विजय पुष्पा पाठक की कविता

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हे बादल तुम कब बरसोगे !
सूखे हुए हैं बाग -बगीचे
सूखी हैं विरहिन की आँखें
ताल -तलैया सब ही सूखे
यक्ष प्रश्न सबकी आँखों मे
कब इस धरती को सरसोगे
हे बादल तुम कब बरसोगे !!!
ना गौरैया धूल नहाती
ना चींटी दाना ले जाती
मेढकी की शादी भी अबतो
हार गयी है जातां कराके
अब भी नहीं तो कब समझोगे ?
हे बादल तुम कब बरसोगे !!!
आस मिटी आँखें पथराई
कोयल छोड़ गयी अमराई
चातक खोज मे स्वाति बूँद की
भूल गया पी की रटनाई
भटक रहे हो इधर उधर तुम
और अभी कितना भटकोगे
हे बादल तुम कब बरसोगे !!!!.

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Vijay Pushpam Pathak,poet Vijay Pushpam Pathak, विजय पुष्पम पाठक

प्रिंट मिडिया में कार्यरत

निवास अमेठी उत्तर प्रदेश

1 COMMENT

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति. बादल तुम कब बरसोगे??? वाह, वाह !!

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