“शौक”

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*विशाल शर्मा
                    शाम का वक्त था, सूरज अपनी दिन भर की मेहनत करके घर वापसी की ओर लोट रहा था। ठीक उसी तरह जैसे कोई दिहाडी मजदूर शाम होते ही अपने घर की राह पकडने की ओर आतुर रहता है। कोई 70-72 साल का एक बुजुर्ग अपनी एक टूटी सी साईकिल पर अपने भविश्य की धरोहर, एक 8-9 साल के बालक को लेकर गांव की ओर लौट रहा था। साथ मे 5-7 साईकिल सवारों का एक झुंड सा ओर भी था। उन्हे देखकर आसानी से ये अंदाजा लगाया जा सकता था कि ये किसी मिल या फैक्ट्री मे काम करते होगें। काम की थकान को अपने हंसी मजाक के सवाल जबाब के साथ उतारने की कोिशश करते हुए चेहरो पर बडी नििश्चतंता झलक रही थी। आज शायद तनख्वाह का दिन था तभी शायद वो इतने खुश नजर आ रहे थे। मेरे करीब से गुजरते हुए एक साईकिल सवार ने दूसरे से मजाक करते हुए सिनेमा दिखाने को कहा कि अब तो तनख्वाह भी मिल गयी है अब तो फिल्म दिखाई दो। तब मैने ये अंदाजा लगाया कि शायद आज इन सबको तनख्वाह मिली है। इस भागती दौडती हंसी मजाक वाली भीड मे मेरा ध्यान उस बुजुर्ग की ओर बार बार जा रहा था जिसके चेहरे पर ना तो हंसी का भाव था ओर ना ही कोई खास नििश्चंतता। वह उस बालक को जोकि उसे बाबा कहकर बुला रहा था उससे कुछ ज्ञान ध्यान की बातें समझाते हुए चल रहा था। मेरी रतार सामान्य से थोडी ज्यादा थी ओर उसकी थोडी कम। पर जाने क्यूं पता नही किस जिज्ञासा से मैने भी अपनी रतार उनके बराबर कर ली ओर पूरा ध्यान उनकी बातों पर लगाना शुरु कर दिया। वह बुजुर्ग अपनी उम्र के अनुभवों को उस 8-9 साल के बालक को बांटने मे इतना मशगूल था कि एक बारगी को तो लगा कि शायद मन से वो भी इस बच्चे की तरह ही है।
मुझे ऐसा देखकर बडी ही खुशी हो रही थी । कितना वातसल्य उमड रहा था उनके बीच मे, मै तो यही सोच कर मंत्रमुग्ध सा हो गया था । मुझे याद है बचपन मे मेरे दादा जी जब खेतों पर घुमाने ले जाया करते थे तब वो भी ऐसी मजेदार बाते किया करते थे। वह बालक बार बार कोई ना कोई सवाल पूछता ओर वो बुजुर्ग उसके उन प्यारें सवालों का उसी अंदाज मे जबाब भी देते रहते। कितनी प्रसन्नता ओर कितना सुकून उनकी आंखो मे दिखता था। यकायक ही उस बालक ने पूछा-दादाजी आप मुझे कितना प्यार करते हो ओर इस सवाल के साथ ही उसने अपनी गर्दन उस बुजुर्ग की ओर घुमा दी जो पहले ही उसको दुलार करने के चक्कर मे थोडा झुके हुये थे। उस बूढे आदमी ने उस बच्चे की आंखो मे झांकते हुए जबाब दिया- सबसे ज्यादा। उसके होंठो पर हल्की सी मुस्कराहट आयी ओर उस बच्चे के गाल चूमते हुए फिर कहा- सबसे ज्यादा। बच्चा खुशी से चहक गया उसकी आंखे चमकने लगी ओर प्यार के उस चुम्बन ने उसके आनन्द को ओर बढा दिया। उसे देखकर लग रहा था कि वो कितना खुश है ओर उससे भी ज्यादा खुश वह बुजुर्ग था जो उस बच्चे के साथ होकर बाकी दीन दुनिया को ना जाने कहां छोड कर आ रहा था। गांव आने को ही था नहर अब दिखाई देने लगी थी। नहर से एक डेढ कोस का रास्ता ओर मुिश्कल से होगां बूढे आदमी ने साईकिल रोकी ओर अपने कुर्ते की जेब में से कुछ खाने की चीजें उस बच्चे को दी। बच्चे ने बडी तत्परता से उन्हें लिया ओर कहा दादा जी आप जब खाने की चीजें देते हो तो मां डाटती है ओर कहती है खाने के लिए ही दादाजी के साथ आते हो वरना स्कूल तो तुम्हारा कब का छूट जाता है। बूढे आदमी ने भौहें सिकोडते हुए नाराजगी भरी लहजे मे कहा ऐसा क्या। फिर प्यार से बच्चे के सिर पर हाथ फिराते हुए कहा तुम अपनी मां से कहना दादा जी मुझे बहुत प्यार करते