राष्ट्रभाषा हिन्दी को विकास की ज़रूरत है : उदय प्रताप सिंह

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हिंदीआई एन वी सी,
लखनऊ,
दिनांक 18 सितम्बर 2013 को ख्वाजा, मुईनुद्दीन चिश्ती उर्दू, अरबी-फारसी विश्वविद्यालय, लखनऊ के द्वारा आयोजित “हिन्दी दिवस” समारोह के मुख्य अतिथी श्री उदय प्रताप सिंह जी ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि राष्ट्रभाषा हिन्दी को विकास की ज़रूरत है। सरकार ने इसके प्रचार-प्रसार के लिए कई प्रयास किये हैं किन्तु इसे अंतराष्ट्रीय स्तर तक ले जाने के लिए सबको एकजुट हो कर प्रयास करना होगा। उन्होने सभी छात्र-छात्राओं और शिक्षकों से अनुरोध किया कि वह अपनी रोज़्ामर्रा की बातचीत में हिन्दी भाषा का प्रयोग कर उसे सम्मानित करें। समारोह की अध्यक्षता कर रहे श्री शंभूनाथ जी, आईएएस (रि0), पूर्व मुख्य सचिव, उत्तरप्रदेश, ने हिन्दी भाषा के विकास पर अपना मत रखते हुए बताया कि आज विश्व-भर से कई लोग हिन्दी भाषा सीखने के लिए उत्सुक है और अनेको प्रसिद्व विश्वविद्यालयों द्वारा उनके लिए विशेष हिन्दी पाठ्यक्रम तैयार किये जा रहे हैं। उन्होने यह भी कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी के विकास से आज हिन्दी भाषा विदेशों तक पहुॅच चुकी है पर हिन्दी भाषा की विकास यात्रा में यह अभी बस शुरूआत है।  अपने संबोधन में डा0 अनीस अंसारी, आईएएस (रि0), कुलपति, ख्वाजा, मुईनद्दीन चिश्ती उर्दू, अरबी-फारसी विश्वविद्यालय ने कहा कि सम्यक प्रचार-प्रसार के लिए यह जरूरी है कि हम हिन्दी भाषा और समाज के संबन्ध को भौगोलिक दृष्टि से देखे। उन्होने हिन्दी भाषा तथा क्षेत्रीय बोलियों को बढावा देने के लिए मीडिया की सराहना की। उनका यह भी मानना था कि आज की हिन्दी से उर्दू के वो अंश लुप्त हो गये हैं जो उसके सही मायने और उच्चारण के लिए अनिवार्य थे। उन्होंने यह सुझााव दिया कि स्कूली स्तर पर उर्दू सीखने पर पाबन्दी लगाई जाती है वह खत्म हो और शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर उर्दू को दूसरी भाषा के रूप मंे प्रोत्साहित किया जाये। उन्होने इस बात पर बल दिया कि हिन्दी भाषा हमारी पहचान है और अन्य भाषाओं पर पकड़ बनाने के साथ-साथ हमें हिन्दी भाषा की समाज पर पकड़ को भी मजबूत करना चाहिए। हिन्दी भाषा को क्षेत्रीय भाषाओं के साथ मिलकर आगे बढ़ना चाहिये। इस अवसर ड़ा. जी0आर0 यादव, सम्बद्ध अधिकारी, ने स्वागत सन्देश दिया और श्री एस. सी. संगल, वित्त अधिकारी, ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। इस समारोह में सभी प्राध्यापक और विश्वविद्यालय के कर्मचारी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डा. नीरज शुक्ला ने किया तथा इसका संयोजन बुशरा अलवेरा और शाहबाज़्ा अली ने किया।

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