रेल यात्रा और क़ानून का यह दोहरा मापदंड !

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                     {  निर्मल रानी }   कहने को तो हमारे देश में प्रत्येक नागरिक के लिए समान कानून बनाए गए हैं। परंतु यदि इस बात की धरातलीय पड़ताल की जाए तो कई ऐसे विषय हैं जिन्हें देखकर nirmal rani,iयह कहा जा सकता है कि या तो वर्ग विशेष  कानून की धज्जियां उड़ाने पर तुला हुआ है और कानून की नज़रें कानून का उल्लंघन करने वाले ऐसे लोगों पर पड़ ही नहीं रही हैं। या फिर जानबूझ कर इनकी अनदेखी की जाती है। हालांकि इस प्रकार की कई बातें हैं जो हमें यह सोचने के लिए मजबूर करती हैं कि हमारे देश में नियम व कानून को लेकर दोहरा मापदंड अपनाया जाता है।

यदि हम रेल यात्रा करने की बात करें तो हम यह देखते हैं कि मंहगाई के इस दौर में किसी साधारण व्यक्ति के लिए रेल यात्रा करना किसी ‘परियोजना’ से कम नहीं है। यानी यात्रा की दूरी के लिहाज़ से पहले तो उसे आरक्षण कराना होता है। इस बात की कोई गारंटी नहीं कि उसे उसकी मनचाही तिथि तथा उपयुक्त रेलगाड़ी में आरक्षण उपलब्ध होगा भी अथवा नहीं? उसके पश्चात यदि आरक्षण न मिले तो सामान्य डिब्बे में उसे यात्रा करनी पड़ सकती है। एक आम भारतीय नागरिक के लिए रेल के सामान्य डिब्बे में बैठने की सीट मिलना भी आसान नहीं है। अब यदि यही आम आदमी दुर्भाग्यवश किसी मुसीबत का सताया हुआ है, उसकी जेब कट गई है या उसका सामान चोरी हो गया है अथवा गरीबी के कारण उसके पास यात्रा करने हेतु टिकट खरीदने के पैसे नहीं हैं तो वह व्यक्ति कानून की किसी ऐसी श्रेणी में नहीं आता कि उसे बिना रेलगाड़ी के टिकट खरीदेsadhu in rail ,baba in train हुए अपने गंतव्य तक पहुंचना नसीब हो सके। और यदि ऐसे किसी सज्जन व्यक्ति ने  ट्रेन में बिना टिकट यात्रा करने की ठान भी ली तो टिकट निरीक्षक उसके साथ कुछ भी कर सकता है। वह चाहे तो उसे क्षमा करते हुए किसी अगले स्टेशन पर ट्रेन से उतार कर नीचे धकेल सकता है या फिर उसे पुलिस के हवाले कर सकता है। काफी संभावना इस बात की बनी रहती है कि बिना टिकट रेलयात्री को जेल जाना पड़े। तो क्या भारतीय रेल अधिनियम के अंतर्गत सभी रेल यात्रियों के साथ ऐसा ही बर्ताव किया जाता है?

जी नहीं, पूरे देश में हर दिशा में चलने वाली रेलगाडिय़ों में आपको पीला कपड़ा लपेटे हुए बाबा रूपी भिखारी पाखंडी ऐसे मिलेंगे जो रेलगाड़ी पर बिना टिकट चलना अपना अधिकार समझते हैं। ऐसे लोग ट्रेन के डिब्बे में घुसते ही खाली पड़ी सीट पर कब्ज़ा भी जमा लेते हें। उन्हें इस बात की कोई िफक्र नहीं कि कोई टिकटधारी यात्री खड़ा हुआ है। और बिना टिकट लिए वह स्वयं सीट पर कब्ज़ा जमाए हुए है। कानून तोडऩे वाले ऐसे लोग केवल बिना टिकट यात्रा ही नहीं करते बल्कि डिब्बे में बैठकर खुलेआम बीड़ी-सिगरेट भी पीते हैं जोकि कानूनी अपराध है। हद तो यह है कि तमाम लोगों ने पीले कपड़े को रेलवे का पास समझ रखा है। और ऐसी मानसिकता वाले लोग अपने सिर पर या कंधे पर मात्र एक पीला वस्त्र रखकर अपने पूरे परिवार को साथ लेकर यात्रा करते भी देखे जा सकते हैं। इस में सबसे दिलचस्प बात यह है कि टिकट निरीक्षक इन पाखंडी,निठल्ले तथा जगह-जगह गंदगी फैलाने वाले भिखारी रूपी लोगों से टिकट मांगने की कोशिश ही नहीं करते। न ही इन्हें ट्रेन से उतारते हैं। जबकि कोई इज़्ज़तदार गरीब सामान्य व्यक्ति न तो इस प्रकार निडर होकर धड़ल्ल्ेा से रेल यात्रा कर सकता है और यदि मजबूरीवश उसे सफर करना भी पड़े तो वह टिकट निरीक्षक द्वारा पकड़े जाने पर कानून का उल्ंलघन करने वाला साबित होता है। क्या यहां रेल कानून के उल्लंघन का काम केवल साधारण गरीब-मजबूर तथा सज्जन व्यक्ति द्वारा ही किया जा रहा है? इन पीला कपड़ा पहनने वाले पाखंडी,नशेड़ी,अपराधी,भिखारी तथा जगह-जगह गंदगी फैलाने वाले लोगों द्वारा नहीं? आिखर रेलवे के कानून का उल्लंघन का डंडा इन पर क्यों नहीं चलता? ऐेसे निठल्ले लोग रेलगाड़ी पर बिना टिकट यात्रा कर पूरे देश का  भ्रमण करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार आिखर क्यों समझते हैं?

