राष्ट्रीय शर्म कौन मोदी या मनमोहन?

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mooooooooooooo{संजय कुमार आजाद**,,}
भारत अपनी सत्ता हस्तानंान्तरण के 67वें वर्ष में प्रवेष किया। पूरे धुमधाम से देषभर में कुछ स्थानों पर बहिस्कार के साथ शान से तिरंगा लहराया।मनाना था इसलिये मनाया ।1947 के सत्ता हस्तांतरण के खूनी खेल में नेहरू-जिन्ना की जिद ने लाखों हिन्दूस्तानियों की लाषों के ढ़ेर पर खेला। करोड़ो लोग बेघर-बार हुए, अरबों की संपति या तो लुटे गये या आग की भेट चढ़ गये।अपने हीं बतन में मुहाजिर या शरणार्थी बन ये। ब्रिटानिया सरकार की घिनौनी और अमानवीय हरकत जिसे तत्कालीन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कारकूनों का मौन समर्थन प्राप्त था द्वारा देष को धर्म के आधार पर दो देष में विभाजित करवाया।भारत की सत्ता उस समय जबाहर लाल नेहरू की

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और नवोदित इस्लामी देष पाकिस्तान की सत्ता मोहम्मद अली जिन्ना की रखैल बनी? दोनों देष के आम नागरिक आज भी रोटी, कपड़ा और मकान के लिये तरस रहें है? भय, भूख और भ्रष्टाचार इन नागरिकों पर बरस रहा है? 66 वर्ष के इस लम्बे अंतराल में लोकतंत्र की झुनझुना नें आम नागरिकों को क्या दिया इसका रिर्पोट सरकारी, गैर सरकारी व अतंराष्ट्रीय रिर्पोट हम सबके सामने है?कहने को तो हम संवैधानिक और लोकतांत्रिक व्यवस्था में जी रहें हैं।संविधान के तहत इस देष का हर नागरिक को एक समान अधिकार मिला है। पता नही भारत के किस भाग में यह कानून लागू है? 64 वर्षों में लगभग 200 बार से अधिक जिस संविधान के साथ राजनीतिक दलों के द्वारा बलात्कार किया हो उस संविधान की आत्मा अभी भी बची है यह भारत जैसे पिलपिले लोकतंत्र में हीं दृष्टिगोचर है? सत्ता और लोकतंत्र 1947 के बाद से आज तक ‘नेहरू-गांधी परिवार’ की गुलाम एवं बंधक बनी है। भारतीय संसदीय परम्परा में आम नागरिक बद से बदतर जीवन जी रहा है आाखिर इसका दोषी कौन है? इस देष में अपने

आपको सर्वोपरि मानने बाले सांसद-विधायक और उसके नौकरषाह अपनी तिजोरी जनता के पैसों से दिन दूनी रात चौगुनी भरते हुय आम नागरिकों को आत्महत्या करने,आतंकवादी व नक्सली एवं देषद्रोही बनने को मजबूर कर रहा है।न्याय की प्रक्रिया आज भी गुलमी जमाने के ढ़र्रे पर है जो सिर्फ अपराधी बनने को मजबूर कर रहा है।न्याय की धीमी व जटिल प्रक्रिया न्याय का गला घोटने के जैसा है।इन 66 वर्षेंा में इस देष की गुलाम मानसिकता के शासकेा ने कभी न्याय की गलाघोटु अंग्रेजी व्यवस्था में सुधार नही करना चाहा।किन्तु अभी हाल में सर्वोच्च न्यायालय ने सांसदो व विधायकों के संदर्भ में सजायाफता केा चुनाव लड़ने पर रोक लगाने के सार्थक फैसला किया तों इसके

बदलाव में पूरा सांसद एक जूट हुआ और बदलाव की प्रक्रिया शुरू किया, किन्तु आम नागरिको के लिये 66 वर्ष में भी वही गुलाम कानून आखिर क्यों ? मुगलों और

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अंग्रेजों के जमाने से भी बदतर यह लोकतंत्र सिर्फ सांसदो विधायको नौकरषाहों और उसके परिवारों का ऐषगाह है।जहां हर पांच साल के बाद अधिकांष इस देष को लुटने खसोटने बाले पैदा होतें है उनमे कुछ ऐसे भी होते है जो आम नागरिको की तरह दवा के अभाव में दम तोड़ देतें है,किन्तु अपनी ईमानदारी और

