राष्ट्रपति चुनाव या 2014 का सेमीफाईनलं**

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तनवीर जाफरी**

देश में होने जा रहे राष्ट्रपति चुनाव पद के प्रत्याशी को लेकर तस्वीर साफ हो चुकी है। परंतु पिछले कुछ दिनों के दौरान जिस प्रकार विभिन्न राजनैतिक दलों द्वारा इस पद के उ मीदवार को लेकर राजनैतिक चालें चली गईं उन्हें देखकर ऐसा महसूस हुआ कि गोया यह चुनाव देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद हेतु निर्वाचित किए जाने वाले राष्ट्रपति का चुनाव न होकर 2014 में होने वाले लोकसभा चुनावों का सेमीफाईनल हो रहा हो। विभिन्न राजनैतिक दलों द्वारा भविष्य के अपने-अपने राजनैतिक हितों को साधने वाली चालें चली गईं। ज़ाहिर है इन चालों में किसी नेता को जहां अपनी राजनैतिक अपरिपक्वता के चलते मात हुई वहीं राजनीति के कई मंझे हुए खिलाड़ी राष्ट्रपति चुनाव की इस बिसात पर शह देने में कामयाब रहे। देश के सबसे पुराने राजनैतिक दल कांग्रेस ने जहां प्रणव मुखर्जी के रूप में अपना प्रत्याशी घोषित कर बड़े ही सुनियोजित ढंग से काफी देर से अपने पžो खोले वहीं यूपीए के सहयोगी नेता ममता बैनर्जी व मुलायम सिंह यादव ने बहुत ही जल्दबाज़ी दिखाते हुए कांग्रेस पार्टी को तीन नामों का सुझाव दे डाला। इनमें पहला नाम डा0 एपीजे अब्दुल कलाम का था, दूसरा प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह का व तीसरा नाम सोमनाथ चैटर्जी का। इन नामों की घोषणा करते समय मुलायम सिंह यादव व ममता बैनर्जी साथ-साथ बैठकर एक ही सुर में बोलते दिखाई दे रहे थे। परंतु इन नामों के सार्वजनिक होने के बाद मात्र 24 घटों के भीतर जैसे ही कांग्रेस पार्टी द्वारा इन तीनों नामों को खारिज किया गया वैसे ही मुलायम सिंह यादव कांग्रेस के साथ खड़े नज़र आने लगे तथा ममता बैनर्जी अपने çज़द्दी स्वभाव के अनुरूप काफी देर तक अपने सुझाए गए नामों विशेषकर डा0 कलाम की उ मीदवारी पर अड़ी रहीं।
डा0 कलाम के नाम को लेकर ममता या मुलायम सिंह यादव का रुख पूरी तरह राजनीति से प्रेरित माना जा रहा है। क्योंकि डा0 कलाम शुरु से ही चुनाव लड़ने की मुद्रा में नज़र नहीं आ रहे थे। न ही उन्होंने इन नेताओं को कभी ऐसा संकेत दिया था कि वे उनकी उ मीदवारी को लेकर विभिन्न राजनैतिक दलों में सहमति बनाने की कोशिश करें। वास्तव में डा0 कलाम के नाम का इस्तेमाल मुलायम व ममता द्वारा केवल इसलिए किया जा रहा था ताकि वे 2014 के लोकसभा चुनावों में देश में डा0 कलाम के समर्थकों विशेषकर मुस्लिम मतदाताओं को यह बता सकें कि उन्होंने तो अपनी ओर से पूरा प्रयास किया था कि डा0 कलाम ही एक बार पुनज् देश के राष्ट्रपति बनें। परंतु कांग्रेस पार्टी ने ही उनका यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया। उधर ममता बैनर्जी की आए दिन की घुड़कियों, धमकियों व ब्लैकमेलिंग से परेशान कांग्रेस पार्टी ने भी मानो इस बार ममता बैनर्जी को सबक सिखाने की ठान ली थी। और कांग्रेस ने न केवल ममता द्वारा सुÛ़ए गए तीनों नाम ख़ारिज कर दिए बल्कि अपनी तुरुप की चाल चलते हुए पश्चिम बंगाल से ही संबद्ध पार्टी के प्रणव मुखर्जी रूपी एक ऐसा कद्दावर नेता को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाया जिनका विरोध करने का साहस संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन तो क्या राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन भी पूरी तरह नहीं कर सका। अपने स्वभाव के अनुरूप ममता