शक्ति सार्थ्य की पाँच कविताएँ

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शक्ति सार्थ्य की पाँच कविताएँ

नित्यानन्द गायेन की टिप्पणी : शक्ति सार्थ्य ने अभी –अभी लिखना शुरू किया है इसलिए इनकी कविताओं में कच्चापन है  और बनावटीपन भी. इनके लेखन में यह एक नवोदित लेखक के गुण मौजूद है . शक्ति जी को चाहिए कि वे अधिक से अधिक कवियों को पढ़ें और अपनी भाषा और हिंदी व्याकरण पर ध्यान दें . निरंतर अभ्यास से इनका लेखन मजबूत होगा ( नित्यानन्द गायेन सहायक सम्पादक आई एन वी सी न्यूज़ )

शक्ति सार्थ्य की पाँच कविताएँ

1.मंगर-मंगर आठ

वह फटे लिवास मेँ
घास-फूँस के छप्पर निवास मेँ
मग्न थी,
उसकी भी ख्वाहिशेँ थी
पर दबी-दबी सी
मृत झाड़ियोँ सी

वह थी, खेलती रहती
नगेँ पैर
धूप मेँ
छाँव मेँ
जाड़े की कहर बरपाती ठण्ड मेँ काँकती-सी
ठिठुरती-सी

उसकी एक अजब दुनिया थी,
वह थी यहीँ की
लेकिन उसने वो दुनिया-
अपने धैर्य से जन्मी थी

मासूम सी-
गुँजटेँ हुए वालोँ की दो चोटी लिए
इतराती
मिनटोँ.. घण्टोँ…

उसके चेहरे की चमक-
मानो कुदरत ने कोई
चित्रकारी की हो
बड़ी-बड़ी आँखे
होँठोँ पे गुलाबी मुहर
गालोँ पे कली कली
मोहिनी मुस्कान
माथेँ पर न कोई शिकन
नाक की अपनी तलछटी

आज सन्न है पूरी बस्ती
उसकी विधवा माँ की हस्ती

कहीँ दूर से रोज आने वाले
परदेशी बाबू ने
हथिया लिए उनके ठिकाने
गरीबोँ के घास-फूँस के
मैले आशियाने
पस्त थे सभी छोटे-मोटे
लेकिन हसीँ सपने

वह शहर की कचरे वाली गली मेँ
बू झाड़ते
उनमेँ खोज-बीन करते
कुत्ते
रात को वहीँ कोने मे ढेर होते
दर्द भारी अवाजेँ इज़ाद करते
शायद दिल से सुना जाये
तो वे ईश्वर से
अपनी उम्र घटाने की
सिफारिशेँ करते
मिन्नतेँ करते

वहीँ पास मेँ
मंगर-मंगर आठ रोज से भूखी
वह, अपने और उनके किस्मत के तार
तलाशती
उनके साथ खेल खेलती
वह अब भी खुश थी

उसकी ये अजब जिँदगी
उसकी खास पहचान थी
वो लोँगो से अलग थी
बिल्कुल अलग
शौक का कोई मोह नहीँ
जहाँ जाती वहीँ रह जाती
उनमेँ घुलजाती
वो समझदार थी
और थोड़ी अनजान भी !

2.जीवन की गहराई

मुझे पता है
कि क्या होगा मेरे
इस हाड़-माँस के शरीर का
मैँ अपने इस जीवन को
सुखमय जीवन देकर
गरीबोँ की बद्दुआयेँ एकत्र
करना नहीँ चाहता
न ही अपने को शून्य
समझकर
किसी दुःख
को बढ़ावा दूँगा
मेरा कर्त्तव्य मुझे मनुष्य
की परिभाषा मेँ
गढ़े रहने की सख्त
हिदायत देता-
मैँ कर्त्तव्योँ से मुड़कर
अपनोँ को दुःख दूँगा
और अपने लिए
शून्यकाल मेँ व्यतीत होने
वाला जीवन,
जीवन की रेखा उलागंना
जीवन की मय्यत मेँ भाग
लेने जैसा-
ये संभव नहीँ है मेरे लिए-
मैँ दुःखोँ मेँ अगर लिप्त हुआ
तो उस दुःख भरे जीवन मेँ
अपने लिए एक जीवन
तलाश करुगाँ-
शायद वो जीवन
कागज-कलम के
बीच व्यतीत होगा
ये जीवन मुझे मरने
नहीँ देगा
सदा एक
ऐसी संतुष्टी देगा
कि मैँ अपनोँ के साथ-साथ
औरोँ का भी मित्र बन
जाऊगाँ
बिना किसी शर्त के
मित्र की तरह

