संकट में लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहरें

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damage building {  निर्मल रानी ** }  देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की पहचान नवाबों के शहर के रूप में की जाती है। इसके अतिरिक्त यही शहर-ए-लखनऊ नवाबी शान-ो-शौकत,न$फासत,नज़ाकत तथा तहज़ीब व उर्दू अदब का भी केंद्र समझा जाता है। नवाब आसि$फुद्दौला,नवाब शुजाउद्दौला,नवाब वाजिद अली शाह तथा नवाब सिराजुद्दौला सहित इसी $खानदान के कई और नवाबों ने लखनऊ में ऐसी आश्चर्यजनक,भव्य,विशाल तथा सुंदर इमारतें तामीर करवाईं जो सैकड़ों वर्षों से न केवल लखनऊ अथवा उत्तर प्रदेश के लिए गर्व का विषय रही हैं बल्कि पूरा देश इन विशाल व रहस्यमयी इमारतों पर नाज़ करता है। इनमें पुराने लखनऊ शहर के हुसैनाबाद क्षेत्र में स्थित रूमी गेट,बड़ा इमामबाड़ा,इस इमामबाड़े में ही स्थित भूल भुलैया,छोटा इमामबाड़ा,शीशमहल जैसी कई इमारतें प्रमुख हैं। आज भी बावजूद इसके कि आधुनिक दौर में लखनऊ में और भी तमाम आकर्षक,विशाल तथा गगनचुंबी इमारतें बन चुकी हैं। परंतु लखनऊ जाने वाला कोई भी पर्यटक इन प्राचीन ऐतिहासिक धरोहरों का भ्रमण किए बिना नहीं रह पाता। गोया हम इन्हें लखनऊ के पर्यटन उद्योग का महत्वपूर्ण अंग कह सकते हैं। यह इमारतें जहां अवध के नवाबों के कला-कौशल की दास्तान बयां करती हैं वहीं इनमें सांप्रदायिक सौहाद्र्र तथा सर्वधर्म संभाव के भी अनेक पहलू नज़र आते हैं।
परंतु बड़े  दु:ख के साथ यह कहना पड़ता है कि जिस $गैरजि़म्मेदारी से इन प्राचीन ऐतिहासिक धरोहरों की देखभाल की जा रही है उन्हें देखकर तो ऐसा नहीं लगता कि लखनऊ के नवाबों की शान समझी जाने वाली यह इमारतें लंबे समय तक अपने वजूद को $कायम रख सकेंगी। छोटा इमामबाड़ा,बड़ा इमामबाड़ा,शाह नज$फ इमामबाड़ा तथा शीशमहल स्थित पिक्चर गैलरी की देखरेख का जि़म्मा हुसैनाबाद ट्रस्ट पर है। लखनऊ के जि़लाधिकारी इस ट्रस्ट के प्रमुख होते है। जबकि एडीएम लखनऊ इसके सचिव हैं। गोया सरकारी हस्तक्षेप व सरपरस्ती होने के बावजूद सभी इमारतें दयनीय स्थिति का समाना कर रही हैं। इन सभी इमारतों का आधे से अधिक क्षेत्र इस समय जर्जर हो चुका है। जगह-जगह प्लास्टर उखड़े हुए हैं। कहीं पत्थर व ईंटें उखड़ती जा रही हैं तो कहीं बुनियाद नीचे धंसती जा रही है। रही-सही कसर वह पर्यटक पूरी कर रहे हैं जो लोगों की नज़रें बचाकर क्या इमामबाड़ा तो क्या भूल-भुलैया हर जगह पान की पीक थूकते रहते हैं। जगह-जगह आशिक़-माशूक़ एक-दूसरे के नाम लिखकर इमारत के प्लास्टर को नु$कसान पहुंचाते रहते हैं। ज़ाहिर है यह इमारतें इतनी विशाल हैं कि इनमें मात्र चंद व्यक्तियों द्वारा निगरानी रख पाना संभव नहीं है। जहां हुसैनाबाद ट्रस्ट अथवा वहां के कर्मचारी इन इमारतों के समुचित रख-रखाव न हो पाने के लिए जि़म्मेदार हैं वहीं नु$कसान पहुंचाने वाले पर्यटकों का भी इन इमारतों की बदहाली में कम योगदान नहीं है।
