 24 घंटे अनवरत चलती  जिंदगी का .

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