वास्तविता से कहीं दूर- ‘घर वापसी’ का पाखंड

0
25

nirmal-rani-invc-news-invc-article,writer nirmal rani ,aricle written by nirmal rani ,– निर्मल रानी –

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल कि़ले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दिए गए अपने पहले संबोधन में देशवासियों को दस वर्ष के लिए सांप्रदायिकता से दूर रहने का लोकलुभावना भाषण दिया था। परंतु या तो प्रधानमंत्री के भाषण के उस अंश को उनका मात्र दिखावे का भाषण माना जाए या फिर उनकी अपनी ही पार्टी के नेताओं पर उनकी बातों की अनसुनी करने का परिणाम, कि आज देश सांप्रदायिकता की चपेट में आता जा रहा है। आए दिन भारतीय जनता पार्टी के समर्थक नेताओं द्वारा या उसके संरक्षक संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व विश्व हिंदू परिषद,बजरंग दल,धर्म जागरण मंच,दुर्गा वाहिनी जैसे संगठनों द्वारा बहुत तेज़ी से कुछ ऐसे कदम उठाए जा रहे हैं जिनसे देश का माहोैल खासतौर पर हमारे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का बुनियादी ढांचा कमज़ोर होता दिखाई दे रहा है।

अपनी संसदीय चुनावी मुहिम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित उनके सभी नेताओं द्वारा देश में काला धन वापस लाने की बात कही गई थी। मंहगाई,बेरोज़गारी तथा भ्रष्टाचार दूर करने का वादा किया गया था। सब का साथ सब का विकास जैसा लोकलुभावना नारा दिया गया था। महिलाओं को सुरक्षा देने का वचन दिया गया था। परंतु सत्ता में आने के बाद ऐसा लगता है कि अब भाजपा सत्ता की पूरी शक्ति के साथ अपने सांप्रदायिकता फैलाने वाले ऐजेंडे पर पूरी तरह खुलकर सामने आ गई है? और इसी सिलसिले की एक कड़ी के रूप में भाजपाईयों व उनके सहयोगी सांसदों व नेताअें द्वारा बडे पैमाने पर धर्म परिवर्तन कराए जाने का कार्यक्रम शुरु किया गया है।
धर्म परिवर्तन कराए जाने के अपने इस मिशन को इस में शामिल नेताओं तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रवक्ताओं द्वारा ‘धर्म परावर्तन अथवा घर वापसी का नाम दिया जा रहा है। इन संगठनों के नेता यह दावा कर रहे हैं कि भारत में रहने वाले सभी ईसाईयों व मुसलमानों के वंशज हिंदू थे। लिहाज़ा उन्हें हिंदू धर्म में वापस लाया जाना धर्म परिवर्तन नहीं बल्कि घर वापसी मानी जानी चाहिए। पिछले दिनों आगरा में इसी उद्देश्य को लेकर एक कार्यक्रम भी आयोजित किया गया था। जिसमें कुछ गरीब व मज़दूर वर्ग के मुसलमानों को बहला-फुसला कर तथा उन्हें झूठे प्रलोभन देकर एक स्थान पर एकत्रित किया गया। बाद में उनसे हवन करवाकर उन्हें यह बताया गया कि अब तुम लोग हिंदू धर्म में शामिल हो चुके हो।
मीडिया में इस समाचार के आने के बाद पूरे देश में संसद से लेकर सडक़ तक इसका प्रबल विरोध किया गया। इन दुष्प्रयासों की हवा वैसे भी उसी समय निकल गई थी जबकि तथाकथित धर्म परिवर्तन कराए गए मुस्लिमों द्वारा हवन कार्यक्रम के फौरन बाद ही मीडिया को यह बता दिया गया कि उन्होंने न तो अपना धर्म परिवर्तन किया है न ही वे स्वेच्छा से इस आयोजन में शामिल हुए हैं। बल्कि उन्हें बहला-फुसला कर,उनसे झूठ बोलकर तथा उनके बीपीएल कार्ड बनवाए जाने जैसे प्रलोभन देकर उन्हें यहां लाया गया था। इस मामले में प्राथमिकी भी दर्ज हुई तथा कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किए जाने की खबरें आईं। इसी प्रकार का एक दूसरा आयोजन अलीगढ़ में 25 दिसंबर को आयोजित किए जाने का प्रस्ताव था। जिसमें हिंदुत्व के फायरब्रांड नेता तथा भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ ने शिरकत करनी थी। परंतु संसद में इस विषय को लेकर हुए शोर-शराबे तथा राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी कोशिशों की हो रही घारे भत्र्सना के बाद आखिर  अलीगढ़ में होने वाला धर्म परिवर्तन का कार्यक्रम रद्द हो गया।
सवाल यह है कि सत्ता पक्ष के लोग तथा उनके समर्थक संगठन जनता की आम समस्याओं की ओर से आंखें मूंद कर आखिर केवल ऐसे ही विषयों को क्यों उछालते रहते हैं? जिसनसे समाज की समस्याएं तो हल नहीं होतीं बजाए इसके देश में नफरत तथा विद्वेष का धुंआ ज़रूर उठने लगता है? ताजमहल शाहजहां का बनाया हुआ ताजमहल है अथवा हिंदुत्व के ठेकेदारों की कल्पना का तेजोमहल इस बात से किसी आम हिंदू या मुस्लिम की रोज़ी-रोटी,उसके रोज़गार,उसकी शिक्षा तथा जीवनयापन से आखिर क्या वास्ता? किसी की ‘घर वापसी’ का ढोंग किया जाए अथवा वह ‘जिस घर’ में भी रह रहा हो उसे वहीं रहने दिया जाए इस बात से भी किसी की रोटी,कपड़ा और मकान जैसी आवश्यकताओं से क्या वास्ता? हिंदुत्व के नाम पर आम लोगों में सांप्रदायिकता का ज़हर घोलकर खुद ऐश करने वाले इन पाखंडियों ने कभी इस बात पर भी गौर किया है कि बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में लाखों ‘घर वालों’ ने आखिर अपना घर छोडक़र दूसरे घर में जाने का फैसला क्यों किया था? उस समय भी संघ की विचारधारा तो जन्म ले ही चुकी थी।
