लोकसेवकों की अजब तमीज़-गज़ब तेवर

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– निर्मल रानी –      

गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पाएं। बलिहारी गुरू आपने गोबिंद दिए मिलाए। महाकवि संत कबीरदास द्वारा रचित उक्त दोहा हमारे देश में काफी आदर व सम्मान के साथ पढ़ा व स्वीकार किया जाता है। इस दोहे में गुरु की तुलना गोबिंद अर्थात् भगवान के साथ करते हुए कबीरदास जी फरमाते हैं कि यदि गुरु एवं गोबिंद अर्थात् भगवान एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए। गुरु को अथवा गोविंद को? ऐसी स्थिति में गुरु के चरणों में शीश झुकाना ही उत्तम है जिनकी कृपा से गोबिंद अर्थात् भगवान के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। भारतीय प्राचीन इतिहास से लेकर वर्तमान दौर तक देश में शिक्षकों व अध्यापकों को पूरी श्रद्धा-आदर व सम्मान के साथ देखा जाता है। भारतवर्ष में महान शिक्षाविद् एवं राष्ट्रपति रहे डा० सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन 5 सितंबर को पूरा देश शिक्षक दिवस के रूप में मनाता है। डा० ज़ाकिर हुसैन जैसे महान शिक्षाविद् तथा डा० मनमोहन जैसे विश्व विख्यात अर्थशास्त्र अध्यापक देश के सर्वोच्च पदों पर रहे हैं। भारत रत्न व मिसाईल मैन डा० एपीजे अब्दुल कलाम से जब उनके नाम से पहले लगाए जाने वाले संबोधन के विषय में पूछा गया तो उन्होंने भी यही कहा कि मुझे सबसे प्रिय संबोधन ‘प्रोफेसर’ शब्द लगता है। डा० कलाम  तो भारतीय शिक्षकों को अत्यधिक जि़म्मेदारियां सौंपने,उनकी आए में भारी वृद्धि करने के भी पक्षधर थे। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि समाज व राष्ट्र की तरक्की की बुनियाद रखने वाला  तथा नई पीढ़ी को सही दिशा दिखाने का काम यदि कोई समाज करता है तो वह है देश का शिक्षक समाज।

परंतु हमारे देश में कभी-कभी कुछ ऐसी घटनाएं सामने आती हैं जिन्हें देख व सुनकर ऐसा महसूस होता है कि लोकसेवक या जनप्रतिनिधि संभवत: स्वयं को शिक्षकों से भी अधिक महत्वपूर्ण व सम्मानित समझने लगे हैं। कभी देश के किसी राज्य से शिक्षकों द्वारा अपनी मांगों के समर्थन में किए जाने वाले धरना व प्रदर्शन पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज किए जाने के समाचार सुनाई देते हैं तो कभी किसी मंत्री या सांसद द्वारा महिला शिक्षकों को सार्वजनिक रूप से अपमानित किए जाने की खबरें सुनाई देती है। ऐसी खबरें आने के बाद शिक्षकों को अपमानित करने वाले जनप्रतिनिधियों के विषय पर यह सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि उनके परिजनों ने या उनके अपने समाज ने अथवा उनके संस्कारों ने उन्हें शिक्षकों के साथ किस प्रकार का बर्ताव करने की सीख दी है? पिछले दिनों इस प्रकार की लगातार दो घटनाएं ऐसी घटीं जिनसे जनप्रतिनिधियों की तमीज़ और उनके तेवर उजागर हुए। एक घटना दिल्ली के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष एवं सांसद मनोज तिवारी से जुड़ी थी तथा दूसरी घटना उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से जुड़ी हुई थी। इन दोनों ही राजनेताओं ने सार्वजनिक रूप से महिला शिक्षकों को ऐसा अपमानित किया जिसकी उम्मीद नहीं की जा सकती थी।

पहली घटना 10 मार्च को उस समय घटी जब दिल्ली के यमुना विहार में पूर्वी नगर निगम के एक स्कूल में दो करोड़ रुपये की लागत से बने सीसीटीवी सिस्टम का उद्घाटन भाजपा सांसद मनोज तिवारी द्वारा किया जाना था। गौरतलब है कि मनोज तिवारी पूर्वी उत्तर प्रदेश से संबंध रखते हैं तथा भोजपुरी िफल्मों के एक अच्छे गायक व अभिनेता के तौर पर जाने जाते हैं। इसी योग्यता व लोकप्रियता के आधार पर भाजपा ने उन्हें दिल्ली से चुनाव मैदान में उतारा और वे विजयी हुए। यमुना विहार स्थित दिल्ली नगर निगम स्कूल में सांसद मनोज तिवारी को मुख्य अतिथि आमंत्रित किया गया था जबकि मंच संचालन स्कूल की शिक्षिका नीतू चौधरी कर रही थी। शिक्षिका ने सांसद महोदय से उनकी योग्यता व विशेषता के आधार पर यह कहने की जुर्रअत क्या कर दी कि-सर बच्चों को कुछ सुना दीजिए। बस इतना सुनते ही सांसद महोदय आपे से बाहर हो गए और लगे शिक्षिका को तमीज़ व तहज़ीब का पाठ पढ़ाने। उन्होंने शिक्षिका से कहा-‘आपको यह कहना चाहिए,आप कोई नौटंकी कर रहे हो, यह सरकारी कार्यक्रम है। आप सांसद को गाना गाने के लिए कहोगे यह तमीज़ है आपकी? चलिए आप मंच से नीचे जाईए। इनके िखलाफ कार्रवाई करो। इसको बिल्कुल नहीं क्षमा किया जाना चाहिए। जब इनको यह पता नहीं कि सांसद से कैसे बात करते हैं तो यह छात्रों से कैसे बात करेगी’। इतना कहकर शिक्षिका को डांटते हुए सांसद ने कहा कि- ‘चलो जाकर नीचे बैठो’। और मनोज तिवारी के मुंह से ऐसी बातें सुनने के बाद अपने ही स्कूल के बच्चों के सामने अध्यापिका झेंप गई व शर्मसार होकर मंच से नीचे उतर गई।