इमारतों में होने वाली तोडफ़ोड़ या रख-रखाव संबंधी निगरानी की बात तो दूर है ऐसा प्रतीत होता है कि बड़ा इमामबाड़ा व इसमें स्थित बड़ी मस्जिद व रूमी गेट सहित लखनऊ की ऐसी प्राचीन शाही इमारतें हैं जिनमें संभवत: नवाबों द्वारा अपने ही समय में कराई गई स$फेदी के बाद से लेकर अब तक किसी ट्रस्ट के दौर में अथवा सरकार द्वारा या पुरातत्व विभाग द्वारा अब तक स$फेदी भी नहीं करवाई गई हो। हां बड़ा इमामबाड़ा का प्रवेश द्वार अवश्य इन दिनों स$फेदी के रंग में रंगा हुआ नज़र आ रहा है। संभव है ट्रस्ट या सरकार द्वारा इस ओर ध्यान देने की शुरुआत की गई हो या फिर मात्र बड़े इमामबाड़े के प्रवेश द्वार को चमका कर पर्यटकों को इस भवन की ओर आकर्षित करने का यह उपाय अपनाया जा रहा हो। इन इमारतों में कई अनपढ़ $िकस्म के गाईड टहलते नज़र आते हैं जो पर्यटकों से सच-झूठ बोल कर पैसे वसूल करते हैं तथा पर्यट्कों को गुमराह करने की भी कोशिश करते रहते हैं। उदाहरण के तौर पर बड़े इमामबाड़े में गाईड द्वारा यह बताया जाता है कि गाईड को मिलने वाले पैसों में से आधी र$कम $गरीब बच्चों की मदद में दी जाती है। जबकि ट्रस्ट के दूसरे कर्मचारी से पूछने पर पता चलता कि ऐसी कोई योजना ही नहीं है। वहीं शीशमहल स्थित पिक्चर गैलरी के गाईड बड़े इमामबाड़े के गाईड को ठग व बेईमान बताते हैं। शीशमहल स्थित शाही तालाब जो किसी ज़माने में हुसैनाबाद की शान समझा जाता था तथा शीश महल के घंटाघर की परछांई उस तालाब में सा$फ दिखाई देती थी आज वह तालाब न केवल टूट-फूट चुका है, पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है बल्कि वह जगह गंदगी के एक बड़े ढेर के रूप में परिवर्तित हो चुकी है।
कई इमारतों से निकलने वाली सुरंगें अपना वजूद खो चुकी हैं। बड़े इमामबाड़े में एक बावली  (विशाल कुंआं) भी है। परंतु इसमें पानी की जगह कूड़ा-करकट और पर्यटकों द्वारा फेंकी गई सामग्री देखी जा सकती है। इसी प्रकार छोटे इमामबाड़े में स्थित शाही स्नानगृह भी जो कभी प्राचीन समय में $फव्वारा व गीजर जैसे उस समय के आधुनिक उपकरणों से युक्त रहते थे वही यह स्नानगृह रख-रखाव के अभाव में आज जर्जर अवस्था में पहुंच चुके हैं।  यही हाल उस विशाल रूमी गेट का भी है जिसके मध्य से होकर आज भी हुसैनाबाद व हज़रतगंज के बीच चलने वाला यातायात गुज़रता है। इस गेट के सबसे ऊपर लगने वाली पत्थर की $खूबसूरत न$क्काशीदार कलगियां एक-एक कर टूटती जा रही हैं। परंतु इसकी मुरम्मत करना तो दूर इसकी चूनाकारी तक कभी नहीं की गई। यही हाल भूल-भुलैया के कई भागों का भी है। जहां यदि कोई भाग क्षतिग्रस्त हो गया तो उसकी मुरम्मत करने के बजाए उसे या तो उसी टूटी-फूटी हालत में छोड़ दिया जाता है या उस क्षेत्र को ईंट व सीमेंट की सहायता से पूरी तरह बंद ही कर दिया जाता है। लगभग सभी भवनों में