वीबीएस का रहस्य

0
34
अरूण जेटली**,,
मीडिया में आई खबरों से यह तथ्य सामने आया है कि एक स्टील निर्माता कंपनी पर आयकर विभाग ने छापा मारा था और उसकेे द्वारा विभिन्न सरकारी विभागों और व्यक्तियों को किये गए भुगतान की जानकारी मिली थी। भुगतान वर्ष 2007 से 2010 के दौरान किये गए। स्टील मंत्रालय के कर्मचारियों को बड़ी संख्या में भुगतान किये गए। स्टील मंत्रालय से जुड़े सार्वजनिक क्षंेत्र के विभिन्न उपक्रमों और सरकार में कुछ प्रमुख पदों पर बैठे व्यक्तियों पर भी भारी राशि खर्च की गई। एक प्रमुख राष्ट्रीय दैनिक में आई खबर सबसे ज्यादा परेशान करने वाली है जिसका शीर्षक है, ‘‘एमाउंट आॅफ एक्सपेंसेस सीबीआई, ईडी।’’ वर्ष 2009-10 के दौरान ‘वीबीएस’ के रूप में चर्चित एक कंपनी को किये गए पांच विभिन्न भुगतानों का विवरण दिया गया है। यह वीबीएस कौन है़? क्या यह राजनीतिक भुगतान है।
तत्कालीन इस्पात मंत्री श्री वीरभद्र सिंह ने खंडन किया है कि ‘वीबीएस’ का उनसे संबंध है। उनका कहना है कि वे अपना संक्षिप्त नाम ‘वीएस’ लिखते हैं ‘वीबीएस’ नहीं। उन्होंने इस बारे में अनभिज्ञता दिखाई है और आरोप लगाया है कि इस खुलासे में बीजेपी का हाथ है।
श्री वीरभद्र सिंह हर तरह से गलत हैं। मामला यह नहीं है कि वह अपना संक्षिप्त नाम ‘वीएस’ या ‘वीबीएस’ लिखते हैं। मामला यह है कि क्या इस्पात निर्माता जिसने इन बहीखातों को रखा है, उसमें उनका संक्षिप्त नाम ‘वीबीएस’ है या नहीं।
निश्चित तौर पर भाजपा या उसके किसी अन्य सदस्य ने इन बहीखातों को तैयार नहीं किया है। आयकर विभाग ने कंपनी पर छापा मारा। ये दस्तावेज आयकर विभाग के पास दिसम्बर 2010 से हैं। केवल वही उन्हें लीक कर सकते थे। भाजपा इस पूरे लेन-देन में अजनबी है।
बहीखाते ‘वीबीएस’ के खिलाफ प्रतिग्राह्य सबूत हैं
कांग्रेस पार्टी कथित रुप से ‘वीबीएस’ के बचाव में यह कहते हुए कूद गई है कि एक डायरी कोई प्रतिग्राह्य सबूत नहीं है। उन्होंने बदनाम जैन हवाला मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले का उदाहरण दिया है। जैन हवाला फैसले का इस मामले से कोई संबंध नहीं है। इसके लिए मेरे पास यह कारण हैं-
बहीखाते ‘वीबीएस’ के खिलाफ प्रतिग्राह्य सबूत हैं
कांग्रेस पार्टी कथित रुप से ‘वीबीएस’ के बचाव में यह कहते हुए कूद गई है कि एक डायरी कोई प्रतिग्राह्य सबूत नहीं है। उन्होंने बदनाम जैन हवाला मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले का उदाहरण दिया है। जैन हवाला फैसले का इस मामले से कोई संबंध नहीं है। इसके लिए मेरे पास यह कारण हैं-
ऽ      ये नियमित बहीखाते हैं। इनमें क्रम संख्या, भुगतान या प्राप्ति की तारीख, जिस व्यक्ति को भुगतान किया गया, जिस व्यक्ति ने कथित भुगतान को अधिकृत किया, कितनी धनराशि का भुगतान किया गया या प्राप्त की गई और खाते में कितनी धनराशि बची, उसकी जानकारी है। यह बताने की जरुरत नहीं कि पूरा भुगतान नगद में किया गया। खाते का ‘सीएमडी खाता’ के रुप में जिक्र है।
ऽ     ये नियमित बहीखाते हैं जो सामान्य तौर पर व्यापार के लिए रखे जाते हैं और सम्बद्ध सबूत हैं। (साक्ष्य अधिनियम का अनुच्छेद 34)
ऽ      इनकी सत्यता पर कोई विवाद नहीं किया जा सकता क्योंकि ये आयकर छापे के दौरान बरामद हुए हैं।
ऽ       ये बहीखाते लिखित में स्वीकृति हैं जो स्वीकृति देने वाले के खिलाफ स्वीकार करने योग्य हैं यानि स्टील कंपनी इस्पात (साक्ष्य अधिनियम के अनुच्छेद 17 और अनुच्छेद 21)
ऽ     इन बहीखातों से रिश्वत देने वाले और रिश्वत लेने वाले के बीच आपराधिक साजिश की झलक मिलती है।
साक्ष्य का अनुच्छेद 10 इस स्थिति से संबद्ध है। जैन हवाला मामले में उच्चतम न्यायालय का फैसला इस सिद्धांत को अनुमोदित करता है कि – (क) कोई अपराध करने के लिए दो या दो से ज्यादा लोगों ने साजिश की है (ख) कुछ ऐसा होना चाहिए जो उनमें से किसी के द्वारा कहा गया हो या लिखा गया हो और (ग) यह सभी की मंशा के बारे में है।
