*विरोधाभासों के ‘भंवरं’ में नरेंद्र मोदी

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**तनवीर जाफरी

                               पिछले दिनों गुजरात के मुख्यमंत्री  नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद में एक तीन दिवसीय सदभावना  उपवासं नामक आयोजन  कर अपनी उग्र हिंदुत्ववादी छवि को बदलने का प्रयास किया। उन्हें इसी समय पर इस कथित सदभावनारूपी उपवास की आवश्यकता क्यों महसूस हुई और पहले कभी उन्होंने ऐसा उपवास क्यों नहीं रखा? इस विषय पर पहले ही काफी चर्चा हो चुकी है। परंतु अपने उस सदभावना  उपवास के दौरान स्वयं नरेंद्र मोदी के मुखश्री से जो वचन सुनने को मिले और उनमें जो विरोधाभास साफतौर पर दिखाई दिया उस पर विचार करना ज़रूरी है। गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी देश के अकेले ऐसे मुख्यमंत्री  हैं जिन पर गोधरा ट्रेन  हादसे के बाद राज्य में भड़के सांप्रदायिक दंगों को संरक्षण देने तथा उन्हें जानबूझ कर नियंत्रित न करने जैसे गंभीर आरोप हैं। इन दंगों में विभिन्न समुदायों के हज़ारों बेगुनाह लोग मारे गए थे तथा उनकी संपत्ति  जलाकर राख कर दी गई थी। मोदी ने अपने इस उपवास के प्रारंभ में यह साफतौर पर कहा कि वे 2002 के उन दंगों के लिए माफी हरगिज़ नहीं मांगेंगे  और यह भी कहा कि यदि मुझे दोषी पाया जाए तो मैं फांसी पर चढ़ने को तैयार हूं। अब नरेंद्र मोदी के इस वक्तव्य के बाद ज़रा 2002 में देश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के उस बयान को याद कीजिए जिसमें उन्होंने नरेंद्र मोदी को राजधर्म का पालन करने की हिदायत दी थी। वाजपेयी जी जो स्वयं भाजपा के ही शीर्ष नेता थे तथा भाजपा शासित सरकार के प्रधानमंत्री थे। यदि मोदी राजधर्म का पालन कर रहे होते फिर आखिरकार  उन्हें मोदी को ऐसी सलाह देने की ज़रूरत ही क्या थी? क्या वाजपेयी की इस सलाह का अर्थ यह नहीं कि नरेंद्र मोदी ने दंगों के समय पक्षपातपूर्ण कार्य किया तथा अपना राजधर्म नहीं निभाया?

रहा सवाल नरेंद्र मोदी के माफी न मांगने का तो एक ओर उनका दंगों की जी  मेदारी लेने से इंकार करना तथा दूसरी ओर सदभावना की बात भी करना यह दोनों बड़ी विरोधाभासी बातें हैं। प्रत्येक भारतवासी यह भलीभांति जानता है कि हम मौर्य साम्राज्य के सम्राट अशोक को आज भी अपना आदर्श मानते हैं। उसकी वजह यही है कि अशोक सम्राट ने सदियों पूर्व कलिंग  के मैदान में हिंसा व रक्तपात का जो तांडव देखा था उसके बाद उन्होंने युद्ध व हिंसा से तौबा कर ली थी तथा कलिंग  में हुए नरसंहार के बाद ही अपनी अंर्तात्मा की आवाज़ पर उस हिंसा के लिए घोर पश्चताप  किया था और उसी समय अहिंसा परमो धर्मज् के मार्ग को धारण किया था। नरेंद्र मोदी का तथाकथित सदभावना उपवास के दौरान दिया गया भाषण अशोक सम्राट के सोच-विचार व उनकी अंर्तात्मा से निकलने वाली आवाज़ों के साथ किसी प्रकार से मेल नहीं खाता। आखिरकार  अशोक सम्राट भी तो हमारे ही देश का एक ऐसा शासक था जिसे आज तक हम अपना आदर्श मानते आ रहे हैं। कितना बेहतर होता कि नरेंद्र मोदी भी क्षमा मांगने अथवा सदभावना उपवास रखने जैसी पाखंडपूर्ण राजनैतिक औपचारिकताओं के बजाए गुजरात दंगों में अपनी कथित भूमिका के लिए पश्चताप  कर लेते। बजाए इसके कि माफी न मांगने व दोषी होने पर फांसी चढ़ाए जाने जैसे विवादित बयान देकर बहस के नए दरवाज़े खोलते।