है। इसिलिए मै उनके साथ आता हूं। बच्चे ने हामी भरी ओर उठ कर चलने के लिए साईकिल की ओर बढा । बूढे आदमी ने बच्चे को फिर दुलार करते हुए साइकिल पर बैठाया ओर साइकिल गांव की ओर दौडा दी। फिर से वही बातो का सिलसिला ओर वह बच्चा कभी उस बुजुर्ग की बात सुनता तो कभी उतना ही ध्यान अपने खानें की चीजों पर देता। अचानक ही सामने की ओर से एक अनियंत्रित कार जिसका चालक अपना नियंत्रण खो चुका था उस साईकिल सवार से टकरा गया। उस बुजुर्ग ने अपने कौशल से बचानें की बहुत कोिशश की पर फिर भी कार की लपेट मे आ गया ओर धडाम से सडक के एक छोर पर जा गिरा। वह बच्चा भी उसकी पहुंच से दूर एक किनारे पर गिर पडा। चीख-चिल्लाहट की आवाज पर गाडी रूकी ओर गाडी मे से एक नौजवान अपनी अमीरी की बू मे लिपटा हुआ उस बूढे आदमी को दुत्कारता हुआ बोला, क्यों बे देखकर नही चला जाता मरने का ज्यादा ही शौक है। दुनिया से मुक्ति पाने को मेरी ही गाडी मिली है। आस पास के ओर आने जाने वाले मुसाफिर रूकना शुरू हो जाते है ओर उस गाडी वाले के पास बारी -बारी से पहुंचकर कुशल क्षेम पूछते है। उधर वह बूढा आदमी किसी तरह उठकर अपने उस बालक को जो लगभग अचेतन की अवस्था मे था उसे गोद मे लेता है और पुचकार के साथ उसे सामान्य करने की कोिशश  मे रहता है। भीड मे से कोई आदमी इससे पहले उसकी मदद के लिए आगे आता वो गाडी वाले लाटसाहब फिर दंभी अंदाज मे बोले अभी मर जाता तो हमारी जान को लग जाता । हर कोई हमे ही कहता कि बेचारा बूढा मार दिया । चलने की उम्र पैदल की नही रही ओर चल रहे है साहब बच्चे को बैठाकर साईकिल पर । पूरी की पूरी भीड ने उसकी बातो पर अपनी मौन स्वीकृति जता दी । वह बूढा भी उठ कर उसके पास आया। गिरने की वजह से उसके घुटने भी काफी छिल गये थे, चेहरे पर निशान पड गया था ओर खून भी काफी बह रहा था । पर अपनी चोट से बेखबर वह उस बच्चे को लेकर बिलख रहा था जिसके सिर मे चोट ज्यादा लगी हुई थी। फिर भी उसके पास जाकर माफी मांगते हुए कहा- साहब गलती हो गई जो आपकी गाडी के सामने आ गये। आगे से ऐसा ना होने का है, इस बार माफी कर दो। इतना सुनकर उस नौजवान ने उसे हाथ से इशारा करके रूकने को कहते हुए माफ करने का इशारा किया ओर गाडी स्टार्ट करके चल दिया। भीड का ध्यान अब उस बूढे आदमी ओर उसके बच्चे की ओर पडा। कानाफूसी मे तो कोई थोडा जोर से संवेदना व्यक्त करने लगा। किसी ने भीड मे से कहा चला इतने से ही बात बन निबट गई, आम भी बाबा देख कर चला करों। बूढे आदमी ने अपनी गलती फिर मानते हुए वहां से घर की ओर दौडना शुरू कर दिया।
ये कैसा तरीका, जिस आदमी की गलती नही वह माफी मांगे ओर जिसकी गलती है वह शान से बैठे ओर लोग भी उसकी लल्लो चप्पों करें, बडी अजीब बात है। मन मे सवाल आया तो पूछ भी लिया कि ये गाडी वाले साहब कौन थे \ पता चला कि कुवंर साहब के सबसे छोटे लाडले है। लंदन से पढ कर आये है। आजकल गांव मे छुटटियां मनाने के लिए रूके हुए है। गाडी तेज चलाने के शौकिन है। ये बुजुर्ग आदमी भी उनकी मिल मे काम करता है।
कुवंर साहब का नाम कौन ना जाने। आस पास के इलाकों मे भी उनकी तूती बोलती थी। कलेक्ट्रेट से लेकर बडे बडे मंत्री भी उनके दरवाजे पर खडे रहते थे। बडा काम है उनका, पर शायद उससे भी कहीं ज्यादा उनका बडा नाम है। हजारों की भीड उनकी ही मिलों मे काम करती है। किसी ने भीड मे से कहा- बहुत बिढया आदमी है छोटे साहब भी टक्कर लगते ही तुरन्त रूके ओर कोई होता तो कतई ना रूकता । तभी दूसरे ने कहा रूक ! बात भी करी हमसे तो ! इस बुडढे को ही ना दिखाई दे रहा होगा नही तो साहब की गाडी से तो ऐसी