सत्य एवं तथ्य को नकारता कथन भागवत

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mohan bhagvat, rss chief mohan bhagvat { तनवीर जाफ़री }   देश में कुछ समय पूर्व हुए लोकसभा के आम चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा देश के वर्तमान गृहमंत्री राजनाथ सिंह से बीबीस ने यह प्रश्र किया था कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक गुरु गोलवरकर ने अपनी पुस्तक  बंच ऑफ थॉटस में यह लिखा है कि भारत के तीन प्रमुख शत्रु हैं। मुसलमान,ईसाई तथा कम्युनिस्ट। क्या आप गोलवरकर जी के इस कथन से सहमत हैं? इस प्रश्र के उत्तर में राजनाथ सिंह बगलें झांकने लगे थे। न तो अपने जवाब में उनसे हां कहा गया ना ही न। इस प्रश्न का सीधा उत्तर देने के बजाए राजनाथ सिंह ने ‘तीसरा रास्ता’ अिख्तयार करना ज़्यादा मुनासिब समझा। और सही जवाब देने के बजाए लीपापोती के अंदाज़ में बोले कि मेरे ख्याल से उन्होंने ऐसा नहीं लिखा था और मैंने ऐसा नहीं पढ़ा। ज़ाहिर है राजनाथ सिंह का यह कूटनीतिक उत्तर देश में हो रहे चुनाव के वातावरण के मद्देनज़र दिया गया था। परंतु अब देश की राजनैतिक स्थिति में काफी बदलाव आ चुका है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उसके सहयोगी दलों द्वारा पिछले चुनाव में झोंकी गई अपनी पूरी ताकत के फलस्वरूप संघ के प्रचारक रहे नरेंद्र मोदी देश के सर्वोच्च पद पर विराजमान हो चुके हैं। ऐसे में संघ व भाजपा द्वारा अपने बुनियादी एजेंडे पर और तेज़ी से चलना व उसे निरंतर धार देते रहना कतई आश्चर्यजनक नहीं है।

पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत ने एक अजीबोगरीब व हास्यासपद कही जा सकने वाली दलील पेश की। उन्होंने कहा कि जब इंग्लैड के लोग स्वयं को इंगलिश,जर्मनी के लोग जर्मन तथा अमेरिका के लोग अमेरिकी के रूप में जाने जाते हैं फिर आिखर हिंदोस्तान के लोग हिंदू के रूप में क्यों नहीं जाने जाते? साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि हिदू धर्म अन्य धर्मों को अपने आप में समाहित कर सकता है। उनके इस कथन में न केवल विरोधाभास  है बल्कि उनका यही कथन उनकी चिंताओं का माकूल जवाब भी है। बेशक इंग्लैड के लोग इंगलिश,जर्मनी के लोग जर्मन तथा अमेरिका के लोग अमेरिकी ही कहलाते हैं और कहलाना भी चाहिए। तो क्या भारत के लोग भारतीय,इंडिया के लोग इंडियन व हिंदुस्तान के लोग हिंदुस्तानी नहीं कहलाते? इन शब्दों के प्रयोग से आिखर भारतवर्ष का किसी भी धर्म का कौन सा नागरिक इंकार कर सकता है? और यदि भारत का कोई व्यक्ति स्वयं को इंडियन,भारतीय या हिंदोस्तानी कहने से गुरेज़ करे तो उसकी राष्ट्रभक्ति या राष्ट्रीयता को निश्चित रूप से संदिग्ध कहा जाना चाहिए। परंतु अमेरिका,जर्मन,इंग्लैंड अथवा भारतवर्ष या इंडिया या हिंदोस्तान यह सब भौगोलिक नाम हैं न कि इनका किसी धर्म से कोई नाता है। दूसरी ओर भागवत साहब का यह कथन कि हिंदू धर्म अन्य धर्मों को अपने-आप में समाहित कर सकता है। यहां पर उन्हीं के द्वारा हिंदू शब्द का प्रयोग एक धर्म की पहचान रखने वाले शब्द के रूप में किया गया है न कि भारतीय या हिंदोस्तानी नागरिक के परिपेक्ष्य में।

