शिव कुमार झा की पांच कविताएँ

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डॉक्टर शेफालिका वर्मा की टिप्पणी : शिव कुमार झा जी की कविताएँ  प्रतीक्षा की पारम्परिक परिभाषा कॊ नव आयाम देती हैं | इन रचनाओं  मॆं विविध भावॊं की गम्भीर अभिव्यक्ति की गई है। नारी की ममतामयी स्वरुप का अद्भुत चित्रण किया गया है। जीवन के कटु यथार्थ से अवगत कराती एवं मर्मस्पर्षी तत्वों सॆ आप्लावित ये कविताएँ हर रुप में उत्कृष्ट है। मैथिली के साथ साथ हिन्दी मॆं भी आपकी भाषायी पकड मजबूत है । हार्दिक शुभकामना  !

शिव कुमार झा की पांच कविताएँ 

1 .प्रतीक्षा : एक अनूठा सच

प्रतीक्षा ! हो तुम एक अनूठाऔर बहुरुपिया सच !!
हर कोई है इससे संदर्भित
जीवन के हर पहलू में !
भ्रूण को रहती है …
गर्भ से बाहर आने की प्रतीक्षा
उस परिपेक्ष्य मेंकतिपय असह्य पीड़ा से पीड़ित
हर माँ को रहती है ..
संतान को जन्म देने की प्रतीक्षा ..
अपने संतान को देती है जन्म
हर दुःख जाती है भूल ..
फिर कलेजे के टुकड़े को
लगाकर कलेजे से कराती है पान
अपने शरीर में संजोगे सारे पोषक तत्वों का ..
बेचारी !! अरे अपने लिए खाई थी क्या ?
गर्भ के नौ मास में ..
क्या पता नवग्रह की तरह होगा
कलेजे का भविष्य …
मूक शैशव को मात्र दुग्ध पान की प्रतीक्षा
अबूझ समझ रोता भी है ..
रुलाता भी अपनी माँ को
जब नन्हें के आंसू को देख कोई तीसरा नहीं दौड़ता ….
जन्म से अधोवयस तक माँ .
समझती है अपनी संतान को
एक शिशु …
आश्चर्य ! कितना अंतर है ?
वही नहीं समझ पाता है जब हो जाता है सबल …
माँ करते रहती है प्रतीक्षा
अपने बच्चों के विद्यालय से आने की ..
फिर क्रीड़ा मैदान से आने की !
आगे कार्यस्थल से आने की
कभी दूरभाष की
खुश होती है देख संतान को माया लिप्सा भोगविलास की ….
अपने जीवन सहचर को भी
इस क्रम में यदाकदा जाती है भूल !
कभी ना गड़े संतति के कोमल पैरों में शूल ..
हाय री माँ …
तेरी प्रतीक्षा से डोल रहा यह जहाँ..
है कोई मोल …
संतान नई भी किया प्रतीक्षा ..
बचपन में नहलाने की .
दूध पिलाने की ..
मातृहाथों से खाने की…
अब माँ हो गयी है बुढ़िया ..
अभी संतान कर रहे हैं प्रतीक्षा ….
माँ के ऊपर जाने की…
मातृकर्म कर दुग्ध भात खाने की !!
समाज को दही -मिठाई खिलाने की !!!
हाय रे त्रिशब्द : प्रतीक्षा
तेरे भी कितने रूप
कितने अलग-अलग प्रार्थी
कोई सहज स्नेहिल माँ
तो कोई संतति अनूप और भूप !!!

2. श्रद्धा- सुमन

हे भारत भू के सबल वीर
हे मातृसमर्पित परम धीर
अनुगामी ना तेरे हुए अधीर
स्वर्णिम जन्नत में करो विराम
स्वशोणित गंग बहाने वाले
अविरल नयनों से तुझे प्रणाम ……
कर्म कल्प का सेज सजाकर
देशभक्ति का ओज जगाकर
दारा संतति का स्नेह भुलाकर
मातृक्षीर नव शक्ति भुनाकर
तीक्ष्ण धूप या शीतवात हो
सजाये भरत धरा का नाम ..
दो शिक्षा नवकान्तिल रक्षक को
वो फांक करे कैसे भक्षक को
दीक्षा दो सीमा तक्षक को …
गर्वित वामा के अन्तः बसते
तेरे रक्तभ नयन अभिराम
तेरे परिसर ना पंथ का बेड़ा
तेरे घर ना सम्प्रदाय का डेरा
सबके सर पर एक ही सेहरा
प्रतिपल रहे उत्तुंग तिरंगा
रैन -दिवस सुबह या शाम….
२६ नवम्बर के दिन महान शहादत के सुपथ पर गए राष्ट्रभक्तो को नमन !

