राजनीतिक पतन आतंकवाद का कारण

0
41
Yasin  Bhatkal{संजय कुमार आजाद**,,}
आजकल हमारी खुफिया तंत्र भी केन्द्र सरकार की तरह अत्यंत सक्रिय है। जिस तरह से चुनाव-2014 को ध्यान में रखकर भारत की सरकार फटाफट संसद में जनता के लिए तोहफों की बौछार कर रही है, उसी तरह भारत के खुफिया तंत्र भी अतिवांछित इस्लामी आतंकियों को दनादन गिरफ्तार कर रही है। चाहे सत्तर के उम्र के पार करने वाला इस्लामी आतंकी अब्दुल करीम टुंडा हो या तीस वर्षीय यासीन भटकल। राजनीतिक दलों की विसात पर जन सुरक्षा की भावना का बाढ़ इन दिनों विभिन्न प्रांतों में आई बाढ़ की तरह हीं है? क्योंकि एक ओर जहां देश की अर्थव्यवस्था डांवाडोल है। रुपये सत्तर की उम्र को पार करने को आतुर है, वहीं म्यानमार भी चीन, पाकिस्तान व बंग्लादेश की नक्शे कदम पर चलते हुए मणिपुर के चंदेन जिले के मोरेह कस्बे के नजदीक भारतीय जमीन पर होलेनफई गांव में बाड़बंदी शुरु कर दी थी। इस देश की क्या तकदीर है? उपरोक्त उदाहरण ही काफी है। आर्थिक मोर्चों पर मिल रही लगातार शिकस्त एवं सीमा क्षेत्रों का लगातार हो रहा अतिक्रमण पर खुफिया तंत्रों द्वारा टुंडा और भटकल जैसे इस्लामी आतंकियों को दबोचना, दम तोड़ रही वर्तमान केन्द्र सरकार के लिए ऑक्सीजन की तरह है। इस जीवन रक्षक गैस के सहारे वर्तमान सरकार की सांसे कुछ लम्बी होती जाएगी और देष का प्रधानमंत्री चोर है का नारा देने बाले विपक्ष को भी एक संदेष है।
abdul-karim-tundaभारत आतंकवाद जैसे मुद्दों को भी वोट की चश्मों में देखता आया है।वोट बैंकों को ध्यान में रखकर देश की आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा के प्रति हमेशा लापरवाह सरकार एकाएक सक्रियता दिखाई तो जनता में संदेह का स्वर उठता है। पिंजरे का तोता कहलाने वाली सीबीआई आज फिरकापरस्तों की जमात कांग्रेस (ई) की पिंजरे में कैद है। वैसे में देश के आतंकी संगठनों का सरवराह का पकड़ा जाना कहीं राजनीति तो नहीं? इस्लामी विद्यार्थी संगठन ‘सिम्मी’ जिसे भारत सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था। प्रतिबंधित इस आधार पर किया गया था कि यह संगठन देश के लिए घातक एवं इसके कार्य राष्ट्रद्रोही है।  किंतु दहशतगर्दों व फिरकापरस्तों की जमात कांग्रेस (ई) के हीं कुछ कारकुनो ने सिमी जैसे आतंकी संगठनों का समर्थन किया। यदि उस देश के न्यायालय का हस्तक्षेप नहीं होता तो यह जमात इसे भी अपना राजनीतिक एजेंट घोषित कर दिया होता। सिमी पर प्रतिबंध लगने के बाद एक और नया संगठन इस्लामी आतंक को फैलाने व मजहवी अंजाम को देना प्रारंभ किया गया, जिसे ‘इंडियन मुजाहिदिन’ कहा गया। पाकिस्तान की दहशतगर्दी का सरताज आईएसआई और विश्व में इस्लामी आतंक का पर्याय लश्कर-ए-तैयबा, जैष-ए- मुहम्मद एवं हुजी के सरपरस्ती में भटकल ब्रदर्स (रियाज और इकबाल भटकल) के द्वारा भारत में इंडियन मुजाहिदिन नाम से इस्लामी आतंक का साया फैलाया गया। खुफिया सूत्रों का मानना है कि भारत में आईएम के हर आतंकी कार्रवाई का नियंत्रण यासिन भटकल के जिम्मे ही रहा है। यासीन भटकल का भाई इकबाल भटकल जो पाकिस्तान की नापाक जमीन से भारत विरोधी इस्लामी गतिविधियों का अंजाम देता है, पेशे से युनानी