देश में अक्सर हिंदू अथवा हिंदुत्व शब्द को लेकर बहस चलती रहती है। यहां तक कि इस शब्द की परिभाषा को लेकर देश का सर्वोच्च न्यायालय भी अपने विचार व्यक्त  कर चुका है। भूगोल के जानकार भी हिंदू शब्द की व्याख्या कुछ अलग तरीके से करते हैं। धर्म व इतिहास के जानकारों का भी हिंदू शब्द के प्रयोग व इसके अर्थ को लेकर अलग-अलग मत है। देश की सर्वोच्च अदालत के अनुसार हिंदू एक जीवन शैली का नाम है। जबकि भूगोल शास्त्र के जानकारों के अनुसार हिंदुकुश पर्वत के इस पार रहने वाले लोगों को जिनमें कि पाकिस्तान व अफगानिस्तान जैसे क्षेत्र भी शामिल थे हिंदू कहा जाता था। जबकि हिंदू धर्म के निष्पक्ष सोच रखने वाले जानकारों का मत है कि दरअसल हिंदू शब्द का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। स्वयं को हिंदू कहने वालों का वास्तविक धर्म तो सनातन धर्म है। हिंदू शब्द की इतनी अलग-अलग व्याख्याओं के बावजूद संघ प्रमुख द्वारा सभी भारतवासियों को हिंदू बताना मुनासिब नहीं है। गत् वर्ष मुझे चीन जाने का अवसर मिला। वहां के आम लोग भारत के लोगों को इंडू कहकर पुकारते सुने गए। उन्होंने इंडू शब्द इंडिया से गढ़ा है। गोया इंडिया का रहने वाला इंडू। उनके इस संबोधन से मुझे कोई आपत्ति न तो हुई और न ही होनी चाहिए थी। परंतु भागवत का बयान न केवल सत्य एवं तथ्य को नकारने वाला बयान है बल्कि उनके इस बयान से संघ के चिरपरिचित दुराग्रह का भी पता चलता है।

संघ न केवल गैर हिंदू लोगों के प्रति दुराग्रह रखता है बल्कि भाषा को लेकर भी संघ अपना अडिय़ल रुख अपनाता रहा है। मिसाल के तौर पर अल्लामा इकबाल की अत्यंत लोकप्रिय नज़्म सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा, इस नज़्म में इकबाल ने स्वयं हिंदोस्तां शब्द का बड़े ही गर्व के साथ प्रयोग किया है। हिंदोस्तां का विच्छेद करने पर हमें दो शब्द मिलते हैं। हिंदू+आस्तां। आस्तां का अर्थ घर होता है । अत: हिंदोस्तां का अर्थ हिंदुओं का घर। यानी इकबाल को हिंदोस्तां को हिंदुओं का घर लिखने में कोई आपत्ति नहीं हुई। परंतु संघ विचारधारा के लोगों द्वारा जब-जब हिंदोस्तां शब्द का प्रयोग किया जाता रहा है तब-तब उनके द्वारा इसका उच्चारण हिंदोस्तां के बजाए हिंदुस्थान के रूप में किया गया है। इसके बावजूद आज तक देश के किसी गैर हिंदू धर्म के मानने वाले भारतीय नागरिक को स्वयं को हिंदोस्तानी कहने में आपत्ति व्यक्त करते हुए नहीं देखा गया। फिर आिखर भागवत द्वारा प्रत्येक भारतवासी को हिंदू कहने की सलाह देने या हिंदू धर्म में अन्य धर्मों के समावेश की बात करने का मकसद क्या है? कल तक संघ विचारधारा के लोग देश को हिंदू राष्ट्र बनाए जाने की बातें किया करते थे। आज इसी संघ के कई नेता यह कहते सुने जा रहे हैं कि भारत हिदू राष्ट्र बन चुका है। गौरतलब है कि अभी कुछ वर्ष पूर्व तक पड़ोसी देश नेपाल के हिंदू राष्ट्र होते हुए भी वहां अन्य सभी धर्मों व विश्वासों के लोगों को पूरा मान-सम्मान व मान्यता मिली हुई थी। और वह स्थिति नेपाल में अब भी बरकरार है। नेपाल में बड़ी से बड़ी मस्जिदें,गुरुद्वारे तथा गिरजाघर आदि सब कुछ हैं। इतना ही नहीं बल्कि नेपाल में उसी हिदू राष्ट्र में मुस्लिम व्यक्ति सांसद भी चुना जाता रहा है। परंतु संघ द्वारा अथवा ‘कथन भागवत ’ में जिस हिंदू या हिंदुत्च शब्द का उल्ल्ेाख किया जाता है आिखर वह कौन सा हिंदुत्व है?

