विदेष नीति अल्पसंख्क नीति के साये में।

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nawaz sharif with manmohan singh{संजय कुमार आजाद**,,}
                      भारतीय संघ के अभिन्न अंग जम्मु-कष्मीर के केरन सेक्टर में पाकिस्तान प्रयोजित जो घुसपैठ की घटना हुई वह किसी युद्ध से कम नही था।कुपवाड़ा जिले में नियंत्रण रेखा के पास भारतीय सेना और पाकिस्तानी सेना रूपी घुसपैठिए के साथ 15 दिवसीय मुठभेड़ पाक की नियत और नियती को दर्षाता है। अपने अमेरिका प्रवास के क्रम में भारत के विपक्षी दल सहित अनेक बुद्धिजीवियों के लाख मना करने के बावजुद भारत के नियंत्रित प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री मियां नवाज शरीफ से शांति के लिये मिले। उधर मनमोहन नवाज की अमेरिकी सरपरस्ती में गलवहियां हो रही थी और इधर भारत की सरजमीं पर पाकिस्तानी सेना रंगरेलिया मना हमारे बीर सैनिको के साथ खून की होली खेलने की कवायद में लगा था।न्युयार्क वार्ता में एकबार फिर भारत मुह ही खाई। पूर्व नौकरषाह और नियंत्रित भारतीय प्रधानमंत्री हर उन खुवियों से लैस हैं जो अ्रग्रेजो ने भारत पर शासन करने के लिये अपने नौकरषाह में रचा था।भारत का अधिकांष नौकरषाह अपने सेवानिवृति हीं नही अपने जीवन के अंतिम दिन तक पद, तमगा और पैसे की लिप्सा में अभिषप्त रहता है और वर्तमान प्रधानमंत्री इसके जीवान्त उदाहरण है। अमेरिकी सता के आगे नतमस्तक श्री मनमोहन सिंह ने हर विरोध के वावजूद देष के स्वाभिमान को पैरो तले रौंदकर एक वैसे देष जिसका जन्म, पालन-पोषण, रहन-सहन, आचार-विचार, संस्कार-षिक्षा और संस्कृति सिर्फ खून से सना हो।जिसमें सहअस्तित्व की भावना नहीं हो। जहां आतंक और ंिहसा सरकार और पंथ समर्थित हो उस देष के आदमखोर शासक से शांति, प्रेम और अहिंसा के लिये वार्ता करना कायर और भीरूता का परिचायक है।जिसके साये में ओसामा बिन लादेन पला हो जो दाउद इब्राहिम जैसे नरपिपासु इस्लामी आतंकी का पनाहगार हो जो सलाउद्दीन जैसे मौत के सौदागर का पैरोकार हो उस नरभक्षी आतंकी देष को प्रेम की भाषा और शांति का संदेष देना मानवता के लिये, देष के स्वाभिमान के लिये कलंक है।
                 जम्मु-कष्मीर के केरन सेक्टर के शालाभाटा गांव में पाकिस्तानी शासन और सेना की मिलीभगत से आंतकियो के समुह के साथ जो किया गया वह भारत की संप्रभुता पर हमला था।यह मुठभेड़ एकबार फिर ‘कारगिल-युद्ध’ की याद को ताजा कर दिया। स्मरण हो करगिल युद्ध के समय भी पाकिस्तान में मियंा नवाज शरीफ की सता थी और केरन सेक्टर की घटना का खलनायक भी वही आदमखोर मियां नवाज शरीफ की सत्ता है।इस्लाम के नाम पर मानवता को शर्मसार करने वाला पाकिस्तानी शासन-सेना और आई एस आई की तिकड़ी अपने गर्भनाल कटने के साथ हीं भारत विरोघ पर खड़ा हुआ है। इसे खड़ा होने में भारत के सरजमीन पर तथाकथित अल्पसंख्यकों के वोट वैंक के दलाल रूपी नेता और डॉलर-रियाल पर बिके छद्म बुद्धिजीवियों का गिरोह ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है। केरन सेक्टर में हुए पाकिस्तान के हमले पर भारत की केन्द्रीय सरकार लोकसभा-2014 के वोट के चष्में से देखकर फुंक-फुंक कर कदम रख रही है।