राष्ट्रवादी हैं भारतीय मुसलमान, अलगाववादी नहीं

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तनवीर जाफ़री**,,
भारतवर्ष के विभिन्न क्षेत्रों से अलगाववाद की राजनीति करने वाले नेताओं के स्वर बुलंद होते देखे जाते रहे हैं। कभी धर्म के नाम पर तो कभी क्षेत्र व भाषा के नाम पर। परंतु समय रहते ऐसी अलगाववादी आवाज़ें कभी खुद दब गईं तो कभी दबा दी गईं। परंतु भारत में ही रहकर अलगाववाद की राजनीति करने वाले नेता हैं कि अपनी स्वार्थपूर्ण व संकीर्ण राजनीति को परवान चढ़ाने की गरज़ से ऐसी हरकतों से बाज़ आने का नाम ही नहीं लेते। कभी कश्मीर से अलगाववाद की आवाज़ बुलंद होती है तो कभी बोडोलैंड के रूप में कोई समस्या सामने दिखाई देती है। कभी महाराष्ट्र में भूमिपुत्र या मराठी मानुस के नाम पर राजनैतिक रोटियां सेकी जाती हैं तो कभी खालिस्तान के नाम पर आंदोलन व हिंसा का दौर चलता दिखाई देता है। परंतु दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में जिस आज़ादी व तेज़ी के साथ अलगाववादी ताकतें अपना सिर उठाती हैं उसी प्रकार कुछ ही समय बाद इनके मिशन दम तोड़ते,फीके पड़ते व शिथिल होते भी नज़र आते हैं। गोया ऐसे नेताओं के पीछे लगने वाली जनता शीघ्र ही इनके स्वार्थपूर्ण राजनैतिक मकसद को समझ लेती है। वह ज़्यादा समय तक उनके बहकावे में नहीं रहती और अलगाववादी शक्तियों के वरगलाने में आई जनता शीघ्र ही पुन: राष्ट्रवाद की मुख्यधारा में शामिल नज़र आती है।

पिछले दिनों एक बार फिर अलगाववाद को हवा देने वाला ऐसा ही एक स्वर दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश राज्य से उठता दिखाई दिया। आंध्र प्रदेश तक ही सीमित क्षेत्रीय राजनैतिक दल मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुसलमीन(एमआईएम)के एक विधायक अकबरूद्दीन औवेसी ने आंध्र प्रदेश के आदिलाबाद जि़ले के निर्मल टाऊन में अपने लगभग दो घंटे के भाषण में दिल खोलकर अपनी भड़ास निकाली तथा देश की राजनैतिक व्यवस्था, हिंदू समुदाय को नीचा दिखाने, हिंदुओं की धार्मिक आस्था का मज़ाक उड़ाने,गौहत्या के विषय पर, मुसलमानों को धार्मिक संस्कारों पर चलने, विभिन्न मुस्लिम समुदायों को इकट्ठा होने, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय राजनीति तथा आंध्र प्रदेश की स्थानीय राजनीति जैसे विभिन्न मुद्दों पर जमकर अपनी भड़ास निकाली। इसमें कोई शक नहीं कि अकबर ओवैसी का यह भाषण अत्यंत गैर जि़म्मेदाराना, भडक़ाऊ,हिंदू व मुस्लिम समुदायों के मध्य नफरत फैलाने वाला तथा देश में अलगाववाद की भावना को भडक़ाने वाला तथा धर्म विशेष की आस्थाओं की खिल्ली उड़ाने वाला भाषण था। बड़े ही पूर्व नियोजित तरीके से ओवैसी अपना यह विवादित भाषण देने के बाद अपने इलाज के बहाने देश छोडक़र विदेश चला गया। निश्चित रूप से उसे यह मालूम था कि वह कैसा ज़हर उगल रहा है तथा शासन व प्रशासन की ओर से उसके विरुद्ध क्या कार्रवाई होनी है। ओवैसी ने क्या कहा और उसके क्या प्रभाव हो सकते हैं यह तो उसका भाषण सुनने वाला प्रत्येक व्यक्ति बहुत आसानी से समझ सकता है। परंतु उसने किस ‘राजनैतिक दूरदर्शिता’ के मद्देनज़र इतना गैर जि़म्मेदाराना व विवादास्पद भाषण दिया यह भी समझने की ज़रूरत है।