3-जीवित होने मेँ मृत्यु-गीत

जिन्दगीँ यूँ हीँ एक
किताब पर
दर्ज होती गई…
और ढलती गई
एक शाम की तरह…
मैँ बस, वेबस-
उसमेँ शराब के सोडा-
सा मिलता गया…
‘मरता क्या न करता’
शायद यही आलम था मेरे
जीवन का
मैँ था करता गया
और लिखता गया
कुछ हर्फ़
जो शायद ज़वानी मेँ
भी बूढ़े थे…
कुछ लम्हेँ, कुछ रातेँ
और कुछ दिन संजोय थे,
कि यही मेरेँ सुकूं के
बादशाह बनेँगेँ
पर कम्वक्त, बेवक्त,
धोखा दे गये ये भी-
मैँ स्वंय की वो तीव्र
बुद्धी पर
अपने मेँ प्रखर होने पर
नाज़ किया करता था
वो आज धूमिल-सी हो गई
मेरे जीवन की अजीब
मिटता हो गई
मेरे तन्हाई की साथी
खुद तन्हा हो गई…
अब तो मैँ अपने जीवित
होने मेँ मृत्यु-गीत की धुन
पर
धुन बनाने मेँ
सहायक धुनकर
की भाँति हूँ
जिसको न जाने कब
काम खराब हो जाने
की बजह से
मुहँ की खानी पड़ जायेँ…

4-चूनर

तेरी गहरी-
नाज़ुक
मन मेँ हिलोर देने वाली
चूनर
यूँ लहरियाँ ले रही
जैसे वदन की सारी खुशबू
टपक पड़ी हो
घुल-घुल जाती पवन मेँ
अटका देती दिल
की धड़कने,
कुछ तो था
मैँ बिन सोचेँ
न रह पाया उस घड़ी
बस उसकी लहरियाँ
बार-बार आयेँ याद
वो गहरी थी
इतनी नाज़ुक भी
और थी कातिलाना-
कर ही दिया
मेरे दिल को
घायल

5-जवानी की लघुता

तुझसे तो मिलोँ
कई बार कहता
और कहता बार-बार
तुझसे पूँछु
पर मिलन की बात
मिलन क्योँ नहीँ होती
सवाल क्योँ नहीँ पूँछती,
खुद क्योँ ये-
मुझे यादोँ मेँ
परेशां करती
अब वक्त नहीँ हैँ
तुझसे दूर रहने का
अन्तिम पड़ाव पर है
ये मेरी जवानी की
लघुता
बेचैन सी है
मेरे कदम ही
पड़ते नहीँ अब,
तू क्योँ नहीँ आती-
पूँछले अपने प्रियतम
का हाल
जो जिन्दगीँ की दौड़ से
थका सा महसूस करता
धूल-सा
धूप मेँ अपने
टुकड़े बिखेरता
जिसका अस्तित्व है
अब खतरे मेँ,
न जाने कब पीटा जाए,
दब जाए
उस मकां मेँ
जिसका
दाब दुःखोँ से
और यादोँ तले दबा हो!

परिचय- : 

shakti sarthkशक्ति सार्थ्य

साझा काव्य संग्रह “सुनो समय जो कहता है”(2013) मेँ पाँच कवितायेँ ,प्रकाशित, राज्यभाषा संवाद व्लॉग मेँ भी चार कवितायेँ तथा ‘सार्थक नव्या’व देशज समकालीन पत्रिकाओँ मेँ भी कविताओँ का प्रकाशन

संपर्क – :  ग्राम व पोस्ट- गैनी, जिला- बरेली, उत्तर प्रदेश, पिन-243302

ईमेल- :  shaktisarthya@gmail.com और thakurshakti503@gmail.com , मो. 08881889084

6 COMMENTS

  1. कविताओं में दम हैं ! लेखन में काफी आगे जाओगे !

    • बस आपकी दुआएं और ईश्वर की कृपा बनी रहे अलका मैम!

  2. कविताएँ …पढ़ने के बाद अच्छा लगा !जवानी की लघुता शानदार हैं ,बाधाई हो ,

  3. शानदार कविताएँ ,कविताओं में नया पन हैं ! बस नाम अभी बहुत छोटा हैं !

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