विवाह – पवित्र रिश्ते तथा समारोह को आदर्शपूर्ण बनाएं

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– प्रदीप कुमार सिंह ‘पाल’ –

PK-SINGH,-ARTICLE-BY-PKSINGउत्तर प्रदेश के बागपत के वाजिदपुर गांव के रिटायर्ड फौजी सुभाष चंद कश्यप नहीं चाहते हैं कि उनकी शादी में कोई शराब पीये या फिर किसी तरह की फायरिंग हो। 38 वर्षीय सुभाष ने शादी के लिए जो कार्ड छपवाए हैं उसमें बड़े-बड़े अक्षरों में छपवाया है, ‘शादी में हर्ष फायरिंग और शराब का सेवन पूरी तरह से प्रतिबंधित है। जो हर्ष फायरिंग व शराब पीने का शौक रखते हैं, कृपया वह हमारे यहां शादी में शामिल न हों। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, कश्यम जागृति अभियान और कई अन्य जागरूकता अभियान चलाने वाले कश्यप ने अपनी शादी को भी जागरूकता का तरीका बना लिया। हर्ष फायरिंग की वजह से कई बार शादियों में हादसे हो जाते हैं, इस वजह से कई लोगों की जान तक जा चुकी है। इसके अलावा शादी समारोह की खुशियां भी मातम में बदल जाती हैं। शादी में लोग शराब पीकर भी लड़ाई करते हैं। इस निर्णय को कुछ लोगों ने सराहा भी है। प्रोफेसर बीबी सिंह का कहना है कि इस तरह यदि सभी लोग जागरूक हो जाएं तो शादियों में हर्ष फायरिंग और शराब पीने की गलत सोच पर अंकुश लग पाएगा। शराबबंदी तथा जनलेवा दिखावे का विरोध करने का यह एक साहसी कदम है।

पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने कुछ साल पहले सभी भड़कीली शादियों और आतिशबाजी पर रोक लगा दी और अपने फैसले में कहा कि अब शादियों में एक डिश सर्व होगी। पाकिस्तान सरकार ने 2008 में वन डिश वेडिंग लाॅ बनाया, जिसके बाद वहां भड़कीली शादियों पर पूरी तरह रोक लग गई। यह वहां चारों प्रांतों में लागू है। जितनी बड़ी शादी उतनी बड़ी चर्चा। हमारे देश में बड़ी शादियां महीनों पहले ही मीडिया की सुर्खियां बनने लगती हैं। टीवी चैनल बारीक से बारीक जानकारी परोसने लगते हैं। मेहमान कैसे आएंगे, कहां ठहरेंगे, भोजन में क्या-क्या परोसा जाएगा वगैरह-वगैरह। लेकिन क्या मीडिया का यह रवैया सही है? शायद ही किसी भव्य शादी और उसमें बेहिसाब खर्च की आलोचना की जाती हो। पाकिस्तान से सबक सीख करके हम अपने यहां भी ऐसा कानून बना सकते हैं। वैसे बेहतर होगा कि हम सब मिलकर खुद के लिए नियम बनाएं। अभी हाल ही में एक राजनेता द्वारा अपनी बेटी की शादी में 100 करोड़ रूपये खर्च करने का समाचार पढ़ने को मिला था। वही इसके विपरीत दो आईएएस वर-वधू ने मात्र 500 रूपये खर्च करके कोर्ट मैरिज की मिसाल युवा पीढ़ी के समझ प्रस्तुत की।