 3. स्वप्निल बेटी

रात मेरे सपने में आईं
थी वह इक नन्ही परछाईं
क्षण क्रंदन क्षण अश्रु बहाती
क्षण नन्हीं तर्जनी चबाती
अश्रु -लार मिश्रण की सोती
में डूब रही यह गुड़िया रोती
मैं पूछा तुम कौन हो चन्दा ?
अपने पिता के गले का फंदा
मेरे आगे और बेटी चार है
पापा का छोटा व्यापार है
अब वस !और इक तनय चाहिए
भवसागर निल मलय चाहिए
फिर ! ब्रह्मा ने भेजा तनुजा
लगा उन्हें संतति नहीं दनुजा
गर्वगृह से मैं जब बाहर आई
तत्क्षण बनी प्राणहीन परछाई ..
माँ केँ सर पर कलंक लगाया
कन्या नहीं भ्रूण का कंठ दबाया
ऊपर चित्रगुप्त ने खाता देखा
मेरे एक़ और जन्म का लेखा
फिर मर्त्यलोक जाना होगा
बनकर बेटी पछताना होगा
संग इक वरदान भी गुण लो
अपनी इच्छा से पिता घर चुन लो
अब मुझे बना लो अपनी बेटी
क्या मैं लगूँ आपकी घेंटी ?
पर- बेटी को जो अपनाते हैं
अब ऐसे पिता मुझे भाते हैं
डरना मत ! मैं भूत नहीं हूँ
लाक्षागृह का सूत नहीं हूँ
मातृ- छाया की प्यासी मुनियाँ
ढूंढ रही है इक स्नेही दुनिया
बोलो !आप मुझे क्या अपनाएंगें
अगले जन्म में बेटी बना पाएंगे ?
जैसे शीतल अश्रु से जंग हुई
मेरी तन्द्रा तत्क्षण भंग हुई.

