सत्ता का द्वन्द्व युद्ध – भाजपा और काँगेस कि मुसीबतों के बीच क्या है आम आदमी पार्टी कि आशाएं !

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arvind kejreewal{ तनवीर जाफरी }
देश के राजनैतिक पटल पर ‘आप’ नामक एक नए राजनैतिक दल का उदय हो चुका है। गत् सात दशकों तक घूम-फिर कर कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी के ही हाथों तक सीमित रहने वाली दिल्ली की सत्ता को दिल्लीवासियों ने आम आदमी पार्टी(आप) के उदय के साथ ही उसे तोह$फे में भेंट की है। ज़ाहिर है एक ऐसा नवोदित राजनैतिक संगठन जिसकी बागडोर ईमानदार, भ्रष्टाचार का विरोध करने वाले तथा देश में व्यवस्था परिवर्तन लाने की बात करने वालों के हाथों में हो तथा उसकी आर्थिक स्थिति भी अन्य पेशेवर राजनैतिक दलों के मु$काबले नगण्य हो उसका दिल्ली की सत्ता में आना अपने-आप में देश में घटित होने वाली एक बड़ी राजनैतिक घटना है। राजनीति के विश£ेषकों द्वारा इस घटना को तरह-तरह से परिभाषित किया जा रहा है। पंरतु ‘आप’ के राजनैतिक उदय का सर्वप्रमुख एवं लगभग सर्वमान्य कारण जो माना जा रहा है वह यही है कि देश की जनता जहां भ्रष्टाचार तथा देश को अपनी राजनैतिक विरासत समझने वालों से जितनी दु:खी है वहीं दिल्लीवासियों ने मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी पर भी वैसा विश्वास नहीं जताया जैसा कि भाजपा के नेता आस लगाए बैठे थे। कांग्रेस पार्टी के बाहरी समर्थन से बनी दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में सत्ता संभालते ही आम जनता को जनता का राज होने के जो संदेश देने शुरु किए उसने न केवल आप पार्टी की छवि को और अधिक लोकप्रिय बनाना शुरु कर दिया है बल्कि अब दूसरे पारंपरिक राजनैतिक दलों के नेता भी आप पार्टी के $कदमों पर चलने की योजनाएं बनाने लगे हैं।
यदि ‘आप’ पार्टी के सत्ता संभालने के शुरुआती घटनाक्रम से ही नज़र डालनी शुरु करें तो हम यह देखेंगे कि दिल्ली में आम जनता ने पहली बार दिल्ली के किसी मुख्यमंत्री को इस प्रकार की सादगी व बिना narendra modiसुरक्षा व्यवस्था के शपथ लेते हुए देखा। पूरा ही शपथ ग्रहण समारोह साधारण व औपचारिक था। उसके पश्चात अरविंद केजरीवाल व उनके मंत्रियों का जनता के मध्य जाना, सबसे व्यक्तिगत् रूप से मिलना, मैट्रो ट्रेन में स$फर कर शपथ ग्रहण करने हेतु रामलीला मैदान तक पहुंचना, उसके पश्चात बीमारी की स्थिति में अधिकारियों की बैठकें बुलाना, अपने घर पर जनता दरबार लगाना,खाने-पीने, पहनने-ओढऩे,बातचीत प्रत्येक क्षेत्र में बेइंतहा सादगी का परिचय देना निश्चित रूप से हमें उन प्राचीन,कुशल राजाओं की कथाओं की याद दिलाता है जिसमें राजा अपनी प्रजा का हालचाल जानने के लिए कभी साक्षात तो कभी वेश बदलकर जनता के बीच जाया करता था। केजरीवाल व उनके साथियों के हौसले निश्चित रूप से ऐसे ही हैं। वे राजनीति को विशेषकर सत्ता की राजनीति को दंभ,अहंकार, रिश्वत$खोरी, भ्रष्टाचार, अपने रिश्तेदारों व परिवार के लोगों के लिए अकूत संपत्ति जमा करने, अपना साम्राज्य स्थापित करने या गुंडागर्दी का साधन मात्र समझने के बजाए देश व जनता की सही मायने में सेवा करने का साधन समझते हैं।
