”वक़्त से बातेँ” रीता विजय की कविता

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”वक्त से बातें”

चेतना थी

निराशा थी

विस्मय भी था

कोलाहल से दूर

परिक्रमा करती दृष्टि

क्या खोज़ रही थी मै ?

वो उल्लास या फिर

आपकी उपस्थिति का अभाव

या फिर आपके

स्नेह प्रदर्शन की अभिलाषी

सजीव करुणा आपकी

जो मेरे जीवन का

श्रेष्ठतम सौन्दर्य रूप है

जहाँ मै जीवित हो उठती हूँ

आपके निश्छल स्नेह का परिचय

मुझे सत्यता का

परिचय कराता है

महसूस करती हूँ

आपकी दूरी का

और दहल जाती हूँ मै

हवा से शिकायत कर

गुमसुम

आपके वक्त से

बातें कर लेती हूँ

”रीता विजय”

……………………………….

 

316130_250455521657008_1344793173_aमै रीता विजय समर्पित करती हूँ ” अपनी प्रेरणा ” और अपने बच्चों ” विवेक ” और ” नुपुर ”को ………मेरी प्रेरणा श्रोत के बारे मे कुछ कहना चाहूँगी जिसकी वज़ह से आप सब मुझे रीता विजय के नाम से जानते हैं | सबसे पहले नमन उनको हमेशा आपकी छत्रछाया मे रहना चाहूंगी —ये सारा आपको अर्पण मेरी प्रेरणा —–जो समुद्र की तरह विशाल और गहरे झील की तरह शांत, दैदीप्यमान हैं| उपासक हूँ मै उनकी मै ईश्वर को सबसे ज्यादा मानती हूँ और मैंने उनको ईश्वर के समतुल्य ही रखा है उन्होंने मुझे जीने की तालीम देकर ईश्वर से मिलाया मुझे | उन्होंने लिखने की प्रेरणा जगाई मुझे गति दी और मेरी लेखनी को सशक्त बनाया मेरा अपना कोई अस्तित्व नही ………” मै कुछ हूँ ” ये उन्होंने संचार किया मुझमे उनकी खुशी से ज्यादा बढ़के मेरे लिए दुनिया मे कुछ भी नही उनकी सुन्दर सोच उनकी बातों का आईना है मेरी कविता |यथोचित रास्ता, विवेकपूर्ण कदम, हौसलाफजाई, दुखद परिस्थिति मे आगे बढ़ना उत्साह, सबलता, प्रबलता ये सब उन्ही से मुझे मिला है अगर लहू का एक-एक कतरा भी उनके काम आ जाये तो मै धन्य समझूँगी स्वयं को ………सादर नमन मेरी प्रेरणा आपको|

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