दरअसल मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलिमीन अथवा एमआईएम आंध्र प्रदेश तक सीमित रहने वाला एक क्षेत्रीय व ओवैसी परिवार द्वारा गठित राजनैतिक संगठन है। इस समय एमआईएम के एक सांसद हैदराबाद से ही निर्वाचित सलाहुद्दीन ओवैसी हैं जोकि अकबर ओवैसी के ही बड़े भाई हैं तथा सात विधायक आंध्र प्रदेश के विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों से निर्वाचित हैं। इन्ही सात में एक विधायक हैं अकबर ओवैसी। एमआईएम द्वारा पहले आंध्र प्रदेश की किरण कुमार सरकार को समर्थन दिया जा रहा था। परंतु विभिन्न प्रकार के क्षेत्रीय मतभेदों के चलते या एमआईएम द्वारा आंध्रप्रदेश सरकार के समक्ष रखी गई लंबी-चौड़ी मांगों को पूरा न करने के कारण तथा अन्य राजनैतिक मतभेदों के चलते एमआईएम ने राज्य की कांग्रेस सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। ज़ाहिर है अब एमआईएम के समक्ष अब न केवल अपने अस्तित्व को अलग दिखाने की चुनौती है बल्कि एमआईएम मुख्यमंत्री किरण कुमार व कांग्रेस पार्टी को यह भी जताना चाह रही है कि उसका कितना जनाधार है और वह आंध्र प्रदेश सरकार व कांग्रेस पार्टी को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं। दूसरी ओर यही एमआईएम के नेता राष्ट्रीय राजनीति के परिपेक्ष्य में इस बात को भी बड़े गौर से देख रहे हैं कि पूरे भारत के मुसलमान न सिर्फ विभिन्न क्षेत्रीय व राष्ट्रीय राजनैतिक दलों में बंटे हुए हैं बल्कि भारतीय मुसलमानों का कोई ऐसा मुस्लिम नेता भी राष्ट्रीय स्तर पर नहीं है जोकि पूरे देश के मुसलमानों को सर्वसम्मत रूप से नेतृत्व प्रदान कर सके। एमआईएम के नेता यह भी बखूबी जानते हैं कि देश का मुसलमान विभिन्न वर्गों व समुदायों के अतिरिक्त विभिन्न राजनैतिक विचारधाराओं में भी बंटा हुआ है। और यही वजह है कि देश के विभिन्न क्षेत्रों का मुसलमान समय-समय पर अलग-अलग राजनैतिक दलों को अपना समर्थन देता नज़र आता है। उदाहरण के तौर पर राष्ट्रीय स्तर पर जो मुस्लिम समुदाय कभी कांग्रेस पार्टी के पक्ष में मतदान किया करता था वह 6 दिसंबर 1992 के बाद कांग्रेस पार्टी से अलग तो ज़रूर हुआ परंतु मुसलमानों ने अपने ही धर्म का कोई नेता चुनने के बजाए विभिन्न क्षेत्रीय दलों को अपना समर्थन देना बेहतर समझा।

मसलन यदि उत्तर प्रदेश के मुसलमान मुलायम सिंह यादव व मायावती के साथ जाते दिखाई दिए तो बिहार का मुसलमान कभी लालू प्रसाद यादव तो कभी नितीश कुमार के साथ खड़ा हुआ नज़र आया। बंगाल में कभी कम्युनिस्ट पार्टी के साथ खड़ा हुआ तो कभी ममता बैनर्जी को सिर आंखों पर बिठाया। इसी प्रकार दक्षिण भारत में कभी कम्युनिस्ट पार्टी को अपना समर्थन दिया तो कभी तेलगुदेशम, मुस्लिम लीग व एमआईएम जैसी पार्टियों के साथ खड़े हो गए। एमआईएम के नेता अकबर ओवैसी की पूरी नज़र राष्ट्रीय स्तर पर इस प्रकार मुस्लिम समुदाय के विभाजित हो रहे मतों पर भी है। और उसे यह गलतफहमी भी है कि राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम नेतृत्व का जो अभाव पिछले 60 वर्षों से भारत में देखा जा रहा है संभवत: उस रिक्त स्थान को अकबर ओवैसी अपने ज़हरीले, भडक़ाऊ व सांप्रदायिकतापूर्ण भाषणों के द्वारा भर सकेगा। और इसी गलतफहमी का शिकार होते हुए उसने देश के 25 करोड़ मुसलमानों को संगठित होने का आह्वान किया। ठीक उसी प्रकार जैसे कि कभी ठाकरे घराना मराठियों को एकजुट होने का आह्वान करने के लिए उनके मन में उत्तर भारतीयों के प्रति नफरत भरता है या प्रवीण तोगडिय़ा जैसे फायर ब्रांड नेताओं की तरह जो हिंदू राष्ट्र बनाने के नाम पर तथा जेहादियों का खौफ फैलाकर देश के हिंदुओं को संगठित होने के लिए भारतीय मुसलमानों के $िखलाफ ज़हर उगला करते हैं।

