हमारे बुजुर्गों के पास
बची हैं कुछ
झुर्रीदार जिंदगी
उनकी गहरी पीली आँखों के
कोटरों में हमारे बचपन के खिलौने
उनके माथे की लकीरों में
बीते तमाम बरस के किस्से
उनकी साँसों में रुकता चलता
उनके जीवन का बसंत
रुखी हाथों का पतझड़
उदास परोसी थाली में अतीत की अकड
अपनी पुरानी भूरी ग्रुप फोटो
के बीचोबीच बैठे बाबा ने
गाँधी गले वाला ओवर कोट पहना है
वो बताना चाहते हैं बार बार उस कोट की कहानी
कोट के बटन पर टिकी आँखे
एक एक किस्सा उघाड़ लेती हैं
वो पूरे घर में फैला देते हैं अपनी खुली गठरी के रंग
बाबा !सब एक जगह पर धरा करिए ना
सामान रखने को दी है न अलमारी
अब बाबा अपनी लकीरों और झुर्रियों में अपनी जिंदगी का
जाप करते हैं …………हम …………………हाँ हम बड़े हो गये हैं …
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शैलजा पाठक
निवास – मुंबई