लव जिहाद : इस प्यार को क्या नाम दूँ ?

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{संजय कुमार आजाद } देश के आम समाज को झकझोर कर रख देने वाली घटना पिछले माह झारखंड की राजधानी रांची में घटित हुआ .इंटरनेशनल शूटर तारा शाहदेव के साथ जो घटित हुआ वह किसी आतंक से कम नहीं था .एक उभरते खिलाड़ी के साथ समाज के न्याय और प्रशाशन से जुड़े लोगों के गिरोह ने जिस तरह से तारा शाहदेव के साथ छल-प्रपंच का सहारा लेकर हिन्दू के रूप में हुई तारा और रंजित की विवाह को सारा और रकीबुल के रूप में निकाह करवाने का घृणित प्रयास किया वह अमानवीय और इस्लाम का बीभत्स रूप है.इस घटना के बाद से तो अनेको कारनामे बाहर आये जिसमे मुस्लिम लड़का हिन्दू नाम रख अपना मुस्लिम पहचान छिपा हिन्दू लडकियो को प्रेम के नाम पर वैसा धोखा दिया है जो राष्ट्रद्रोह से कम नहीं है .आम लोगों की भाषा में इसे लव जिहाद कहा जा रहा है.वैश्विक इस्लाम के घृणित रूप का ब्रिटेन जैसे देशों में चल रहा ‘रोमियो जिहाद’ का हिन्दुस्तानी संस्करण ‘लव जिहाद’ है .तारा शाहदेव प्रकरण के बाद जब राष्ट्रीय मीडिया में यह मुद्दा उछला तो इस देश के फिरकापरस्तों की ज़मात और पेट्रो डालर के गुलामों ने मीडिया बहसों में ऐसा स्यापा किया मानो मुसलामानों को और इस्लाम को बदनाम किया जा रहा हो ?

इस गंभीर मुद्दे पर साल २००६ में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सरकार को ये निर्देश दिया था की लव जिहाद के बारे में गुप्तचर एजेंसियों से जांच करवाए किन्तु सात साल बाद भी उत्तर प्रदेश की फिरकापरस्तों के रहनुमा सरकार ने इस गंभीर सामाजिक मुद्देपर जांच करवाने से बचती रही?साल २००९ में केरल में इसाई संगठनो ने इस बात का आरोप लगाया की मुस्लिम लड़के एक सुनियोजित तरीके से इसाई लड़कियों को धर्म परिवर्तन करवाने के लिए उन्हें अपने प्रेम जाल में फंसाते हैं.केरल के बाद इस पर कर्नाटक में भी बबाल मचा किन्तु लव जिहाद के इस इस्लामी प्रवृति पर अंकुश लगाने के बजाय देश के फिरकापरस्तों की आवाज  इसे लड़के लड़की का परस्पर प्रेम के रूप में देखने की बकालत की ? लव् जिहाद के सन्दर्भ में आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना अब्दुल रहीम कुरैशी का मानना है की-“यह सिर्फ मुसलमानों को बदनाम करने के लिए आरएसएस की तरफ से झूठा अभियान चलाया जा रहा है.” जमाते इस्लामी के प्रमुख मौलाना जलालुद्दीन ने आरोप लगाते हुए कहा की-“बीजेपी और भगवा परिवार के लोग इस तरह से झूठा प्रचार करके देश की जनता को मुसलमानों के खिलाफ भड़का रहें हैं.

आजकल इन ज़मातों ने एक अच्छा प्रश्न उठाया है –“लड़का और लड़की के बीच पैदा होने बाले प्रेम को क्यों ‘लव जिहाद’ का नाम दिया जा रहा है ? एकदम दुरुस्त ख्याल है. प्रेम को परिभाषित तो किया नहीं जा सकता है क्योंकि प्रेम एक भावनात्मक लगाव है जो देश जाती धर्म से परे है.प्रेम के बारे में कहा गया है-– प्रेम ना बाड़ी उपजे प्रेम ना हाट बिकाय ,राजा प्रजा जेहिं ………./ प्रेम अगर सात्विक हो, लड़के लडकी की रजामंदी से हो तो काबिले तारीफ़ और हमसब इस प्यार का खैरमकदम करते हैं. हम इसे आगे बढकर गले लगाते है किन्तु जिस प्रेम की बात हो रही वह प्रेम नही विशुद्ध अपराध है. यह ऐसा मतान्तरण है जो इस देश की भूगोल को बदलने का माद्द्दा रखता है अफगानिस्तान ,पकिस्तान या बांगलादेश इसी मतान्तरण के कोख का नाजायज संतान है.

इस्लाम में गैर इस्लामी से शादी विवाह हराम है फिर ऐसे हरामिओं के लिए आजतक कोई तंजीम या ज़मात ने कोई कारवाई की है तो उत्तर मिलेगा नही ? आखिर क्यों? इस्लाम में ऐसे घृणित कारगुजारिओं से मिला धन “माल ए गनीमत” कहा जाता है और इस धन का उपयोग इस्लाम के प्रसार के लिए जायज है चुकी माल ए गनीमत इस्लाम में जिहाद के द्वारा अर्जित की जाति है और यह धन लड़की के रूप में इस्लाम को मिलता है जो जायज है इसलिए प्रेम के इस पाशविक रूप जिहाद का ही एक अंग है इसलिए इसे लव जिहाद कहा गया तो शरियत के अनुरूप ही है फिर लव जिहाद शव्द पर लोगो को मिर्ची क्यों लग रही है ?

