सक्षम व्यवस्था विकृत होने से बचा रहे है शंकराचार्य

0
30

aakla{ मनोज मर्दन त्रिवेदी } परम पूज्य शंकराचार्य स्वामी स्वारूपानंद जी महाराज का आज ९१र्वा जन्म दिवस है । धर्म की रक्षा और धार्मिक आस्थाओं में कुठाराघात या विकृती पर समाज को जगाना धर्मादेश देने के वे अधिकारी है । हिन्दु धर्म में शंकराचार्य के आदेश को ईश्वरीय आदेश मानने की परंपरा रही है । वर्तमान समय में सांई को केन्द्रित कर धर्मक्षेत्र में सुधार का और दिशा देने का अभियान पूज्य शंकराचार्य महाराज द्वारा चलाया गया है यह अभियान मेरी सोच के अनुसार केवल सांई बाबा का विरोध नहीं है यह धर्म के नाम पर सनातन धर्म और प्राचीन मान्यतायें जो प्रमाणिक  वैज्ञानिक आधार पर समाज को व्यवस्थित सुखमय रखने में सक्षम जीवन जीने की नियमयावली है उन मान्यताओं में आ रही विकृतियों  को दूर करने वाला अभियान है ।

कौन किसकी पूजा करता है किस पर श्रद्धा रखता है ? यह बिल्कुल निजता से जुडा मामला है परंतु करोड़ो वर्षो से विशाल भारत के भूखंड ही नहीं मान्यता के अनुसार संपूर्ण सृष्टि का संचालन करने वाली वैदिक संस्कृति जिसमें चमत्कारो को नहीं कर्म और सिद्धांतों का महत्व रहा है उसी संस्कृ ति के विरूद्ध समाज में चमत्कारों की कपोल कल्पित कहानियों के प्रचार से पुरातन संस्कृति से दूर करने और उसे अडंबर बताकर विकृत व्यवस्था की स्थापना समाज को पतन की ओर ले जायेगी ।

 पूज्य शंकराचार्य जी द्वारा जो बात कही जा रही है वह बहुत गंभीर और दूरगामी सोच है ।उन्होनें स्थापित होने जा रही व्यवस्था का जो विरोाध किया है वह धर्मरक्षा के साथ मानव संस्कृति को सृष्टि को व्यवस्थित सिद्धांतों के अनुसार संचालन वाली व्यवस्था को बनाये रखने बहुत साहस वाला अभियान है । इस प्रकार के अभियान के लिये परम श्रद्धेय शंकराचार्य जी को इस बात का अनुमान अश्वय रहा होगा कि देश में सांई भक्त जिनमें हिन्दू समाज का ही बडा वर्ग है जिनक े विरोध का भी सामना करना पडेगा इस प्रकार की पूर्व अनुमानित परिस्थितियों के बावजूद संपूर्ण समाजहित में उनके द्वारा जो कदम उठाया गया है उस पर संपूर्ण समाज का समर्थन एक बहुत बडी संस्कृति संस्कारो को बचाने की पहल होगी ।महान धार्मिक ग्रांथ गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने यदि यह कहा है कि कर्म के बिना कु छ प्राप्त होना संभव नहीं है तो इस बात को सारी दुनिया मानती है भगवान श्रीकृष्ण की बात सारी दुनिया तो मानती है पर हिन्दुस्तान में चमत्कारों से सफलता की उम्मीद लिये लोग दरबारों के मुरीद हुये जा रहे है और यह प्रव्ति इतनी अधिक बढ रही है कि लोग अपने मूल सिद्धांतो और जीवन के उद्देश्य को भूल रहे है कोई दरबार में चढावा चढा कर सफलता की उम्मीद कर रहे है तो कुछ जलेबी रबडी ब्रेड खाकर सफलता मिलने की दीवानगी के नशे में है । जरा इस बात का विचार किया जाना चाहिये कि क्या इस प्रकार के चमत्कारों से दुनिया का संचालन संभव है । ईश्वरीय कृपा प्राप्त होती है इस बात से इ्रंकार नहीं किया जा सकता परंतु यह कृपा भी कर्महीनों के लिये हो ऐसा नही हो सकता ।

धर्म चाहे जो भी हो उसके मूल सिद्धांतो में पूजा पद्धति का अंतर हो सकता है परंतु चमत्कारो को केवल मनोरंजन के लिये ही स्थान है । सृष्टि के व्यवस्थित संचालन के लिये हिंदू धर्म के पवित्र ग्रन्थों  की रचना की गयी है।  श्रुति हिन्दू धर्म के सर्वोच्च ग्रन्थ हैं, जो पूर्णत: अपरिवर्तनीय हैं, अर्थात् किसी भी युग में इनमे कोई बदलाव नही किया जा सकता। स्मृति ग्रन्थों मे देश-कालानुसार बदलाव हो सकता है। श्रुति के अन्तर्गत वेद -ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद ब्रह्म सूत्र व उपनिषद् आते हैं। वेद श्रुति इसलिये कहे जाते हैं क्योंकि हिन्दुओं का मानना है कि इन वेदों को परमात्मा ने ऋषियों को सुनाया था, जब वे गहरे ध्यान में थे। इन सभी ग्रंथों में सृष्टि के सभी प्राणियों पेडों पौधों तक की चिंता के साथ संरक्षण करने के  लिये धर्म का आधार दिया गया है ।

 घर तुलसी लगने से लेकर पीपल की पूजा नदियों को पवित्र रखने के लिये दैविय स्वरूप देने गाय को पूज्य मानने के आज ठोस वैज्ञानिक कारण है । परंतु वेदो की रचना के समय वैज्ञानिक तरीके से समझाना कठिन था जिसे धर्म से जोडकर कर हर उस बात को उतना महत्व दिया गया जो जितनी आवश्यक थी । आज उन सारी बातों को सझमने की आवश्यकता है सांई पूजा के विरोध का निहितार्थ क्या है ? सांई बाबा के आदर्श को मानने वालो से कोई विरोध नहीं होना   सांई बाबा  अपने समय के श्रेष्ठ संत रहे है जिसके कारण उनकी मान्यता रही परंतु हमें सृष्टि संचालन के नियत मापदंडो को अनदेखा नहीं करना चाहिये । मंदिरो की अपनी व्यवस्था होती है यह किसी व्यक्ति के लिये  नही सार्वजनिक आस्था के केन्द्र है यहाँ मान्य नियमों का पालन नितांत आवश्यक है ।******

manijमनोज मर्दन त्रिवेदी

संपादक
दैनिक यशोन्नति

*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC.                                                ****    

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here