नैतिकता को दलालों के हाथों बिकने नही देते। ईष्वर उनकी आत्मा को चिरषांति प्रदान करें ।आखिर ऐसी पिलपिली लोकतंत्र में भारतीय नागरिक कबतक इसका गुणगान करती रहेगी? इन विषमताओं पर कबतक अपना मुॅंह बन्द कर जलालत व जिल्लत की जिंदगी ढ़ोता रहेगा? विष्व के सर्वाधिक युवाओं का यह देष महज 66वर्ष में नेहरू-गांधी वादी गिरोहों के कारण निराषा और हताषा में जीने को

मजबूर है? इन गिरोहों के कारण कभी विष्व गुरू रहा भारत आज आंतरिक,बाह्य,सामाजिक, आर्थिक,राजनीतिक, वैदेषिक व सांस्कृतिक हर मोर्चे पर विफलता को वरण किया जिसके कारण भारतीय प्रतिभा इस देष से पलायन कर विदेषेंा में अपना नाम रौषन किया और जो प्रतिभा बचे वे आतंक या विध्वंसक गतिविधियों की ओर हताषा में मुड़ रहें है। इनके कारनामें से देष कालेधन, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजाबाद से बढ़कर बेटी – दामाद बाद की ओर तीव्रता से बढ़ रहा है। विदेषी वैंको में धन जमा कर देष को दीमक की तरह चाटने बाली यह लोकतांत्रिक

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व्यवस्था का भार आखिर कबतक नागरिक ढ़ोता रहेगा? क्या हमारी नियती मुगलों , अंग्रेजों से होकर इस अपहरित लोकतंत्र को हीं झेलना है ? हमने गुलामी के दिनों में भी नोवल प्राइज विष्व से लिया था और विष्व को अपनी प्रतिभा का लोहा हर क्षेत्र में मानने को मजबूर किया था किन्तू अब हम इतने लाचार क्यों है ? क्या हमारी तरूणाई भगत,सुभाष के बदले शाहरूख सन्नी लियोन में खो गयी है ? कदापि नही । बदलाव तो होगा जिसका आगाज भी हो चुका है । 67 वें सत्ता हस्तांतरण दिवस के अवसर पर नेहरू-गांधी परिवार की ईटालियन बहु एवं दहषतगर्द और फिरकापरस्त लोगों की जमात की चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने अपने नियंत्रित व निर्देषित पूर्व नौकरषाह और भारत के प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह को (मीडिया के अनुसार अपना आखिरी तहरीर) ऐतिेहासिक लालकिले के प्राचीर से देष को सम्बोधित करने को भेजा।रटा रटाया बना बनाया तहरीर देष को पेष किया गया।सोचा इस तहरीर से देषवासी खुष होगें किन्तु देष स्तब्ध ।देष को आषा थी कि बढ़ती महंगाई, सीमा पर तनातनी, आंतरिक सुरक्षा पर, सांम्प्रदायिक सद्भाव पर एवं रूपये के गिरते स्तर पर रोक लगाने की जैसे समायिक मूद्दों पर देष की चिन्ता को दूर करने का प्रयास किया जायेगा किन्तू मिला क्या- खोदा पहाड़ और निकली चुहिया।ऐसे हताषा और निराषा भरे माहौल में भी यदि देष के प्रधानमंत्री के पास कोई नयी सोच कुछ करने करवाने का माद्दा नही हो तो फिर देष चुप रहे क्या यह संभव है? 1947 की समस्याएं 2013 में भी यथासंभव हैै तो इसके लिये दोषी आखिर कौन है? जिस परिवार का गुणगान लालकिले के प्राचीर से किया गया क्या वह परिवार के कारण ही यह देष आज रसातल की ओर नही जा रहा है? यदि इन्ही सब मुद्दों को लेकर इस देष के प्रति संवेदनषील नागरिक और महात्मा गांधी की तरह देष की पीड़ा समझने बाले गुजरात के मुख्यमंत्री और देष के लोकप्रिय नेता श्री नरेन्द्र मोदी ने सत्ता हस्तांतरण दिवस के अवसर पर इन्हीं मुद्दों को देष के नागरिकों के समक्ष उठाया तो फिरकापरस्त और दहषतगर्दो के इन जमातों के नाजूक अंगों पर मिरची लगने लगी ।क्या यह देष किसी परिवार की संपति है और नगरिक उस परिवार के गुलाम है? दासप्रथा का वाहक और पीढ़ि दर पीढ़ि गुलामों की जिन्दगी बसर करने वाले तथा गुलामी की रोटी तोड़ने बालों की कांग्रेसी जमात को श्री मोदी के प्रष्नों से इतनी तिलमिलाहट क्यों होती है।सर से पांव तक भ्रष्टाचार में डूबे गिरोहों के गुलमों ने श्री नरेन्द्र मोदी को‘कुएॅ का मेढ़क’ कोई ‘खलनायक ’ कोई बड़बोले तो कोई सत्ता का हवसी तक कह रहा है।हद तो तब हो गयी जब इस देष के ज्वलंन्त समस्यायों को श्री मोदी ने उठाया तो इस दहषतगर्द फिरकरपरस्तों की जमात के गुलामों ने श्री मोदी को ‘‘ राष्ट्रीय शर्म ’’ तक कहकर अपनी गुलामी मानसिकता का परिचय दिया। आखिर इस जमात को देष के बजाय सिर्फ एक परिवार की चिन्ता क्यों है।क्वात्रोची से रावर्ट बाडरा तक जैसे लुटेरों की रक्षा करने बाला ईटालियन बहु की चरण बन्दना में लगे ये भाट चारणों की युगलबन्दी से देष मर्माहत है युवा असहज और किकर्तव्यविमूढ़ है।देष को लुटने खसेाटने बाला दहषतगर्दो की जमात की जब पोल खुलने लगी इनके काले करनामों का बखिया उघाड़ना शुरू हुआ राष्ट्रवादी तत्वों का अभ्युदय प्रारंभ हुआ तो इनके नाजूक अंगो में मिरची लगने लगी जिसके लहर में ये आपा खोकर अनाप-सनाप बकना शुरू कर दिया है। अति सुदूर कच्छ के रण के लालना कॉलेज से श्री नरेन्द्र मोदी ने जब विफलताओं का पिटारा खोला तो