अपने समापन भाषण में उन्होंने बड़ी शान के साथ अपना एक संस्मरण सुनाते हुए कहा कि जस्टिस सच्चर आयोग ने गुजरात दौरे के समय उनसे मुलाकात की तथा पूछा कि वे राज्य में अल्पसं यकों के लिए क्या कर रहे हैं। उन्होंने जस्टिस सच्चर को जवाब दिया कि वे अल्पसं यकों के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। साथ ही मोदी ने यह भी जोड़ा कि वे बहुसं यकों के लिए भी कुछ नहीं कर रहे हैं। यहां इस बहस में जाने की भी आवश्यकता नहीं कि वे किस समुदाय के लिए क्या कर रहे हैं और किस समुदाय के लिए क्या नहीं कर रहे? परंतु अपने वक्तव्य के परिपेक्षय में उन्हें अपना ध्यान भारतीय संविधान की उस व्यवस्था की ओर अवश्य देना चाहिए। जिसमें कि देश के विभिन्न समुदायों के लिए उनकी आर्थिक व सामाजिक स्थिति व सं या के अनुसार आरक्षण देने की व्यवस्था की गई है। आखिरकार  यह व्यवस्था इसीलिए की गई है ताकि समाज का अपेक्षित, गरीब व दलित तबका तेज़ी से आगे बढ़ सके तथा समाज में प्रथम व द्वितीय पंक्ति में चलने वाले लोगों के साथ अपने कदम मिलाकर आगे बढ़ सके। देश के किसी भी पिछड़े समाज का विकास आखिरकार  देश के विकास से ही जुड़ा है। ऐसे में नरेंद्र मोदी का सार्वजनिक रूप से यह कहना कि मैं अल्पसं यकों के लिए व बहुसं यकों के लिए कुछ नहीं कर रहा बल्कि गुजरात के विकास के लिए ही सब कुछ कर रहा हूं, यह बात बड़ी अजीबोगरीब सी लगती है।

नरेंद्र मोदी ने अपने समापन भाषण में बड़े गर्व के साथ यह भी कहा कि उन्होंने राज्य में वोते  बैंक  की राजनीति का दौर समाप्त किया है। उनका यह बयान भी बड़ा विरोधाभासी है। पूरा देश जानता है कि बहुसं य वोते  बैंक  के बल पर ही गुजरात में वे लोकप्रिय हुए हैं। 2002 के दंगों में उनकी कथित पक्षपातपूर्ण भूमिका ने ही उनके नेतृत्व को निखारा है। यदि यह vote bank की राजनीति नहीं तो और क्या है? यदि उन्हें वोट बैंक   के खिसकने का ख़तरा नहीं था तो उन्होंने एक मुस्लिम मौलवी द्वारा उन्हें पहनाई जाने वाली इस्लामी प्रतीक स्वरूप टोपी पहनने से आखिरकार  क्यों इंकार कर दिया। और ठीक इसके विपरीत बहुसं य समुदाय के धर्मगुरुओं द्वारा पहनाई जाने वाली सभी टोपियों व पगड़ियो  को वे बड़ी शान के साथ धारण करते दिखाई दिए। वोट  बैंक  की राजनीति करने का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है? भारतीय जनता party के सबसे पुराने सहयोगी दल शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने भी साफ शब्दों में नरेंद्र मोदी को इस बात के लिए आगाह किया है कि वे हिंदुओं को क्वधर्मनिरपेक्षता का ज़हरं न पिलाएं। साथ ही साथ उन्होंने यह भी कहा है कि महाराष्ट्र के बाद गुजरात हिंदुत्ववाद की प्रयोगशाला है। अब इस प्रकार की बातें व राजनेताओं के ऐसे कथन अपने-आप में इस बात का प्रमाण हैं कि कट्टरपंथी व उग्रवादी सोच रखने वाला नेतृत्व भी vote bank की ही राजनीति करता है। केवल धर्मनिरपेक्षता की बात करने वाले लोग ही वोट  बैंक  की बात नहीं करते।