पाकिस्तान एक तो चोरी दुसरे सीनाजोरी की उक्ति को चरितार्थ कर राष्ट्रीय एवं अतंराष्ट्रीय मंचो पर भारत को बदनाम करने का कोई मौका नही छोड़ता और भारत सरकार सारे सबूतों के बावजूद अल्पसंख्यक वोट की राजनीति में चुप है। हद तो तब हो गई जब भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त सलमान वषीर ने केरन सेक्टर मामले में पाकिस्तान के शासन या सेना की मिलीभगत होने से साफ इंकार कर दिया । सारे सबूतों के बावजूद इस तरह वेषरमी से दिया गया सलमान बषीर का वयान और भारत सरकार की ढ़ुलमुल विदेषी नीति अनेक शंकाओं को जन्म देती है। खैर इस मामले पर अभीतक भारत के छद्म सेकुलरवादियों का गिरोह और आतंकियों का मददगार मानवाधिकार के कार्यकर्ता स्यापा करने जंतर-मंतर पर नही पहुंचे ये आष्चर्य है।पाकिस्तान का यह दुःसाहस विदेषी दबाव में भारत सरकार का शांति प्रस्ताव या वार्ता के और शांति के लिये नोबल पुरस्कार की लालसा में लिये अति उत्साह में उठाया गया कदम को पाकिस्तान ने जो करारा तमाचा जड़ा उससे शायद सरकार की आंखे खुले और विदेष नीति को देष के अल्पसंख्यकों के साथ जोड़कर देखने की हिमाकत शायद आगे से ना करे।पाकिस्तान और शांति दो विपरीत ध््राुव है।पकिस्तान की अंदरूनी हालात का जो चित्र विष्व में दिखाया जाता है वो वास्तव में हाथी के दांत की तरह है खाने के और दिखाने के और। पाकिस्तान में घटित होने बाले आतंकी घटना या तो सरकार सेना विरोधी या गैर इस्लामी लोगेां से निवटने के लिये किया जाता रहा है और घटनाओं को ऐसा बताया जाता मानों यह रक्तपिपासु देष वास्तव में आतंकवाद से पीड़ित है।जबकि यह विष्व में इस्लामपरस्त देषों की नीति का एक भाग है।
                         जम्मु-कष्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान की सरकार व सेना एवं आतंकवादियों का समूह तथा भारत में छद्म सेकुलर व मानवाधिकार वादियो, डॉलर-रियाल पर बिकने बाले पत्रकारों व बुद्धिजीवियो एवं सफेदपोष खद्रधारियों की जमात का सुर एक होता है।इन देषद्रोही विषधरों का पोषक वर्तमान में भारत सरकार और उसकी अल्पसंख्यकों के प्रति जो नजरिया है, वह है। वोटो की घीनौनी राजनीति ने इन तथाकथित अल्पसंख्यकों को भारत की मुख्यधारा से हमेषा अलग रखने का कुकृत्य देष में दहषतगर्दो और फिरकापरस्त तत्वों की जमात का संरक्षक राजनीतिक दल कांग्रेस के किया है। कभी शरीयत तो कभी कुरान तो कभी साम्प्रदायिकता का भय दिखाकर (और अब श्री नरेन्द्र मोदी का ?) हमेषा मुस्लिम समुदाय को मुख्यधारा से अलग-थलग रखने का कुत्सित प्रयास किया है।