अपने मुस्लिम पहचान को छिपा कर विवाह करने बाले यह गिरोह मंदिरों में शादी करता है या लड़की के भावनात्मक लगाव से ऐसा विश्वास पैदा कर देता है ताकि लड़की को शक ना हो .जब लड़किया अपना सर्वस्व इन नर पिशाचों को समर्पित कर देती है तब इनके क्रूर चाल शुरू होते है .शादी से पूर्व लड़किओं को ज़बरदस्ती इस्लाम के दलदल में धकेला जाता है और फिर उसे निकाहनामे पर दस्तखत करने को मजबूर किया जाता है.क्या यही प्यार है ?उस लड़की की मासूमियत को किस तरह से इस्लाम में कुचला जाता है इसका ज्वलंत उदाहरण रांची .मेरठ,हजारीबाग,कानपुर ,भागलपुर, मुज़फ्फरनगर ……. ना जाने कितनी हिन्दू युवतिया इस्लाम के इस दलदल में धकेले गये .

इस तरह के कुकृत्य कितना संगठित होता है इसका एक उदाहरण- रामगढ़ जिले में एक मुस्लिम युबक ने एक हिन्दू लड़की को इसी तरह से फांसकर शादी किया दोनों की आर्थिक स्थिति जर्जर थी मामला पुलिस में गया लड़का गिरफ्तार हुआ लड़की तीन महीने के बाद मुबई से बरामद हुई इस दरम्यान लड़की का सारा खर्च और लड़के की सारी कानूनी कारवाई में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा गया.ये खर्च लडके के माता पिता कर नही रहे थे फिर इतनी बड़ी राशि और मुंबई में लड़की का सारा खर्च कौन कर रहा था? क्या इसका जवाव वो तंजीम या ज़मात दे सकता है जो इस तरह के प्रवृति को लव जिहाद मानने से इनकार कर रहा है? अभी हाल ही में रांची में कोर्ट ने इसी तरह के मामले में एक मुस्लिम युबक को दोषी पाया और उसे दस साल की सज़ा सुनाई जब लड़के लडकी प्रेम ही करते थे तो फिर सज़ा क्यों हुई. क्या यही प्यार है ?

ऐसा प्यार देश और समाज के लिए घातक है.जो इस नापाक कृत्य पर पर्दा डालने का काम कर रहे है वह देश की संप्रभुता से खिलवाड़ कर रहें है. इस देश की फिरकापरस्तों की ज़मात इस घृणित मुद्दे को उछलने के लिए आरएसएस और भगवा परिवार को दोषी मान रहें है .तरस आती है ऐसे घृणित लोगो पर जो लव जिहाद के अनेकों प्रमाण और समाज में घटित हो रहे इस विकृति को स्वीकार करने के बजाय देश में साम्प्रदायिक माहौल को खराव करने में जुटे हैं.

क्या इस देश के बहुसंख्यकों के मान सम्मान और स्वाभिमान को लोग अपने पैरों से रौंदता रहे उनके बहु बेटीओ की इज्ज़त तार तार होता रहे और वे चुपचाप हाथ पर हाथ धरे बैठा रहें ? अगर प्यार के नाम पर इस तरह का धंधा चलेगा तो समाज में शान्ति रहे इसकी कल्पना करना अब कोरी बकवास है .वोटो के सौदागरों ने भारत में मुस्लिमों के हर मुद्दे को साम्प्रदाईक चश्मे से देखा है आरोपिओं पर कारवाई करने के बदले प्रशासन भी मामले को रफा दफा कर बहुसंख्यकों को हमेशा दवाने का प्रयास किया फलत वही दवी चिंगारी दंगे का बीभत्स रूप अख्तियार करती आई है और इस दंगे की पटकथा इस देश के फिरकापरस्तों की ज़मात वोटों के सौदागरों के सह पर अंजाम देता है.अब आप ही सोचिये इस तरह के संगठित अपराध को क्या कहूँ और इस प्यार को लव जिहाद के बजाय क्या नाम दूँ? प्यार के पवित्र रिश्ते को बदनाम करने में लगे तंजीमो पर सख्ती से कारवाई हो और मुस्लिम समाज इस तरह के घटनाओं पर आरोपिओ को इस्लाम में मतान्तरण करने के बजाय उसे कठोर दंड दे ताकि समाज में सद्भाव बने और प्यार की कश्ती में विनाश के बजाय विकास हो.

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DSCN1531**संजय कुमार आजाद

पता : शीतल अपार्टमेंट,निवारणपुर रांची 834002

मो- 09431162589(*लेखक स्वतंत्र लेखक व पत्रकार हैं)

*लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं ।

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