संजय कुमार गिरि कि कविता

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एक प्यारी सी गुडिया .
नन्हे -नन्हें कदमो से ,
आँगन में खेल रही थी .
मीठी -मीठी बोली से ,
मिश्री घोल रही थी .
छोटे-छोटे कदमो से
,सरपट दौड़ रही थी .
फिर अचानक ,न जाने किया
उसके मन में आया
एक नन्हा सा पौधा लेकर
अपना फरमान सुनाया .
उस पौधे की कलम बना .
फिर हमने जमीं पे रोपा.
उसकी प्यारी सूरत पर
अब था खुशियों का झोंका .

संजय कुमार गिरि
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