महात्मा गांधी भी अपने ही घर के व्यक्ति थे। उन्हें घर क्या दुनिया छोडऩे के लिए इसी विचारधारा ने मजबूर कर दिया जो विचारधारा आज घर वापसी का ढोंग कर रही है? जातिवादी व्यवस्था रखने वाले तथा छुआछूत व ऊंच-नीच का भेदभाव करने वाले हिंदू धर्म के इन तथाकथित शुभचिंतकों को दूसरों की घर वापसी कराकर अपने धर्म पर उलटे बोझ बढ़ाने के बजाए इस विषय पर चिंता करनी चाहिए कि हमारी जातिवादी व्यवस्था तथा छुआछूत के वातावरण को समाप्त किया जाए ताकि सर्वप्रथम घर छोडक़र जाने वालों का सिलसिला बंद हो। जब यह हिंदुतववादी अपने धर्म में इस व्यवस्था को समाप्त नहीं कर पा रहे फिर आखिर कथित घर वापसी करने वालों को अपने धर्म के किस वर्ग अथवा जाति में समाहित करेंगे?
सर्वप्रथम इन्हें कथित धर्म परावर्तन अथवा घर वापसी जैसे कार्यक्रम आयोजित करने के बजाए अपने ही धर्म के भीतर मरी,बेरोज़गारी,उपेक्षा,बीमारी तथा छत जैसी बुनियादी समस्यओं से जूझ रहे लोगों को यह सारी सुविधाएं उपलब्ध कराए जाने हेतु अपनी उर्जा व समय लगाना चाहिए। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कई क्रूर मुगल शासकों के शासनकाल में तमाम लोगों ने अपनी जान बचाने की खातिर,लालचवश,धन-संपत्ति पाने के लिए अथवा ऊंचे पद की लालसा में धर्मपरिवर्तन कर लिया होगा। आज भी ईसाई मिशनरीज़ के द्वारा बाकायदा ऐसे मिशन चलाए जाते हैं। इन पर भी हिंदुत्व के स्वयंभू ठेकेदारों द्वारा यह आरोप लगाया जाता है कि मिशनरीज़ लालच देकर लोगों का धर्म परिवर्तन कराती हैं। भारतरत्न मदर टेरेसा पर भी ऐसे ही इल्ज़ाम यही ताकतें लगाती रही हैं। परंतु यह आरोप लगाने वाले इस पूरे घटनाक्रम की शुरुआती स्थिति को नज़र अंदाज़ कर देते हैं। कोई इस विषय पर बात नहीं करना चाहता कि कोई गरीब व्यक्ति मिशनरीज़ के दरवाज़े तक कैसे पहुंचता है?
ज़ाहिर है गरीबी,अपने समाज की उपेक्षा,इंसान की ज़रूरतें तथा रोज़ी-रोटी आदि जैसी आवश्यकताएं उसे वहां पहुंचा देती हैं जहां यह चीज़ें उसे उपलब्ध हों। यदि हिंदुत्व की हमदर्दी का दम भरने वाले लोग अपने समाज के लोगों की इन बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करें,उन्हें मान-सम्मान दें,उनमें समानता का भाव पैदा करें,उनमें अपनत्व की भावना को जागृत करें, उनके दिलों से भेद-भाव ऊंच-नीच का डर तथा उपेक्षा जैसी बातों को निकाल फेंके तो निश्चित रूप से कोई भी व्यक्ति अपना धर्म बदलने की कोशिश कभी नहीं करेगा। परंतु इन बुनियादी हक़ीकतों को नज़र अंदाज़ कर केवल इसे एक राजनैतिक मुद्दा बनाकर इस विषय को ठीक उसी प्रकार हवा में उछाला जा रहा है जैसे कि मंदिर-मस्जिद संबंधी अयोघ्या विवाद को उछालकर सत्ता की मंजि़ल तय की गई है। स्वयं को हिंदुत्व का ठेकेदार समझने वाले लोगों को पड़ोसी देश पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान के हालात को देखकर उससे सबक लेने की ज़रूरत है।
कट्टरपंथ तथा रूढ़ीवाद जब अपना वास्तविक रूप धारण करता है तो केवल देश ही नहीं कलंकित होता बल्कि मानवता भी शर्मसार होती है। पूरे समाज में इसके माध्यम से नफरत का ज़हर घुल जाता है जो ऐसी कोशिशों में लगे किसी भी राष्ट्र के पतन का कारण बन सकता है। लिहाज़ा कम से कम सत्ताधाराी नेताओं तथा सत्ता से जुड़े अन्य हिदुत्ववादी संगठनों को अपने ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लाल कि़ले से किए गए उनके सांप्रदायिकता त्यागने के निवेदन पर ज़रूर अमल करना चाहिए। और ‘घर वापसी’ जैसे ढोंगपूर्ण कार्यक्रमों के बजाए भारतीय समाज की बुनियादी ज़रूरतों का समाधान करने की कोशश करनी चाहिए।

nirmal-rani-invc-news-invc-article,writer nirmal rani ,aricle written by nirmal raniपरिचय – : 

निर्मल रानी

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 16 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

Nirmal Rani  : 1622/11 Mahavir Nagar Ambala City134002 Haryana

email : nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here