गत् 19 सितंबर को देश दो प्रमुख घटनाओं से रूबरू हो रहा था। एक ओर तो 6 करोड़ की आबादी वाले गुजरात राज्य के मु यमंत्री नरेंद्र मोदी देश के बहुसं य समाज के प्रतिनिधियों व धर्मगुरुओं द्वारा भेंट  की जाने वाली पगçड़यां,चादरे  व टोपियां आदि स्वीकार कर रहे थे तथा मुस्लिम धर्मगुरु द्वारा दी जाने वाली टोपी को पहनने से इंकार कर रहे थे। साथ ही साथ vote bank की राजनीति न करने का भी दम भर रहे थे। तो ठीक उसी समय 121 करोड़ की आबादी वाले इस महान राष्ट्र की प्रथम नागरिक अर्थात् राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल उसी दिन देश की सर्वप्रमुख दरगाह हज़रत वाज़ा मोईनुद्दीन चिश्ती,अजमेर मंे जाकर वहां एक फक़ीर  की मज़ार पर सजदा कर रहीं थीं। राष्ट्रपति महोदया ने वहां अपने संबोधन में कहा कि उन्होंने  वाजा साहब की दरगाह में देश में भाईचारा,एकता, शांति, सोहाद्र  व प्रगति की दुआ मांगी है। राष्ट्रपति दरगाह परिसर में आधा घंटा रहीं। वहां उन्होंने पूरी श्रद्धा के साथ चादर चढ़ाई तथा कुछ धनराशि भी दान की। उधर दरगाह के प्रबंधकों ने भी राष्ट्रपति महोदया की शान में कसीदा पढ़ा तथा उन्हें अभिनंदन पत्र व दरगाह की ओर से तोहफा भेंट  किया। राष्ट्रपति के साथ राजस्थान के राज्यपाल शिवराज पाटिल भी थे। अब ज़रा सोचिए कि सद्भाव कहां नज़र आता है? गुजरात के मु यमंत्री व देश के क्वप्रतीक्षारत प्रधानमंत्रीं नरेंद्र मोदी के उपवास में, उनके इस्लामी टोपी न स्वीकार करने में या भारत की राष्ट्रपति द्वारा अजमेर की दरगाह में जाकर देश की धर्मरिपेक्षता का प्रमाण प्रस्तुत करने में?

दरअसल नरेंद्र मोदी राजनैतिक तौर पर स्वयं इस समय दुविधा में नज़र आ रहे हैं। राज्य की राजनीति उन्हें इस बात के लिए मजबूर करती है कि वे राज्य के लगभग 9 प्रतिशत अल्पसं यक मतों को दरकिनार कर शेष नब्बे प्रतिशत बहुसं य मतों को अपने साथ जोड़ कर तथा केवल बहुसं य vote bank के बल पर राजनीति करें। और इसलिए उनका हिंदुत्व का poster ब्वॉय होना ही उनके लिए लाभकारी सिद्ध हो रहा है। परंतु जब उनके भीतर देश के प्रधानमंत्री बनने की लालसा जागृत होती है फिर उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर स्वयं को क्वसद्भावना पुरुषं के रूप में पेश करने की ज़रूरत महसूस होती है। उस समय वह लाल कृष्ण अडवाणी के हिंदुत्ववादी छवि वाले चेहरे के क्वराजनैतिक परिदमो  से सबक लेते हुए स्वयं को अटल बिहारी वाजपेयी जैसे उदारवादी चेहरे के रूप में परिचित करवाने के लिए फिक्रमंद  दिखाई देने लगते हैं। देश के सभी नागरिक यह पूरा राजनैतिक घटनाक्रम भलीभांति देख रहे हैं कि नरेंद्र मोदी द्वारा जो कुछ भी किया जा रहा है उसका अर्थ क्या है और वे स्वयं किस प्रकार विरोधाभासों के भंवर में उलझे हुए हैं।

**Tanveer Jafri ( columnist),

(About the Author)
Author  Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost  writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
(Email : tanveerjafriamb@gmail.com )

Tanveer Jafri ( columnist),
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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC

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