वंषवाद का पप्पु नहीं राष्ट्रवाद का पौरूष की जरूरत

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{संजय कुमार आजाद**}

        तथागत बुद्ध के जीवन से जुड़ी एक घटना है। एक षिष्य धर्मप्रचार के लिए किसी गांव में जाना चाहता है और इसके लिए वह तथागत से निवेदन करता है । तथागत उसके निवेदन पर कहते है-तुम्हारा यह निवेदन तो अतिप्रिय है किन्तु उस गांव के लोग दूसरे स्वभाव के हैं वहां के लोग तुम्हारी स्वागत में तुम्हारे उपर ककंड़-पत्थर फेंकेगे ? षिष्य जबाव देता है- महात्मन् ! मैं समझुंगा कि उस गांव में पत्र-पुष्प नहीं है इसलिए वहां के लोग ककंड़-पत्थर से मेरा स्वागत कर रहें हैं । फिर तथागत प्रष्न करते है- भन्ते वहां के लोग आपके हाथ काट डालेंगे? षिष्य विनम्रतापूर्वक कहता है-मैं सोचुगंा कि वहां के लोगों को मेरी हाथ की जरूरत नहीं है। फिर प्रष्न करते हैं कि वे लोग तुम्हारे पैर काट डालेगे ? षिष्य कहता है-प्रभु मैं समझुगंा कि वहां के लोग मुझे इतना चाहते है कि मैं सदा उनके गांव में हीं रहू इसलिए वे मेरे पैर काट लिये।तथागत आगे पूछते है-उस गांव के लोग तुम्हें जिन्दा जला देगें? षिष्य अत्यन्त भावविभोर होकर कहता है- महात्मन् मेरा जीवन धन्य हो जायेगा क्योंकि वे लोग इस नष्वर शरीर को जला कर मुझे वहां की मिटृी में मिला देगें और मैं धर्म के लिये सदा सर्वदा वहां की मिटृी में मिलकर उनके साथ रहुगां। प्रभु अतिषीघ्र इस धर्म कार्य हेतु मुझे उस गांव में जाने की अनुमति दें। अपने षिष्य के इस उत्कट् भाव को देखकर तथागत उसे गले लगाकर धर्म कार्य के लिए आज्ञा देते है।तथागत बुद्ध और उनके षिष्य के बीच का यह संवाद विष्व की सबसे बड़ी गैर सरकारी स्वयंसेवी संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के शाखाओं के माध्यम से गढ़े स्वयंसेवकों पर चरितार्थ होती है। राष्ट्रीय नवनिमार्ण की नींब में अनेकों स्वयंसेवको ने अपना सर्वस्व समर्पण कर इस राष्ट्र के राष्ट्रवाद को नया आयाम दिया है। संघ अपने स्वयंसेवकों में जिस गुणभाव का निर्माण करता आया है तथागत बुद्ध और उनके षिष्य की कहानी का पर्याय है।

वर्तमान राजनीतिक उठापटक की झंझावात में कैद इस देष का लोकतंत्र आज उस कैद से मुक्त होने की जद्दोजिहाद में है। लोकतंत्र के नाम पर वंषवाद का विष से आहत लोकतंत्र आज निःषक्त पड़ा है।वैसे में वंषवाद विष-मुक्त लोकतंत्र की स्थापना इस पावन पवित्र भूमि पर हो इसके लिए आज देषभर में राष्ट्रवादी शक्तियां उन विषधरों के फन को कुचलने हेतू कमर कस ली है। फलतः वंषवादी कौरव परम्परा के वाहकों के साथ-साथ तथाकथित सेकुलर फिरकापरस्तों और दहषतगर्दों की जमात रूपी विषधरों ने अपना फूंफकार को और तीव्र कर डराने का प्रयास शुरू कर दिया है।आज जिस तरह से राष्ट्रवादी ताकतों के पीछे जनसैलाव मजबूती से खड़ा हुआ है वैसे में इन विषधरों के दिन गिने-चुने हीं बचे हैं इसमें कोई संदेह नहीं है।वास्तव में निर्वल मन सकारात्मक बातें न सोचकर नकारात्मक बातें हीं अधिक सोचता है जिसका स्पष्ट उदाहरण वर्तमान केन्द्रीय सरकार और उसके सिपहसालार है।

सैकड़ों वर्षो की पराधीनता ने भारत के यषस्वी व स्वर्णिम इतिहास को घुमिल कर दिया।विदेषी आक्रान्ताओं ने पराधीनता से पूर्व और स्वदेषी सेकुलर फिरकापरस्तों और दहषतगर्दों की जमात ने स्वाधीनता के बाद हर उस स्वाभिमान जाग्रत करने बाले मानविन्दुओं को तहस-नहस कर इस देष के उपर विकृत इतिहास थोपता आया है। उस विकट परिस्थिति मेें इस देष का चरित्र खतरे में पड़ गया ।आज उसी चरित्र का निर्माण कर भारत के यषस्वी मानविन्दुओं, अपने पूर्वजों,संस्कार व संस्कृति को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने सवयंसेवकों के माध्यम से फैला रहा हैै।हाल हीं में इंडिया टुडे 22 जुलाई 2013 का अंक में छपा एक अध्ययन में भारत को घुसखोर गणराज्य (रिपब्लिक ऑफ ब्राइव) माना है।इस देष का शहरी वर्ग हर साल लगभग छः लाख तीस हजार करोड़ रूपये घुस देते हैं ।केन्द्र सरकार के अति सुरक्षित कार्यालयों से कोयला आवंटन की फाइलें चोरी हो जाती है।प्रधानमंत्री कार्यालय आज संदेह के घेरे में है।देष की सीमा, सरहद, नागरिक, कृषि, व्यापार, बाजार, सब असुरक्षित है।

