विकृत रूप धारण करते चुनावी मुद्दे

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– तनवीर जाफरी –

विश्व के सभी लोकतांत्रिक देशों में होने वाले चुनावों में पक्ष तथा विपक्ष द्वारा आमतौर पर राष्ट्रहित तथा जनहित से जुड़े मुद्दों पर ही विमर्श केंद्रित हुआ करता है। हमारे देश में भी प्राय: ऐसा ही होता आया है। विगत 2014 का लोकसभा चुनाव भी पिछली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार की कथित नाकामियों,उस दौर में होने वाले कथित भ्रष्टाचार,अपराध,नारी सुरक्षा,बेरोज़गारी व मंहगाई जैसे मुद्दों को लेकर लड़ा गया था और विपक्षी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन(एनडीए) द्वारा भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में देश की जनता को अनेकानेक लोकलुभावन सपने दिखाए गए थे। ज़ाहिर है इन्हीं वादों व आश्वासनों की बदौलत देश में भाजपा के नेतृत्व में राजग सरकार का गठन हुआ तथा निर्वाचित सांसदों ने नरेंद्र मोदी को देश के प्रधानमंत्री के पद पर सुशोभित किया। ज़ाहिर है आज राजग सरकार के चार वर्ष पूरे हो जाने के बाद देश की जनता उन वादों तथा आश्वासनों के बारे में जानना चाहती है। आज जब देश की जनता वर्तमान सरकार को उसके वादे याद दिलाने का प्रयास करती है या विपक्षी दल अपनी विपक्ष की भूमिका निभाते हुए उन्हीं वादों व आश्वासनों से संबंधित सवाल करते हैं तो मुद्दों पर आधारित जवाब देने के बजाए संभाषण का रुख ही बदल दिया जाता है। सवाल यह है कि क्या देश की जनता से किए गए वादे पूरे न होने के कारण चुनावी मुद्दों को भटकाने का प्रयास करना या उन्हें वास्तविक व जनसमस्याओं से संबंधित मुद्दों से मोडक़र भावनात्मक मुद्दों की ओर घुमा देना ही साफ-सुथरी राजनीति का द्योतक है? क्या इस प्रकार के भावनात्मक व जनसमस्याओं से कोई संबंध न रखने वाले मुद्दे राष्ट्र एवं देशवासियों का भला कर सकेंगे?

आज यदि कोई राजनैतिक दल,स्वयंसेवी संगठन या जनता के बीच का कोई नेता गरीबों,मज़दूरों या किसानों के हितों की बात करता है या इस वर्ग के साथ होने वाली नाइंसाफी के विरुद्ध आवाज़ उठाता है तो उसकी बात का माकूल जवाब देने के बजाए या ऐसी समस्याओं को सुलझाने की कोशिश करने के बजाए यह कह दिया जाता है कि ऐसी आवाज़ उठाने वाले वामपंथ या नक्सलवाद समर्थक हैं। आज यदि कोई देश में बढ़ती असहिष्णुता की बात करे,कोई राजनैतिक दल अल्पसंख्यकों के हितों की बात करे या उनपर होने वाली ज़्यादतियों के बारे में अपने विचार व्यक्त करे तो उसे राष्ट्रविरोधी या पाक परस्त बता दिया जाता है। देश में यदि कोई दल या संगठन या नेता सभी धर्मों व जातियों को जोडऩे की बात करे तो उस सेक्युलर विचारधारा को ‘शेखुलर’ विचारधारा का नाम देकर उसकी खिल्ली उड़ाई जाती है तथा ऐसे विचारों को हिंदू विरोधी बता दिया जाता है। यदि आप सत्ताधारी लोगों से यह सवाल करें कि आपने 4 वर्षों में अपने कितने वादे निभाए तो जवाब मिलेगा कि देश को नेहरू-गांधी परिवार ने बरबाद कर दिया है और देश की बदहाली की जि़म्मेदार कांग्रेस पार्टी है। यदि आप बेरोज़गारी के बारे में सवाल करें तो वही लोग जो दो करोड़ रोज़गार प्रतिवर्ष देने का वादा करके 2014 में सत्ता में आए थे वही आपको यह सुझाव देंगे कि सरकारी या निजी कंपनियों में नौकरी हासिल कर लेना ही रोज़गार नहीं बल्कि आप पकौड़े बेचिए,पान बेचीए, यह भी तो रोज़गार ही है?

