विशेष राज्य का दर्जा कायम रखा जाए : हरीश रावत

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नई दिल्ली,
हम नवोदित पर्वतीय राज्य हैं। हमारे पास संसाधनों की कमी हैं। अतः हमारा आग्रह है कि हमारा विशेष राज्य का दर्जा बनाये रखा जाए और हमारी सारी योजनाएं 90ः10 के अनुपात में रखी जाए। यह बात मुख्यमंत्री हरीश रावत ने नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में नीति आयोग की पहली बैठक में राज्य का पक्ष रखते हुए कही। बैठक शुरू होने से पूर्व मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया है कि हमारे एक कैबिनेट मंत्री का निधन हो गया है, जिसके अंतिम संस्कार में उन्हें षीघ्र ही हरिद्वार जाना है। इस पर प्रधानमंत्री ने श्री रावत को सहर्श अपना पक्ष रखने की अनुमति दी। मुख्यमंत्री श्री रावत ने बैठक में दूसरे नम्बर पर काफी खुषगवार माहौल में अपनी बात प्रधानमंत्री के समक्ष रखी। अपना पक्ष रखने के बाद मुख्यमंत्री श्री रावत हरिद्वार के लिए रवाना हो गये।

बैठक में मुख्यमंत्री श्री रावत ने प्रधानमंत्री का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि हमारा सुझाव है कि 12वीं पंचवर्षीय योजनाकाल की वर्तमान व्यवस्था में कोई परिवर्तन न किया जाय। नार्थ ईस्टर्न काॅउन्सिल की तर्ज पर सेंट्रल हिमालयन काउसिल गठित की जाय। योजना आयोग द्वारा वर्ष 2013 में योजना आयोग के सदस्य श्री बी.के.चर्तुवेदी की अध्यक्षता में जो समिति गठित की गई थी, उसकी संस्तुतियों को स्वीकार कर हिमालयी राज्यों के लिए लागू किया जाए। उत्तराखण्ड जैसे राज्यों को ग्रीन बोनस दिया जाए। केन्द्र सरकार के एक अध्ययन के अनुसार उत्तराखण्ड के वनों के द्वारा दी जाने वाली पर्यावरणीय सेवा का वार्षिक मूल्य 16 लाख करोड़ रूपया है। सकल घरेलू उत्पाद का आकलन करते वक्त ग्रीन एकाउंटिंग को भी ध्यान में रखा जाए, ताकि जंगल हमारे लिए भार न हो सके। भागीरथी ईको सिस्टम जोन नोटिफिकेशन-2012 को निरस्त किया जाए, जिसके अन्तर्गत एक छोटे से जिले के 4200 वर्ग कि0मी0 क्षेत्र को ईको सेंसटिव जोन घोषित किया गया हैं। इस सम्बंध में राज्य में भागीरथी नदी घाटी विकास प्राधिकरण पहले से गठित है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य की सीमाएं अन्तर्राश्ट्रीय सीमाओं से लगी हुई है, इसे देखते हुए उचित होगा कि सीमा सड़कों, रेलवे लाईन, हवाई पट्टी, संचार साधन आदि अवस्थापना विकास कार्यों को केन्द्र सरकार स्वयं अपने संसाधनों से कराये। इस सम्बन्ध में राष्ट्र की सुरक्षा तथा राज्यों के सीमान्त क्षेत्रों के विकास के दृष्टिगत ट्रांस हिमालयन हाईवे का निर्माण किया जाय। भारत-नेपाल से लगी टनकपुर-जौलजीवी मार्ग के निर्माण में तेजी लायी जाय। जौलीग्राण्ट हवाई अड्डे को अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे तथा पन्तनगर को कार्गो हवाई अड्डे के रूप में विकसित किया जाय। अन्य हवाई पट्टियों यथा नैनी-सैनी, चिन्यालीसौड, गौचर आदि का सुदृढीकरण एवं विस्तार किया जाय। जल विद्युत ऊर्जा को साफ सुथरी उर्जा बताया गया है तब भी पर्यावरण