शैलजा पाठक की कविता

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दो सखियाँ

खेलती हैं

माचिस के डब्बों में बंद

रंगीन चूड़ियों के

टुकड़ो से

फिर टुकड़ों में

बिखर कर

बंद हो जाती है

दो अलग अलग

डिब्बों में …

ये टूट कर जीती हैं
और खनखनाती भी है जी भर

कहते हैं ये जरा सी देर में ही
सोख लेती है हवा रंग पानी खुशबू

तुम इनके जीने से डरते हो ……

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Shailja Pathakशैलजा पाठक

निवास मुंबई

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