वर्चस्व की महाभारत – इस संकट के लिए समाजवादी अभिशप्त है

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– जावेद अनीस –

trippale-talaq.Socialist-isसमाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव अपने राजनीतिक जीवन के अंतिम दौर में हैं लेकिन अभी तक उनके वारिस का फैसला नहीं हो सका है. विरासत की इस दौड़ में एक तरफ उनके भाई शिवपालयादव हैं जो पुराने और आजमाये हुए तौर तरीकों पर यकीन करते हैं तो दूसरी तरफ बेटे अखिलेश यादव हैं जो पार्टी की पारंपरिक छवि बदल देना चाहते हैं. नतीजतन वर्चस्व की इस लड़ाई में पार्टी दो खेमों में बंट चुकी है, दोनों खिलाड़ी और उनके समर्थक अब आरपार के लडाई के मूड में दिखाई दे रहे हैं और जल्दी ही इसका कोई हल देखना चाहते हैं. मुलायम सिंह कहते रहे हैं कि ‘उनके जीते जी पार्टी एक बनी रहेगी’. वे पार्टी को एकजुट रखने और डेमैज कंट्रोल की हर मुमकिन कोशिश कर  रहे हैं लेकिन पूरा संघर्ष तो इस बात को लेकर है कि पार्टी में मुलायम के बाद वर्चस्व किसका रहेगा?

यह कोई पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच हो रही खींचतान नहीं है.लगभग साढ़े चार साल पहले मुलायम सिंह यादव ने जिस तरह से अपने बेटे को आगे बढ़ाया था था उस समय माना जा रहा था कि कि समाजवादी पार्टी में मुलायम के बाद अखिलेश ही उनके वारिस होंगें. लेकिन आज ऐसा दावा नहीं किया जा सकता. शायद यहीं से पार्टी में दरार भी पड़ गयी थी. इस दौरान खुद को मुलायम सिंह का स्वाभाविक उत्तराधिकारी मानने वाले शिवपाल यादव ने पार्टी संगठन व कार्यकर्ताओं के बीच अपनी जड़ें मजबूत करते हुए अपने समर्थकों का दायरा बढ़ा लिया है. अब उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. लेकिन उनकी छवि साफ़ नहीं है और उनपर  भ्रष्टाचार व अपराधियों को संरक्षण देने के भी आरोप लगते रहे हैं. दूसरी तरफ अखिलेश अपनी छवि भले ही बचाए हुए हों लेकिन अपने कार्यकाल के दौरान वे स्वतंत्र रूप से काम करने में सफल नहीं हो पाए हैं वे समाजवादी पार्टी के मनमोहन सिंह साबित हुए हैं.

सितम्बर में हुए घमासान के बाद यह माना जा रहा था कि अल्पविराम का यह दौर विधान सभा चुनाव  तक चलेगा और इसका निपटारा चुनाव के बाद होगा. लेकिन यह लडाई पार्टी के स्थापना दिवस के करीब एक हफ्ते पहले ही और खुले व नंगे तौर पर सामने आ गयी. सबसे पहले अखिलेश यादव ने शिवपाल सिंह और उनके समर्थक मंत्रियों को अपने मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाते हुए कहा कि “अमर सिंह दलाल है और जो जो उनके साथ रहेगा, वो पार्टी से बाहर जाएगा”. उन्होंने अपने आप को  नेताजी का उत्तराधिकारी बताते हुए कहा कि  वो मेरे नेता ही नहीं, पिता भी हैं. इसके बाद रामगोपाल यादव को पार्टी से निष्कासित किये जाने की खबर सामने आई. निष्कासन की घोषणा करते हुए शिवपाल यादव ने रामगोपाल यादव पर सीबीआई की डर से भाजपा के साथ मिलीभगत करने का खुला  आरोप लगाया. अगले दिन मुलायम सिंह शिवपाल का पक्ष लेते हुए नजर आये . उन्होंने  दोनों पक्षों में समझौता कराने की एक और कोशिश की लेकिन इस दौरान अखिलेश और शिवपाल मंच पर कार्यकर्ताओं के सामने ही एक दुसरे से उलझते हुए नजर आये.

अखिलेश और शिवपाल 2017 का चुनाव अपने तरीके से लड़ना चाहते है जिसमें उनका वर्चस्व हो उधर मुलायम चाहते हैं कि सब मिल-जुल का चुनाव लडें.  अखिलेश का जोर विकास के मुद्दों और सरकार की उपलब्धियों पर है. अखिलेश यादव खुद को नया समाजवादी बताते हैं इसके कई निहितार्थ होते हैं, वे बताना चाहते हैं कि वो समाजवादी पार्टी की परम्परागत राजनीति नहीं बल्कि नई तरह की राजनीति करना चाह रहे हैं जहां विकास के मुद्दों पर उनका ध्यान रहेगा. उन्होंने अपनी छवि एक ऐसे नेता के तौर पर बनाने की कोशिश की है जो पढ़ा-लिखा, जागरूक, ईमानदार और सौम्य हैं. 2013 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने पूरे प्रदेश को नाप डाला था और जनता विशेषकर मध्यवर्ग और नयी पीढ़ी को उनमें एक उम्मीद नजर आई थी. अपनी इस छवि को उन्होंने अभी भी पूरी तरह से खोया नहीं है. समाजवादी कुनबे में वे एक ऐसे नेता के तौर पर उभरे हैं जो पार्टी की इमेज को बदल देना चाहता है. वे इस काम के लिए अपने आप को एक ऐसे योद्धा के रूप में पेश करने में कामयाब रहे हैं जो अपने “बड़ो” से भी भिड़ सकता है.

