राजस्थान साहित्य अकादमी और अपनी माटी का संयुक्त आयोजन

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जय पुर ,
राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर और अपनी माटी,चित्तौड़गढ़ के संयुक्त तत्वावधान में 29 सितम्बर, 2013 को सेन्ट्रल अकादमी सीनियर सेकंडरी स्कूल, सेंथी, चित्तौड़गढ़ में माटी के मीत-2 के आयोजन में सौ रचनाकारों और बुद्धिजीवियों ने वर्तमान परिदृश्य पर चिंतन-मनन किया। प्रख्यात पुरातत्त्वविद मुनि जिनविजय की स्मृति में हुए इस विमर्श प्रधान कार्यक्रम के पहले सत्र में शिक्षाविद डॉ. ए. एल. जैन ने मुनिजी के त्यागमय एवं अध्यवसायी जीवन पर विस्तार से प्रकाश डाला। हिंदी के प्राचीन साहित्य में तिथियों और पाठ निर्धारण के सन्दर्भ में उनका महत्व है। उन्होंने सतत घुमक्कड़ी के बीच भी प्राच्य विद्या से जुड़े दो सौ ज्यादा ग्रंथों को संपादित कर प्रकाशित करवाया। कवि, चिन्तक और निबंधकार डॉ. सदाशिव श्रोत्रिय ने पहले सत्र में विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि अरसे से जीवन को रसमय और गहरा बनाने का दायित्व भी इसी साहित्य के खाते में रहा है। अगर सूर, मीरा, तुलसी, शमशेर और ग़ालिब नहीं होते तो हम कितना नीरस जीवन जी रहे होते। उन्होंने मौजूदा फुरसती लेखन पर कटाक्ष करते हुए कहा कि एक वो ज़माना था जब सम्पादक बड़े मुश्किल से रचनाएं छापने को राजी होते थे और अब हालात यह है कि हर कोई लेखक है। छपास रोग ग्रस्त और तुरंता यशकामी लेखकों के बीच असल की पहचान मुश्किल काम है। अलवर से आए आलोचक डॉ. जीवन सिंह ने बतौर मुख्य वक्ता कहा कि यह समय बड़ी चालाकी से हमें जड़विहीन कर रहा है। एक ओर तो बाजारवाद वंचित वर्ग को आत्महत्या की तरफ धकेलता है तो दूसरी ओर इसके मोहपाश के चलते लेखक आभिजात्य जीवन जीते हुए मूल सरोकारों से पृथक होते जा रहे हैं।एक और ज़रूरी बात यह कि लेखक जब दौलत से जुड़ जाता है तो वह डरपोक और कायर हो जाता है, उसके लिए विद्रोह का मतलब कविता में विद्रोह की बात तक सिमट जाता है। उपभोक्तावाद का छल यह है कि हम बड़े खुश है कि हमारा बेटा फलाने देश में मोटे पॅकेज पर नौकरी लग गया है जबकि वास्तव में इस तरह उसने अपना जीवन दूसरों को सौंप दिया है। राजस्थान साहित्य अकादमी अध्यक्ष वेद व्यास ने कहा कि इन सालों में एक भी लेखक ऐसा नहीं मिला जिसने सत्ता के विरोध में अपना बयान दिया हो या फिर नौकरी गंवाई हो। यह समर्पण-मुद्रा संघर्षशील समाज से मेल नहीं खाती।लेखक-बिरादरी में बढ़ती संवादहीनता भी एक घातक भूल है। उन्होंने आशा बंधाते हुए कहा कि इस बाज़ारवाद की उम्र पचास साल से अधिक नहीं है, इसलिए रचनाकार को अपने सार्थक हस्तक्षेप के साथ जीवित रहना चाहिए। इस सत्र का संचालन डॉ. कनक जैन ने किया। सत्र के आखिर में डॉ. रेणु व्यास की लिखी शोधपरक पुस्तक ‘दिनकर:सृजन और चिंतन’ का विमोचन भी हुआ। दूसरा सत्र ‘कविता का वर्तमान’ पर केन्द्रित था जिसे चित्तौड़ के तीन युवा कवियों के कविता पाठ से सार्थक और रुचिकर बनाया। विपुल शुक्ला ने मुस्कराहट, बुधिया, सीमा कविताओं के पाठ में बिम्ब रचने के अपने कौशल का परिचय दिया। अखिलेश औदिच्य ने अभिशप्त, दंगे, रोटी और भूख तथा पिता सरीखी कविताओं में अपने समय और समाज की विद्रूपताओं को उकेरा। तीसरे कवि के रूप में माणिक ने आदिवासी, त्रासदी के बाद, गुरुघंटाल और मां-पिताजी कविताएँ प्रस्तुत की। आदिवासी कविता में विद्यमान बारीक विवरण और संवेदना इस सत्र की उपलब्धि रही। डॉ. राजेन्द्र सिंघवी ने पढ़ी गयी कविताओं पर आलोचनात्मक दृष्टिपात करते हुए कहा कि यही कविता का वर्तमान है जहां रचनाकार अपने समय की नब्ज को पहचानने की कोशिश कर रहा है। जनपदों से निकली कविता की यह नई पौध आश्वस्तकारी है। अध्यक्षता करते हुए जोधपुर से आए लोकधर्मी आलोचक और कवि डॉ. रमाकांत शर्मा ने अपने वक्तव्य में कविता के तत्वों की मीमांसा करने के साथ ही आयोजन में प्रस्तुत कविताओं को लेकर भी अपनी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ की। संवाद और विकल्प के पक्षधर डॉ शर्मा का कहना था कि साहित्य को विमर्शों में बांटना अपने आप में विखंडनवाद है। उन्होंने जोर देकर कहा कि शब्दों से खेलना कविता नहीं है अपितु जीवन से जूझते हुए कवि कर्म का निर्वाह किया जाना अपेक्षित है। आयोजन में युवा चित्रकार मुकेश शर्मा के चित्र-प्रदर्शनी और प्रवीण कुमार जोशी के निर्देशन में लगाई लघु पत्रिका प्रदर्शनी आकर्षण का केंद्र रही। आखिर में वक्ता-श्रोता संवाद आयोजित हुआ जिसका संचालन डॉ. चेतन खिमेसरा ने किया। संवाद में प्रो भगवान् साहू, डॉ. कमल नाहर, डॉ. नित्यानंद द्विवेदी, मुन्ना लाल डाकोत, चन्द्रकान्ता व्यास, डॉ. राजेश चौधरी, कौटिल्य भट्ट, भावना शर्मा ने अपनी संक्षिप्त टिप्पणियाँ दी। अपनी माटी के अध्यक्ष,समालोचक और कवि डॉ. सत्यनारायण व्यास ने आभार जताया।इस अवसर पर गीतकार अब्दुल ज़ब्बार, अपनी माटी उपाध्यक्ष अश्रलेश दशोरा, स्वतंत्र पत्रकार नटवर त्रिपाठी, अधिवक्ता भंवरलाल सिसोदिया, प्रो सत्यनारायण समदानी, नवरतन पटवारी, डॉ. ए. बी. सिंह, डॉ के. एस. कंग, डॉ. अखिलेश चाष्टा, महेश तिवारी, डॉ. नरेन्द्र गुप्ता, डॉ. के. सी. शर्मा, डॉ. रवींद्र उपाध्याय, डॉ. धर्मनारायण भारद्वाज, जी. एन. एस. चौहान, आनंदस्वरूप छीपा, सीमा सिंघवी, सुमित्रा चौधरी, रेखा जैन उपस्थित थे।

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