बात हो ही ना सके। सबने उसकी हां मे हां मिला दी। मैने तो पूरा वाकया देखा था फिर मै क्यों हामी भरूं। एक बारगी को तो मन हुआ कि सच कहुं पर किससे । इस नपुंसक भीड से जो आंखो देखी  घटना को भी उस असहाय आदमी की गलती मान कर चल रही है या उस आदमी से जो गुलामी की मानसिकता अपने बच्चे के कंधो पर डालकर माफी मांग रहा था। जिसमे सच सुनने की हिम्मत ही ना हो उसकी एवज मे सच कहना कहां की अक्लमंदी है। और वो भी कुवंर साहब के खिलाफ क्यों कहे, किससे कहें \ अपने आप से सवाल जबाब करते करते मां की कही एक कहावत याद आ गई  “ मिंया जी तुम दुबले क्यों कि शहर मे बिजली गुल “ । यही सोचते सोचते घर आया तो देखा दरवाजे पर मां खडी बाट जोह रही थी। मैने पूछा तो बताया कि तेरे बाबूजी अभी तक शहर से नही आयें। अंधेरा होने को है पता नही कहां रह गये। आजकल लोग वैसे भी अनाम शनाप चलते है तू भी देख कर चला कर बेटा। मैने गर्दन हिलाई ओर कहा- हां देख कर ही चलता हूं। यकायक मां से पूछा बाबूजी तो मुझसे पहले चले थे फिर इतनी देर कैसे हो गई। मै जरा देखता हूँ कहीं किसी के यहाँ बैठे तो नही है। घर से बाहर निकल कर चला तो रास्ते की बात से डर लग रहा था कि कहीं बाबू जी भी तो …नही  ऐसा नही सोचना चाहिए भगवान..  भला कर । मन मे तरह तरह के सवाल उठ रहे थे। कितना अजीब सा लग रहा था। पर तभी गांव के बाहर आते आते सामने से बाबूजी आते दिखाई पडे। मेरे कहने पर कि कहाँ रह गये थे  आप माँ बडी परेशान हो रही थी। जबाब दिया कहीं नही, वो बगल वाले गाँव मे रामस्वरूप है ना जो कपडा मिल मे मुंशी है आज रास्ते मे उनका एक्सीडेंट हो गया बडी चोट लगी है और उनके पोते की तो ज्यादा ही तबीयत खराब है। डाक्टर के यहाँ लेकर जाने की बात चल रही थी । बस वहीं चला गया था। बेचारे के घर मे एक यही बालक बचा है जाने क्या होगा ज्यादा ही हालत खराब है। बहुत खून बह गया है मुिश्कल ही बचेगा। मेरे तो पैरो के नीचे से जैसे धरती निकल गई, मुहँ खोले उनकी बात सुन रहा था ओर रास्ते मे मिले उस बच्चे की वो भोली सूरत ओर वो सारी बाते रह रह कर याद आने लगी। दिल बडी ही तेजी से धडकने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे कोई अपना बिछड रहा हो। कितना प्यारा बच्चा था कैसे अपने बाबा के साथ बातों मे मशगूल था कभी माँ कीे िशकायत करता तो कभी खाने की  नेक फरमाईश। अगर उसे कुछ हो गया तो उस बुढे आदमी का क्या होगा जिसका भविश्य उस बच्चे के लिए ही बचा हुआ है। हे भगवान तू इतना निर्दयी नही हो सकता । आखिर कब तक इन रईसजादों के शौक से आम आदमी की जान जाती रहेगी। कुवंर साहब बडे आदमी तो क्या उनके लडके को किस ने हक दिया कि वो अपने शौक के लिए किसी मासूम की जान ले ले। अगर ये कुवंर साहब के किसी बालक के साथ हुआ होता तब क्या होता \ विचारों का ऐसा प्रवाह अन्दर बह रहा था कि मेरे पसीने छूटने लगे। बाबूजी ने अंदर आने के लिए कहा पर दिलों दिमाग पर उस बच्चे की मोहक मुस्कान ओर उस बूढे आदमी के जज्बात याद आ रहें थे। पता नही क्या होगा …… बचेगा भी या नही ये अमीरों को शौक भी कुछ ज्यादा ही बडा होता है… ऐसा कैसा शौक जो इतना जानलेवा हो। कहीं पढा तो था शौक बडी चीज है पर इतनी बडा होगा ये नही पढा था।
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*लेखक  -विशाल शर्मा
स्वन्त्र पत्रकार,  अध्यनरत जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग
बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय
लखनऊ फ़ोन नो. ० ९४११६६७२९९

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