बैनर्जी कांग्रेस की इस तुरुप की चाल से तिलमिलाई तो ज़रूर परंतु इसके बावजूद काफी देर तक वे डा0 कलाम के नाम की ही रट लगाती रहीं। आçखरकार डा0 कलाम ने ही इस अनिश्चितता के वातावरण को स्वयं समाप्त करते हुए ममता बैनर्जी को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने ममता बैनर्जी व अपने अन्य शुभचिंतकों द्वारा उनका नाम प्रस्तावति किए जाने हेतु धन्यवाद किया तथा अपने चुनाव न लड़ने की भी घोषणा की। कांग्रेस ने प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति पद हेतु यूपीए का उ मीदवार बनाकर पश्चिम बंगाल में अपने आधार को मज़बूत करने की न केवल कोशिश की बल्कि कांग्रेस की इस चाल से वामपंथी दलों का एक बड़ा धड़ा भी प्रणव मुखर्जी को समर्थन देने को तैयार हो गया। यही नहीं बल्कि प्रणव मुखर्जी जैसे कद्दावर व वरिष्ठ कांग्रेस नेता को प्रत्याशी बनने पर राजग में भी बड़े पैमाने पर फूट पड़ती दिखाई दी। इस चुनाव में शिवसेना जैसे भाजपा के पुराने सहयोगी ने तो प्रणव मुखर्जी के समर्थन में आकर राजग का साथ छोड़ा ही जनता दल युनाईटेड जैसे बिहार के भाजपा के सत्ता सहयोगी ने भी प्रणव मुखर्जी के पक्ष में मतदान करने की घोषणा कर प्रणव मुखर्जी की जीत को सुनिश्चित करने का काम किया। ज़ाहिर है इन राजनैतिक दलों की इन चालों के बीच भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के पास एक -दूसरे का मंुह देखने के सिवाए कोई चारा नहीं था। भाजपा प्रणव मुखर्जी के मुकाबले में कोई दूसरा ऐसा कद्दावर नेता नहीं तलाश कर सकी जो प्रणव मुखर्जी को टPर दे सके तथा उसके नाम पर राजग के अन्य सहयोगी सदस्य एकजुट व एकमत हो सकें। और आçखरकार मजबूरी वश भाजपा ने पी ए सांगमा जैसे उस उ मीदवार को समर्थन देने का फैसला किया जिसे कि उसकी अपनी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस स्वयं चुनाव लड़ाना नहीं चाह रही थी। हां तमिलनाडु की मु यमंत्री जयललिता व उड़ीसा के मु यमंत्री नवीन पटनायक ज़रूर संगमा को चुनाव लड़ाने के पक्ष में खड़े दिखाई दिए। गौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी भी संगमा को दिए जा रहे समर्थन को लेकर एकमत नहीं दिखाई दी। कर्नाटक के पूर्व मु यमंत्री येदिउरप्पा तो खुलकर प्रणव मुखर्जी को सांगमा के मुकाबले अच्छा प्रत्याशी बता चुके हैं। और भी कई भाजपा नेता प्रणव मुखर्जी की वकालत व तारीफ करते देखे जा रहे हैं। इसके बावजूद भाजपा का संागमा को समर्थन देने का अर्थ भी 2014 के लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र ही माना जा रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि संागमा पूर्वोत्तर क्षेत्र के कद्दावर नेताओं में सबसे बड़े नेता हैं। इसके अतिरिक्त वे आदिवासी समुदाय से भी संबंध रखते हैं। बावजूद इसके कि उनके नाम का प्रस्ताव भाजपा द्वारा नहीं किया गया है फिर भी भाजपा उन्हें अपना समर्थन देकर न केवल पूर्वोत्तर क्षेत्र में 2014 के चुनावों में अपनी घुसपैठ करना चाह रही है बल्कि देश के आदिवासी समुदाय को भी अपने साथ जोड़ने का प्रयास कर रही है। ेसांगमा ने भी जब यह देखा कि उन्हीं की अपनी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस उन्हें अपनी पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद का उ मीदवार नहीं बना रही है तो उन्होंनेे भी आनन-फ़ानन में पार्टी से त्यागपत्र दे डाला और स्वयं को आदिवासी उ मीदवार बताते हुए चुनाव मैदान में कूद पड़े। सांगमा भी इस