अगर ये सभी हालात किसी साजिशकर्ता द्वारा की गई स्वीकृति को संतुष्ट करते हैं तो यह एक अन्य सह साजिशकर्ता के खिलाफ स्वीकार करने योग्य सबूत हैं। वास्तव में लिखित में स्वीकृति की गई है। एक वर्ष के दौरान जब पांच भुगतान किये गए, रिश्वत का कार्य किया गया, इसकी प्रविष्टि बहीखातों में हुई और साजिश  (खातों में प्रविष्टि) के निष्पादन के दौरान स्वीकृति की गई। अनुच्छेद 10 की व्यावहारिकता को जैन हवाला मामले में नामंजूर किया गया क्योंकि लिखित में स्वीकृति साजिश के बाद की गई जिसमें अनुच्छेद 10 लागू नहीं होता। यहां स्थिति अलग है। स्वीकृति करीब एक वर्ष तक साजिश की अवधि के दौरान की गई।
ऽ       केवल इस बात की जांच करना बाकी है कि क्या ऐसा कोई प्रमाण है जिससे इन डायरियों की जानकारियों की पुष्टि होती हो। यह जांच का विषय होगा। जांच में जांचकर्ता को उस व्यक्ति का पता लगाना होगा जिसने भुगतानों को अधिकृत किया। इस मामले में ‘वीबीएस’ को किये गए अधिकतर भुगतानों को ‘एकेएस’ ने अधिकृत किया। किसी अनुभवी जांचकर्ता के लिए यह पता लगाना मुश्किल नहीं होगा कि ‘एकेएस’ कौन है। एकेएस और वीबीएस के बीच संपर्क की जांच करना जरुरी है। स्टील कंपनी से जुड़े किसी भी मामले से निपट रही वीबीएस की जांच करना जरुरी है। इस तरह की जांच कोई कठिन नहीं है।
ऽ       भ्रष्टाचार निरोधक कानून का उपयोग करने के लिए किसी प्रतिदान की जरुरत नहीं है। कानून का अनुच्छेद 20 स्पष्ट तौर पर कहता है कि जब कोई सरकारी अधिकारी कानूनी तौर पर जायज भुगतान के अलावा कोई धनराशि लेता है तो यह गैरकानूनी संतुष्टि का अनुमान है।
क्या सीबीआई इस मामले की जांच कर सकती है?
जाहिर है कि सीबीआई इस मामले की जांच नहीं कर सकती। इन डायरियों में कार्पोरेट ग्रुप द्वारा सीबीआई और ईडी पर खर्च की गई राशि की जानकारी है। यह एक ऐसा मामला है जिसमें कानूनी प्रक्रिया शुरु की जानी चाहिए और इसे एसआईटी टीम को दे देना चाहिए जिसमें निर्विवाद ईमानदार अधिकारी हों।
वीबीएस की पहचान
अगर इस्पात मंत्रालय और उनके पीएसयू के अधिकारियों को सीएमडी खाते के अंतर्गत भुगतान किये गए, तो किसी भी जांचकर्ता के लिए ‘वीबीएस’ का अर्थ निकालकर उसकी पहचान  करना मुश्किल नहीं है। साक्ष्य अधिनियम के अनुच्छेद 114 तथ्य के होने का अनुमान लगाने की इजाजत देता है जिसमें लगता है कि सार्वजनिक और निजी व्यवसाय में ऐसा हुआ होगा।
राजनीतिक मुद्दा
ये खाते पिछले 22 महीनों से आयकर अधिकारियों के कब्जे में हैं। निश्चित तौर पर सीबीडीटी, राजस्व सचिव और वित्त मंत्रालय को इसकी जानकारी रही होगी। क्या यह मामला वित्त मंत्री की जानकारी में लाया गया? यह साफ है कि यह केवल राजस्व से जुड़ा मामला नहीं है। इसके भारत की शासन व्यवस्था पर गंभीर परिणाम होंगे। यह भ्रष्टाचार का मामला है। ऐसा कोई कारण नहीं है कि उचित भ्रष्टाचार निरोधक तंत्र के ध्यान में यह मामला क्यों नहीं लाया गया और विभिन्न जांच प्रक्रियाएं शुरु क्यों नहीं की गईं। कोई भी सरकारी अधिकारी जिसने एक अपराध को मान्यता दी है, खुद भी कर्तव्य में लापरवाही बरतने का अपराधी है। यह साफ है कि सरकार इस तथ्य को छिपाना चाहती है। सच्चाई को छिपाना मुश्किल है क्योंकि यह खुद ही बाहर आ जाती है। प्रधानमंत्री अब क्या करने जा रहे हैं। क्या वह नकारात्मकता के माहौल की बात करके तथ्यों की अनदेखी कर देंगे? क्या उन्हें और कांग्रेस अध्यक्ष को इन तथ्यों की जानकारी थी जब उन्होंने हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के संगठनात्मक बदलाव के संबंध में कुछ फैसले किये? उनकी चुप्पी भ्रष्टाचार को उनकी माफी दिखाएगी।
*****
**Mr.  Arun Jaitley ,
 Write of this Article , eminent Lawyer, Leader of  Bhartiya Janta Party &
 Leader of Opposition in Rajya Sabha ,Member of  Parliyament of Rajya Sabha.

*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here