भारतवर्ष में सनातन धर्म के मानने वाले स्वयं को हिंदू लिखने ज़रूर लगे। परंतु हिंदू धर्म के धर्मग्रंथों,वेदों,पुराणों तथा शास्त्रों में कहीं भी हिंदू धर्म का कोई उल्लेख नहीं मिलता। फिर भी हिंदू शब्द एक धर्म विशेष के रूप में मान्यता हासिल कर चुका है तथा प्रत्येक सनातनी स्वयं को हिंदू कहकर अपना परिचय कराता है। ऐसे में दूसरे विश्वासों व धर्मों के लोगों को बिना किसी सत्य व तथ्य के हिंदू धर्म के साथ शामिल करने की बात करना अनैतिक होने के साथ-साथ दूसरे धर्मों व विश्वासों की स्वतंत्रता में भी दखल अंदाज़ी है। सत्ता की राजनीति पर अपना निशाना साधते हुए हिंदू धर्म के मतों का ध्रुवीकरण किए जाने के उद्देश्य से संघ नेताओं द्वारा बार-बार जारी किए जा रहे ऐसे तथा इस प्रकार के दूसरे बयानों के जारी करने से बेहतर है कि यह नेता अपना धार्मिक व सांप्रदायिक एजेंडा व इससे संबंधित सभी पूर्वाग्रह त्यागकर देश को एक सूत्र में बांधने की बातें करें। संघ परिवार द्वारा कई दशकों से हिंदू समाज के लोगों को यह नारा लगाने के लिए प्रेरित किया जाता रहा है कि ‘गर्व से कहो हम हिंदू हैं’। संघ विचारधारा रखने वाले हिंदुत्ववादी लोगों के घरों, दुकानों व उनके संस्थानों पर तो इस नारे के स्टीकर या पोस्टर लगे दिखाई दे जाते हैं। परंतु कोई भी गैर हिंदू राष्ट्रवादी ऐसे नारों को अपने किसी भी ठिकाने पर लगाने से परहेज़ करता है। आिखर ऐसा क्यों? परंतु यदि इसी नारे की जगह यह लिखा हो कि ‘गर्व से कहो हम हिंदोस्तानी हैं या गर्व से कहो कि हम भारतीय हैं तो निश्चित रूप से किसी भी भारतवासी को यह नारा अपने घर की दर-ो-दीवार पर तो क्या शायद अपने माथे पर भी लगाने से कोई एतराज़ नहीं होगा। बल्कि ऐसे नारों को अपने दर-ो-दीवार की रौनक़ बनाकर प्रत्येक भारतवासी स्वयं को गौरवान्वित महसूस करेगा।

उपरोक्त तथ्यों के मद्देनज़र संघ परिवार व उसके नेता यदि वास्तव में स्वयं को राष्ट्रवादी कहते व समझते हैं तो ध्रुवीकरण कराने वाले वक्तव्य देने के बजाए समाज के सभी वर्गों,देश के सभी धर्मों व समुदायों को परस्पर मज़बूती से जोडऩे वाले बयान दिया करें। सच्ची राष्ट्रीयता इसी में है कि देश को राष्ट्रीयता के एक मज़बूत सूत्र में बांधकर रखा जाए। न कि अपने घिसेपिटे दिकयानूसी एजेंडे पर चलाते हुए देश को बांटने व कमज़ोर करने का प्रयास किया जाए।

