शहरी जल भराव : प्राकृतिक अथवा मानव निर्मित?

0
38
bhopal city flood-निर्मल रानी-
वैसे तो बाढ़ अथवा बारिश के मौसम में होने वाले जल भराव को आमतौर पर प्राकृतिक आपदा के रूप में ही देखा जाता है। बाढ़ की समस्या प्राय: बारिश के मौसम में नदियों व नालों के उफान पर होने के कारण पैदा होती है। भीषण बाढ़ जान व माल की भारी तबाही का कारण भी बन जाती है। यह आपदा प्राय: भवनों को भी क्षतिग्रस्त कर देती है यहां तक कि कच्चे मकान व झुग्गी-झोंपडिय़ों को अपने साथ बहा ले जाती है। इतना ही नहंीं बल्कि खेतों की मिट्टी को भी अपने साथ ले जाकर खेतों की उर्वरक क्षमता को कम कर देती है। बाढ़ का पानी पीने के पानी के साथ मिल जाने की स्थिति में कई प्रकार के संक्रामक रोग भी पैदा हो जाते हैं। गोया प्राकृतिक बाढ़ तबाही का कारण बन जाती है। परंतु हमारे देश में अनेक नगर व महानगर ऐसे भी हैं जो मात्र कुछ ही घंटों की बारिश में प्रलयकारी बाढ़ जैसा दृश्य पेश करने लगते हैं। और $खुदा न $ख्वास्ता ऐसे शहरी क्षेत्रों में यदि कुछ घंटों की लगातार तेज़ बारिश हो जाए और नदियों का बाढ़ का पानी भी शहर में हुए जल भराव से आकर मिल जाए फिर तो तबाही,बरबादी तथा जान व माल के नु$कसान का जो मंज़र दिखाई देता है उसे देखकर यह विश्वास नहीं किया जा सकता कि क्या इस तबाही का कारण वास्तव में प्राकृतिक आपदा ही है या फिर इस त्रासदी के पीछे कहीं न कहीं मानवीय $गलतियां भी शामिल हैं?
इन दिनों मध्यप्रदेश के कई शहर बाढ़ तथा जल भराव की चपेट में हैं। अब तक 25 से अधिक लोगों के इस बाढ़ में मारे जाने के समाचार प्राप्त हो चुके हैं। इस त्रासदी से युद्धस्तर पर निपटने के प्रयास किए जा रहे हैं। भोपाल,इंदौर,उज्जैन तथा होशंगाबाद मंडल इस आपदा से प्रभावित हैं। सडक़ व रेल यातायात तथा विद्युत आपूर्ति व जलापूर्ति आदि प्रभावित है। इसी प्रकार नवंबर-दिसंबर 2015 में दक्षिण भारत के कई इला$कों में $खासतौर पर तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में बाढ़ ने ऐसी तबाही मचाई थी जिसके कारण पांच सौ से अधिक लोग अपनी जानों से हाथ धो बैठे थे। लगभग बीस हज़ार करोड़ रुपये की संपत्ति के नु$कसान का आंकलन किया गया था। चेन्नई के शहरी क्षेत्र में जिसमें कि वहां का औद्योगिक क्षेत्र भी शामिल है, ऐसी प्रलयकारी लीला देखने को मिली थी जिससे कि भारत की अर्थव्यवस्था को भी का$फी धक्का लगा था। उस समय भी यही सवाल सामने आया था कि शहरों में आई ऐसी प्रलयकारी बाढ़ अथवा जल भराव का मुख्य कारण क्या है? आ$िखर क्या वजह है कि बारिश का पानी शहरी इला$कों से आगे की ओर अर्थात् नदियों व नालों की ओर प्रवाहित होने के बजाए शहरों में ही क्यों खड़ा रह जाता है? यह जल भराव अपने निर्धारित तथा इंजीनियर्स द्वारा बनाए गए जल प्रवाह के मार्ग से होता हुआ शहर छोडक़र आगे क्यों नहीं जा पाता?
