विकलांगता पेंशन दे भारत सरकार: सेना कोर्ट

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आई एन वी सी न्यूज़
लखनऊ ,
औरेया निवासी स्वर्गवासी गनर रामबीर सिंह की पत्नी श्रीमती कुसुमा देवी एवं उनकी संतानों को सेना कोर्ट लखनऊ के न्यायमूर्ति डी.पी.सिंह एवं एयर मार्शल अनिल चोपड़ा की खण्ड-पीठ ने टी.ए.नं. 1317/2010, में अहम् फैसला सुनाते हुए 31 वर्ष बाद दिव्यंगता पेंशन प्रदान की प्रकरण यह था की स्वर्गीय गनर रामबीर सिंह 91 फिल्ड रेजिमेंट में 12 जनवरी 1979 को भर्ती होकर 1986 तक निष्ठापूर्वक देश की सेवा की लेकिन 4 दिसम्बर 1986 को उसे चार लाल प्रविष्टि उसके सर्विस रिकार्ड में दर्शाकर सेना से निष्कासित कर दिया गया जबकि 30 सितम्बर 1986 को सेना द्वारा कराए गए रिलीज मेडिकल बोर्ड में उसे न्युरोसिस बिमारी से पीड़ित बताया गया था और उसकी विकलांगता को 20% बताया गया था l

स्वर्गीय सैनिक द्वारा रक्षा-मंत्रालय से दिव्यांगता पेंशन देने की अपील की गई लेकिन उसकी अपील को यह कहकर ख़ारिज कर दिया गया कि वह विकलांगता नहीं चार रेड इंक इंट्री के आधार पर निकाला गया है इस अन्याय के खिलाफ वीर सैनिक ने 1992 में इलाहाबाद उच्च-न्यायलय का दरवाजा खटखटाया और लम्बा संघर्ष किया लेकिन सेना कोर्ट की स्थापना के बाद उसका कोर्ट केश लखनऊ स्थानांतरित हो गया लेकिन दुर्भाग्य से 2013 में सैनिक की मृत्यु हो गई लेकिन उसकी पत्नी श्रीमती कुसुमा देवी एवं उसके बच्चो ने शूरवीरता का परिचय देते हुए संघर्ष को जारी रखा जिसमें उसके अधिवक्ता श्री शैलेन्द्र कुमार सिंह ने  निःशुल्क क़ानूनी-सहायता उपलब्ध कराकर न सिर्फ पीड़ित का मनोबल बढ़ाया बल्कि उन्होंने खण्ड-पीठ के सामने दो स्तरों से जोरदार बहस की उन्होंने खण्ड-पीठ के सामने भारत सरकार के आदेश को एकतरफा, बिना सोचे समझे और मनमानी तरीके से पारित किया गया आदेश बताते हुए अभिलाख सिंह कुशवाहा बनाम भारत सरकार एवं माननीय उच्चतम-न्यायालयं द्वारा पारित वी.के.दूबे बनाम थलसेनाध्यक्ष की अवस्थापना के विपरीत है और उन्होंने कोर्ट में जोरदार बहस करते हुए कहा कि विकलांगता पेंशन माननीय उच्चतम-न्यायालयं का आदेश धर्मवीर सिंह बनाम भारत सरकार एवं सुकविंदर सिंह बनाम भारत सरकार पूरी तरह से याची के केश में लागू होता है लिहाजा पेशन प्रदान करने का पूरा आधार है, भारत सरकार एवं रक्षा-मंत्रालय ने कहा कि याची पेंशन का हकदार नहीं है l

दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद विद्वान् न्यायप्रिय न्यायमूर्ति डी.पी.सिंह ने आदेश पारित किया कि उच्चतम-न्यायलय ने अपने निर्णयों में बार-बार पाकृतिक न्याय के सिधांत को अपनाने पर जोर दिया है लेकिन इस मामले में रक्षा-मंत्रालय ने इस नियम का घोर उल्लंघन किया है क्योकि कारण बताओं नोटिस जारी करने का अधिकार केवल ब्रिगेडियर स्तर के अधिकारी को हैं लेकिन याची के मामले में कर्नल रैंक के अधिकारी ने नोटिस जारी किया है जो सेना के नियम 30 का उल्लंघन है डिस्चार्ज आदेश की प्रार्थना को याची ने बाद में मामले से हटा दिया वरना सेना को उसकी पूरी पेंशन देने का आदेश जारी होता लेकिन इस स्थिति में याची को केवल विकलांगता पेंशन ही दी जा सकती है इसलिए भारत सरकार और रक्षा-मंत्रालय याची को 20% विकलांगता पेंशन जो 50% होगी और उसके अन्य सभी लाभ पीड़ित परिवार के सदस्यों को चार महीने के अन्दर दिया जाय l

ए.ऍफ़.टी. बार के महामंत्री विजय कुमार पाण्डेय ने खण्ड-पीठ द्वारा पारित आदेश की प्रतिलिपि मीडिया को उपलब्ध करते हुए कहा कि सेना कोर्ट के निर्णय समाज की बदलती भावनाओं निदर्शन है क्योंकि रेड इंक इंट्री और डिस्चार्ज के बीच न्याय प्रदान करना एक उदाहरण है इस निर्णय का समाज के अन्य उदासीन सैनिकों पर सकारात्मक असर पड़ेगा जिससे अन्य लोग भी प्रेरित होकर न्याय के लिए सामने आयेंगे निर्णय मूल-प्रतिलिपि महामंत्री ने स्वर्गीय सैनिक के 77 वर्षीय बीमार पिता जिनका इलाज कानपुर के विमल हास्पिटल में चल रहा है भेजवाया उन्होंने सजल नेत्रों से पूरी बार और बेंच को धन्यवाद दिया l

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