सत्य एवं तथ्य को नकारता कथन भागवत

देश में कुछ समय पूर्व हुए लोकसभा के आम चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा देश के वर्तमान गृहमंत्री राजनाथ सिंह से बीबीस ने यह प्रश्र किया था कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक गुरु गोलवरकर ने अपनी पुस्तक  बंच ऑफ थॉटस में यह लिखा है कि भारत के तीन प्रमुख शत्रु हैं। मुसलमान,ईसाई तथा कम्युनिस्ट। क्या आप गोलवरकर जी के इस कथन से सहमत हैं? इस प्रश्र के उत्तर में राजनाथ सिंह बगलें झांकने लगे थे। न तो अपने जवाब में उनसे हां कहा गया ना ही न। इस प्रश्न का सीधा उत्तर देने के बजाए राजनाथ सिंह ने ‘तीसरा रास्ता’ अिख्तयार करना ज़्यादा मुनासिब समझा। और सही जवाब देने के बजाए लीपापोती के अंदाज़ में बोले कि मेरे ख्याल से उन्होंने ऐसा नहीं लिखा था और मैंने ऐसा नहीं पढ़ा। ज़ाहिर है राजनाथ सिंह का यह कूटनीतिक उत्तर देश में हो रहे चुनाव के वातावरण के मद्देनज़र दिया गया था। परंतु अब देश की राजनैतिक स्थिति में काफी बदलाव आ चुका है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उसके सहयोगी दलों द्वारा पिछले चुनाव में झोंकी गई अपनी पूरी ताकत के फलस्वरूप संघ के प्रचारक रहे नरेंद्र मोदी देश के सर्वोच्च पद पर विराजमान हो चुके हैं। ऐसे में संघ व भाजपा द्वारा अपने बुनियादी एजेंडे पर और तेज़ी से चलना व उसे निरंतर धार देते रहना कतई आश्चर्यजनक नहीं है।

पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत ने एक अजीबोगरीब व हास्यासपद कही जा सकने वाली दलील पेश की। उन्होंने कहा कि जब इंग्लैड के लोग स्वयं को इंगलिश,जर्मनी के लोग जर्मन तथा अमेरिका के लोग अमेरिकी के रूप में जाने जाते हैं फिर आिखर हिंदोस्तान के लोग हिंदू के रूप में क्यों नहीं जाने जाते? साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि हिदू धर्म अन्य धर्मों को अपने आप में समाहित कर सकता है। उनके इस कथन में न केवल विरोधाभास  है बल्कि उनका यही कथन उनकी चिंताओं का माकूल जवाब भी है। बेशक इंग्लैड के लोग इंगलिश,जर्मनी के लोग जर्मन तथा अमेरिका के लोग अमेरिकी ही कहलाते हैं और कहलाना भी चाहिए। तो क्या भारत के लोग भारतीय,इंडिया के लोग इंडियन व हिंदुस्तान के लोग हिंदुस्तानी नहीं कहलाते? इन शब्दों के प्रयोग से आिखर भारतवर्ष का किसी भी धर्म का कौन सा नागरिक इंकार कर सकता है? और यदि भारत का कोई व्यक्ति स्वयं को इंडियन,भारतीय या हिंदोस्तानी कहने से गुरेज़ करे तो उसकी राष्ट्रभक्ति या राष्ट्रीयता को निश्चित रूप से संदिग्ध कहा जाना चाहिए। परंतु अमेरिका,जर्मन,इंग्लैंड अथवा भारतवर्ष या इंडिया या हिंदोस्तान यह सब भौगोलिक नाम हैं न कि इनका किसी धर्म से कोई नाता है। दूसरी ओर भागवत साहब का यह कथन कि हिंदू धर्म अन्य धर्मों को अपने-आप में समाहित कर सकता है। यहां पर उन्हीं के द्वारा हिंदू शब्द का प्रयोग एक धर्म की पहचान रखने वाले शब्द के रूप में किया गया है न कि भारतीय या हिंदोस्तानी नागरिक के परिपेक्ष्य में।