दूसरी तरफ शिवपाल सिंह यादव इस पूरे विवाद के दौरान लगातार कहते रहे हैं कि ‘सरकार और संगठन में उनका लम्बा अनुभव है और वह दोनों चला सकते हैं’. इसी के साथ वे यह भी जोड़ना नहीं भूलते कि ‘अखिलेश में अनुभव की कमी है और अभी उन्हें बहुत कुछ सीखने की जरूरत है’. दरअसल उनकी टीस पुरानी है, वे अखिलेश के राजनीति में आने से पहले अपने आप को मुलायम सिंह का राजनीतिक वारिस मान कर चल रहे थे और मुख्यमंत्री बनने का सपना पाले हुए थे. लेकिन उन्हें अपने भतीजे का जूनियर बनना पड़ा. जिसके बाद से उनके लिए स्थितियां विपरीत होने लगीं. लेकिन कई बार अपमानजनक परिस्थितियों का सामना करने के बावजूद भी उन्होंने हार नहीं मानी और ख़ामोशी से संगठन में अपनी पैठ को मजबूत बनाने में लगे रहे. और अपने साथ अमर सिंह व साधना गुप्ता जैसे प्रभावशाली समर्थक भी जोड़ते रहे . आज पार्टी संगठन पर शिवपाल की मजबूत पकड़ है.

अनुभवी मुलायम सिंह यादव इस बात को समझते हैं कि अगला विधानसभा चुनाव अखिलेश के चेहरे के सहारे ही लड़ा जा सकता है लेकिन उन्हें यह भी पता है कि अकेले यही काफी नहीं होगा. इसके लिए शिवपाल की सांगठनिक पकड़ और अमर सिंह के “नेटवर्क” की जरूरत भी पड़ेगी. इसलिये चुनाव से ठीक पहले मुलायम का पूरा जोर बैलेंस बनाने पर है. लेकिन संकट इससे कहीं बड़ा है और बात चुनाव में हार-जीत के गुणा-भाग से आगे बढ़ चुकी है. अब मामला पार्टी और इसके संभावित वारिसों के आस्तित्व का बन चूका है. लड़ाई विरासत की है इसलिए यह बैलेंस बार-बार अस्थायी साबित हो रहा है. तमाम कोशिशों के बावजूद मुलायम के बाद पार्टी पर वर्चस्व की लड़ाई का कोई हल नहीं निकला है. इसलिए आने वाले दिनों में यह लड़ाई तब तक आगे बढ़ती रहेगी जब तक कि मुलायम के विरासत का स्थायी फैसला ना हो जाए यही समाजवादी पार्टी की नियति है. दोनों दावेदारों की एक मयान में दो तलवार वाली स्थिति हो चुकी है. आने वाले दिनों में यह फैसला होना ही है कि मयान में कौन से तलवार रहेगी. हो सकता है निर्णायक संघर्ष में पार्टी का बंटवारा हो जाए या वह अपने आस्तित्व के संकट में ही फंस  जाए. जो भी हो समाजवादी पार्टी अपने इस संकट के लिए अभिशप्त है.

इस साल चार अक्टूबर को समाजवाद पार्टी की स्थापना के 25 वर्ष पूरे हो जायेंगें जो कि एक लम्बा समय है, इन 25 सालों के दौरान पार्टी कमोबेश एक ही ढ़र्रे पर चलती रही है और इस पर अपने संस्थापक मुलायम सिंह यादव का पूरा नियंत्रण रहा है. आने वाला समय  पार्टी के लिए बदलाव का दौर होगा और बदलाव के साथ संघर्ष असंभावी है.

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javed-anisपरिचय – :

जावेद अनीस

लेखक , रिसर्चस्कालर ,सामाजिक कार्यकर्ता

लेखक रिसर्चस्कालर और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, रिसर्चस्कालर वे मदरसा आधुनिकरण पर काम कर रहे , उन्होंने अपनी पढाई दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया से पूरी की है पिछले सात सालों से विभिन्न सामाजिक संगठनों के साथ जुड़  कर बच्चों, अल्पसंख्यकों शहरी गरीबों और और सामाजिक सौहार्द  के मुद्दों पर काम कर रहे हैं,  विकास और सामाजिक मुद्दों पर कई रिसर्च कर चुके हैं, और वर्तमान में भी यह सिलसिला जारी है !

जावेद नियमित रूप से सामाजिक , राजनैतिक और विकास  मुद्दों पर  विभन्न समाचारपत्रों , पत्रिकाओं, ब्लॉग और  वेबसाइट में  स्तंभकार के रूप में लेखन भी करते हैं !

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