रुपए की गिरती कीमत और महंगाई की मार

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dollar vs rupee1{संजय राय**}
आज रुपए की गिरती कीमत और महंगाई की मार से पूरा देश त्रस्त है। संसद में संसद सदस्य केवल कोयला घोटाले की फाइलों को लेकर धमाचौकड़ी मचा रहे हैं। उन्हें देश की गिरती आर्थिक हालत की कोई चिंता नहीं है। विपक्ष केवल सत्तापक्ष पर आरोप लगाता है। वह सत्तापक्ष से मिलकर कोई ऐसे कदम क्यों नहीं उठाता, जिससे कि अपना देश, अपना मान-सम्मान विश्व पटल पर जीवित रह सके।
आज के आर्थिक हालात पर नजर जाती है तो बरबस सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि अमीर तो अमीर ही रहेंगे, उन्हें कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। गरीब तो गरीब था, इस आर्थिक समस्या से कोई वास्ता नहीं। फर्क अगर पड़ता है तो मध्यम वर्ग पर जोकि अपने आपको इस समस्या में चारों तरफ से घिरा हुआ पाता है। मैं आज कुछ खबरों को देख रहा था जो कि जस का तस आपके सम्मुख रख रहा हूं।
वित्तीय, बैंकिंग एवं निवेश सेवाएं देने वाली अमेरिका की ब्रोकरेज फर्म गोल्डमैन सॉक्स ने अगले छह महीने में रुपये का भाव गिर कर 72 रुपए प्रति डालर तक जाने का अनुमान जताया है। इसके अलावा उसने भारत की आर्थिक विकास दर के अनुमान को भी छह फीसदी से घटा कर चार फीसदी कर दिया है।
सीरिया पर गहराते संकट से तेल की कीमतों में तेजी आने और आयात बिल बढऩे की आशंकाओं से एक बार फिर रुपया लुढक़कर 68 के पार चला गया। आखिर में पिछले सत्र के मुकाबले रुपया 163 पैसे गिरकर 67.63 पर बंद हुआ।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रूसी मीडिया के हवाले से इस बात की चर्चा रही कि सीरिया पर दो मिसाइल दागे गए हैं। इससे निवेशकों में घबराहट फैल गई है। वहीं आयातकों द्वारा डालर की मांग आने से डालर मजबूत हुआ है रुपए पर दबाव बढ़ा है।
मुद्रा बाजार के डीलरों का कहना है कि स्टैंडर्ड एंड पूअर्स द्वारा देश की के्रडिट रेङ्क्षटग घटाने के संकेत और गोल्डमैन सॉफ्ट द्वारा रुपए के 72 तक कमजोर होने के अनुमान से निवेशकों में नकारात्मक संदेश गया। मुद्रा बाजार में मंगलवार को गिरावट के साथ 66.29 पर कारोबार शुरू हुआ।
पिछले सत्र रुपया 66 के स्तर पर रहा था। औद्योगिक और सिक्का निर्माताओं की मांग में आई तेजी से घरेलू सराफा बाजार में चांदी के भाव 1080 रुपए मजबूत होकर 55430 रुपए प्रतिकिलो हो गए। वहीं निचले भाव पर निवेशकों और थोक कारोबारियों की खरीदारी से सोना 440 रुपए बढक़र 31450 रुपए प्रति दस ग्राम पहुंच गया।
रुपए में गिरावट, देश की रेटिंग घटने की आशंका और सीरिया पर हमले में घबराहट का माहौल रहा। आशंकित निवेशकों की चौतरफा बिकवाली से बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज के सेंसेक्स ने 651 अंक का गोता लगाया, जबकि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का निफ्टी 209 अंक की गिरावट का शिकार हुआ। चार दिनों में 918 अंक की बढ़त हासिल करने के बाद मंगलवार को बाजार में आई गिरावट से निवेशकों को 1.63 लाख करोड़ रुपये की तगड़ी चपत लगी।
मार्केट की इस दशा के लिए कौन है जिम्मेदार? वित्त मंत्री, योजना आयोग और प्रधानमंत्री क्या अमेरिकी हाथों की कठपुतली बन गए हैं? जो हालात कुछ दिन पूर्व अमेरिका के थे, वही आज हमारे देश के होने जा रहे हैं। मध्यम वर्ग, गैस की बढ़ती कीमत, पेट्रोल की आग, प्याज व अन्य सब्जियों की महंगी कीमत से परेशान है।
वहीं, बच्चों की बढ़ती फीस, उनके खर्च के लिए दिन-रात जूझ रहा है। कैसे जी पाएगा यह उसके लिए हर सुबह का सवाल है। किसी तरह दिन बिताता है। फिर अगले दिन की अगले दिन सोची जाएगी, कह कर सो जाता है। अगले दिन फिर यही दिनचर्या। सरकार कब आर्थिक हालात को सुधारने पर सतर्क होगी? यह एक चिंता का विषय है।
गरीबों के लिए तो बहुत सी योजनाएं, रियायती दामों पर शुरू की जा रही हैं। कुछ सरकारें आर्थिक हालातों को न देखते हुए लोक-लुभावन घोषणाएं दिन-रात कर रही हैं। उनके पास ऐसे संसाधन कहां से आ रहे हैं कि वे अपनी घोषणाओं को पूरा करेंगे। क्या कर्ज को उतारने का भी कोई उपाय है?
सोना गिरवी रखने की बात सरकार करती है लेकिन यह तो एक क्षणिक उपाय है। इसको गंभीरता से लेकर बाजार को सुधारने की ओर कदम उठाए जाने चाहिए, जिससे आम नागरिक जी सके। राज्यसभा में प्रधानमंत्री अपने आपको चोर कहे जाने चिल्लाते हैं। गुस्सा दिखाते हैं। विपक्षी सरकार को नीचा दिखाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं। वहीं, मीडिया केवल अपनी टीआरपी बढ़ाने के फेर में बलात्कार व उससे संबंधित खबरों को चटकारे लगा-लगाकर पेश कर रहे हैं।
वर्तमान भारतीय मीडिया केवल आसाराम पर व उनके कुकृत्यों पर केद्रित हो गया है। देश के आर्थिक हालात व महंगाई उनके लिए कोई विषय नहीं है। कभी-कभी किसी चैनल पर थोड़ी-बहुत चर्चा होती है। कैसे सुधरेगा रूपया? वह दिन दूर नहीं जब एक डालर की कीमत 100 रुपए की ऊंचाई पर पहुंच जाए। बहुत से मीडिया हाउस बढ़ती महंगाई का बहाना बनाकर व विदेशी पूंजी का निवेश घटने से अपने कर्मचारियों की छंटनी कर रहे हैं। आईबीएन-7 ने अपने लगभग 350 कर्मियों को एक ही रात में बाहर का रास्ता दिखाया।
वहीं दिल्ली का एक बड़ा अखबार रातों-रात बंद हो गया। कर्मचारी सडक़ों पर आ गए। अखबारी कागज की बढ़ती कीमत भी इन अखबारों के बंद होने का एक कारण है, क्योंकि अखबारी कागज विदेशों से मंगाया जाता है और उनकी कीमत डालरों में चुकाई जाती है। मालिक उससे त्रस्त हैं। हर कोई परेशान है, क्या होगा उपाय। यह तो ऊपर वाला ही जाने।
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download*संजय राय
(वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादक ईशान टाइम्स समाचार पत्र समूह)
फोन:- 9953138266,9814826555
**लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं।

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