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दहषतगर्द और फिरकापरस्तों की जमात दहषत में है।दहषत इस कदर व्याप्त है आठ दिषाओं से श्री मोदी पर प्रहार प्रारंभ हुआ और प्रहार के इस बादल में कुछ अपने भी नसीहत के वाण का संधान करने से नहीं चुके।किन्तु भला सूर्य के रथ को बादल कितने देर तक रोक पायेगा? श्री मोदी के साथ भी यही बात सौ फीसदी चरितार्थ है। प्रसिद्ध चीनी विचारक और दार्षनिक कन्पयूसियस ने कहा था-‘‘ वह काम चुन लीजिये जिससे आप सबसे ज्यादा प्रेम करते हैं’’।भारत की वर्तमान संसदीय परम्परा मं यह अक्षरषः लागु है। तभी तो कभी पंचायत का चुनाव भी नही जीत सकने बाला,हमेषा जी हजूरी में जिन्दगी गुजारने बाले को इस देष का प्रधानमंत्री बनाया गया।ये भारत की जनता के द्वारा नही बल्कि श्रीमती सोनिया गांधी के द्वारा नियुक्त प्रधानमंत्री है।सबा करोड़ लोगों के देष में लोकतंत्र की धज्ज्जियां उड़ाने बाला, वोट के लिये समाज को बांटने वाला फिरकापरस्तों और दहषतगर्दो की जमात भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और उसके पोषित गिरोह अब स्वयं बताएं कि विष्व के सबसे बड़े तथाकथित लोकतंात्रिक देष के लिये ‘‘ राष्ट्रीय शर्म ’’ कौन हैं मोदी या मनमोहन।

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sanjay-kumar-azad2*संजय कुमार आजाद
पता : शीतल अपार्टमेंट,
निवारणपुर
रांची 834002
मो- 09431162589
** लेखक- संजय कुमार आजाद, प्रदेश प्रमुख विश्व संवाद केन्द्र झारखंड एवं बिरसा हुंकार हिन्दी पाक्षिक के संपादक हैं।
**लेखक स्वतंत्र पत्रकार है *लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं।

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