देश में अक्सर हिंदू अथवा हिंदुत्व शब्द को लेकर बहस चलती रहती है। यहां तक कि इस शब्द की परिभाषा को लेकर देश का सर्वोच्च न्यायालय भी अपने विचार व्यक्त  कर चुका है। भूगोल के जानकार भी हिंदू शब्द की व्याख्या कुछ अलग तरीके से करते हैं। धर्म व इतिहास के जानकारों का भी हिंदू शब्द के प्रयोग व इसके अर्थ को लेकर अलग-अलग मत है। देश की सर्वोच्च अदालत के अनुसार हिंदू एक जीवन शैली का नाम है। जबकि भूगोल शास्त्र के जानकारों के अनुसार हिंदुकुश पर्वत के इस पार रहने वाले लोगों को जिनमें कि पाकिस्तान व अफगानिस्तान जैसे क्षेत्र भी शामिल थे हिंदू कहा जाता था। जबकि हिंदू धर्म के निष्पक्ष सोच रखने वाले जानकारों का मत है कि दरअसल हिंदू शब्द का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। स्वयं को हिंदू कहने वालों का वास्तविक धर्म तो सनातन धर्म है। हिंदू शब्द की इतनी अलग-अलग व्याख्याओं के बावजूद संघ प्रमुख द्वारा सभी भारतवासियों को हिंदू बताना मुनासिब नहीं है। गत् वर्ष मुझे चीन जाने का अवसर मिला। वहां के आम लोग भारत के लोगों को इंडू कहकर पुकारते सुने गए। उन्होंने इंडू शब्द इंडिया से गढ़ा है। गोया इंडिया का रहने वाला इंडू। उनके इस संबोधन से मुझे कोई आपत्ति न तो हुई और न ही होनी चाहिए थी। परंतु भागवत का बयान न केवल सत्य एवं तथ्य को नकारने वाला बयान है बल्कि उनके इस बयान से संघ के चिरपरिचित दुराग्रह का भी पता चलता है।

संघ न केवल गैर हिंदू लोगों के प्रति दुराग्रह रखता है बल्कि भाषा को लेकर भी संघ अपना अडिय़ल रुख अपनाता रहा है। मिसाल के तौर पर अल्लामा इकबाल की अत्यंत लोकप्रिय नज़्म सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा, इस नज़्म में इकबाल ने स्वयं हिंदोस्तां शब्द का बड़े ही गर्व के साथ प्रयोग किया है। हिंदोस्तां का विच्छेद करने पर हमें दो शब्द मिलते हैं। हिंदू+आस्तां। आस्तां का अर्थ घर होता है । अत: हिंदोस्तां का अर्थ हिंदुओं का घर। यानी इकबाल को हिंदोस्तां को हिंदुओं का घर लिखने में कोई आपत्ति नहीं हुई। परंतु संघ विचारधारा के लोगों द्वारा जब-जब हिंदोस्तां शब्द का प्रयोग किया जाता रहा है तब-तब उनके द्वारा इसका उच्चारण हिंदोस्तां के बजाए हिंदुस्थान के रूप में किया गया है। इसके बावजूद आज तक देश के किसी गैर हिंदू धर्म के मानने वाले भारतीय नागरिक को स्वयं को हिंदोस्तानी कहने में आपत्ति व्यक्त करते हुए नहीं देखा गया। फिर आिखर भागवत द्वारा प्रत्येक भारतवासी को हिंदू कहने की सलाह देने या हिंदू धर्म में अन्य धर्मों के समावेश की बात करने का मकसद क्या है? कल तक संघ विचारधारा के लोग देश को हिंदू राष्ट्र बनाए जाने की बातें किया करते थे। आज इसी संघ के कई नेता यह कहते सुने जा रहे हैं कि भारत हिदू राष्ट्र बन चुका है। गौरतलब है कि अभी कुछ वर्ष पूर्व तक पड़ोसी देश नेपाल के हिंदू राष्ट्र होते हुए भी वहां अन्य सभी धर्मों व विश्वासों के लोगों को पूरा मान-सम्मान व मान्यता मिली हुई थी। और वह स्थिति नेपाल में अब भी बरकरार है। नेपाल में बड़ी से बड़ी मस्जिदें,गुरुद्वारे तथा गिरजाघर आदि सब कुछ हैं। इतना ही नहीं बल्कि नेपाल में उसी हिदू राष्ट्र में मुस्लिम व्यक्ति सांसद भी चुना जाता रहा है। परंतु संघ द्वारा अथवा ‘कथन भागवत ’ में जिस हिंदू या हिंदुत्च शब्द का उल्ल्ेाख किया जाता है आिखर वह कौन सा हिंदुत्व है?