incrochment 2 यदि राष्ट्रीय स्तर पर इस समस्या का ईमानदारी से आंकलन किया जाए तो हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचेंगे कि मानव की दुश्मन बनती जा रही जल भराव व बाढ़ जैसी त्रासदी के लिए प्रकृति कम जबकि मानव समाज अधिक दोषी है। सबसे पहले तो हमें यह दिखाई देता है कि बढ़ती जनसंख्या के दबाव के चलते हमने शहरी जल भराव हेतु निर्धारित तालाबों,गड्ढों तथा जोहड़ों को पाटकर उसमें भवन निर्माण अथवा शॉपिंग कांपलेक्स आदि बनाने शुरु कर दिए हैं। बरसात का पानी जब अपने निर्धारित स्थान की ओर बढ़ता है तो उस स्थान पर उसे निर्मित भवन नज़र आते हैं और वह पानी उनमें समाने की कोशिश करता है। शहरी जल निकासी का दूसरा माध्यम शहरों में बहने वाली नालियां व नाले हैं। बड़े अ$फसोस की बात है कि स्वयं को राष्ट्रभक्त,धार्मिक तथा अपनी प्रशंसा में न जाने कौन-कौन से शब्द प्रयोग करने वाला हमारा दोहरे चरित्र वाला समाज इन्हीं नालियों व नालों पर $कब्ज़ा जमाए बैठा दिखाई देता है। यहां तक कि पक्के लिंटर डालकर नालों को ढक दिया जाता है। ऐसा करने से नगरपालिका व नगरनिगम के कर्मचारियों को ऐसे नालों की स$फाई करने में का$फी दि$क्$कत पेश आती है। परिणामस्वरूप यह नाले कचरे,गंदगी तथा मलवे से भर जाते हैं और थोड़ी सी बारिश का पानी भी इन नालों से ऊपर बहने लगता है और धीरे-धीरे जल भराव का रूप ले लेता है। और अगर इसी बीच प्रकृति ने तेज़ बारिश कर दी तो फिर यही जल भराव बाढ़ की शक्ल में तब्दील हो जाता है।
इसी प्रकार शहरी जल भराव का दूसरा कारण भी ऐसा है जिसके लिए प्रकृति या पशु नहीं बल्कि स्वयं को सभ्य समझने वाला मनुष्य ही जि़म्मेदार है। उदाहरण के तौर पर कोई भी नागरिक पॉलीथिन अथवा प्लास्टिक की $खाली बोतलें,ईंट-पत्थर, कांच के टुकड़े तथा न गलने वाला घर का दूसरा तमाम सामान नालियों व नालों में फेंककर स्वयं को स$फाई पसंद समझने की $गलत$फहमी में जीता है। वह यह नहीं समझता कि उसके द्वारा की जा रही इस प्रकार की हरकत न केवल स$फाईकर्मियों के लिए एक बड़ी परेशानी खड़ी कर रही है बलिक इस लापरवाही व $गैरजि़म्मेदारी के परिणामस्वरूप उसी का अपना गली-मोहल्ला व शहर बारिश के पानी में डृब सकता है। बरसात के मौसम में अनेक शहरों व $कस्बों में प्रशासन की ओर से शहरी जल भराव व संभावित बाढ़ से निपटने के प्रारंभिक उपाय किए जाते हैं। इनमें सर्वप्रथम नालियों व नालों की स$फाई का काम बड़े पैमाने पर किया जाता है। यदि आप नालियों व नालों से निकाले गए कचरे पर नज़र डालें तो यही दिखाई देगा कि पूरे का पूरा कचरा इंसानों द्वारा ही नालियों व नालों में फेंका गया  कचरा है। हद तो यह है कि कई बार इन्हीं शहरी नालियों व नालों में से रज़ाई,गद्दे,कंबल तथा मरे हुए जानवर तक निकाले गए नज़र आते हैं। ज़रा सोचिए कि इस प्रकार का कूड़ा-करकट,कचरा और कबाड़ आ$िखर नालियों व नालों के जाम का कारण क्योंकर नहीं बनेगा?