परंतु इस प्रकार दूसरे धर्म की खिल्ली उड़ाकर, दूसरे धर्म के लोगों का अपमान कर तथा दूसरे धर्म की धार्मिक मान्यताओं का मज़ाक उड़ाकर अकबर ओवैसी द्वारा राष्ट्रीय स्तर का नेता दिखाई देने का प्रयास करना सरासर गलत और बेमानी ही नहीं बल्कि गैर इस्लामी, गैर इंसानी और गैर कानूनी भी है। ओवैसी ने भारतीय मुसलमानों की भावनाओं को भडक़ाने के लिए बाबरी मस्जिद गिराए जाने तथा गुजरात दंगों का जि़क्र किया। इसमें कोई शक नहीं कि यह दोनों ही घटनाएं भारतीय लोकतंत्र व भारतीय राजनीति में एक काले धब्बे की तरह हैं। परंतु ओवैसी को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि भारत में सांप्रदायिक शक्तियों के विरुद्ध विशेषकर हिंदुत्ववादी कट्टरपंथी शक्तियों के ख़िलाफ़ केवल भारतीय मुसलमान ही अकेला नहीं है बल्कि देश का बहुसंख्य हिंदू समाज भी इन सांप्रदायिक ताकतों के विरुद्ध है। स्वयं एमआईएम के नेताओं को भी इस बात पर गौर करना चाहिए कि उनकी पार्टी के एक सांसद तथा सात विधायक भी केवल मुस्लिम मतों के बल पर चुनकर नहीं आए। बल्कि उदारवादी सोच रखने वाले गैर मुस्लिम मतदाताओं ने भी उनके पक्ष में मतदान किया है। लिहाज़ा सांप्रदायिक आधार पर तथा धर्म विशेष के विरुद्ध ज़हर उगलकर अपने समुदाय के लोगों को संगठित करने का प्रयास करना ओवैसी द्वारा की जा रही एक घिनौनी व नाकाम कोशिश है। ओवैसी को यह समझना चाहिए कि इस देश की आज़ादी के लिए जहां कल अशफाक उल्ला ने अपनी कुर्बानी दी थी वहीं आज भी इस देश की गुप्तचर सेवा का जि़म्मा एक भरोसेमंद मुसलमान शख्स के हाथों में है। देश में दो बार उपराष्ट्रपति के रूप में हामिद अंसारी को निर्वाचित किया जा चुका है। दक्षिण भारत से ही संबंध रखने वाले भारत रत्न एपीजे अब्दुल कलाम की राष्ट्रव्यापी लोकप्रियता के बारे में कुछ कहना तो गोया सूरज को चिराग दिखाने जैसा ही है।भारतीय मुसलमान को तीन बार देश का राष्ट्रपति बनने का गर्व है। भारतीय वायुसेना के मुखिया के रूप में दो भारतीय मुसलमानों ने अपनी सेवाएं देश को दी हैं। राष्ट्रभक्त मुसलमानों से संबद्ध ऐसे और भी हज़ारों उदाहरण देखे जा सकते हैं।

इसलिए अकबर ओवैसी द्वारा हिंदू समुदाय को व देश की एकता व अखंडता को निशाना बनाकर दिया गया उसका विद्वेषपूर्ण भाषण किसी भी कीमत पर भारतीय मुसलमानों को स्वीकार्य नहीं है। उनका यह भाषण केवल आंध्रप्रदेश की क्षेत्रीय राजनीति से निकल कर राष्ट्रीय राजनैतिक क्षितिज पर नज़र आने का उनका यह असफल प्रयास है। सांप्रदायिकता,अलगाववाद, किन्हीं दो संप्रदायों के बीच नफरत फैलाने या किसी संप्रदाय विशेष का अपमान करने वाले देश के किसी भी धर्म के किसी भी नेता को बख्शा नहीं जाना चाहिए। इनके साथ रियायत बरतना सांप को दूध पिलाने के समान ही है। लिहाज़ा अकबरूद्दीन ओवैसी अपने निजी राजनैतिक स्वार्थवश दिए गए अपने भडक़ाऊ भाषण के लिए जि़म्मेदार है तथा उसके विरुद्ध भी सख्त कानूनी कार्रवाई किए जाने की ज़रूरत है। भारतीय मुसलमान तमाम आंतरिक विवादों,अवहेलनाओं, मतभेदों यहां तक कि सांप्रदायिक दंगों व फसादों के बावजूद हमेशा से ही राष्ट्रवादी रहा है और रहेगा। भारतीय मुसलमान कभी भी अलगाववादी नहीं हो सकता। और जो मुसलमान अलगाववाद व राष्ट्रविरोधी विचार रखता है उसे इस्लामी दृष्टिकोण से भी स्वयं को मुसलमान कहने का कोई अधिकार नहीं है।

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**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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