खर्चीली शादियों की होड़ में शामिल होने से हम समाज के लिए गलत मिसाल प्रस्तुत करते हैं। शादियों को उद्देश्यपूर्ण बनाने के लिए प्रत्येक रश्म के द्वारा समाज को कुछ अच्छा सन्देश दिया जा सकता है। जैसे अभी हाल में 23 नवम्बर 2016 को लखनऊ में मैंने अपनी बेटी शान्ति की शादी मोहन पाल के साथ की है। उसे आपसे शेयर करना चाहूंगा। निमंत्रण कार्ड में मैंने महापुरूषों के नाम छापकर, विश्व एकता, सर्व धर्म समभाव, योग, संस्कार, शिक्षा, प्रकृति, यथार्थवादी आदि विचारों का प्रसार किया। आदर्श जीवन के नियम नामक एक छोटी पुस्तिका मेहमानों को भेंट की। लगभग ढाई लाख रू. के बजट में शादी की। दिन में शादी की। बैण्ड-बाजे तथा आतिशबाजी से मुक्त विवाह को रखा। देश-विदेश में निवास करने वाले आत्मीय जनों को ईमेल के द्वारा तथा सोशल मीडिया के द्वारा उपहार स्वरूप उनके आशीर्वाद तथा शुभकामनायें आमंत्रित की। हमारे रहन-सहन, रीति-रिवाजों को ठीक करने के हर कार्य करने भारत सरकार नहीं आयेगी हमें स्वयं विवेकशील बनकर एक कदम उठाना पड़ेगा। दहेज रहित सामूहिक विवाहों की संख्या और बढ़ानी चाहिए। सामूहिक विवाह केवल गरीबों की आवश्यकता नहीं है वरन् अमीर लोग भी अपने बेटे-बेटी के सामूहिक विवाह करके समाज के सामने आदर्श प्रस्तुत करें।

दहेज-दानव को रोकने के लिए सरकार द्वारा सख्त कानून बनाया गया है। इस कानून के अनुसार दहेज लेना और दहेज देना दोनों अपराध माने गए हैं। अपराध प्रमाणित होने पर सजा और जुर्माना दोनों भरना पड़ता है। यह कानून कालान्तर में संशोधित करके अधिक कठोर बना दिया गया है। अधिक संख्या में बारात लाना भी अपराध है। दहेज के लिए कन्या को सताना भी
अपराध है।
दहेज के कलंक और दहेज रूपी सामाजिक बुराई को केवल कानून के भरोसे नहीं रोका जा सकता। इसके रोकने के लिए लोगों की मानसिकता में बदलाव लाया जाना चाहिए। विवाह अपनी-अपनी जाति में करने की जो परम्परा है उसे तोड़ना होगा तथा अन्तर्राज्यीय विवाहों को प्रोत्साहन देना होगा। तभी दहेज लेने के मौके घटेंगे और विवाह का क्षेत्र व्यापक बनेगा। अन्तर्राज्यीय और अन्तर्राष्ट्रीय विवाहों का प्रचलन शुरू हो गया है, यदि इसमें और लोकप्रियता आई और सामाजिक प्रोत्साहन मिलता रहा, तो ऐसी आशा की जा सकती है कि दहेज लेने की प्रथा में कमी जरूर आएगी।
उच्च शिक्षा प्राप्त युवक-युवातियाँ का अपनी पढ़ाई के दौरान ही एक-दूसरे के विचारों से अच्छी प्रकार परिचय हो जाता है। वे दोनांे अपने लिए अपने पेशे से संबंधित योग्य वर-वधु का चयन स्वयं अपने विवेक से कर लेते हैं तथा अन्त में माता-पिता की सहमति से दहेजरहित विवाह के पवित्र बन्धन में बंधकर एक हो जाते हैं। अर्थात एक ही प्रोफेशन/कैरियर में लगे प्रगतिशील विचार के युवक-युवतियों के विवाह होने की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। जैसे- डाक्टर का डाक्टर के साथ, इंजीनियर का इंजीनियर के साथ, एडवोकेट का एडवोकेट के साथ, वैज्ञानिक का वैज्ञानिक के साथ आदि-आदि। ऐसे सम्बन्ध दहेज प्रथा को समाप्त करंेगे। साथ ही ऐसे एक से कैरियर के बीच होने वाले विवाह सम्बन्ध सामाजिक तथा आर्थिक क्षेत्र में सफलता दिलायेंगे।