डॉक्टर है और यह वर्ष 2008 से भारत छोड़ रखा है। खुफिया ऐजेंसियों का मानना है कि भारत में आतंकी घटनाओं का अंजाम देने को भारत को दो जोनो में बांट रखा है। दक्षिण भारत को शहाबुद्दीन बिग्रेड और उत्तर भारत को गोरी बिग्रेड के रूप में मारक दस्ता तैयार कर रखा है। ये इस्लामी दहशतगर्दों के सरताज सामान्यतः मोबाइल का प्रयोग कम से कम किंतु सोशल नेटवर्क के रास्ते अपना खूंखार मानसिकता का तकनीकी अंजाम देते हैं। देश में घट रहे इस्लामी आतंक के साथ-साथ यह आतंकी संगठन कश्मीर और नेपाली माओवादी सहित देश के नक्सली संगठनों के साथ भी बेहतर तालमेल बनाए रखता है। सिमी और लश्कर के मुखौटे के रूप में यह आतंकी संगठन देश के अनेक इस्लामी संगठनों व खालिस्तानी संगठनो से भी तालमेल बैठाने का कार्य करती है। वर्ष 2007 में केरल से अस्तित्व में आया यह संगठन अनेकों आतंकी घटनाओं को अंजाम दे चुका है। यासीन भटकल खुद 40 विस्फोटों, जिसमें लगभग 600 लोगों की मृत्यु का दोषी है। 50 लाख रुपये का इनामी यह इस्लामी आतंकवादी को देश के बारह राज्यों की तलाश थी। यासीन भटकल के साथ रियाज और इकबाल की तिकड़ी ने देश में आतंक का एक नया नेटवर्क तैयार कर देश की व्यवस्था को ध्वस्त करने का कुत्सित प्रयास किया। वर्ष 2005 में राजधानी दिल्ली के सरोजनी नगर मार्केट में हुए धमाके जिसमें 66 लोग मारे गये, इसी आतंकी संगठन का हाथ था। आतंकी वारदातों की लम्बी फेहरिस्त में कुछ अमानवीय कुकृत्यों में वर्ष 2006 में मुम्बई के लोकल ट्रेन में सिलसिलेवार धमाका, जिसमें 187 लोगों की मौत। 23 नवम्बर 2007 को लखनऊ, वाराणसी और फैजाबाद फोर्ट में सिलसिलेवार धमाका, जिसमें 18 लोग हताहत हुए। 13 मई 2008 को राजस्थान के जयपुर में धमाका, जहां 80 लोग मारे गये। 26 जुलाई 2008 को अहमदाबाद, जहां 56 लोग, 13 सितम्बर 2008 दिल्ली में दर्जनों की मौत, 13 फरवरी 2010 पूणे स्थित जर्मन बेकरी धमाका, जहां 17 लोग मारे गये …आदि इस संगठन के विभत्स एवं अमानवीय इस्लामी कुकृत्य है। अपने नाम और पहचान बदलने में माहिर यासीन भटकल वर्ष 2008 में कोलकाता पुलिस द्वारा जाली नोट के मामले में गिरफ्तार हुआ, जहां एक महीने जेल में रहने के बाद जमानत पर रिहा हुआ, किंतु तब भी हमारी एजेंसी इस नरपिशाच को नहीं पहचान पाई। क्योंकि वहां उसने अपना नाम मोहम्मद अशरफ और निवास बिहार के दरभंगा को बताया। हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी और कन्नड़ में फर्राटे से बात करने वाला यह इस्लामी दशहदगर्दों का सरताज बना और शांति और अहिंसा का संदेश देने वाले राज्य बिहार को अपना ठीकाना बनाया था। यासीन कुछ समय तक दरभंगा में हकीम का काम भी किया और वहीं कातिल सिद्दीकी की बेटी से निकाह भी किया। इस्लामी संगठनों सहित खाड़ी देशों के पैसों से आतंक का यह कारोबार पाकिस्तान की सरपरस्ती में फलती-फुलती है। लगातार पांच वर्षों से देश की सुरक्षा व खुफिया एजेंसियों की आंखों में धूल झोंकने वाला यह दशहशतगर्द आखिर बिहार पुलिस के हत्थे चढ़ा। यासिन भटकल और उसके आतंकी साथी का बिहार में गिरफतारी से एकबार फिर बिहार सुर्खियों में है। आतंक का दरभंगा मॉड्युल वर्षों से हमारी सुरक्षा एजेन्सियों के लिये