*शांत घाटी

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 के.एन.बीना*

 पर्यावरण और वन

                                          

                                                                               

     पर्यावरणविद् एम.के.प्रसाद का कहना है ‘’साइलेंट वैली’’ (शांत घाटी) इस बात का आश्‍वासन देती है कि वन भी इंसानों के जरिए अपनी भावनाएं व्‍यक्‍त कर सकते है। शांत घाटी के सैलानी और आगंतुक उनकी इस बात से असहमत नहीं हो सकते क्‍योंकि यह घाटी प्रकृति के बीचों-बीच असाधारण शांति का अनुभव प्रदान करती है। यह प्रकृति के साथ होने का और उसके साथ एकात्‍मकता का अत्‍यंत दुर्लभ अनुभव प्रदान करती है।

      शांत घाटी राष्‍ट्रीय उद्यान केरल के पलक्‍कड़ जिले में नीलगिरी की पहाडि़यों में स्थित है। यह उद्यान भारत के दक्षिण-पश्चिमी घाट के वर्षा वनों और आर्द्र  उष्‍णकटिबंधीय सदाबहार वन के आखिरी अनछुए छोर पर है। यह घाटी नीलगिरी अंतर्राष्‍ट्रीय जैवमंडल संरक्षित क्षेत्र के केंद्र में है और विश्‍व विरासत स्‍थल के रूप में मान्‍य पश्चिमी घाट का हिस्‍सा है।

      यह क्षेत्र आम भाषा में ‘सैरंध्रीवनम्’ कहलाता है, जिसे मलयालम भाषा में सैरंध्री का वन कहते है। स्‍थानीय हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार सैरंध्री का अर्थ द्रौपदी है। पांडव अपने वनवास के दौरान घूमते हुए केरल पहुंच गए थे, जहां वे एक जादुई घाटी में आ गए, जहां लहराते हुए घास के मैदान तंग वन घाटियों से मिलते थे, एक गहरी हरी नदी अगम्‍य वन में अपना रास्‍ता ढूंढती हुई सी लगती है, जहां सुबह और शाम, बाघ और हाथी किनारे पर इकट्ठा पानी पीते थे, जहां सब कुछ सामंजस्‍यपूर्ण था और जहां इंसान नहीं पहुंचा था।

      वर्ष 1847 में वनस्‍पतिशास्‍त्री रॉबर्ट वाइट शांत घाटी क्षेत्र के जलभंडारण का अनुसंधान करने के लिए गए पहले अंग्रेज थे।

      अंग्रेजों ने इस क्षेत्र का नाम शांत घाटी इसलिए दिया, क्‍योंकि वहां शोर करने वाले सिकाडा कीड़ों का अभाव था। अन्य कहानी के अनुसार इस नाम का संबंध  सैरंध्री नाम के अंग्रेजी रूपांतरण से जुड़ा है। तीसरी कहानी घाटी की अनछुई प्रकृति की तरफ इशारा करती है अर्थात जहां कोई इंसानी शोर नहीं होता।    शांत घाटी में लघुपुच्‍छ वानरों की बड़ी संख्‍या निवास करती है, जो कि नर-वानरों की लुप्‍तप्राय प्रजाति है।

      शांत घाटी राष्‍ट्रीय पार्क प्राकृतिक वर्षावनों का एक अनूठा स्‍थल है। यह विविध प्रकार के जीवों का वास है, जिनमें से कुछ विशेष रूप से पश्चिमी घाट के ही हैं।

कुंटीपूझा नदी इस पार्क के  उत्‍तर से दक्षिण की तरफ 15 किलोमीटर लम्‍बाई से गुजरती हुई भारतापूझा नदी में मिलती है। साफ, स्‍वच्‍छ और बारहमासी होना नदी की विशेषता है। शांत घाटी में वृक्ष प्रजातियों की संख्‍या (0.4 हेक्‍टेयर में 84 प्रजातियों के 118 संवहनी पौधे) बहुत ज्‍यादा है, जबकि दूसरे उष्‍ण कटिबंधीय वनों में 60 से 140 प्रजातियां ही उपलब्‍ध होती हैं।

      मुदुगार और इरुला जनजातीय लोग इस क्षेत्र के मूल निवासी हैं और वे पास की अत्‍तापदी संरक्षित वन्‍य क्षेत्र की घाटी में रहते हैं। इसके अलावा, कुरुंबर लोग पार्क के बाहर के क्षेत्र में नीलगिरी की पहाडि़यों के निकट रहते हैं।

      शांत घाटी के जीवों के बारे में अध्ययन से पता चलता है कि इस घाटी में अद्भुत और दुर्लभ जीव हैं। दुर्लभ इसलिए, क्‍योंकि पश्चिमी घाट के पूरे क्षेत्र में इनकी कई मूल प्रजातियां मनुष्यों की बस्तियों के विस्‍तार या अन्य कारणों से अपने आशियाने उजड़ने के कारण लुप्‍तप्राय हो गयी हैं। फिर भी, इस क्षेत्र में अपेक्षाकृत कम मानवीय घुसपैठ के कारण यहां शांत घाटी में कुछ विशेष प्रकार के जीव अभी भी उपलब्ध हैं। यह अद्वितीय इसलिए है कि अब तक एकत्र थोड़े बहुत  आंकड़ों और वर्गीकरण, प्राणि-वृत्तांत और पारिस्थितिक अध्‍ययन की दृष्टि से उपलब्‍ध यह जानकारी वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत दिलचस्‍प है।

      पश्चिमी घाट की शांत घाटी में 50 से 100 साल पहले तक बडी संख्या में कीड़ों,मछलियों, उभयचरों, सर्पों, और स्तनधारियों की प्रजातियां उपलब्‍ध थीं और अभी भी मौजूद हैं।

      1970 तक यह एक अनजाना, और अछूता वन क्षेत्र था।

      क्षेत्र में प्रस्तावित एक पनबिजली परियोजना की घोषणा के बाद 1984 में यहां पार्क का निर्माण हुआ।

      तब से, शांत घाटी के पारिस्थितिकी संतुलन के संरक्षण की दीर्घकालीन योजना बनाई गई है। क्षेत्र की बेहतर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पार्क को सुरक्षित क्षेत्र बनाया गया और अब यह शांत घाटी राष्‍ट्रीय उद्यान का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है।

      अब शांत घाटी के दो क्षेत्र हैं। मुख्य क्षेत्र (89.52 वर्ग किमी) और सुरक्षित  क्षेत्र (148 वर्ग किमी)। मुख्‍य क्षेत्र संरक्षित है और वन्य जीवन में कोई दखलंदाजी नहीं है। केवल वन विभाग के कर्मचारियों, वैज्ञानिकों, और वन्य जीवन फोटोग्राफरों यहां जाने की अनुमति है।

      शांत घाटी राष्‍ट्रीय उद्यान की कहानी देश में पर्यावरण संरक्षण के लिए संघर्ष और सोच को दर्शाती है। घाटी की रक्षा के लिए चले संघर्ष ने साबित कर दिया कि मनुष्यों में अभी भी प्रकृति के लिए चिंता है।

   *मीडिया एवं संचार अधिकारी, पसूका, तिरुअनंतपुरम्

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