राष्ट्रवाद का प्रमाण पत्र और राष्ट्रवादी संगठन

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ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए…


– निर्मल रानी –

हम भारतवासियों को हमारे पूर्वजों तथा देश में उपलब्ध शिक्षण सामग्री व साहित्य द्वारा यही बताया जाता रहा है कि भारतवर्ष ने पूरे विश्व में अध्यात्म,सुसंस्कार,मानवता तथा तमीज़ व तहज़ीब का पाठ पढ़ाया। यह भी बताया जाता है कि दुनिया हमारे देश को विश्वगुरू भी स्वीकार करती थी। ज़ाहिर है यदि हमारा देश कभी वैश्विक स्तर पर अध्यात्म व सुसंस्कार की पताका लहरा भी रहा होगा तो इसके पीछे हमारे देश में उस समय मौजूद ऋषियों-मुनियों,अध्यात्मवादियों तथा संतों की ही महत्वपूर्ण भूमिका रही होगी। निश्चित रूप से हमारे संतों व ऋषि-मुनियों ने हमें अनेक ऐसी सौगात दी हैं जो प्रत्येक भारतवासी के लिए गौरव का विषय है। और हमारे इन्हीं पूर्वजों से प्राप्त सुसंस्कार ही हमें यह भी सिखाते हैं कि हमें दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? किसी के साथ विमर्श में कैसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए,दूसरे के प्रति हमें कैसी भावना रखनी चाहिए,वार्तालाप के दौरान हमें कैसे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए तथा कैसे शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए। हमारे संस्कार ही हमें यह भी सिखाते हैं कि किसी की भावनाओं को उकसाना या भडक़ाना नहीं चाहिए। किसी पर बिना किसी तथ्य अथवा आधार के लांछन नहीं लगाना चाहिए। बल्कि हमारे शास्त्र तो हमें यहां तक बताते हैं कि यदि किसी व्यक्ति में कोई कमी अथवा बुराई है तो भी उसे सार्वजनिक करने या उसे बदनाम करने से परहेज़ करना चाहिए। झूठे लांछन लगाना तो हमारे धर्मशास्त्रों में महापाप भी बताया गया है।

परंतु बड़े दु:ख का विषय है कि स्वयं को भारतवर्ष का भाग्यविधाता समझने की गलतफहमी पाले कुछ लोग अपने निजी राजनैतिक स्वार्थ सिद्ध करने मात्र के उद्देश्य से समस्त प्राचीन भारतीय परंपराओं व उसकी गरिमा को तिलांजलि देते हुए ऐसे प्रत्येक कार्य कर रहे हैं जो भारतीय संस्कृति व संस्कार के बिल्कुल विरुद्ध हैं। आज हमारे देश में जब और जिधर देखिए कोई न कोई जि़म्मेदार व्यक्ति अपने मुंह से ऐसे घटिया,कड़वे व निरर्थक बोल बोलते सुनाई देगा जो समाज में बेचैनी पैदा करने वाले होते हैं। उदाहरण के तौर पर पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात चुनाव के दौरान एक जनसभा में महज़ चुनावी लाभ उठाने के मकसद से ऐसा वक्तव्य दे डाला जिससे कि देश की संसद के दोनों सदनों में भारी हंगामा बरपा हो गया। प्रधानमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर बैठे हुए किसी भी व्यक्ति ने अब तक देश के अति विशिष्ट लोगों पर ऐसे गंभीर आरोप कभी नहीं लगाए थे। मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह,पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी,पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल दीपक कपूर,पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह, पूर्व विदेश सचिव सलमान हैदर सहित कई विशिष्ट लोगों को पाकिस्तान द्वारा भारत के विरुद्ध रची जा रही साजि़श में सहभागी करार दे दिया। इतना घटिया व बेहूदा आरोप देश का मध्यम व निचले स्तर का भी कोई नेता नहीं लगा सकता। क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुजरात में राजनैतिक लाभ हासिल करने के लिए देश के इतने विशिष्ट लोगों को भारत की जनता के समक्ष संदिग्ध स्थिति में लाकर खड़ा करना चाहिए था?