आज शासन के सर्वोच्च पदों पर वैसे लोग बैठै है जो विष्व के अतिप्रतिष्ठित माने जाने वाले शैक्षणिक संस्थान हावर्ड, आक्सफोर्ड में पढ़े लिखे है? फिर भी आज इस देष में अराजकता, असहिष्णुता, अनैतिकता, आतंकवाद, भय, भुख, भ्रष्टाचार, मंहगाई, विषमता और अपने चरम पर है।आखिर क्यों? यदि कारणों पर गहनतापूर्वक चिन्तन करें तो स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है कि स्वाधीनता के बाद यह देष जिस नेहरूवाद का फंदे में जकड़ा गया उसका परिणाम और भी विघ्वसंक होना चाहिये था। हमने हर उस तकनीकि,व्यवस्था और पद्धति को बड़े चाव से अंगीकार किया जिसका जन्म विदेषी धरती पर ‘संघर्ष से अस्तित्व की कल्पना’ से हुई थी ।इस देष के हठवाद नेहरूवादी मानसिकता भारत की ‘ सह अस्तित्व की भावना’ को नाकार कर भारतीय चरित्र का मूल ‘जियो और जीने दो’ को छोड़ कर भोगवादी व्यवस्था के मोहपाष में बंधकर विकास की जो ढ़ांचा तैयार किया उसका विकृत रूप आज देष के युवावर्ग को देखने को मिल रहा है।

देष के लोकतंत्र का पूरा ढ़ांचा वंषवाद की विषवेल में लिपटा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने स्वयंसेवको में जिस चरित्र का निर्माण किया है वह इस वंषवाद के विषवेल से लोकतंत्र को मुक्त करायेगा ऐसा जनजागरण हो चुका है। आज देष का जनमानस वंषवाद एवं तथाकथित सेकुलर फिरकापरस्तों और दहषतगर्दों की जमात को परास्त करने बाली शक्ति के रूप में जिसे आषाभरी नजरों से देख रही है वह कोई वंषवाद का पप्पु नहीं राष्ट्रवाद का पौरूष है।वह सोने का चम्मच मूॅह में लेकर पैदा नहीं हुआ बल्कि इसी भारत माता के पवित्र मिटृी में पला और संघ की शाखाओं में खेल-खेलकर बड़ा हुआ। वह मैं और मेरा कुनवा नहीं बल्कि संघ की पाठषाला में सीखा वसुधैव कुटुम्बकम् को आत्मसात कर मैं और मेरा राष्ट्र के लिये जीवन देष को समर्पित कर दिया। अब इस देष के आम राष्ट्रभक्त नागरिकों में कोई शक-सुवहा नही रहा कि वह व्यक्ति जो आत्मनिर्भर, साकारात्मक, आषावादी है और अपने काम को सफलता के आष्वासन से हाथ में लेता है और उसे सफल करने का माद्दा रखता है तब जब राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां उसके प्रतिकुल रहा हो वह कोई पप्पु या छद्म सेकुलर फिरकापरस्तों और दहषतगर्दों की जमात का फफूॅद नही बल्कि महान राष्ट्रवादी स्वामी विवेकानंद जी के प्रखर राष्ट्रवाद का प्रतीक श्री नरेन्द्र मोदी ही हैं। इस सृष्टि में हर उपलब्धि की शुरूयात एक रचनात्मक विचार से होती है।पहले विचार आताी है।फिर उसमें आस्था आती है। फिर उस विचार पर अमल करने के साधन आतें है, यही मार्ग सफलता का मार्ग माना जाता है।भारतीय लोकतंत्र में इसी सफलता का मार्ग जनता श्री नरेन्द्र मोदी में देख रही है।

आज की परिस्थिति में भारत में यदि कोई दिग्भ्रमित है तो वह है इस देष का बौद्धिक जगत और इसे खाद पानी दे रहा है पुंजीवादी व्यवस्था के नासुर में उपजा मीडिया घराना जहां मार्क्स मुल्ला मैकाले और मायनो के मानसपुत्र रूपी कुछ स्वयंभू पत्रकारों की जमात अपनी डफली अपना राग से लोकतंत्र को कलंकित कर रहें्र है।अर्द्धसत्यों के साथ मोदी के प्रयोग को मानने बाले कलमघिस्सुओं के लिये वर्ष 2014 आत्ममंथन के लिए होगा। भारत के उज्ज्जवल भविष्य की नींब जो वर्ष 1925 में इस देष के महान राष्ट्रसाधक डॉ.केषव वलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रूप में रोपित किया था आज उसके स्वयंसेवक उस सपने को पूर्ण करने हेतु कटिबद्ध है जिसका प्रकटीकरण जनमानस में लाख अफवाहों के बाद भी संघ के प्रति लोगों का असीम श्रद्धा है।

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sanjay-kumar-azad12**संजय कुमार आजाद
पता : शीतल अपार्टमेंट,
निवारणपुर रांची 834002

मो- 09431162589
(*लेखक स्वतंत्र लेखक व पत्रकार हैं)
*लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं ।

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