4. अतुल्य प्रेम

माँ आटा गूंथ रही थी
जल्दी -जल्दी सेकनी थीं चपातियाँ ..
मंत्री जी को जिला मुख्यालय जाना था
शिक्षक संघ के मंत्री ..
बहुत स्नेह रखते हैं अपनी अर्धांगिनी से
बराबर चर्चायें होतीं थीं
माँ -चाचियों के बीच
जब सारी पूजनीया माताएँ
बखिया उधेरती थी अपने -अपने
पति के कर्मों का उनके उपहासों का
काश ! मेरे भी वो होते .मंत्रीजी के जैसे
अद्भुत और अनन्य प्रेम
समझो अतुल्य प्रेम
करते है अपनी वामा से ..
मैं बाल,  भला ! क्या समझता
लेकिन एक दिन देख लिया
अपनी आँखों से
पर उस समय समझा नहीं था
कथाकथित अतुल्य प्रेम की
गति यति और नियति को …
उनका छोटा पुत्र प्रखर
था मेरा सहपाठी
रोज साथ -साथ विद्यालय जाना
उसदिन भी साथ ही  करने गया था ……..
मुझे देखकर रुकने का संकेतन देकर
चल दिया किचन में …
कराही में सुवासित हो रही थी
फूलगोभी की मसालेदार सब्जियाँ
रहा नहीं गया बालक से ..
कराही में ही हाथ डाल  दिया उसने
एक टुकड़ा मुँह में गया नहीं की !!!
थप्पड़ों की होने लगी बौछारें
उसके गाल और पीठ पर
क्षण में रक्त के छीटें
भींग गयीं कच्ची सतह
कुछ पड़े गूथें आटे पर भी
शोरगुल में रसोईघर पहुँच गए मंत्री जी
माँ की चूड़ियाँ खंडित होकर
बेधित कर दी थी उनकी कलाइयों को
अर्धांगिनी का रक्त
हो रहा था नष्ट
ऊपर से ताजे व्रण.. दर्द की आह !
नासूर बनकर चीड़ डाला ह्रदय
दाराभक्त मंत्री जी का
दर्द माँ को और तड़प पिता को
क्या कहना ?
क्षणभर में रक्तभ मन
काँपने लगा प्रियतम का तन
बेहिसाब करने लगे प्रहार
नन्हे पर हाथों से निडर होकर
उनके हाथों में नहीं थी जो चूड़ियाँ !
एक गलती के लिए कितने लोग देंगे सजा
वह भी कोई ख़ास नहीं
हाथ नहीं धोया था फिर क्यों छुआ ?
ऐसी गलती ही क्यों करते हो
माँ को क्यों सताते हो ?
ना  तुम करते गलतियाँ
ना फूटती चूड़ियाँ
और ना बहते रक्त !
कितने खून वह गए उनके
शर्म है तुम्हे
दुबली हो गयी है .. माँ !
भला इसका परवाह कहाँ ?
लगातार मंत्रीजी बोलते गए
इसमे मेरी क्या गलती है ?
माँ के पास बेलन भी था
उन्होंने हाथ से क्यों मारा ?
इस नेनपन से माँ काँप उठी ..
भूल गयी दर्द
अपसोस हो रहा था उन्हें
आखिर बात को दबा देती
बाद में प्रखर को समझा देती
सम्हलकर बोझिल मन से चीख उठी
माँ -बेटे के बीच आपको नहीं आना था
मेरा दिया हुआ थप्पड़
तो क्षणभर में जायेगा यह भूल
मेरे हाथ में भी ना चुभे शूल
माँ -संतति का स्नेह ही ऐसा है !
लेकिन आप क्यों मारे
हमेशा हाथ नहीं उठाना चाहिए ..पिता को
कम होने लगता है डर..
रो रहे थे मंत्री जी दुःख था उन्हें
संतान को मारने का
लेकिन कहीं उससे भी ज्यादा
प्रियतम के विदीर्ण रक्त के छींटे ने
उनके गले में कर दिया शमन
स्नेहिल कफ्फ-पित्त और वायु का
खाँसकर बोले ..लेते आऊंगा बेदाना
माँ का नहीं कम होना चाहिए हीमोग्लोबिन
बेटे के तो लेते लाऊंगा रसमाधुरी तीन
भरे डबडब नैनों से पर मुस्कुराते
दोनों का दुलार लिए ..
चला मेरे साथ शिक्षा मंदिर के राह प्रखर
उस समय तो नहीं समझा था
अब सोचता हूँ ऐसे होते हैं
गेह गहन …..और नेह अमर
“अतुल्य प्रेम’..और भाव प्रवर

5.टारगेट

उफ़ यह टारगेट भी !
विलग और अपरिहार्य सरल जीवन शैली से ..
जहाँ इसका कोई नहीं मान
पर वह जीवन तो कीड़े भी जीते है
लेकिन कहने से क्या ?
बिना टारगेट भी तो पाते हैं अलभ्य
कुछ भाग्यशाली इंसान से
निर्दयी दनुज
गोया जानवर तक ..
जो पसीना बहाते उनका असमय अंत
जो बैठे रहते वो कहलाते गुणवंत
पर यह तो काल का है टारगेट
जिसे हमने कहाँ देखा ?
इसलिए बनाया ध्येय
पाने का अपने जीवन के टारगेट को .
मेरे लिए तो है यही
जीवन का पहला और आख़िरी अध्याय
नहीं सूझता कोई इसका पर्याय ..
इस भूमंडलीकृत मंदी में
जो प्रकृतिप्रदत्त नहीं
है हमारे कर्मों की उपज
प्रजातंत्र के सारथी साधुओं की देन
अपने कर्मो से बने चंद ब्यूरोक्रेट्स का ब्रेन
विदेशों में कालाधन सड़ रहा
यहाँ निर्बल मर रहा
टारगेट के प्रकोपों से
अपने लिए तो छद्म अनुदान
इसके सहारे पूंजीपति बन रहे धनवान
मेरे लक्ष्य भेदन से वो हासिल करते
टारगेट का सार्थक रूप
ढाल- लक्ष्य- उदेश्य-निशाना
प्रतिक्षण बुनते ताना बाना
हमारे उड़ते प्राण
वो पाते सम्मान
इसके मत्स्य नयनो की पुतली में
बेधन से अर्जुन के प्रतिद्वंदियों की तरह
एक बार भी यदि हम पिछड़ेंगे
तो सूखी रोटी के लिए भी तरसेंगें !
द्रौपदी को पाने की कल्पना भी यहाँ निरर्थक !!!