                         केरन सेक्टर के शालाभाटा गांव में हुए पाकिस्तानी आक्रमण को निपटने में भारतीय सेना को 15 दिन लगे यह देष की सुरक्षा पर प्रष्नचिह पैदा करता है।इस मुठभेड़ में भारतीय सेना को अत्याधुनिक हथियारों का भण्डार व इलेक्ट्रॉनिक सुचना प्रणाली यंत्र असलहा, वॉकी-टॉकी, सुखे भोज्य पादार्थ आदि को बरामद किया। इतने बड़े पैमाने पर बरामद ये सामाग्री हमारी सीमा पर लगे सुरक्षा मानको के उपर भी प्रष्न पैदा करता है। आखिर यह कोई एक दिन में संभव नही है तो फिर क्या हमारी सुरक्षा ऐजेन्सियों के नाको के नीचे ये सब होता है और हमारे देष का सुरक्षा तंत्र मौन या नाकामयाव है,? अभी कुछ दिनपूर्व भारतीय सेना ने सीमाई क्षेत्रों में ऑक्सीजन सुविधा से युक्त सुरंगों के बारे में बताया था फिर भी देष की सरकार और सीमा सुरक्षा तंत्र कुम्भकर्णी नीन्द में सोया रहा,? सुरंगों के माध्यम से कष्मीर में पाकिस्तान द्वारा घुसपैठ की घटना उसकी रणनीति का एक हिस्सा है।समय-समय पर एसे घटनाएं प्रकाष में आती रही है किन्तु फिर भी इस प्रकार की आतंकी घटनाओं को रोकने के कारगर उपाय हम आज तक नही कर पाये है। इस प्रकार के घुसपैठ पर सर्वाधिक कारगर प्रणाली अभी विष्व में इजरायल के पास है क्योंकि वह सुरंगी धुसपैठ से सर्वाधिक प्रभावित देष रहा है। इजरायल के साथ हम इस सुचनाओं का आदान प्रदान कर रोक लगाने की अत्याधुनिकतम तकनीकि से सुसज्जित हो सकते है।लेकिन वर्तमान सरकार और कांग्रेस पार्टी के लिये तो इजरायल एक अछूत देष है? यदि अमेरिका इजरायल के करीव नही होता तो भारत की कांग्रेस पार्टी सरकार इजरायल को भारत की सरजमीन पर पैर भी रखने नही देती? घुसपैठ से त्रस्त छोटे-छोटे देष अपनी सीमा को चाक-चौवन्द कर रखा है किन्तु विष्व में सर्वाधिक अवांक्षित तत्वों से ग्रसित भारत की सीमा एवं सीमा सुरक्षा पर सरकार की नीति देष के अंदरूनी वोट वैंक से प्रभावित होती है। भारतीय सेना का हाथ बांधकर उसे बैरकों में धकेलकर सीमा की सुरक्षा का जिम्मा पैरा मिलीट्री को देना आष्चर्यचकित करने बाला फैसला है।सीमा सुरक्षा बल इन अतिसंवेदनषील सीमा क्षेत्रों पर असफल रही है जिसके कारण हीं केरन सेक्टर के शालाभाटा गांव जैसी घटना संभव हो पाई।ये आकलन खुद गृह मंत्रालय का है। गृह मंत्रालय का रिर्पोट बताता है कि आतंकवादियों का जमात बिना बाड़ के अतिसंवेदन षील इलाकों से होकर भारत में घुसे।जहां सीमा सुरक्षा बल के जवानों से चुक हुई है वह ईलाका ‘एलिफेंटा घास’ से भरा है। कैसी बिडम्वना है इस देष की -जब सरहदी ईलाकों के द्वारा पाकिस्तान या बांग्लादेष सदैव भारत को अस्थिर करने का घृणित चाल चलता रहा है वैसे में सीमाई क्षेत्रों की सुरक्षा का जिम्मा भारतीय सेना के हवाले करने के बजाय सीमा सुरक्षा बल  या पैरा मिलिट्री फोर्स के सहारे छोड़ना देष की सुरक्षा के साथ घिनौना मजाक है ।देष की सम्प्रभुता के साथ खिलवाड़ है। हम अपनी सीमा की सुरक्षा में हर उस सुरक्षा मानक का प्रयोग करें जो अनिवार्य है और इसके आड़े आने बाला हर समुह भारत का दुष्मन है, इसमें लेष मात्र किन्तु-परन्तु नही होना चाहिये।