लोहड़ी पर्व वह उसका महत्व

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मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व उत्तर भारत विशेषतः पंजाब में लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है। लोहड़ी पर्व आग और सूर्य को समर्पित होता है। इस समय सूर्य मकर राशि से उत्तर की ओर जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य उत्तरायण में जा रहा होता है। इससे ठंड का प्रभाव कम होता है और मौसम में हल्की गर्मी आने लगती है। समस्त उत्तर भारत में लोहड़ी का त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है किन्तु पंजाब और हरियाणा में तो लोहड़ी का त्यौहार मनाए जाने की बात ही निराली है। आपसी प्रेम और भाईचारे की मिसाल कायम करने वाला एक अनूठा पर्व है लोहड़ी, जिसे सभी एक साथ मिल-जुलकर नाच-गाकर खुशियां मनाकर मनाते हैं।

लोहड़ी में आग का संबंध जीवन और स्वास्थ्य से है। शास्त्रों के अनुसार, आग पानी की तरह रूपांतरण और नए जीवन का प्रतीक है। आग को धरती पर सूर्य का प्रतिनिधि भी कहा गया है, इसलिए लोहड़ी पर दोनों का महत्व बढ़ जाता है। इनकी वजह से ही खेतों में अन्न का उत्पादन होता है। धरती पर पशु, पक्षी, पेड़, पौधे और मानव का जीवन भी इनकी बदौलत ही संभव है। ये प्रकाश और ऊष्मा के भी जन्मदाता हैं। ये ऊर्जा और आध्यात्मिक शक्ति के प्रतीक भी हैं। यही वजह है कि लोहड़ी पर अग्नि को आत्मिक शुद्घिकरण के लिए जलाया जाता है। अग्नि का आध्यात्मिक महत्व भी होता है। इसमें प्रसाद चढ़ाना इसी बात को इंगित करता है।

पंजाबी लोगों में जिस घर में नयी शादी हुआ हो, शादी की पहली वर्षगांठ हो अथवा संतान का जन्म हुआ हो, वहां तो लोहड़ी का विशेष महत्व होता है।लोहड़ी के दिन लकड़ियों व उपलों की जो अलाव जलाया जाता है, उसकी राख अगले दिन मोहल्ले के सभी लोग सूर्योदय से पूर्व ही अपने-अपने घर ले जाते हैं, क्योंकि इस राख को ‘ईश्वर का उपहार’ माना जाता है।मकर संक्रांति की पूर्व संध्या को  पंजाब, हरियाणा व पड़ोसी राज्यों में बड़ी धूम-धाम से ‘लोहड़ी ‘  का त्यौहार मनाया जाता है।  पंजाबियों  के लिए लोहड़ी खास महत्व रखती है।  लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही  छोटे बच्चे  लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी हेतु लकड़ियां, मेवे, रेवड़ियां, मूंगफली  इकट्ठा करने लग जाते हैं।

किसी समय में सुंदरी एवं मुंदरी नाम की दो अनाथ लड़कियां थीं जिनको उनका चाचा विधिवत शादी न करके एक राजा को भेंट कर देना चाहता था। उसी समय में दुल्ला भट्टी नाम का एक नामी डाकू हुआ है। उसने दोनों लड़कियों,  ‘सुंदरी एवं मुंदरी’ को जालिमों से छुड़ा कर उन की शादियां कीं। इस मुसीबत की घडी में दुल्ला भट्टी ने लड़कियों की मदद की और लडके वालों को मना कर एक जंगल में आग जला कर सुंदरी और मुंदरी का विवाह करवाया। दुल्ले ने खुद ही उन दोनों का कन्यादान किया। कहते हैं दुल्ले ने शगुन के रूप में उनको शक्कर दी थी। जल्दी-जल्दी में शादी की धूमधाम का इंतजाम भी न हो सका सो दुल्ले ने उन लड़कियों की झोली में एक सेर शक्कर डालकर ही उनको विदा कर दिया। भावार्थ यह है कि डाकू हो कर भी  दुल्ला भट्टी ने निर्धन लड़कियों के लिए की भूमिका निभाई। यह भी कहा जाता है कि संत कबीर की पत्नी लोई की याद में यह पर्व मनाया जाता है. इसीलिए इसे लोई भी कहा जाता है।

फसल पकने पर किसान की खुशी का ठिकाना नहीं रहता और इसी खुशी को जाहिर करता है लोहड़ी पर्व, जो जीवन के प्रति उल्लास को दर्शाते हुए सामाजिक जुड़ाव को मजबूत भी करता है। लोहड़ी को पंजाब और हरियाणा में विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है क्योंकि दोनो ही राज्य कृषि प्रधान हैं और फसल पकने की खुशी भी यहां पूरे जोश के साथ मनाई जाती है। पंजाब के लुधियाना में रहने वाली दर्शन कौर ने कहा ‘लोहड़ी का किसी एक जाति या वर्ग से संबंध नहीं है। हमारे पंजाब में तो हर वर्ग के लोग शाम को एकत्र होते हैं और लोहड़ी मनाते हैं। तब सामाजिक स्तर भी नहीं देखा जाता। यह पर्व फसल पकने और अच्छी खेती का प्रतीक है।’वह कहती हैं ‘जब लोहड़ी जलाई जाती है तो उसकी पूजा गेहूं की नयी फसल की बालियों से की जाती है। हम इस पर्व को अच्छी खेती और फसल पकने का प्रतीक मानते हैं। लोहड़ी आई यानी फसल पकने लगी और फिर खेतों की रखवाली शुरू हो जाती है। बैसाखी तक पकी फसल काटने का समय आ जाता है।’

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सुरेश पाठकसुरेश पाठक (सुभाष)

विशेष संवाददाता – अंतराष्ट्रीय समाचार एवम विचार निगम

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