युवा पीढ़ी को विवाह करने के पश्चात एक सन्तान को पैदा करने तथा एक संतान अनाथालय से गोद लेने का संकल्प लेना चाहिए। हमारे देश में लाखों बच्चे अनाथ हैं तथा विश्व में जनसंख्या के मामले में भारत का स्थान चीन के बाद दूसरा है। कुछ वर्षों में भारत की जनसंख्या वृद्धि की यही गति रही तो वह चीन को भी पीछे छोड़ देगा। माता-पिता के अभाव में लाखों बच्चों का जीवन असुरक्षित हो जाता है। अभी हाल ही में इटली के एक पति-पत्नी ने उत्तर प्रदेश के सीतापुर में स्थित अनाथालय से एक बच्चे को गोद लिया था। इन पति-पत्नी का मानना था कि भारत के बच्चे अधिक संस्कारवान होते हैं। उस अनाथ बच्चे ने संकल्प लिया था कि वह अपने नये माता-पिता के साथ रहकर मेहनत से शिक्षाग्रहण करके अनाथ बच्चों में उजाला भरने का प्रयास करेगा। हम अपने परिवार में होने वाले समारोह में वृद्धाश्रम, अनाथालय, मंदबुद्धि, दिव्यांग आश्रम जैसी संस्थाओं के गरीब तथा बेसहारा लोगों को आमंत्रित करके उनके जीवन में कुछ क्षणों के लिए खुशियां बिखेर सकते हैं। ऐसे करने से इन गरीब तथा बेसहारा लोगों में यह विश्वास जगेगा कि समाज उनकी खुशी के बारे में भी सोचता है। ऐसे छोटे-छोटे कदम उठाकर हम समाज को अधिक से अधिक संवेदनशील बना सकते हैं। सफल वैवाहिक जीवन के लिए कुछ विचार इस प्रकार हैं:-
1. विवाह दो शरीरों और आत्माओं का मिलन है। शरीर और आत्मा दोनों ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित रहते हैं। यह मिलन आध्यात्मिक मिलन है जो आजीवन जुड़ा रहता है। वही विवाह सफल होता है जहाँ सांसारिक और आध्यात्मिक बन्धन दोनों का सामंजस्य है।
2. विवाह दो के बीच नहीं तीन अर्थात वर-वधु तथा परमात्मा के बीच होता है। परमात्मा को साक्षी मानकर वर-वधु विवाह की सारी प्रतिज्ञाऐं करते हैं।
3. विवाह स्त्री-पुरूष का आत्मिक और हार्दिक मिलन है। मस्तिष्क और हृदय की आपसी स्वीकृति है। स्त्री-पुरूष दोनों का कर्तव्य है कि वे दोनांे एक दूसरे के स्वभाव और चरित्र को समझें। दोनों के आपसी सम्बन्ध अटूट हों। ईश्वर को साक्षी मानकर एक दूसरे के प्रति प्रेमपूर्ण व्यवहार तथा एक अच्छा जीवन साथी बनने का उनका एकमात्र लक्ष्य होना चाहिये।
4. वैवाहिक बन्धन नैतिक और आध्यात्मिक विकास में सहायक हैं। वैवाहिक बन्धन में केवल शारीरिक बन्धन को महत्व न देकर आध्यात्मिक गुणों के द्वारा ईश्वर की निकटता के लक्ष्य को प्राप्त करना चाहिए। तथापि ईश्वर द्वारा निर्मित इस सृष्टि को आगे बढ़ाने में योगदान देना चाहिए।
परमपिता परमात्मा की साक्षी में नव वर-वधू की आपसी सहमति:-
1. आज से हम एक-दूसरे के साथ अपने व्यक्तित्व को मिलाकर नये जीवन की सृष्टि करते हैं।
2. पूरे जीवन भर एक-दूसरे के मित्र बनकर रहेंगे और बड़ी से बड़ी कठिनाईयांे एवं विपत्तियों में एक-दूसरे को पूरा-पूरा विश्वास, स्नेह तथा सहयोग देते रहंेगे।
3. जीवन की गतिविधियों के निर्धारण में एक-दूसरे के परामर्श को महत्व देंगे।
4. एक-दूसरे की सुख-शांति तथा प्रगति-सुरक्षा की व्यवस्था करने में अपनी शक्ति, प्रतिभा, योग्यता तथा साधनों आदि को पूरे मनोयोग एवं ईमानदारी से लगाते रहेंगे।
5. दोनों अपनी ओर से श्रेष्ठ व्यवहार बनाए रखने का पूरा-पूरा प्रयत्न करेंगे। मतभेदों और भूलों का सुधार शांति के साथ करेंगे। किसी के सामने एक-दूसरे को लांछित एवं तिरस्कृत नहीं करेंगे।
6. दोनों में से किसी के असमर्थ या विमुख हो जाने पर भी अपने सहयोग और कत्र्तव्यपालन में कमी नहीं आने देगे।
7. कत्र्तव्यपालन एवं लोकहित जैसे कार्यो में एक-दूसरे के सहायक बनेंगे।
8. एक-दूसरे के प्रति पतिव्रत तथा पत्नीव्रत धर्म का पालन करेंगे। इसी मर्यादा के अनुरूप अपने विचार, दृष्टि एवं आचरण विकसित करेंगे।

