राजेंदर अवस्थी की कविता

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मैंने तो रिश्तों का कौमार्य उतरते देखा,
निज अपनो का व्यवहार बदलते देखा,
सीख मिली नूतन सी मुझको,
फिर भी मन है भारी,
व्यथित ह्रदय होता है पल पल,
सोच के हे त्रिपुरारी,
सरित प्रेम को मिल प्रपात में,
धार बदलते देखा,
मैने तो रिश्तों का कौमार्य…….

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rajendra awasthiराजेंदर अवस्थी

रक्षा मंत्रालय में कार्यरत

 

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