भारतवर्ष में सनातन धर्म के मानने वाले स्वयं को हिंदू लिखने ज़रूर लगे। परंतु हिंदू धर्म के धर्मग्रंथों,वेदों,पुराणों तथा शास्त्रों में कहीं भी हिंदू धर्म का कोई उल्लेख नहीं मिलता। फिर भी हिंदू शब्द एक धर्म विशेष के रूप में मान्यता हासिल कर चुका है तथा प्रत्येक सनातनी स्वयं को हिंदू कहकर अपना परिचय कराता है। ऐसे में दूसरे विश्वासों व धर्मों के लोगों को बिना किसी सत्य व तथ्य के हिंदू धर्म के साथ शामिल करने की बात करना अनैतिक होने के साथ-साथ दूसरे धर्मों व विश्वासों की स्वतंत्रता में भी दखल अंदाज़ी है। सत्ता की राजनीति पर अपना निशाना साधते हुए हिंदू धर्म के मतों का ध्रुवीकरण किए जाने के उद्देश्य से संघ नेताओं द्वारा बार-बार जारी किए जा रहे ऐसे तथा इस प्रकार के दूसरे बयानों के जारी करने से बेहतर है कि यह नेता अपना धार्मिक व सांप्रदायिक एजेंडा व इससे संबंधित सभी पूर्वाग्रह त्यागकर देश को एक सूत्र में बांधने की बातें करें। संघ परिवार द्वारा कई दशकों से हिंदू समाज के लोगों को यह नारा लगाने के लिए प्रेरित किया जाता रहा है कि ‘गर्व से कहो हम हिंदू हैं’। संघ विचारधारा रखने वाले हिंदुत्ववादी लोगों के घरों, दुकानों व उनके संस्थानों पर तो इस नारे के स्टीकर या पोस्टर लगे दिखाई दे जाते हैं। परंतु कोई भी गैर हिंदू राष्ट्रवादी ऐसे नारों को अपने किसी भी ठिकाने पर लगाने से परहेज़ करता है। आिखर ऐसा क्यों? परंतु यदि इसी नारे की जगह यह लिखा हो कि ‘गर्व से कहो हम हिंदोस्तानी हैं या गर्व से कहो कि हम भारतीय हैं तो निश्चित रूप से किसी भी भारतवासी को यह नारा अपने घर की दर-ो-दीवार पर तो क्या शायद अपने माथे पर भी लगाने से कोई एतराज़ नहीं होगा। बल्कि ऐसे नारों को अपने दर-ो-दीवार की रौनक़ बनाकर प्रत्येक भारतवासी स्वयं को गौरवान्वित महसूस करेगा।

उपरोक्त तथ्यों के मद्देनज़र संघ परिवार व उसके नेता यदि वास्तव में स्वयं को राष्ट्रवादी कहते व समझते हैं तो ध्रुवीकरण कराने वाले वक्तव्य देने के बजाए समाज के सभी वर्गों,देश के सभी धर्मों व समुदायों को परस्पर मज़बूती से जोडऩे वाले बयान दिया करें। सच्ची राष्ट्रीयता इसी में है कि देश को राष्ट्रीयता के एक मज़बूत सूत्र में बांधकर रखा जाए। न कि अपने घिसेपिटे दिकयानूसी एजेंडे पर चलाते हुए देश को बांटने व कमज़ोर करने का प्रयास किया जाए।

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Tanveer Jafri**Tanveer Jafri

columnist and AuthorAuthor Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc. He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
Contact Email :tanveerjafriamb@gmail.com
1622/11, Mahavir Nagar Ambala
City. 134002 Haryana
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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC. 

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