बात यहीं खत्म नहीं हुई। इसके बाद डरी-सहमी शिक्षिका भाजपा कार्यालय जा पहुंची और सांसद महोदय से मिलकर माफी मांग मामले को रफा-दफा करने की कोशिश में लग गई। जब भाजपा कार्यालय में मीडिया ने इस घटना के बारे में मनोज तिवारी से यह पूछा कि आप एक कलाकार हैं,लोग आपकी कला को पसंद करते हैं। उसी भावना से अगर किसी ने आपसे गाने के लिए कह भी दिया तो क्या हो गया? ‘लोकसेवक’ तिवारी जी ने इस सवाल का ऐसा जवाब दिया जो तिवारी की तमीज़ व उनके तेवर के दर्शन कराने वाला था। उन्होंने कहा कि- ‘क्या उस महिला ने आत्महत्या कर लिया क्या? क्या उस महिला ने एफआईआर कर दिया क्या? क्या वह महिला कहीं पुलिस में गई है क्या? जब महिला को कोई दिक्कत नहीं तो आपको क्यों दिक्क़त है’? यह एक सांसद के उत्तर थे। मज़े की बात तो यह है कि इस घटना के कुछ ही दिन बाद मनोज तिवारी वाराणसी में शारुहख खान व अनुष्का शर्मा के सामने घुटने के बल बैठकर यह गाना गाते दिखाई दिए-‘कमरिया करे लपालप लालीपॉप लागे लू। क्या मनोज तिवारी उस शिक्षिका को गाना गाने की फरमाईश पर डांट लगाने के बाद जब अनुष्का के सामने घुटने टेक कर गाने गा रहे थे उस समय सांसद की गरिमा कहां चली गई थी? आिखर मनोज तिवारी के अंदर एक गायक व अभिनेता के अतिरिक्त और विशेषता ही क्या थी जिसके आधार पर उन्हें लोकसभा पहुंचने का मौका मिला?

इसी प्रकार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जनता दरबार में सुनवाई के दौरान एक बुज़ुर्ग अध्यापिका उत्तरा पंत बहुगुणा की न केवल बेईज़्ज़ती की बल्कि उसे निलंबित करने व जेल भेजने तक के मौखिक आदेश भरे दरबार में दे डाले। उसे महिला का कुसूर केवल इतना था कि वह गत् 25 वर्षों से दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में ड्यूटी अंजाम दे रही है। उसके पति का देहांत हो चुका है और वह अपने बच्चों के साथ शहर में रहना चाह रही है। जब मुख्यमंत्री से शिक्षिका ने अपनी फरियाद की तो मुख्यमंत्री ने पूछा कि नौकरी पाते समय क्या लिख कर दिया था? इस सवाल का जवाब शिक्षिका ने तल्ख़ीभरा दिया और कहा कि-‘सर सारी उम्र वनवास भोगूं यह भी तो नहीं लिखा था’। बस इतना सुनते ही मुख्यमंत्री महोदय का पारा आसमान छूने लगा। और उन्होंने एक ही सांस में उसे वहां से हटाने,निलंबित करने और हिरासत में लेने जैसे मौखिक आदेश दे डाले। यहां भी यह गौरतलब है कि एक ओर तो 57 वर्षीय शिक्षिका उत्तरापंत दुर्गम पहाड़ी इलाकों में 25 वर्षों से सेवा करने के लिए मजबूर है तो दूसरी ओर इन्हीं मुख्यमंत्री रावत की धर्मपत्नी 1996 से लगातार अब तक देहरादून में शिक्षिका के पद पर अपनी सेवाएं दे रही हैं तथा अपने पति के साथ राजधानी में ही अपना समय गुज़ार रही हैं। गोया वे तो शहर में सेवा करने का ठेका ले चुकी हैं जबकि राजनैतिक संबंध न रखने वाले अध्यापक दुर्गम इलाकों में रहने के लिए मजबूर हैं। शिक्षकों को  ऐसी ‘तमीज़’ और ऐसे तेवर दिखाने वाले जनप्रतिनिधियों के रहते हम गुरु तथा गोविंद में समानता के सिद्धांत को किन नज़रों से देख पातें हैं?

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परिचय –:

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क -:
Nirmal Rani  :Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar, Ambala City(Haryana)  Pin. 4003
E-mail : nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.



1 COMMENT

  1. दंभी लोकसेवकों को शीशा दिखाने वाला लेख है।

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