लाल नीली बत्ती का प्रकोप, हूटरों का आतंक

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Imran Niazi{इमरान नियाज़ी**}
वैसे तो लगभग पूरे प्रदेश में ही लाल नीली बत्तियों का प्रकोप है और हूटरों के आतंक से सड़कों पर चलना दूभर हो गया है हद तो यहां तक पहुंच गयी कि अब गलियों में भी हूटरों को आतंक मचा हà ��आ है। सूबे में जिधर देखों लाल नीली बत्ती की कारें दिखाई पड़ रही है यह जरूरी नहीं कि लाल या नीली बत्ती लगाकर चलने का अधिकार है या नहीं, बस लगा ली जाती है। आपको याद होगा कि बरेली स्थित एक निजि शिक्षण संस्थान के मालिक कुलाधिपति उमेश गौतम ने अपनी कार पर अनाधिकृत लालबत्ती लगा रखी थी चुनावों के दौरान चुनाव आयोग की सक्ष्ती के चलते इनकी लालबत्ती उतार दी गयी थी। माल वाली हस्ती थी इसलिए न त ो कार को सीज किया गया ओर न ही कार मालिक व चालक के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की गयी। अभी गुजरे हफ्ते ही बरेली में ही किला ओवर ब्रिज से नीलीबत्ती लगी इनोवा कार गिरी कार में उस समय कार में सिर्फ पांच लोग सवार थे जिनमें एक व्यक्ति खुद को पत्रकार बता रहा था उसकी पत्नी (ग्रहणी) उसके दो पुत्र (विधार्थी) व ड्राइवर था। पत्रकार ओर नीलीबत्ती के बिन्दू पर उसने (घायल पत्रकार) ने बताया कि उसकी माता कà ��शोर न्याय बोर्ड की सदस्य है नीलीबत्ती उनको मिली हुई है। यानी नीलीबत्ती मिली है मां को और उसमें तफरी कर रहा था पत्रकार पुत्र। इसी साल अखिलेश यादव सरकार ने पुलिस को लालनीली बत्ती लगाकर मोटर साईकिलें थमा दी गयी हैं ये मोटर साईकिलें देने का उद्देश्य था कि आपात समय में तगं गलियों में भी पुलिस जल्द से जल्द पहुंच जाये। लेकिन ये मोटर साईकिल दिन में दिखाई नहीं पड़ती हां रात में कम से कम आधी रात तक हाईवे पर हूअरों की आवाजों के साथ ट्रकों के पीछे दौड़ती कदम कदम पर देखी जा सकती हैं। रही इनके हूटर बजने की बात तो इनमें हूटरों को बन्द करने के बटन ही नहीं होते, बस स्टार्ट होते ही हूटर के जलवे दिखाई पड़ते हैं। हालांकि कानूनन हूटर का इस्तेमाल आपात समय में भीड़ भाड़ वाले रास्तों पर किया जाना चाहिये कि राहगीर जल्द ही रास्ता छोड़ दें और ये वाहन जल्दी ही अपनी मंजिल तक पहुंच ज�¤ �ये। मगर यहां तो चाहे समय आपात स्थिति का हो या खाना खाने घर जाना हो हूटर बजता ही रहता है। सरकारी मोटर साईकिलों को छोडिये यहां तो वर्दी वालों की निजि मोटर साईकिलें भी हूटरों से लैस हैं। राजमार्गो पर ट्रकों से उगाही के लिए दौड़ना हो या फिर सब्जी लेने मण्डी जाना हो वर्दी वालों की फटफटियें बिना हूटर के चल ही नही सकती।

गुजरी शाम 7-50 मिनट की ही बात है पुल िस का एक बज्र वाहन यूपी 25 एजी 0435 किला चैकी से थाना किला जाने के लिए बाजार में घुसा बाजार में घुसने से पहले ही इस वाहन का बुलन्द आवाज हूटर कान फाड़ने लगा। कोई आपात स्थिति नहीं थी पूरा शहर शान्त था लेकिन वर्दी वालों को वाहन गुजरे ओर गुलाम जनता के दिल न दहलें ऐसा हो ही नहीं सकता। यह वाहन किला थानें में गया अनावश्यक हूटर बजता रहा।लोग चैंकने लगे, दुकानदार सटपटा गये राहगीरों के कदम तेज हो गये, दुकानदार शटर गिराने भागने के लिए दुकानों से बाहर आ गये। एक दुकानदार ने हमसे पूछा कि कहीं कुछ हो गया? नहीं कुछ नहीं हुआ हमने उसे बताया, लेकिन उसके चेहरे की घबराहट कम नहीं हुई। वाहन किला थाना प्रागण में प्रवेश कर गया हूटर बन्द हो गया तब लोगों ने चैन की सांस ली।

यहां हम चैलेंज के साथ कह सकते हैं कि 50 फीसद लालबत्तियां और 70 फीसद नीलीबत्तियां पूरी तर ह गैर कानूनी इस्तेमाल की जा रही है रही हूटर की बात तो 95 प्रतिशत हूटर गैर कानूनी हैं और जो कानून के तहत लगाये गये हैं उनका इस्तेमाल 100 फीसद अवैध किया जा रहा है। रोके कौन ? किसी खोना है नोकरी या जान।

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Imran Niazi** लेखक  इमरान नियाज़ी वरिष्ठ पत्रकार एंव अन्याय विवेचक के सम्पादक हैं।
*लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं।

1 COMMENT

  1. बस ऐसे ही लिखते रहो इमरान भाई एक दिन जरूर रंग लायेगा ये लिखना, कम से कम हस्त्र के रोज हम ये तो कह सकेंगे कि हमने तो कोशिश की थी कौम को जगाने की

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