संस्कृत ने ही भारत को विश्वगुरु बनाया था : प्रो. एपी सच्चिदानंद

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surendra agnihotriअंजू अग्निहोत्री,
आई एन वी सी,
लखनऊ,
राजधानी के इन्दिरा गांधी प्रतिष्ठान में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तत्वावधान में राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान द्वारा त्रिदिवसीय आयोजन के अवसर पर  राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के कुलपति प्रो. एपी सच्चिदानंद से हमारे संवाददाता ने संस्कृत के विकास के लिए केन्द्रसरकार तथा राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान द्वारा किये जा रहे प्रयासों के सन्दर्भ में बातचीत की तो श्री सच्चिदानंद ने बताया कि हमें गर्व है कि संस्कृत ने ही भारत के प्राचीन गौरवपूर्ण इतिहास को संजोया है। संस्कृत को सिर्फ वैदिक भाषा ही नहीं है, बल्कि भारतीय ज्ञान परम्परा का स्रोत के रुप में जानना चाहिए। संस्कृत भाषा ने भारतीय संस्कृति एवं जीवन मूल्यों को समझने-समझाने के लिए अनेक मौलिक ग्रन्थ समाज के लिए दिये है। इन ग्रन्थों को आज संरक्षित करने के साथ आगे  ले जाने की भी आवश्यकता है। श्री सच्चिदानंन्द का मानना है कि उप्र के राजधानी लखनऊ में हो रहा यह सम्मेलन संस्कृत भाषा की उन्नति मंे मील का पत्थर साबित होगा। गंगा यमुना और गोमती नदियों का यह क्षेत्र हमेशा ही संस्कार और संस्कृति के विकास में अग्रणीय रहा है। संस्कृत ने सबसे पहले कह दिया था जिसे आज आधुनिक विज्ञान खोज रहा है।  आध्यात्मिक स्वरूप ‘ईशावास्य उपनिषद्’ में प्राप्त होता हें ‘एक सदूविप्रावहुधा वदन्ति’ यानी सच्चाई एकहै समझने का मार्ग अलग-अलग है। मत-मतान्तर का जन्म स्थान अलग है, परन्तु लक्ष्य एक है। भारतीय जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है, जिस पर संस्कृत का प्रभाव न पड़ा हो। भारत दर्शन में सर्वोच्च है। विश्व के हर क्षेत्र में संस्कृत काविशाल वाड्मय है। इसका लाभ उठाना जाना चाहिए। भारतीय भाषाओं पर संस्कृत का प्रत्यक्ष प्रभाव है। संस्कृत विश्व का करिश्मा है। संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु प्रत्येक विश्वविद्यालय में एक विभाग होना चाहिए। संस्कृत का साहित्य राष्ट्रवादी सहित्य है। संस्कृत में रोजगार के बारे में उनका मानना है कि इस शिक्षा को रोजगार से जोड़ने का वक्त आ गया है। संस्कृत के विकास के लिए द्वितीय संसकृत आयोग का गठन होना संस्कृत के लिये एक नई खिड़की खुलने के समान है।
संस्कृत ने ही भारत को विश्वगुरु बनाया था। आज के समय में इसे सरल और सहज बनाया जाना चाहिए। संस्कृत कंम्प्यूटर के अधिक निकट है। यह तो लैटिन और ग्रीक भाषाओें से भी बेहतर है। इसलिए संस्कृत के प्रचार प्रसार के लिए संस्कृत की मेनू स्क्रिप्ट ऑन लाइन की जाए। गुरुकुलों में आन लाइन ट्रेनिंग दी जाए। हर विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग हो तभी संस्कृत अपना अतीत का गौरव प्राप्त कर सकेगी।

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