वीरभद्र के घर बैठी गज़ल और कविता की महफ़िल

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kavita sandhyaआई एन वी सी,
शिमला,
ओक ओवर में रविवार की शाम कुछ खास लम्हें समेटे थी। प्रदेश के इतिहास में पहली मर्तबा मुख्यमंत्री आवास में काव्य संध्या सजी और नज़मों, गीतों और गज़लों से माहौल गुलज़ार हुआ। इन ऐतिहासिक लम्हों में महामहिम राज्यपाल श्रीमती उर्मिला सिंह, मुख्यमंत्री श्री वीरभद्र सिंह, साहित्य अनुरागी राज्य सभा सांसद श्री जनार्दन द्विवेदी, विधानसभा अध्यक्ष श्री बृज बिहारी लाल बुटेल व प्रदेश मंत्रिमण्डल के सदस्य भी शामिल थे। सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग और भाषा, कला एवं संस्कृति विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस काव्य संध्या में प्रदेश के एक दर्जन कवियों ने शिरकत की। मुख्यमंत्री श्री वीरभद्र सिंह ने इस अवसर पर कहा कि हिमाचल प्रदेश के सृजन ने पूरे देश का ध्यान खींचा है और साहित्य जगत को कई अनमोल रचनाएं दी हैं। प्रदेश की धरती कला, संस्कृति और साहित्य के लिहाज़ से अत्यन्त उर्वर है और कई कालजयी कृतियां यहां रची गई हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार भी सृजन के इस माहौल को बढ़ावा देने के लिए कृतसंकल्प है और कई योजनाएं इस दिशा में क्रियान्वित की जा रही हैं। मुख्यमंत्री ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि प्रदेश में कई नई प्रतिभाओं ने लेखन व सृजन के क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करवाई है। काव्य संध्या में कई नए युवा कवियों की उपस्थिति को उन्होंने प्रदेश के साहित्यिक परिदृश्य के लिए सुखद करार दिया। इस काव्य संध्या के खास मेहमान राज्यसभा सांसद श्री जनार्दन द्विवेदी ने काव्य प्रेमियों के आग्रह पर न केवल अपनी डायरी के पन्नों से चार दशक पहले रची गई दो कविताओं का पाठ किया, बल्कि शब्द की महिमा और शक्ति पर भी अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि शब्द का दुरूपयोग नहीं होना चाहिए। हर शब्द का एक निर्धारित अर्थ और संदर्भ होता है। हर शब्द की अलग व्यंजना और अवधारणा होती है। उन्होंने कहा कि शब्दों के पर्यायवाची नहीं होते। अगर ऐसा होता तो वह शब्द समाप्त हो जाता। उन्होंने कहा कि आकाश, नभ व गगन अलग-अलग शब्द हैं और आज तक इसलिए चल रहे हैं, क्योंकि इनका अपना अलग बिम्ब है। श्री जनार्दन द्विवेदी ने ‘कविता मुझमें’ शीर्षक से प्रस्तुत अपनी कविता में कहा- ‘मुझमें कविता/ वैसे हमेशा जगती रही है/यानी जिंदगी का असर मुझ पर होता रहा है/बसर होता रहा है किसी तरह/भीतर सच के किसी हिस्से को झुठलाकर/जैसे प्यार से घबराकर/या कविता से कतरा कर/ लेकिन कविता अक्सर सुख नहीं देती/कुछ इस तरह/जैसे सच हार नहीं पहनाता/कविता का सामना करो या सच का/एक ही बात है/मतलब रात ही रात है/वैसे जात है एक ऐसी भी बहुत बड़ी/ जो न कविता को गम्भीरता से लेती है न सच को/कविता मुझे में फिर भी/हमेशा जगती रही है।  इस काव्य संध्या में प्रो. ए.डी.एन. बाजपेयी, केशव, सुदर्शन वशिष्ठ, रेखा, गुरमीत वेदी, तेज राम शर्मा, कुलदीप शर्मा, कुल राजीव पंत, आत्मा रंजन, चन्द्र लेखा ड इस अवसर पर मुख्यमंत्री श्री वीरभद्र सिंह ने प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से आए कवियों को शॉल व हिमाचली टोपी पहनाकर उनका अभिनंदन किया।  प्रदेश कंाग्रेस अध्यक्ष श्री सुखविन्द्र सिंह ठाकुर, मुख्य संसदीय सचिव, विधायकगण, मुख्यमंत्री के सलाहकार श्री टी.जी. नेगी, मुख्यमंत्री के प्रधान निजी सचिव श्री सुभाष आहलुवालिया, सचिव सामान्य प्रशासन श्री भरत खेड़ा, निदेशक सूचना एवं जन सम्पर्क श्री राजेन्द्र सिंह, निदेशक भाषा, कला एवं संस्कृति तथा अकादमी डॉ. देवेन्द्र गुप्ता और राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

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