बात से बाखबर हैं कि राष्ट्रपति चुनाव की अंकगणित उनके पक्ष में नहीं है। परंतु उनका भी यही प्रयास है कि वे यह चुनाव लड़कर स्वयं को देश के सबसे बड़े कद्दावर आदिवासी नेता के रूप में स्थापित कर सकें और इस चुनाव का लाभ 2014 के चुनाव में उठा सकें। उधर राजग के प्रमुख घटक दल शिवसेना व युनाईटेड जनता दल ने प्रणव मुखर्जी को समथüन देकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि वे राष्ट्रपति पद जैसे देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद के चुनाव में ज़ोर-आज़माईश की राजनीति करने के बजाए सर्वस मत प्रत्याशी के पक्षधर हैं। इसीलिए वे इस पद हेतु चुनावी संघर्ष की भूमिका में जाने के बजाए सर्वस मत निर्वाचन के पक्ष में जाना अधिक बेहतर समझते हैं। इसके अतिरिक्त यह दोनों ही दल प्रणव मुखर्जी के ऊंचे राजनैतिक कद के भी कायल हैं। लिहाज़ा इन दोनों राजग सहयोगी दलों ने भी राष्ट्रपति चुनाव में अपनी सकारात्मक भूमिका निभाकर अपने-अपने क्षेत्र की जनता को बेहतर संदेश देने की कोशिश की है। और 2014 में अपने इस सकारात्मक निर्णय का लाभ यह दल भी उठाना चाहेंगे। कुल मिलाकर इस समय सबसे असहज स्थिति भारतीय जनता पार्टी की ही बनती दिखाई दे रही है जो न तो अपना कोई उ मीदवार प्रणव मुखर्जी के मुकाबले में लाकर खड़ा कर सकी न ही सांगमा को समर्थन देकर वह उन्हें जिता पाने की स्थिति में है। बजाए इसके कांग्रेस प्रवक्ता जनार्दन द्विवेदी के शब्दों में भारतीय जनता पार्टी क्वउधार के उ मीदवारं को अपना समर्थन दे रही है और यह उ मीदवार भाजपा का नहीं है। परंतु चूंकि भाजपा मु य विपक्षी दल है तथा इस चुनाव में वह कांग्रेस को वाकओवर नहीं देना चाहती इसलिए सांगमा को समर्थन देना उसकी मजबूरी या लाचारी कुछ भी समझा जा सकता है। कुल मिलाकर उपरोक्त सभी हालात अफसोसनाक व चिंताजनक हैं। दरअसल होना तो यही चाहिए था कि इस सर्वोच्च पद के लिए सभी राजनैतिक दलों द्वारा कोई सर्वस मत उ मीदवार बनाया जाता। परंतु ऐसा करने के बजाए राष्ट्रपति चुनाव को भी 2014 के लोकसभा चुनावों पर निशाना साधने के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया है। डा0 कलाम को राष्ट्रपति बनाए जाने के पक्षधर दिखाई देने वाले नेता दरअसल डा0 कलाम के उतने हितैषी नहीं थे जितने कि वे दिखाई दे रहे थे। यदि वास्तव में उन्हें डा0 कलम की योग्यता का इस्तेमाल देशहित में करने की ज़रूरत महसूस हो रही है तो उन्हें डा0 कलाम को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में अपने-अपने दलों की ओर से प्रस्तावति कर 2014 के लोकसभा चुनाव लड़ने चाहिए। परंतु यकीनन यह राजनैतिक दल ऐसा हरगिज़ नहीं करेंगे क्योंकि इनकी निगाहें तो स्वयं प्रधानमंत्री के पद पर लगी होती हैं। और इसी कारण राष्ट्रपति पद के लिए होने जा रहा चुनाव भी इन राजनैतिक दलों द्वारा 2014 के चुनावों के मद्देनज़र लड़ा जा रहा है इसलिए कहा जा सकता है कि राष्ट्रपति पद का यह चुनाव 2014 का सेमीफाईनल भी है।

**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author  Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost  writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
(Email : tanveerjafriamb@gmail.com)

Tanveer Jafri ( columnist),
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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC

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