देश में अपना प्रभाव बढ़ाती जा रही बहुसंख्यवाद की राजनीति का एक सबसे अहम फार्मूला यही है कि देश के बहुसंख्य समुदाय के दिल में अल्पसंख्यक समुदाय का भय पैदा किया जाता है। उन्हें यह समझाने की कोशिश की जाती है कि भविष्य में देश का अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज बहुसंख्यक हो जाएगा और बहुसंख्य हिंदू समाज अल्पसंख्या में आ जाएगा। जब चार सौ वर्षों से भी लंबे समय तक देश में मुस्लिम शासकों के हुकूमत करने के बावजूद भारत में मुस्लिम समाज बहुसंख्यक नहीं बन सका तो आज के दौर में कैसे बहुसंख्यक हो जाएगा,इस सवाल का तो कोई जवाब नहीं है। परंतु केवल बहुसंख्य व अल्पसंख्यक के मध्य ध्रुवीकरण कर बहुसंख्यक समाज के समर्थन से सत्ता हासिल करने के मकसद से देश के हिंदुओं का आह्वान किया जाता है कि वे पांच बच्चे पैदा करें अन्यथा 2030 तक वे अल्पसंख्यक हो जाएंगे। कभी स्वर्गीय अशोक सिंघल तो कभी प्रवीण तोगडिय़ा यहां तक कि सांसद साक्षी व साध्वी प्राची जैसे जि़म्मेदार लोग हिंदू समाज की महिलाओं से चार-पांच बच्चे पैदा करने की अपील करने लगे हैं। इन्होंने बच्चों का भविष्य भी निर्धारित करते हुए यह सुझाव दिया है कि एक बच्चा सीमा की रक्षा के लिए भेजो,एक समाज की सेवा करे,एक साधू को दे दो तथा एक बच्चे को देश व संस्कृति की रक्षा हेतु विश्व हिंदू परिषद् को दिया जाना चाहिए। बद्रिका आश्रम के शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती ने तो इन सभी से काफी आगे की सोच दर्शाते हुए यह कहा है कि यदि नरेंद्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनाना है तो सभी हिंदुओं को कम से कम दस बच्चे पैदा करने चाहिए। समाज व अर्थशास्त्र के अनुसार आिखर उक्त व्यवस्था कितनी सफल,कारगर तथा न्यायसंगत हो सकती है? हां इन बातों से ऐसे लोगों के भीतर की भावनाएं तथा कड़वाहट अवश्य प्रकट होती है।

आजकल हमारे देश में राष्ट्रवाद का प्रमाण पत्र बांटने का चलन भी ज़ोरों पर चल पड़ा है। यदि आप इन स्वयंभू तथाकथित सांस्कृतिक राष्ट्रवादियों की सोच व विचार के अनुरूप अपनी बात नहीं करते या आपकी कोई बात या अदा इन्हें पसंद नहीं आती तो आपको राष्ट्रविरोधी या राष्ट्रद्रोही होने तक का प्रमाण पत्र जारी किया जा सकता है। यह और बात है कि यदि आप इन्हीं लोगों से देश के स्वतंत्रता संग्राम में इनकी या इनके पूर्वजों की भूमिका के बारे में पूछें तो यही लोग बगलें झांकते दिखाई देते हैं। पिछले दिनों भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली ने िफल्म अभिनेत्री अनुष्का शर्मा के साथ अपना विवाह रचाया। विवाह की रस्में इन दोनों वर-वधू ने स्वेच्छा से इटली में जाकर अदा कीं। किस व्यक्ति ने कहां विवाह करना है यह उस परिवार का बेहद निजी मामला है। परंतु हमारे देश के सांस्कृतिक राष्ट्रवादी इस विवाह को भी पचा नहीं पाए। मध्यप्रदेश में गुना से भारतीय जनता पार्टी के विधायक पन्ना लाल शाक्य को इन दोनों की शादी इटली में होने से इतनी तकलीफ पहुंची कि इन्होंने इन दोनों की देशभक्ति पर ही सवाल खड़ा कर दिया। विधायक ने कहा कि -‘विराट कोहली ने भारत में नाम और पैसा दोनो कमाया है और उन्होंने शादी इटली में जाकर की। उसने भारत में अपनी शादी समारोह क्यों नहीं रखा? यह राष्ट्रभक्ति नहीं। विधायक महोदय ने यह भी याद दिलाया कि-‘इस धरती पर भगवान राम की शादी हुई। भगवान कृष्ण ने भी यहां शादी की लेकिन इस आदमी(कोहली)ने इटली में जाकर शादी रचाई है जिससे वह राष्ट्रभक्त नहीं हो सकता’। उन्होंने कहा यही बात उनकी दुलहनिया अनुष्का शर्मा पर भी लागू होती है। गौरतलब है कि जिस समय यह विधायक इस प्रकार की संकुचित भाषा का प्रयोग कर रहा था,उसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चित्र लगा था तथा यह विधायक स्किल इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत् स्कूल के बच्चों को ‘ज्ञान का पाठ’ पढ़ा रहा था।

आज पूरे देश में अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए अपनी योग्यताओं का बखान करने के बजाए दूसरों को अपमानित करने तथा लांछन लगाकर अपने विरोधियों को मात देने का एक दुर्भाग्यपूर्ण दौर चल पड़ा है। इस दौर में जिसे चाहें भ्रष्ट बता दें,देशद्रोही,राष्ट्रद्रोही,नास्तिक,अधार्मिक, धर्मविरोधी कुछ भी किन्हीं भी शब्दों में कह डालें कोई फर्क़ पडऩे वाला नहीं भले ही संसद से लेकर सडक़ों तक हंगामा क्यों न बरपा हो जाए। न जाने भारतीय संत शिरोमणि संत कबीर दास ने किस देश के लोगों के लिए यह कहा कि-‘ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए। औरन को शीतल करें आपहुं शीतल होए।

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 परिचय –:

 निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

 कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

 संपर्क -:
Nirmal Rani  :Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar, Ambala City(Haryana)  Pin. 4003
Email :nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

 Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

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