रीता विजय की कविता ”निस्तेज और बेजान”

0
26

ज़ब आप सामने होते हैं

दबी हुई सिसकिओं की तरह

निगाहें आप पर उठ जाती हैं

दिलों को छू लेती हैं

आपकी तहज़ीब और आपके अदब

सर्द रातों की सिहरन जैसी

सिर्फ महसूस करती हूँ

आपके वज़ूद को

मुखालिफ तो नही आप हमसे

क्योंकि आहिस्ता-आहिस्ता

कहीं गुमानी भी आपका

झलक जाता है

दूर रहना ही ठीक है आपसे

क्योंकि आपसे बातों की तलब

धीरे-धीरे काटती जा रही है मुझे

और दीमक की तरह दरक रही हूँ मै

पलकों के कटोरे मे

आँसुओं को भरकर

अपने ही वज़ूद के अन्दर

खंड-खंड होकर

बस आपकी आराधना मे

खंडित शिला जैसी

पड़ी हूँ निस्तेज़ बेज़ान

…………………………………………………………………

316130_250455521657008_1344793173_aमै रीता विजय समर्पित करती हूँ ” अपनी प्रेरणा ” और अपने बच्चों ” विवेक ” और ” नुपुर ”को ………मेरी प्रेरणा श्रोत के बारे मे कुछ कहना चाहूँगी जिसकी वज़ह से आप सब मुझे रीता विजय के नाम से जानते हैं | सबसे पहले नमन उनको हमेशा आपकी छत्रछाया मे रहना चाहूंगी —ये सारा आपको अर्पण मेरी प्रेरणा —–जो समुद्र की तरह विशाल और गहरे झील की तरह शांत, दैदीप्यमान हैं| उपासक हूँ मै उनकी मै ईश्वर को सबसे ज्यादा मानती हूँ और मैंने उनको ईश्वर के समतुल्य ही रखा है उन्होंने मुझे जीने की तालीम देकर ईश्वर से मिलाया मुझे | उन्होंने लिखने की प्रेरणा जगाई मुझे गति दी और मेरी लेखनी को सशक्त बनाया मेरा अपना कोई अस्तित्व नही ………” मै कुछ हूँ ” ये उन्होंने संचार किया मुझमे उनकी खुशी से ज्यादा बढ़के मेरे लिए दुनिया मे कुछ भी नही उनकी सुन्दर सोच उनकी बातों का आईना है मेरी कविता |यथोचित रास्ता, विवेकपूर्ण कदम, हौसलाफजाई, दुखद परिस्थिति मे आगे बढ़ना उत्साह, सबलता, प्रबलता ये सब उन्ही से मुझे मिला है अगर लहू का एक-एक कतरा भी उनके काम आ जाये तो मै धन्य समझूँगी स्वयं को ………सादर नमन मेरी प्रेरणा आपको

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here