इसी प्रकार नशीले पदार्थ का लाना-ले जाना उन्हें अपने पास रखना,उनका सरेआम प्रयोग करना आदि एनडीपीसी एक्ट के तहत अपराध है। परंतु यहां भी यह कानून संभवत: केवल साधारण व सामान्य लोगों के लिए ही है। उपरोक्त श्रेणी के बाबाओं,साधुओं तथा भिखारी लोगों के लिए नहीं? उदाहरण के तौर पर हिमाचल व जम्मू-कश्मीर में बनाई जाने वाली चरस पूरे देश में तस्करों द्वारा चोरी-छुपे पहुंचाई जाती है। यदि कोई व्यक्ति इस कारोबार में शामिल पाया जाता है तो उसे एनडीपीसी एक्ट के तहत जेल भेज दिया जाता है तथा उसकी जल्दी ज़मानत भी नहीं होती। अफीम के तस्करों के साथ भी ऐसा ही सख्त बर्ताव होता है। होना भी चाहिए। नशीले पदार्थों के आवागमन पर निश्चित रूप से रोक लगनी चाहिए। तथा इस कारोबार में शामिल लोगों पर सख्ती की जानी चाहिए। परंतु यहां भी इस कानून को अमल में लाने में दोहरे मापदंड अपनाते हुए साफ देखा जा सकता है। देश में तमाम साधुओं व फकीरों के स्थान ऐसे मिलेंगे जहां धूना चेतन किया जाता है। और उसी धूने के इर्द-गिर्द बैठकर या स्थान के किसी कमरे में अथवा खुले आसमान के नीचे इस प्रकार के साधू व बाबा िकस्म के लोग चिलमों के लंबे-लंबे कश लगाते दिखाई देते हैं। इनके द्वारा नशे का सेवन किया जाना न तो पुलिस से छुपा है न ही कानून के दूसरे रखवालों से। जिस धर्म स्थान में भांग,चरस अथवा अफीम के सेवन के शौक पाले जाते हैं उस स्थान की इस ‘विशेषता’ के बारे में वहां आने-जाने वाले सभी भक्तों,आसपास की पुलिस चौकी व थाने के पुलिसकर्मियों आदि को सबकुछ मालूम होता है। परंतु आज तक कभी भी किसी भी अखबार में ऐसी रिपोर्ट पढऩे को नहीं मिली जिससे यह पता चल सके कि अमुक धर्मस्थान में फलां मंदिर या दरगाह में पुलिस का छापा पड़ा और वहां से चरस अथवा अफीम का ज़खीरा पकड़ा गया हो?

केवल अनेक धर्मस्थलों में ही इस प्रकार के नशे का सेवन नहीं किया जाता बल्कि समय-समय पर लगने वाले कुंभ,अर्धकुंभ,सूर्य ग्रहण,माघ तथा अमावस आदि के अवसरों पर लगने वाले मेलों में तो कई-कई टन चरस की खपत नदियों के किनारे तंबू लगाए बैठे साधुओं के स्थानों पर हो जाती है। क्या इनके तंबुओं से उठने वाला धुआं कानून के पालनकर्ताओं को नज़र नहीं आता? आलम तो यह है कि कुंभ के अवसर पर एक ओर उसी साधू स्थान में चिलम के कश लगाए जा रहे होते हैं तो दूसरी ओर उसी समय बड़े से बड़े अधिकारी,प्रशासन व न्यायपालिका के धार्मिक प्रवृति रखने वाले लोग बाबाओं के दर्शन करने हेतु उसी स्थान पर आते-जाते रहते हें। परंतु किसी के कान में जूं तक नहीं रेंगती। ऐसे स्थानों पर नशीले पदार्थों की रखी हुई बड़ी खेप पकडऩा या उसके बारे में पूछना तो दूर किसी अधिकारी की ऐसे साधुओं की ओर देखने की हिम्मत भी नहीं पड़ती। इस प्रकार का साधूवेश व बाना धारण किए कोई व्यक्ति क्या अपने स्थान पर,क्या सडक़ के किनारे किसी सार्वजनिक स्थान पर किसी पार्क में या रेलवे या बस स्टैड पर बैठकर जब चाहे चिलम से धुंआ निकालने लग जाता है। परंतु कोई भी पुलिसकर्मी उसकी तरफ नज़रें उठाकर भी नहीं देखता। परंतु किसी साधारण व्यक्ति के लिए ऐसा करना बड़ा अपराध साबित हो सकता है। आिखर ऐसा क्यों? कानून के इस प्रकार के दोहरे मापदंड अपनाने से साफ ज़ाहिर होता है कि यदि किसी व्यक्ति को ट्रेन में बिना टिकट यात्रा करनी हो तो वह व्यक्ति अपने पैंट-शर्ट या किसी अन्य यूनीफार्म को थैले में डालकर पीले कपड़े का सहारा ले तो वह साधूवेश उसके लिए टिकट अथवा पास का काम कर सकता है। और इसी वेश में वह प्रतिबंधित नशीली सामग्री का सेवन अथवा उसे इधर से उधर लाने व ले जाने का काम भी आसानी से कर सकता है। यह कानून का दोहरा मापदंड नहीं तो और क्या है?

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nirmal raniपरिचय -:

निर्मल रानी

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

 Nirmal Rani  : 1622/11 Mahavir Nagar Ambala City134002 Haryana  

 phone : 09729229728

* Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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5 COMMENTS

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  2. इन बाबाओ ने रेल को जेल बना दिया हैं ,सरकार के साथ साथ आम यात्री को भी जागरूक होना चाहिए

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