परंतु हमारा समाज बड़ी आसानी व चतुराई के साथ ऐसी लापरवाहियों व $गैरजि़म्मेदारियों के लिए एक-दूसरे को जि़म्मेदार ठहरा कर अपने-आप को बचाने की कोशिशों में लगा रहता है। और किसी बड़ी विपदा का शिकार होने पर या इन कारणों से होने वाली आर्थिक क्षति के लिए प्रशासन को दोषी ठहराता है तथा सरकार से मुआवज़े की मांग करने लग जाता है। गोया नगर को स्वच्छ बनाए रखने में अपने कर्तव्यों को भुलाकर अपने अधिकारों की बात करने लगता है। बारिश के अतिरिक्त आम दिनों में भी यदि किसी मोहल्ले की नाली या नाले सा$फ न हों तो स$फाई कर्मचारियों को आंखें दिखाने लगता है। शहरों में अनेक लोगों ने अपने घरों में गाय व भैंसें पाल रखी हैं। अपने घरों में या रिहायशी प्लाटस में इस प्रकार की डेयरियां संचालित करने वाले लोग न केवल अपने पशुओं का गोबर नालियों व नालों में प्रतिदिन बहाते रहते हैं बल्कि इस प्रक्रिया में यह लोग पानी का भी खुला और बेजा इस्तेमाल करते हैं। यह काम न केवल $गैर $कानूनी है बल्कि मानवीय दृष्टि से भी पूरी तरह $गलत है। परंतु सरकार व प्रशासन इन बातों की हमेशा से ही अनदेखी करता आ रहा है। परिणामस्वरूप जिस प्रकार नालों व नालियों पर अतिक्रमण करने वाले लोगों के हौसले बुलंद हैं उसी प्रकार गली-मोहल्लों में डेयरी चलाने वाले लोग बे$िफक्र होकर नालियों में गोबर प्रवाहित कर रहे हैं और जल की बर्बादी करते आ रहे हैं।
incrochment 2 यह हालात इस निष्कर्ष पर पहुंच पाने के लिए पर्याप्त हैं कि शहरी बाढ़ का कारण प्रकृति की ओर से की जाने वाली बारिश से अधिक स्वयं मानव समाज है। और निश्चित रूप से यदि भविष्य में इस आपदा से निजात पानी है तो गंदे पानी तथा बारिश के पानी के प्रवाह के रास्तों में मिट्टी का भराव करने या इसे कूड़े व कचरे से बाधित करने जैसी हरकतों से बाज़ आना होगा। इतना ही नहीं मात्र अपने निजी स्वार्थ के लिए अथवा व्यवसायिक स्वार्थ के चलते सरकारी ज़मीनों पर $कब्ज़ा करने अर्थात् नालियों व नालों पर लेंटर डालने या अपना घरेलू स्लोप बनाने जैसी सुविधा को त्यागना होगा। यदि इस प्रकार की $गैर जि़म्मेदाराना व स्वार्थी प्रवृति से इंसान बाज़ नहीं आया तथा ऐसी हरकतों के लिए स्वयं के बजाए दूसरों पर दोषारोपण करने में ही व्यस्त रहा तो कोई आश्चर्य नहीं कि भविष्य में आने वाली बाढ़ अथवा शहरी जल भराव पूर्व में आ चुकी बाढा़ें से भी कहीं अधिक हानिकारक व प्रलयकारी हों। आज मुंबई व चेन्नई जैसे महानगर देश में इस बात के सबसे बड़े उदाहरण हैं कि वहां किस प्रकार बरसाती पानी के जमा होने के स्थानों पर भूमा$िफयाओं अथवा सरकारों द्वारा $कब्ज़ा कर बड़े-बड़े निर्माण कार्य कराए जा चुके हैं। मुंबई का प्राचीन भूगोल तो यही बताता है कि मुंबई अनेक टापुओं पर अलग-अलग बसा हुआ क्षेत्र था जिसे आपस में जोडऩे के लिए समुद्र के जल में मिट्टी के भराव किए गए। और इसे वर्तमान वृहद् मुंबई का रूप दिया गया। आज स्थिति यह है कि लगभग प्रत्येक वर्ष मुंबई महानगर पानी में डूबा दिखाई देता है। जबकि प्राचीन मुंबई इस प्रकार बारिश के पानी से नहीं डूबा करता था। यह हालात भी प्रकृति ने नहीं बल्कि मानव जाति ने ही पैदा किए हैं।
*******
???????????????????????????????परिचय – :
निर्मल रानी
लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका 

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क -:
Nirmal Rani  : 1622/11 Mahavir Nagar Ambala City13 4002 Haryana ,
Email : nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

* Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here