के नाम पर हमारी अनेकों योजनाएं रोक दी गई है अथवा स्वीकृति हेतु लम्बित पडी हुई है। अतः राज्य की लंबित विद्युत परियोजनाओं पर शीघ्र निर्णय लिया जाय। भारत की प्रमुख नदियों के उद्गम स्थल उत्तराखण्ड को  Water Hub के रूप में विकसित करने की आवश्यकता है। इस दिशा में पहल करते हुए हमने इन नदियों के जलागम क्षेत्रों में वृक्षारोपण एवं जलाशयों के निर्माण की योजना बनाई है, जिसमें हमें मदद की आवश्यकता है। अतिवृष्टि एवं भूस्खलन के कारण नदी तल एवं तटों में भारी मात्रा में गाद के रूप में रेत, बजरी, पत्थर जमा होने से नदियों का बहाव प्रभावित होता है और नदी तटों पर कटाव एवं भूक्षरण असामान्य रूप से अधिक होता है। अतः नदियों की सफाई की दृष्टि से इनके दोहन को खनन की श्रेणी से बाहर रखा जाय। नमामि गंगे परियोजना के लिए बधाई देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि यह योजना मां गंगा को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगी। श्री रावत ने कहा कि इस योजना के सम्बन्ध में मेरा परामर्श है, कि योजना को सफल बनाने हेतु यह आवश्यक है कि गंगा के उद्गम स्थल उत्तराखण्ड को जल संवर्धन हब के रूप में विकसित किया जाय। इस दिशा में हमने स्वयं पहल करते हुए नदियों के जलागम क्षेत्रों में वृक्षारोपण तथा छोटे-छोटे जलाशयों के निर्माण की योजना (जल संवर्धन योजना) भी पूरे उत्तराखण्ड मेें प्रारम्भ की है। राज्य का 70 प्रतिशत भू-भाग वन क्षेत्र है। इससे प्राप्त होने वाले पर्यावरणीय लाभ पूरे देश को मिल रहे हैं, किन्तु इनके संरक्षण एवं विकास का बोझ हमें उठाना पड़ रहा है। अतः हमें पर्यावरणीय सेवाओं के एवज में ग्रीन बोनस दिया जाय। सकल घरेलू उत्पाद के अनुमान लगाने में पर्यावरणीय क्षति तथा पर्यावरण सुरक्षा पर किये गये व्यय का संज्ञान लेना जरूरी है तभी सतत् (ैनेजंपदंइसम) विकास की स्थिति स्पष्ट हो सकेगी। इसी के आधार पर राज्यों को उनके द्वारा किये गये प्रयासों एवं उसके लिए किये जा रहे त्याग (Sacrifices) एवं पंगुताओं (कपेंइपसपजपमे) को ध्यान में रखते हुए केन्द्रीय बजट में विशेष व्यवस्था की जाय जैसा कि चतुर्वेदी कमेटी ने भी संस्तुत किया है। आपदा के कगार पर स्थित ग्रामों का पुनर्वासन किया जाना है। जून, 2013 की आपदा के बाद ऐसे ग्रामों की संख्या 337 से अधिक हो चुकी है, जिन्हें सुरक्षित स्थान पर ले जाना आवश्यक है इसके लिए वन भूमि की अदला-बदली (ैूंचचपदहद्ध करनी होगी। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण इसके लिए विशेष प्रोजेक्ट तैयार करने में राज्य की सहायता करें। राज्य सरकार को विश्वास में लिए बगैर वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा भागीरथी जलग्रहण क्षेत्र उत्तरकाशी जनपद का 4180 वर्ग कि0मी0 क्षेत्र किसी भी निर्माण के लिए प्रतिबन्धित कर दिया गया, स्थानीय ग्रामीणों को अपना एक कमरा बनाने के लिए भी पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति लेनी होगी, ऐसी स्थिति में लोग क्षेत्र से पलायन करने के लिए बाध्य हो रहे है, अतः इसे वापस लिया जाय। पर्वतीय