सद्गृहस्थ के इन आदर्शो के आधार पर घर में सुख, सहयोग, एकता एवं शान्ति से भरा आध्यात्मिकता का वातावरण बनता है। इसलिए वर-वधू दोनों मिल-जुलकर शुभ धारणाओं का अपना संसार बसाना जिसका कोई कोना एक-दूसरे के लिए अपरिचित न हो। वर-वधू का घर शांति और सान्त्वना का स्वर्ग बन जाए। वर-वधू दोनों के बीच कहीं ईष्र्या की कोई चिंगारी न आने पाये क्योंकि ईष्र्या प्रीति की लहलही बेल में विष-सिंचन करती है। इस परिवर्तनशील जीवन की क्षण-जीवी घटनाएँ आप वर-वधू के मधु-पात्रों में कटुता न घोलने पायें। जब भेद-भावों की घटाएँ घिरने लगें तो साथ बैठकर गुप्त मंत्रणाएँ कर लेना ताकि वर-वधू के प्रेम की चन्द्रिका को कोई कलंकित न करने पाये।

वर-वधू को समझना चाहिए कि किसी परिवार में जहाँ एकता है उस परिवार के सभी कार्यकलाप बहुत ही सुन्दर तरीके से चलते हैं, उस परिवार के सभी सदस्य अत्यधिक उन्नति करते हैं। परिवार विश्व की सबसे छोटी एवं सशक्त इकाई है। बिना इस इकाई में एकता स्थापित हुए समाज, देश और विश्व में एकता की बात करना बेईमानी होगी। मेरा प्रबल विश्वास है कि यह विचार प्रत्येक नव वर-वधू को ‘पारिवारिक एकता’ के लिए रोजाना प्रयासरत तथा जागरूक रहने लिए प्रेरित करने में अवश्य सहायक होंगे। वैवाहिक बन्धन जीवन भर निभाने के लिए होते हैं। परमात्मा तथा पवित्र ग्रन्थों के दृष्टि से स्त्री-पुरूष दोनों को बराबर के अधिकार हैं। स्त्री-पुरूष में किसी भी प्रकार का भेदभाव करना संविधान तथा पवित्र ग्रन्थों के विरूद्ध है। कोई भी देश आस्था से नहीं संविधान से चलता है। प्रत्येक देशवासी को संविधान तथा कानून का सम्मान करना चाहिए।

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PK-SINGH,-ARTICLE-BY-PKSINGपरिचय – :

प्रदीप कुमार सिंह ‘पाल’

शैक्षिक एवं वैश्विक चिन्तक

संपर्क – ; पता- बी-901, आशीर्वाद, उद्यान-2 ,एल्डिको, रायबरेली रोड, लखनऊ मो0 9839423719 ,  ई मेल – : vishwapal2061984@gmail.com

 

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