शशांकबदकल बदकल की कविता

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झूठ को सच बनाइए साहब,

ये हुनर सीख जाइए साहब,

छोड़िए साथ इस शराफत का,
नाम अपना कमाइए साहब,

फल है देता तो, खादपानी दो,
वरना आरी चलाइए साहब,

घर ये अपना नहीं चलो माना,
जब तलक हैं, सजाइए साहब,

हर तरीका जहां बदलने का…
ख़ुद पे भी आजमाइए साहब,

ताज पहनोगे सोचते हो कहां..
अपने सर को बचाइए साहब,

वो ना दिल में, तो है कहां दोस्तों,
हमको इतना तो बताइए साहब….

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शशांकबदकल बदकल

shashankbadkul badkulएमसीएक्स बिजिनिस एडवाइजर
  भोपाल

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