रज़ा लाइब्रेरी रामपुर की पहचान है तथा उत्तर प्रदेश की शान है : राज्यपाल राम नाईक

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governor of uttar pradeshआई एन वी सी,
लखनऊ,
आज रामपुर रज़ा लाइब्रेरी के सभागार हॉल, ख़याबाने रज़ा में तीन दिवसीय सेमिनार विषय “मकतूबात एवं तज़किरे (13वीं से 19वीं शताब्दी) भारतीय इतिहास एवं संस्कृति के स्त्रोत“ का उद्घाटन माननीय श्री राम नाईक, राज्यपाल, उ0प्र0 एवं रामपुर रज़ा लाइब्रेरी बोर्ड के अध्यक्ष द्वारा दीप प्रज्जवलित करके किया गया। कार्यक्रम का आधार व्याख्यान प्रो0 एम0ए0 अलवी, अरबी विभाग, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़ द्वारा प्रस्तुत किया गया। राज्यपाल ने रामपुर रज़ा लाइब्रेरी द्वारा प्रकाशित पिछले वर्ष की अचीवमेंट रिपोर्ट का विमोचन किया। उन्होंने कहा कि यह खुशी की बात है कि रिपोर्ट के माध्यम से सभी को पता लगेगा कि रज़ा लाइब्र्रेरी ने पिछले वर्ष क्या क्या उपलब्धियाँ प्राप्त की और भविष्य में रज़ा लाइब्रेरी द्वारा शोध के क्षेत्र में क्या क्या किया जायेगा।

राज्यपाल ने कहा कि 13वीं से 19वीं शताब्दी तक क्या क्या हुआ, इस अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार से शोधकर्ताओं एवं विद्यार्थियों को महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त होगीं। देश के इतिहास का आंकलन सही तरीके से इतिहाकारों को करना चाहिये। 1857 को गदर केे रुप देखना गलत है। वास्तव में 1857 में हिन्दुस्तान की आजादी की लड़ाई की शुरूआत हुई थी। उन्होंने कहा कि रामपुर विद्वानों का शहर है तथा रामपुर रज़ा लाइब्रेरी जनपद की पहचान व उत्तर प्रदेश की शान है। रिर्जव बैंक देश के ख़जाने का भण्डार है, तो रामपुर रज़ा लाइब्रेरी के पास ज्ञान का भण्डार है। उन्होंने यह भी कहा कि जब दुनिया के लोगों को कपड़े कैसे पहनना हैं इसका ज्ञान नही था, उस समय हमारे यहाँ के विद्वानों ने शब्दों को भाषा में पिरोकर ताड़पत्र पर लिखना आरम्भ कर दिया था। खुशी की बात यह है कि रामपुर रज़ा लाइब्रेरी में 204 ताड़पत्र की पाण्डुलिपियों का ख़जाना संग्रहित हैं।

इस अवसर पर एम0ए0 अलवी, अरबी विभाग, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़ ने अपना आधार व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए कहा कि अख़वारूल अख़्यार में 255 सूफियों और उलेमाओं का तजक़रा है जिसके अनुसार हिन्दुस्तानी तारीख़ व सक़ाफत के बहुत से पहलू समाने आते हैं। उन्होंने बताया कि गुलबदन बेगम का हुमायूँनामा, जौहर आफताब्ची का तज़किरा तुल वाक्यात, ताजुल मासिर और अबुल फज़ल का अकबरनामा, आइने अकबरी, अब्दुल कादिर बदायूँनी का मुन्ताख़ब ए ताबारिख़ अकबर के समय के मूल्यवान तज़करें हैं। गुजरात, महाराष्ट्र, बंगाल, दक्किन अवध के उलेमा, सूफीयों व उमरा के तज़करे अरबी और फारसी भाषा में लिखे गये। इन तज़किरें से उस समय की तारीख़ व संस्कृति को समझने में मदद मिलती है।

इस अवसर पर लाइब्रेरी के निदेशक प्रो0 एस0एम0 अज़ीज़उद्दीन हुसैन ने कहा कि आज मलफूजात व मकतूबात के तज़किरे का जो ख़जाना मौजूद है वह लोगों को जोड़ने का काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि आजादी के 65 साल गुजरने के बाद भी जामिया मिल्लिया इस्लामिया, जम्मू विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय आदि में अभी भी मकतूबात एवं तज़किरात का अध्ययन नही कराया जाता है। उन्होंने बताया कि रज़ा लाइब्रेरी ने पिछले साल इन विषयों पर एक सेमिनार का आयोजन करवाया था।

उद्घाटन सत्र के बाद श्री नाईक ने रामपुर रज़ा लाइब्रेरी का भ्रमण किया। इस अवसर पर राज्यपाल ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के चित्र पर अपने श्रद्धासुमन अर्पित किये। इसके बाद राज्यपाल ने हज़रत अली की लिखी दुर्लभ कुरान शरीफ, वाल्मीकि रामायण, ताड़पत्र पर लिखित दुर्लभ पाण्डुलिपियाँ इत्यादि का अवलोकन किया। साथ ही रज़ा लाइब्रेरी के भव्य दरबार हॉल में महात्मा गांधी पर लगाई प्रदर्शनी को भी देखा। इस अवसर पर जिला प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों सहित भारी संख्या मंे विद्वतजन भी उपस्थित थे।

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