सड़कों पर फल बेच रही डॉ. रईसा, कभी बेल्जियम से मिला था Research का ऑफर

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भौतिकशास्‍त्र में पीएचडी की डिग्री हासिल करने वाले डॉ. रईसा अंसारी अब सड़कों पर फल बेचने का काम कर रही है। रईसा को फल बेचते देख कोई भी अंदाजा नहीं सकता कि साधारण सी दिखती यह महिला भौतिकशास्‍त्र की इतनी बड़ी ज्ञानी हो सकती है। मगर, कुछ दस्तखतों व पारिवारिक परिस्थितियों ने उनकी दिशा ऐसी बदली कि वह सड़कों पर फल बेचने को मजबूर हो गई।

भौतिकशास्‍त्र में ली पीएचडी की डिग्री
इंदौर की रहने वाली डॉ. रईसा अंसारी ने देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंस्ट्रूमेंटेशन से भौतिकशास्‍त्र में पीएचडी की डिग्री हासिल की है। उन्होंने इसी कॉलेज से प्रथम श्रेणी में एमएससी की डिग्री भी  हासिल की थी। यही नहीं, डिग्री पूरी करने के बाद उन्हें बेल्जियम में रिसर्च प्रोजेक्ट में काम करने का अवसर भी प्राप्त हुआ। इसके बाद उन्होंने पारिवारिक फल बेचने का काम शुरू किया लेकिन इसके लिए वह किसी को दोष नहीं देती।

सोशल मीडिया पर वायरस रईसा का वीडियो
हाल ही में वह चर्चा में तब आई जब नगर निगम के कर्मचारियों ने उन्हें ठेला हटाने के लिए कहा और उन्होंने इंग्लिश में कर्मचारियों को खरी-खोटी सुनाई। सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो को देख यूनिवर्सिटी के कई प्रोफेसरों ने उन्हें पहचान लिया।

ये सिर्फ इंदोर के नाही ,बल्की सारे देश के गरिबोंकी आवाज हैं जो रास्ते मे ठेले लगाके अपनी रोजी रोटी चलाते हैं..आज करोना संकट कालमे सबपे भुके सोनेकी नौबत अा रही हैं.. ऐसे समय हम अपने सरकार से मदत की उमीद रखते है.. l

एक दस्तखत ने रोकी बेल्जियम की राह
रईसा बताती हैं कि पीएचडी के दौरान उन्हें कई बेहतरीन मौके मिले लेकिन एक हस्ताक्षर ने उसकी जिंदगी का रुख बदल दिया। यह उसी का नतीजा है कि वह आज फल बेचने को मजबूर हैं। दरअसल, पीएचडी के दौरान ही उन्हें रिसर्च के लिए बेल्जियम से ऑफर आया था लेकिन तब वह CSIR की फेलोशिप पर IISER कोलकाता में रिसर्च कर रही थीं। उनके सीनियर अनुपम, शिल्पा, रंजीत बेल्जियम में एक रिसर्च प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। रिसर्च में शामिल होने के लिए उन्हें पीएचडी गाइड की अनुमति चाहिए थी लेकिन उन्होंने दस्तखत करने से मना कर दिया। इसी के चलते उनके हाथ से बेल्जियम का मौका निकल गया और वह कोलकाता से भी वापिस आ गई।

2 साल तक रोका गया मेरा वायवाः रईसा
रईसा बताती है कि वह 2004 में phd के लिए रजिस्टर्ड हुई थी लेकिन उन्हें डिग्री 2011 में दी गई। दरअसल, एक बार उन्हें जूनियर रिसर्चर का अवॉर्ड दिया जा रहा था। तभी मीडिया ने उनके गाइड का नाम पूछा लेकिन वह मीडिया के सामने नहीं आना चाहते थे इसलिए रईस ने दूसरे प्रोफेसर का नाम ले दिया। तभी से उनके गाइड का रवैया बदल गया। रईसा ने उनके माफी भी मांगी लेकिन गलतफहमी के चलते उन्होंने 2 साल तक उनका वायवा नहीं होने दिया।

इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ा चुकी हैं डॉ. रईसा
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में रजिस्ट्रार डॉ. आरडी मूसलगांवकर और रेक्टर प्रो. आशुतोष मिश्रा ने उनकी मदद की और वायवा करवाया। इसके बाद रईस को पीएचडी की डिग्री दी गई। इसके बाद वह सहायक प्राध्यापक की नौकरी करने लगी लेकिन पारिवारिक स्थितियों के चलते उन्हें यह नौकरी भी छोड़नी पड़ी। इसके बाद उन्होंने स्थानीय निजी इंजीनियरिंग कॉलेज में सहायक प्राध्यापक के रूप में फिजिक्स पढ़ानी शुरू की।

भाभी ने लगाए दहेज के आरोप
रईसा की भाभियों ने उनपर दहेज प्रताड़ना के आरोप लगाए। उनकी दो भाभियां तो छोटे बच्चों को भी छोड़कर चली गई। लिहाजा छोटे बच्चों की देखभाल के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ परिवार के साथ फल बेचना शुरू किया।

अब भी करना चाहती हैं रिसर्च
बता दें कि रईसा के परिवार में कुल 25 लोग हैं, जिनकी देखभाल के लिए उन्होंने अपने करियर को भी दांव पर लगा दिया। हालांकि डॉ. रईसा का कहना है कि अगर उन्हें अवसर दिया जाए तो वह अब भी शोध कार्यों से जुड़ना चाहेंगी। PLC.

 

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