– निर्मल रानी –
भारतीय मीडिया का एक बड़ा वर्ग देश के लोगों को दिन-रात गुमराह करने में लगा रहता है। चाहे वह देश की अर्थव्यवस्था की बात हो,देश की रक्षा तथा उद्योग से जुड़े विषय हों,रोज़गार या मंहगाई संबंधी बातें हों या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय विदेश नीति से जुड़े मामले हों,हमारे देश का मीडिया प्राय: तिल का ताड़ बनाने में लगा रहता है। बुलेट ट्रेन हालांकि अभी भारत में आई भी नहीं है परंतु इस विषय पर भारतीय मीडिया में तरह-तरह के कसीदे पढ़े जा चुके हैं। दिल्ली व आगरा के मध्य एक सेमी हाईस्पीड ट्रेन का ट्रायल किया जाता है तो उसकी खबर भी मीडिया द्वारा बार-बार दी जाती है। परंतु मीडिया भारतीय बाज़ारों से लेकर भारतीय रेल में दशकों से बिकती आ रही ज़हरीली,मिलावटी तथा प्रदूषित खाद्य व पेय सामग्री को लेकर उतना मुस्तैद दिखाई नहीं देता। और यदि कभी-कभार किसी टी वी चैनल अथवा अखबार ने इस प्रकार की कोई खबर दिखा दी या प्रकाशित कर दी तो उसपर प्रशासन द्वारा सख्ती से पूरी कार्रवाई नहीं की जाती जिसका नतीजा यह है कि भारतीय उपभोक्ता बाज़ार से लेकर ट्रेने के डिब्बों व प्लेटफार्म तक पर घटिया,बदबूदार,सड़े-गले,प्रदूषित,प्रयोग करने की तिथि समाप्त वाले तथा बीमारी फैलाने की पूरी क्षमता रखने वाले खाद्य एवं पेय पदार्थ ग्रहण करने के लिए मजबूर हैं।
पिछले दिनों नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक(सीएजी)ने संसद के दोनों सदनों में रेल विभाग को आईना दिखाने वाली तीन रिपोर्टस प्रस्तुत की। सीएजी के अधिकारियों ने रेलवे के अधिकारियों के साथ देश के सभी रेल ज़ोन के 74 रेलवे स्टेशन व 80 विभिन्न रेलगाडिय़ों में यात्रा कर इन स्थानों के खाने-पीने की सेवाओं तथा भोजन की साफ़-सफाई,इसकी गुणवत्ता,मूल्य निर्धारिण,निर्धारित वज़न आदि का निरीक्षण किया व इसपर आधारित अपनी रिपोर्ट पेश की। इसके अतिरिक्त इस ऑडिट ग्रुप ने इन स्टेशन पर 1800 तथा रेलगाडिय़ों में 1975 यात्रियों का सर्वेक्षण भी किया। विभिन्न रेलगाडिय़ों के साथ चलने वाली पैंट्री कार, स्टेशन के बेस किचन,ट्रेन व स्टेशन की सफाई व्यवस्था जैसी अनेक बुनियादी व्यवस्थाओं का अध्ययन किया। सीएजी की यह रिपोर्ट इतनी भयावह है कि इसे पढक़र तो यह सोचा भी नहीं जा सकता कि भारतवर्ष 21वीं सदी की ओर बढऩे वाला कोई देश है और इसी देश में भविष्य में बुलेट ट्रेन चलाए जाने की भी सुगबुगाहट सुनाई दे रही है। संक्षेप में यह समझना चाहिए कि कैग ने स्वयं देखकर,परखकर,पूरे परीक्षण के बाद तथा यात्रियों से बातचीत कर ऐसी रिपोर्ट पेश की है कि इसे पढऩे के बाद संभवत: जागरूक रेल यात्री मजबूरी में ही रेल में सफर करना चाहेगा और यात्रा के दौरान भूखे रह लेना तो गवारा करेगा परंतु रेल में व स्टेशन पर बिकने वाला कोई भी सामान खरीदकर खाना-पीना पसंद नहीं करेगा।
देश में ‘अच्छे दिन’ आए हुए तीन साल से भी अधिक का समय बीत चुका है। परंतु अभी तक बाज़ारों में बिकने वाले ज़हरीले व मिलावटी खाद्य पदार्थों की बिक्री पर अंकुश नहीं लग सका। रेल मंत्री सुरेश प्रभु निश्चित रूप से एक ईमानदार व साफ-सुथरी छवि वाले एवं बेहतरीन प्रशासनिक क्षमता रखने वाले नेता समझे जाते हैं। परंतु रेलवे की हालत में भी बुनियादी सुधार होते दिखाई नहीं दे रहे। हां यदि कुछ परिवर्तन नज़र आ रहा है तो यह कि बिना किसी घोषणा के रेल के सामान्य डिब्बों पर केसरिया रंग से ‘दीन दयालु कोच’ ज़रूर लिखवाया जा रहा है। गेाया रेलवे में भी गुप्त एजेंडे की राजनीति को तो बढ़ाया जा रहा है परंतु बुनियादी सुविधाओं की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा। अन्यथा कैग की रिपोर्ट इस प्रकार से दर्पण न दिखाती। रिपोर्ट में अधिक मूल्य वसूली,किसी वस्तु के प्रयोग की तिथि समाप्त होने के बाद भी उसका बेचा जाना,रेल कैंटीन व पैंट्री कार में तथा डिब्बों में चूहे व काकरोच का पाया जाना, बाहर के वेंडर्स द्वारा गैरकानूनी ढंग से खाद्य सामग्री का बेचा जाना जैसी अनेक खामियों पर रिपेार्ट में रौशनी डाली गई है। परंतु सवाल यह है कि क्या कैग की यह रिपोर्ट आने के बावजूद तथा ‘प्रभु’ के संज्ञान में सारी हकीकत आने के बाद भी क्या अब रेल व्यवस्था में कुछ सुधार होने की संभावना है?