सिरदर्द बनी है। भटकल की गिरफतारी के बाद बिहार सरकार का रवैया इस संदेह को बल देता है कि क्या बिहार जो आतंकियों के लिये सेफ जोन बना है और दूसरे राज्य के पुलिस यहां से खुखार आतंकियो को पकड़ ले जाते है किन्तु बिहार सरकार को कुछ भी पता नहीं रहता बिहार सरकार की मिली भगत तो नही? इसबार भी यासीन भटकल का पकड़ा जाना और बिहार पुलिस द्वारा इस वांछित अपराधी को पुछताछ के लिये रिमाण्ड पर लेने का प्रयास भी नही करना इस संदेह को और भी बल देता है।उधर कमाल फारूकी जैसे देषद्रोही का वयान राष्ट्रद्रोह से कम नही है।वास्तव ऐसे धृणित इस्लामी मानसिकता ही इस आतंकवाद का पोषक है।देश को नफरत व सामाजिक विद्वेष को फैलाने वाला यह दुर्दान्त आतंकी की गिरफ्तारी हो सकता है अनेक रहस्यों का उजागर करे, वहीं सुरक्षाकर्मियों एवं जांच एजेंसियों को इस देष में राजनीतिक दबावों को भी झेलना पड़ सकता है।
भारत की बिडम्बना है कि इस देश की सरजमी पर ही आतंकियों के रहनुमा तथाकथित सेकुलवादियों और मानवाधिकारवादियों का जमात इस तरह के आतंकियों के पैरोकार रहे हैं। खासकर तब जब देश वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव की ओर अग्रसर है और ऐसे दुर्दान्त राष्ट्र द्रोही शक्तियों पर कानूनी शिकंजा वक्त की नजाकत है। चूंकि अपने पड़ोसियों से त्रस्त भारत सदैव मार खाने को आदि रहा है। आज भी इस देश की बहुसंख्यक मानसिकता उसी परम्परा का पोषक है, जिसके कारण इस देश पर इस्लामी और चर्च का प्रहार हुआ। अपनी कायरता को ढ़ोता यहां का बहुसंख्यक आज सिकुड़ती भारत भूमि को इस मुकाम तक ले आया है। हर राजनीतिक दलों ने आतंकवाद जैसे संवेदनशील मुद्दों पर राजनीतिक रोटियां सेकती है। इन दलों ने वोटों के लिए हमेशा इस देश के मान-सम्मान को पैरों तले रौंदा और एक कायर हिन्दुस्तानी, पिटता हिस्दुतानी के स्वरूप को आगे बढ़ाता रहा। इस देश का शैक्षिक माहौल स्वाभिमानी हिन्दुस्तानी के बजाय गुलाम मानसिकता के हिन्दुस्तानी को उत्पन्न किया। फलस्वरूप इसी देश की मिट्टी में पला-बढ़ा, इसी देश से गद्दारी करना सीखा, किंतु खुद्दारी से कोसों दूर हुआ। आज आतंक के इस बबंडर में नेहरु- मार्क्स-मुल्ला और मैकाले के मानस पुत्रों की संलिप्ता के कारण हीं देष असुरक्षित है। राष्ट्रीय स्वाभिमान की शून्यता ने इस देश के युवाओं को आतंक की पाश्विकता की ओर मुड़ाआ।
राष्ट्रीय संवेदनाओं से मुक्त युवा वर्ग बाजारवाद और उपभोगवाद को गले लगाया। यह बाजारवाद और उपभोगवाद ने जिस व्यापारिक सोच को जन्म दिया वहां सिर्फ पैसा ही पैसा बोलता है। इन नव तथाकथित प्रगतिवादियों ने पैसों या डॉलरों के लोभ में ऐसा अंधा बन गया कि इसके नजर में राष्ट्र-राष्ट्रीयता, आत्मगौरव या स्वाभिमान ये सब प्रगति के बाधक है। फलतः इस देश के सरकार की नियत और नियति ने यहां के युवाओं को आतंकवाद की ओर ढकेला। समान नागरिक संहिता या समान कानून संहिता के अभाव में यह देश निरंतर अलगाववादियों का शरण स्थली बना रहा है। राष्ट्र धर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं, इसे नजरअंदाज कर फिरकापरस्तों और दहशतगर्दों की जमात के दबाव, जो नीतियों या संविधान की मूल भावना के विपरित कानून बने हुए हैं वह सिर्फ टुंडा और भटकल जैसे लोग को ही पैदा करने एवं पैसा बनाने की प्रेरणा देगा, यह कभी अशफाक उल्ला या अब्दुल कलाम जैसे देशभक्त बनने नहीं दे सकता। यहां कानून जब मत/ मजहब पर आधारित होगा तब आतंकवादी ही पैदा होंगे, जिहादी ही पैदा होंगे, राष्ट्रवादी पैदा होने का सवाल ही नहीं है। देश के संस्कार-संस्कृति और अपने पूर्वजों का परित्याग करने वाले लोग विदेशों की अपसंस्कृति को आत्मसात करेंगे और उस देश का कानून उन्हें इजाजत देगा वैसे में आप भारत में भारत के प्रति समर्पित पुत्र की आशा करेंगे यह दिवा स्वप्न है। जब भारतमाता को डायन कहने वाला आजम खान जैसा द्रोही इस देश की सत्ता चलाता हो, अपने आपको खूंखार आतंकी संगठन आईएसआई का एजेंट बताने वाला और अपराध के सैकड़ों आरोपों के बाद भी भारत की कानून को अंगुठा दिखाने वाला समाज द्रोही मुहम्मद बुखारी जैसा लोग अपने तकरीर से जिस कौम को हांकता हो, वैसे हालात भटकल और टुंडा जेसे लोग को ही पैदा करता है। भारत की संविधान की मूल भावना के विपरित यहां के अधिसंख्य कानून बने हैं और यही कानून बहुसंख्यकों को कायर और बुजदिल तो अल्पसंख्यकों को देशद्रोही बनने को मजबूर किया है। इसी सोच में तथाकथित सेकुलरवादियों और मानवाधिकार के ठेकेदारों ने आग में घी का काम किया। तीस्ता शीतलवाड़ जैसे देशद्रोही और अरुणघती रॉय जैसे डॉलरों के देशद्रेाही गुलामों ने हमेशा इस देश में विद्वेष की भावना का संचार कर आतंकवाद और नक्सलवाद जैसे कुकृत्यों को ही समर्थन किया। जहां बड़े-बड़े स्वनामधन्य बिकाऊ मीडिया दलालों ने इसे सत्य प्रमाणित करने का घृणित व राष्ट्रद्रोही कृत्य किया है एक तो केरला दूजा ए मीडिया वाले नीम चढ़ा से कम नहीं रहा है। आतंकवाद या नक्सलवाद की पौध को इस देश के समाजद्रोही कानून, तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग, धर्म के ठेकेदारों और मीडिया के रणकारों से खाद मिलती है तो विदेशी चर्चों, चन्दों और इस्लामी देशों से संरक्षण मिलता है। फलतः आतंकवाद भारत में फल-फूल रहा है। रक्तबीज की भांति फैलता आतंकवाद इन कुछ मोहरों को पकड़ने से नहीं बल्कि भारत सरकार को ‘रक्तबीज’ का नाश करने की छूटकारा पाया जा सकता है। इन रक्तबीज के नाश में इस देश में सबसे बड़ा रोड़ा उस देश की लोकतांत्रिक पद्धति को कैद में रखे हुए राजनीतिक दल है। राजनीतिक दल पतन के जिस दल-दल में पनप रहे हैं वहां कमल नहीं सिर्फ विषधारक कीड़े-मकोड़े ही पैदा कर रहा है। इसी सड़ाध में भारत भूमि पर टुंडा, अफजल, यासीन, मल्लिक…… जैसे सैकड़ों कीड़े-मकोड़े पैदा हो रहे हैं, पल रहे हैं और भारत माता को घायल कर रहे हैं। राजनीतिक पतन जहां आतंकवादियों के लिए वरदान है, वहीं देश द्रोहियों के लिए यह ऐशगाह है। जिसे विदेशी सरकारें अपने डॉलरों पर , अपने बीजा पर ,नचाती है और भारत लहुलूहान होती रही है।
*******
sanjay-kumar-azad21*संजय कुमार आजाद
पता : शीतल अपार्टमेंट,
निवारणपुर
रांची 834002
मो- 09431162589
** लेखक- संजय कुमार आजाद, प्रदेश प्रमुख विश्व संवाद केन्द्र झारखंड एवं बिरसा हुंकार हिन्दी पाक्षिक के संपादक हैं।
**लेखक स्वतंत्र पत्रकार है *लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here