डॉक्टर शेफालिका वर्मा
 संपर्क –  : ०९३११६६१८४७
मैथिली आत्मकथा  : क़िस्त -क़िस्त जीवन  के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिल चुका है ! प्रख्यात हिन्दी और मैथिली साहित्यकार

 

shiv kumar jha ki kavitaenशिव कुमार झा
शिक्षा : स्नातक प्रतिष्ठा,: स्नातकोत्तर , सूचना- प्राद्यौगिकी

साहित्यिक परिचय : पूर्व सहायक संपादक विदेह मैथिली पत्रिका (अवैतनिक )

सम्प्रति – : कार्यकारी संपादक , अप्पन मिथिला ( मुंबई से प्रकाशित मैथिली मासिक पत्रिका ) में अवैतनिक कार्यकारी संपादक

साहित्यिक उपलब्धियाँ : प्रकाशित कृति
१ अंशु : मैथिली समालोचना ( 2013 AD श्रुति प्रकाशन नई दिल्ली २ क्षणप्रभा : मैथिली काव्य संकलन (2013 AD श्रुति प्रकाशन नई दिल्ली )इसके अतिरिक्त कवितायें , क्षणिकाएँ , कथा , लघु-कथा आदि विविध पत्र -पत्रिका में प्रकाशित
सम्प्रति :जमशेदपुर में टाटा मोटर्स की अधिशासी संस्था जे एम . ए. स्टोर्स लिमिटेड में महाप्रबंधक के पद पर कार्यरत

वर्तमान पता :
जे. एम . ए. स्टोर्स लिमिटेड ,मैन रोड बिस्टुपुर  ,जमशेदपुर : ८३१००१ ,# ०९२०४०५८४०३,  मेल : shiva.kariyan@gmail.com

10 COMMENTS

  1. डॉक्टर शेफालिका वर्मा जी आपको कहीं भी पढ़ना बहुत ही सुखद अहसास होता हैं ! शिव कुमार झा जी आपकी किसी एक कविता पर भी कोई टिप्पणी करना बहुत मुश्किल सा हो गया हैं ! साभार व् बधाई

  2. साभार डॉ राधिका वर्मा जी …उत्साहवर्धन और समालोचनात्मक अनुशीलन हेतु अनुगृहीत हूँ ..प्रो. संजना कौशिक महोदया ..आपकी उत्प्रेरण क्षमता और काव्य दृष्टि भी निराली है …साभार .माननीया निहारिका रस्तोगी जी, आपके अतुल्य काव्य प्रेम को मेरे भावों के गेहसे ही नहीं , अपितु आत्मा से नमन ! डॉ मंजरी चतुर्वेदी जी प्रणाम ..आप जैसी विदुषियों द्वारा अरिराल और सार्थक भाव प्रकट करने से मेरी काव्य -साधना को नवल दृष्टि , नूतन बल और चेतना का सम्बल मिला..प्रणाम .
    साभार ,
    शिव कुमार झा
    जमशेदपुर

  3. शानदार ,बहुत ही उम्दा कविताएँ ,सुबह सुबह कुछ अच्छा …बहुत अच्छा पढ़ने का मन हो तो आई एन वी सी न्यूज़ पर चले आओ …यहाँ कुछ के से बहुत ज्यादा बहुत ही उमगा ज्ञानवर्धक पढ़ने को मिल जाता हैं ! शिव कुमार झा जी जो कविताओं के लियें डॉक्टर शेफालिका वर्मा जी को शानदार टिप्पणी के लिए और आई एन वी सी न्यूज़ को पाठको का विशेष ध्यान रखने के लिए …आभार ,बधाई और धन्यवाद !

  4. शिव कुमार झा जी आपकी कविताएँ सभी बहुत शानदार हैं …अतुल्य प्रेम सबसे उत्तम हैं ! बधाई ,डॉक्टर शेफालिका वर्मा…आपकी टिप्पणी दुनिया की पहली हज़ार टिप्पणियों में से एक है ! डॉक्टर शेफालिका वर्मा आपको कई बार पढ़ा हैं पर टिप्पणी के रूम में पढ़ना और भी सुखद रहा !

  5. स्नेही साहित्यप्रेमी पाठक गण आपके स्नेहिल भाव से द्रवित हूँ ..आत्मिक साभार , शिव कुमार झा

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  8. डॉक्टर शेफालिका वर्मा जी …आपकी टिप्पणी बहुत दिनों बाद पढ़ने को मिली ! शिव कुमार झा जी आपकी किसी एक कविता की तारीफ़ करना बेमानी होगा !

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