पिछले दिनों कर्नाट्क विधान सभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के मध्य कुछ ऐसी ही ज़ुबानी जंग देखने को मिली जो सुनने में भले ही कांग्रेस व भाजपा के समर्थकों के लिए उत्साहवर्धक क्यों न रही हो परंतु हकीकत में ऐसी बहस ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि देश के राजनेता जनता को गुमराह करने वाली वाकपटुता में कितने माहिर हैं। गौरतलब है कि राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती दी थी कि यदि संसद में उन्हें 15 मिनट के लिए भ्रष्टाचार सहित दूसरे मुद्दों पर बोलने का अवसर दिया जाए तो प्रधानमंत्री उनके सामने 15 मिनट बैठ नहीं सकेंगे। सीधेतौर पर राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को भ्रष्टाचार पर खुली चुनौती दी थी। परंतु मोदी ने राहुल गांधी की इस बात की गंभीरता का गंभीर जवाब देने के बजाए इसे दो रूप में पेश किया। स्वयं को बेचारा साबित करते हुए उन्होंने कहा कि-‘जब मैं सुनता हूं कि मैं बैठ नहीं पाऊंगा,तो मैं सोचता हूं… वाह,क्या दृश्य है यह? कांग्रेस अध्यक्ष सर, हम आपके सामने नहीं बैठ सकते। आप एक नामदार हैं जबकि मैं कामदार हूं। आपके सामने बैठने की हमारी कोई हैसियत नहीं है’। प्रधानमंत्री के ऐसे जवाब में ज़ाहिर है राहुल गांधी द्वारा उठाया गया भ्रष्टाचार का मुद्दा गुम हो जाता है और प्रधानमंत्री जनता को अपनी बेचारगी दिखाकर सहानुभूति बटोरने में कामयाब हो जाते हैं।

इतना ही नहीं वे राहुल गांधी की चुनौती का जवाब भी एक हास्यस्पद लगने वाली चुनौती से भी देते हैं और कहते हैं कि-‘वह राज्य में सिद्धारमैया सरकार की उपलब्धियों के बारे में कागज़ का टुकड़ा पढ़े बिना किसी भी भाषा में 15 मिनट बोलकर दिखाएं। मोदी की इस चुनौती के दो मायने हैं एक तो यह कि राहुल गांधी को बिना कागज़ पढ़े उतना अच्छा बोलना नहीं आता जैसी मोदी क्षमता रखते हैं। परंतु जनता का या राष्ट्र के विकास व प्रगति का किसी के अच्छा बोलने या कंठस्थ भाषण देने या न देने से क्या वास्ता? पंडित नेहरू,इंदिरा गांधी,मनमोहन सिंह से लेकर आईके गुजराल,देवगौड़ा,राजीव गांधी,अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं को भी जगह-जगह लिखित भाषण पढ़ते देखा गया है। डा० कलाम भी आमतौर पर लिखित भाषण ही पढ़ा करते थे। लिखित भाषण की विशेषता यही होती है कि उसमें मुद्दों पर केंद्रित बातें होती हैं,संयमित भाषा का प्रयोग होता है तथा संबंधित विभाग के आलाधिकारियों के सामने से गुज़रने के कारण ऐसे भाषणों में झूठ,लफ्फाज़ी,मक्कारी,बकवास तथा इतिहास की गलत जानकारी देने जैसी संभावनाएं नहीं रहती। और आिखरकार मोदी द्वारा राहुल को दिए गए जवाब का जवाब भी कांगे्रस पार्टी ने भी उसी स्वर में दिया कि -वे (मोदी)15 मिनट बिना झूठ बोले कुछ बोलकर दिखाएं।

चुनावी भाषणबाज़ी का स्तर दिन-प्रतिदिन गिरता ही जा रहा है। नेतागण एक-दूसरे पर निजी प्रहार करने पर उतर आए हैं। अपनी नाकामियां छिपाने के लिए दूसरों को ही अपमानित करने व बुरा बताने की कोशिश जारी है। आज भी कांग्रेस का विरोध कर व नेहरू को गालियां देकर वोट मांगने की कोशिशें हो रही हैं। उस मोहम्मद अली जिन्ना के नाम पर बेवजह विवाद बढ़ाने की कोशिश की जा रही है कि जिस जिन्ना को भारतीय मुसलमानों ने तो 1947 में ठेंगा दिखाते हुए साफतौर पर यह कह दिया था कि तुम्हारा मुल्क पाकिस्तान हो सकता है परंतु हमारा मुल्क हिंदुस्तान है और रहेगा। परंतु उसी जिन्ना की मज़ार पर भारतीय जनता पार्टी के ही महापुरुष सरीखे नेता लालकृष्ण अडवाणी अपने दल-बल के साथ जा पहुंचे थे। उस समय किसी ने अडवाणी के विरुद्ध कोई धरना-प्रदर्शन नहीं किया था। इन्हें गांधी ,नेहरू ,जिन्ना और कांग्रेस पार्टी सभी से दुश्मनी है। ज़ाहिर है इनके संस्कार व इनका आदर्श विभाजनकारी है,समाज को धर्म व जाति के आधार पर बांटने वाला है। इनके विचार तथा आचरण किसान,मज़दूर व महिला विरोधी हैं। आज के सत्ताधारी जनता को मुंह दिखाने लायक नहीं रहे हैं इसीलिए वे जनता तथा राष्ट्र के विकास व प्रगति तथा देश की एकता व अखंडता से जुड़े मुद्दों को चुनावी मुद्दा बनाने के बजाए उसे विकृत रूप देने में लगे हुए हैं।

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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