क्षेत्रो विशेषकर सीमान्त क्षेत्रों में विभिन्न प्रतिबन्धों के चलते एवं बुनियादी सुविधाओं के अभाव में लोग यहाँ से शहरो की ओर पलायन कर रहे है, जिससे वर्तमान शहरों पर अत्यधिक दबाव बढ गया है इससे पुराने शहरो मंे सुविधाओं के अभाव में मलिन बस्तियां बढ रही है। अतः शहरी अवस्थापना सुविधाओं पर अधिक ध्यान देना होगा। देहरादून-हरिद्वार-ऋषिकेश मेट्रो सेवा बनाये जाने से मदद मिलेगी। वर्तमान शहरों के छोटे आकार एवं बढते दबाव को देखते हुए सुझाव है कि रूद्रपुर-किच्छा-पन्तनगर-हल्द्वानी-काठगोदाम शहरों के लिए एकीकृत करते हुए स्मार्ट सिटी योजना के अन्तर्गत विकसित किया जाय तथा इन्हे आपस में मेट्रों से जोडा जाय। धार्मिक महत्व के स्थलों के कारण प्रत्येक वर्ष लगभग 3-4 करोड़ अतिरिक्त आबादी का बोझ हमें उठाना पड़ता है, इससे हमारी शहरी बुनियादी सुविधाओं पर बोझ बढ जाता है। 2010 के महाकुम्भ में लगभग 8 करोड़ यात्री राज्य में आये। अतः शहरी विकास से सबंधित योजनाओं यथा जेएनएनयूआरएमए पेयजल, स्वास्थ्य एवं सफाई आदि योजनाओं के लिए जनसंख्या मानकों में इस भ्रमणशील आबादी का संज्ञान लिया जाय और शहरों के वहन क्षमता (ब्ंततलपदह ब्ंचंबपजल) पर अत्यधिक दबाव के दृष्टिगत स्मार्ट सिटी के चयन के मानकों में शिथिलता दी जाय। अगले वर्ष राज्य में अर्द्धकुम्भ आयोजित हो रहा है, जिसमें पूर्व की भांति देशी-विदेशी श्रद्धालुओं द्वारा भाग लिया जायेगा। इसके लिए अभी से हरिद्वार कुम्भ क्षेत्र तथा इसके आस-पास आवश्यक सुविधाऐं विकसित की जानी है। इसके लिए भारत सरकार से सहायता की अपेक्षा है। डिजीटल इंडिया में उपयोग में आने वाले उपकरणों से सम्बन्धित बड़े उद्योग हरिद्वार तथा उधमसिंह नगर के औद्योगिक क्षेत्रों में लगाये जाये, जो कि मेक इन इंडिया की भावना के अनुरूप होगा। प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियों के दृष्टिगत छंजपवदंस व्चजपबंस थ्पइतम छमजूवता ;छव्थ्छद्ध के अन्तर्गत व्चजपबंस थ्पइतम ब्ंइसम;व्थ्ब्द्ध के साथ ैंजमससपजम इंेमक ब्वददमबजपअपजल का भी एक विकल्प रखा जाना श्रेयस्कर होगा। राज्य सरकार छंजपवदंस व्चजपबंस थ्पइतम छमजूवता ;छव्थ्छद्ध के अन्तर्गत  व्चजपबंस थ्पइतम ब्ंइसम ;व्थ्ब्द्ध बिछाने हेतु निःशुल्क त्पहीज व िॅंल प्रदान करने हेतु वचनबद्ध है। अर्द्धकुम्भ, 2016 के दृष्टिगत जनपद हरिद्वार तथा देहरादून में व्चजपबंस थ्पइतम ब्ंइसम बिछाने के कार्य को गति प्रदान किया जाय।

मुख्यमंत्री श्री रावत ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया कि राष्ट्रीय  अर्थव्यवस्था के समग्र एवं समावेशी सामाजिक-आर्थिक विकास एवं संघीय व्यवस्था को सुदृढ़ आधार बनाने की दिशा में जो भी नीति बनाई जाय उसमें इनका संज्ञान अवश्य लिया जाय। राष्ट्रीय स्तर पर बदलते परिवेश से सार्थक ताल-मेल स्थापित करने के उद्देश्य से हमने अपने राज्य में एक उच्च स्तरीय ‘नीति नियोजक समूह’ गठित किया है।
बैठक में केन्द्रीय मंत्री अरूण जेटली, राजनाथ सिंह, सहित अन्य प्रदेशों के मुख्यमंत्री उपस्थित थे।

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