दरअसल इन बदतर हालात के लिए ऊपर से लेकर निचले स्तर तक के इस व्यवस्था से जुड़े सभी लोग जि़म्मेदार हैं। लालच,भ्रष्टाचार तथा कम पैसे खर्च कर अधिक से अधिक पैसे जल्द से जल्द कमाने की सोच ही इस प्रकार के हालात पैदा करती है। सैकड़ों बार इस बात का खुलासा हो चुका है यहां तक कि विभिन्न टीवी चैनल्स पर पूरी लाईव रिपोर्ट तक प्रसारित हो चुकी है कि किस प्रकार रेलवे स्टेशन पर पेंट,यूरिया तथा केमिकल्स आदि मिलाकर यानी बिना दूध,चीनी और पत्ती के स्वादिष्ट व खुशबूदार चाय तैयार की जाती है। और रेलवे अधिकारियों तथा वहां तैनात सुरक्षाकर्मियों की नाक के नीचे ऐसी ज़हरीली चाय तैयार कर प्लेटफार्म पर तथा रेल के डिब्बों में हॉकर द्वारा चाय-चाय चिल्लाकर बेची जाती है। पचास रुपये निर्धारित मूल्य का भोजन सौ और एक सौ बीस रुपये में रेल यात्रियों को दिया जाता है। रेल यात्रियों की सुरक्षा तो भगवान भरोसे रहती ही है। हालात तो ऐसे हैं कि यदि कोई मुसािफर अपने सामान सहित सुरक्षित घर पहुंच जाए तो उसे लुटेरों व चोर-उचक्कों का ही धन्यवाद कहना पड़ता है कि उसने इस बार यात्री को बख्श दिया। ऐसे में जब हम सुनते हैं कि भारत चीन को मुंहतोड़ जवाब देने जा रहा है और अहमदाबाद से मुंबई जैसे छोटे रेलमार्ग पर वह बुलेट ट्रेन चलाई जा रही है जिसकी ज़रूरत आमतौर पर लंबे रेल रूट पर ही होती है तो इन खबरों को सुनकर अजीब सा महसूस होता है।
देश की जनता तो इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि अच्छे दिन आने वाले हैं के नाम पर उसके बुरे दिनों का चैन भी छिन जाएगा। अब तो सोशल मीडिया पर बहुत से लोग यह कहते भी सुनाई दे रहे हैं कि हे प्रभु हमें हमारे बुरे दिन ही वापस कर दो। यदि रेल मंत्रालय को रेल यात्रियों के हितों की चिंता करनी है तो उसे ट्रेन के डिब्बों पर दीन दयाल कोच लिखवा कर सामान्य व अनारक्षित रेल यात्रियों को दीन दयालु की श्रेणी में डालने की कोशिश करने के बजाए उन्हें सामान्य नागरिक ही रहने दिया जाए। और यदि कुछ लिखवाना ही है तो प्रत्येक रेलगाड़ी के प्रत्येक डिब्बे में रेल यात्रियों को संबोधित करती हुई सुझाव,सुरक्षा,सफाईतथा खान-पान संबंधी कुछ ऐसी हिदायतें लिखवाई जाएं जिनसे यात्रियों का कल्याण हो सके। इन हिदायतों में ऐसे टोल फ्री फोन नंबर हरेने चाहिएं जिसपर शिकायत होते ही चलती टे्रन में ही यात्री की शिकायत का समाधान हो सके। और कैग ने अपनी रिपोर्ट में जिन सच्चाईयों को उजागर किया है यथाशीघ्र उन सभी कमियों को दूर किया जाए। निर्धारित मूल्य पर निर्धारित मात्रा में स्वच्छ एवं पवित्र भोजन उपलब्ध कराने के निर्देश दिए जाएं। जिस किसी वेंडर अथवा ठेकेदार में या संबद्ध रेल कर्मचारी अथवा अधिकारी की ओर से लापरवाही बरते जाने या भ्रष्टाचार की कोई शिकायत मिले उसके विरुद्ध सख्त कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। देश की जीवन रेखा समझी जाने वाली भारतीय रेल केवल भारतीय नागरिकों को ही इधर से उधर नहीं ले जाती बल्कि इसमें विदेशी पर्यट्क भी यात्रा करते रहते हैं। ऐसे में रेल में खान-पान व रेल के डिब्बों से लेकर स्टेशन के प्लेटफार्म तथा रेल लाईन आदि की सफाई का मामला केवल भारत के नागरिकों से ही नहीं जुड़ा बल्कि यह एक ऐसा विषय है जिससे देश की छवि भी प्रभावित होती है।
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परिचय –
निर्मल रानी
लेखिका व् सामाजिक चिन्तिका
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !
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