गत् सात दशकों की राजनीति का दिन-प्रतिदिन गिरता स्तर आम लोगों का राजनीति व राजनैतिक दलों यहां तक कि लोकतांत्रिक राजनैतिक व्यवस्था तक से मोहभंग करने लगा था। राजनीति का चेहरा इतना बदसूरत व भयावह हो चुका है कि किसी भी राजनैतिक दल में मौजूद ईमानदार व्यक्ति भी पार्टी लाईन से राहुल गांधीहटकर अपने विचार व्यक्त नहीं कर सकता। जनहित व लोकहित के बजाए लोकलुभावनी राजनीति को प्रमुखता दी जाने लगी है। देश मेें धर्म व संप्रदाय के नाम पर सत्ता हासिल करने के जोड़-तोड़ सरेआम हो रहे हैं। भारतीय समाज का ध्यान मंदिर-मस्जिद, मंडल-कमंडल जैसी राजनीति में उलझाकर महंगाई,बेरोज़गारी व भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं की ओर से मोड़ दिया गया है। भ्रष्टाचार का आलम यह है कि नेता,अधिकारी,व्यवसायी, मा$िफया आदि मिलकर देश को अपने तरी$के से लूट व बेच रहे हैं। चुनावों के दौरान भी यही देखा जाता है कि प्राय: जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत चरितार्थ होती है। इन सब प्रदूषित एवं नकारात्मक राजनैतिक वातावरण के बीच आम आदमी पार्टी का उदय अपने-आप में इस बात का द्योतक है कि देश की जनता अब तथाकथित मंदिर-मस्जिद अथवा पाखंडपूर्ण सांस्कृतिक राष्ट्रवाद जैसे झांसे में आने के बजाए रोटी-कपड़ा,मकान-स्वास्थ्य,स्वच्छ जल,मंहगाई, भ्रष्टाचार, रोज़गार तथा अपने मूलभूत अधिकारों के लिए ज़्यादा चिंतित है। और दिल्ली की इन्हीं जनभावनाओं ने पूरे विश्वास व भरोसे के साथ साधारण व फक्कड़ $िकस्म के उन नेताओं के हाथों में दिल्ली की बागडोर सौंपी है जिनका राजनैतिक चरित्र बेदा$ग है तथा यह लोग किसी पारंपरिक राजनैतिक घराने से भी संबद्ध नहीं हैं।
अरविंद केजरीवाल के दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके विरोधियों व आलोचकों द्वारा उनके दो प्रमुख चुनावी वादों को उनके शपथ लेने से पूर्व ही बहस व संदेह का मुद्दा बना लिया गया था। परंतु केजरीवाल ने एक मंझे हुए कुशल राजनीतिज्ञ की तरह निर्णय लेते हुए बिजली व पानी संबंधी अपने दोनों वादों को पूरा करने का प्रयास किया है। अरविंद केजरीवाल के आलोचकों अथवा विरोधियों को उनके चुनाव घोषणापत्र में किए गए वादों पर अक्षरश: नज़र रखने के बजाए उनकी नीयत,उनके इरादों व उनके ईमानदाराना प्रयासों व हौसलों की तारी$फ करनी चाहिए। केजरीवाल का एक-एक दिन देश के अन्य सत्ता भोगी राजनेताओं के लिए एक आदर्श से कम नहीं। कहने को तो प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री भी जनता दरबार में लोगों से रूबरू होते हैं। परंतु वह जनता दरबार कितना प्रासंगिक,कितना कारगर व बाअसर होता है व ऐसे जनता दरबार से कितने लोगों को $फायदा पहुंचता है यह भी या तो प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को पता है या फिर ऐसे दरबारों में ‘सौभाग्यवश’ पहुंच पाने वाली शिकायतकर्ता जनता को। सत्तारूढ़ दलों के अनपढ़ तथा बिना कोई विचारधारा व दृष्टिकोण रखने वाले गुर्गे व उनके चमचे आज अकूत संपत्तियों के मालिक बने बैठे हैं। ऐसे शाही राजनेता पांच सालों में एक बार जनता के बीच जाकर बड़े ही नाटकीय