सुरक्षा के मानकों की अवहेलना करना देष के नागरिको और संविधान के साथ विष्वासघात है।वैष्विक दबाव में हम निरंतर सेना पर वंदिषें लगाकर उसे सीमाक्षेत्रों से दूर रखने का जो अघोषित निर्णय कर रखा है वह देषद्रेाह है।अरबों रूपये प्रतिवर्ष विज्ञापनों पर खर्च करने बाली केन्द्रिय सरकार विगत 67 सालों में भी सीमा पर पूर्णतः अत्याधुनिक बाड़ लगाने से पता नही क्यों बचती रही है यह आम नागरिकों के मन में एक संदेह पैदा करती है।जिस ‘‘ आधार-कार्ड’’ के लिये सरकार अध्यादेष ला रही है जबकि इस परियोजना पर देष के अनेक सामरिक विष्लेषक प्रष्नचिह लगा चुके है । उच्चतम न्यायलय इसे खारिज कर चुका है फिर भी हठवादी सरकार अरबों के इस खेल में ‘‘आधार-कार्ड’’ बनाना ही चाहती है किन्तु कभी सीमा पर सुरक्षा बाड़ के लिये अत्याधुनिक उपकरण लगाने के लिये यह सरकार जरूरी नही समझा। आखिर क्यों इस गंभीर सामरिक मुद्दे पर सरकार के कान में जूॅं तक नही रेगती है।
                         हम बदलते अतंराष्ट्रीय घटनाक्रमों से आंखें नहीं मुंद सकते है।हमारा सनातन सत्य विष्व वंधुत्व सह अस्तित्व की कामना करता है।जियो और जीने दो की हमारी चिन्तन कण-कण में ईष्वर का साक्षत्कार करता है।किन्तु वर्तमान सरकार विदेषी मामलों पर जिस रूख का अख्तियार कर रखा है वह इस सरकार की नियत और नियती दोनों पर प्रष्न-चिंह लगाती है।आतंकवाद और घुसपैठ पर बंाग्लादेष और पाकिस्तान जैसे देषों केसाथ हमारी नीति एक भीरू देष की तरह है।सिर्फ इसी दो देष हीं नही बल्कि अरब जगत एवं पयिचमी एषियाई देषेंा के प्रति इस सरकार की नजर भी ऐसी ही है।देष की सुरक्षा के मामले पर अल्पसंख्यक वोटों के लिये इस देष की सरकार इतना तंगदिल होगी यह भारत के लिये विघ्वंसकारी होगा।
                         भारत की सेना इन आतातायियों को और उसके भेजे घुसपैठियों से निबटने में सदैव सक्षम है इसमें रंचमात्र किसी को संषय नही है।किन्तु इस देष की भीरू सरकार सदैव विदेषी दबाव में देषहित को बौणा कर सेना को हतोत्साहित करने का प्रयास किया है।इस देष का राजनीतिक चरित्र राष्ट्रवादियों के वजाय भोगवादियों के हाथों कैद रहा है।राष्ट्रवादी चिन्तन के अभाव में ही तो इस देष में आतंकवादियों को शहीद का दर्जा (चाहे अमृतसर में भिण्डारावाला या कष्मीर में अॅफजल हो) और उसके जनाजे में लोग सम्मिलित होकर अनजाने में देषभक्ति के प्रति पाप कर रहें है।इसके लिये इस देष के नागरिक से ज्यादा ‘‘ मार्क्स- मूल्ला-मैकाले और मायनो’’ के इषारो पर बनता शैक्षिक माहौल, अल्पसंख्यक नीति और सरकारी रीति नीति कसुरवार है।

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sanjay-kumar-azad1**संजय कुमार आजाद
पता : शीतल अपार्टमेंट,
निवारणपुर रांची 834002
मो- 09431162589
**संजय कुमार आजाद, स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक हैं ।
*लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं।

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