पत्थरों पर उकेरी गई नक्क़ाशी,बेश$कीमती पेटिंग्स सभी पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। केवल इमारतें ही हुसैनाबाद ट्रस्ट अथवा प्रबंधन की अनदेखी का शिकार नहीं बल्कि यहां रखी गई नवाबों की कई अनमोल धरोहरें भी प्रबंधन की लापरवाही की गवाही दे रही हैं। मिसाल के तौर पर छोटे इमामबाड़े में एक ऐसी बेश$कीमती ज़री है जोकि एक विशाल $फलास्क रूपी बोतल में रखी हुई है। इसे देखकर कोई भी व्यक्ति आश्चर्य चकित हो जाता है कि आ$िखर इतनी बड़ी ज़री (म$कबरे का रूप)पतली गर्दन वाली कांच की बड़ी बोतल में किस प्रकार प्रवेश कर गई। पर्यटक सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि बोतल में ज़री बनाई गई है या ज़री के ऊपर कांच की बोतल ढाली गई है। परंतु अ$फसोस की बात है कि उस बोतल का ऊपर का भाग महज़ वहां मौजूद लोगों की लापरवाही की वजह से टूट गया है। और उस टूटे हुए कांच के टुकड़े को बोतल में चिपका कर रखने की कोशिश की गई है। इसी प्रकार वहां के नवाबों के समय की और भी कई वस्तुएं जो दो-तीन दशक पहले तक तो नज़र आया करती थीं परंतु अब वह वस्तुए वहां मौजूद नहीं हैं।
पुराने लखनऊ स्थित उपरोक्त इमारतें तथा उनके अतिरिक्त और भी कई ऐसी प्राचीन ऐतिहासिक धरोहरें हैं जो लखनऊ आने वाले पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करती हैं। कहना $गलत नहीं होगा कि लखनऊ का अधिकांश पर्यटन उद्योग नवाबों की शान समझी जाने वाली इन्हीं इमारतों से जुड़ा हुआ है। राज्य सरकार तथा हुसैनाबाद ट्रस्ट दोनों का ही यह कर्तव्य है कि इन भव्य व प्राचीन इमारतों के संरक्षण, सुरक्षा तथा इसके अस्तित्व को यथापूर्वक रखने के समुचित उपाय समय रहते करें। इन सभी भवनों में पर्याप्त मात्रा में क्लोज़ सर्किट कैमरे लगाए जाएं। साथ-साथ वहां घूमने वाले पर्यटकों को भी चाहिए कि वे यहां भ्रमण करते समय इन इमारतों की स$फाई तथा रख-रखाव का पूरा ध्यान रखें। जगह-जगह पड़ी पान की पीक तथा दरोदीवार पर उकेरी गई डिज़ाईनें व आशि$कों व माशूकों के नाम पर्यटकों की जहालत व $गैरजि़म्मेदारी का सुबूत देते हैं। यहां के कई गाईड भी मुंह में पान रखे हुए गाईड की भूमिका अदा करते देख्ेा जा सकते हैं। ऐसा नहीं लगता कि यह गाईड भी अपने मुंह में रखा पान थूकने के लिए कहीं नाली या कूड़े-करकट के ढेर पर जाने की ज़हमत गवारा करते होंगे। पान खाकर इन भवनों में प्रवेश करने की इजाज़त नहीं होनी चाहिए। इन ऐतिहासिक धरोहरों को संकट से बचाने के हर संभव उपाय किए जाने चाहिए।

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Nirmal Rani** निर्मल रानी

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

Nirmal Rani (Writer )
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*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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