ढंग से हाथ जोड़ती हुई मुद्रा में अपनी $फोटो बड़े-बड़े विज्ञापन बोर्डों में लगवाकर मतदाताओं के सम्मुख ‘अवतरित’होते हैं और वोट मांगने की ‘सादगी’ का ढोंगपूर्ण प्रदर्शन करते हैं। शेष पांच वर्ष तक जनता अपने प्रतिनिधि को ढूंढती रह जाती है। सरकारी कार्यालयों में बिना कर्मचारियों की मु_ी गर्म किए कोई काम नहीं होता। सरकारी सप्लाई व ठेका सत्तारुढ़ दलों के नेताओं के रिश्तेदारों या $करीबी लोगों को मिलता है। परिणामस्वरूप नेता व भ्रष्ट अधिकारी या रिश्वत$खोर,जमा$खोर व्यक्ति तो अमीर से अमीर होता जा रहा है जबकि आम जनता मंहगाई के बोझ तले दबकर और अधिक $गरीब होती जा रही है।
देश की इन कुरूप होती राजनैतिक परिस्थितियों ने ‘आप’ जैसे नए राजनैतिक दल को देश की जागरूक राजधानी की ओर से परिचित कराया है। 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भी ‘आप’पार्टी के ताल ठोकने की धमक सुनाई देने लगी है। $खबर तो यहां तक है कि यथाशीघ्र ‘आप’ पार्टी देश की लगभग 300 सीटों के लिए अपने उम्मीदवार भी घोषित कर देगी। ज़ाहिर है संसदीय चुनाव में पहली बार ताल ठोकने वाली राजधानी दिल्ली की सत्तारूढ़ पार्टी का पूरे देश से अपना परिचय कराने का यह पहला मौ$का होगा। ऐसे में आप के द्वारा दिल्ली की सत्ता की थाली कांग्रेस व भाजपा दोनों के सामने से खींच लेने की घटना ने न केवल कांग्रेस पार्टी की नींदें उड़ाकर रख दी हैं बल्कि उन भाजपाईयों के सपने भी चकनाचूर कर दिए हैं जो 2014 का चुनाव होने से पूर्व ही लाल कि़ला व संसद भवन के बनावटी पंडाल में भाषण देकर जनता को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि अगली बार संसद भवन व लाल कि़ला हमारा होकर रहेगा। अपने जनाधार को और मज़बूत करने की $गरज़ से भाजपा ने हड़बड़ाहट में येदिउरप्पा जैसे दाaam aadmi party$गदार छवि के नेता को पार्टी में पुन: शामिल कर लिया है। भाजपा यह जानती है कि दिल्ली के मतदाता कांग्रेस पार्टी से यदि दु:खी थे तो वे भाजपा के भी झांसे में आने से कतरा रहे थे। देश ने दिल्ली के परिणामों से यह संदेश ले लिया है कि जनता अब वर्ग,जाति, संप्रदाय,क्षेत्रीयता तथा अन्य छोटी-मोटी राजनीति की उपज समझे जाने वाली सीमाओं में उलझने के बजाए व सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के झूठे व $फरेबयुक्त नारे में उलझने के बजाए सर्वधर्म संभाव का मार्ग दिखाने वाले महात्मा गांधी के सपनों के उस भारत निर्माण की ओर अपना $कदम उठा चुकी है जोकि दुनिया के समक्ष भ्रष्टाचार मुक्त, सांप्रदायिकता मुक्त तथा राष्ट्रवादी लोगों का भारत कहलाया जा सके। इसलिए न केवल देश की जनता बल्कि राजनीति के विश£ेषकों व मीडिया यहां तक कि अन्य दलों के ईमानदार राजनीतिज्ञों का भी यह कर्तव है कि वे राष्ट्र के हित में ‘आप’ को संदेह की नज़रों से देखने के बजाए आशाओं व उम्मीदों की नज़रों से देखें।

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Tanveer Jafri**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc. He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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