योग : कला और विज्ञान

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images-प्रभात कुमार राय-
21 जून को अंर्तराष्ट्रीय योग दिवस का मनाया जाना संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा योग की महत्ता को स्वीकार करने तथा योग के माध्यम से व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय एवं वैश्विक स्तर पर परिष्कृत, स्वास्थ्यवर्द्धक, नैतिक एवं आध्यात्मिक जीवन पद्यति को अपनाने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास है। योग की पुरातन बुद्धिमत्ता बदलते समय और परिवेश के क्रूर प्रहार को सहते हुए अपनी प्रासंगिकता को कायम रखी है। आज से लगभग 5000 वर्ष पहले योग का जो महत्त्व था वह आधुनिक युग में और अधिक लोकप्रिय होने के कारण बढ़ गया है। दरअसल मानव के दर्शनों और क्रियाओं में कोई ऐसी चीज है जो समय की कसौटी पर खरी उतरी है तो वह योग ही है। रौनाल्ड हटकिसन ने लिखा है कि ‘योग निःसंदेह व्यक्तित्व के विकास का सबसे पुराना तरीका है जो आज भी अस्तित्व में है।’
शारीरिक व्यायाम की कोई ऐसी प्रणाली शायद ही हो जो श्रम-रहित, तनाव-रहित तथा सबसे सस्ते ढंग से मांसपेशियों को शक्तिशाली बनाकर लचीलापन लाती हो। मस्तिष्क को शांत, निष्कंप और तनाव-रहित बनाने के लिए योग के विभिन्न चरण प्राणायाम एवं ध्यान आदि जैसे सुरक्षित एवं सशक्त उपाय और कोई नहीं है।
यह सामान्य धारणा है कि हमारे मन की तरंगों, विभिन्न मनोभावों के कारण विभिन्न ग्रंथियों द्वारा विशिष्ट रसों का सा्रव होता है जिससे शरीर के भीतर तरह-तरह के भौतिक-रासायनिक परिवर्तन होते है। इन रसायनों का हमारे शरीर में संचय होता है जो आगे चलकर हमारे लिए गंभीर भौतिक ब्याधियाँ एवं समस्याँए उत्पन्न करती है। योग रसायन के अवांछित जमाव को दूर करने की विलोम प्रक्रिया है। हमारे मन से ही सारे सा्रव पैदा होकर हमारे शरीर में जमा होता है। हम योग के माध्यम से अपने मन पर नियंत्रण रखकर संचित रसायनों को बाहर फेकनें के लिए शरीर को पर्याप्त स्वतंत्रता प्रदान करते है। फलस्वरूप, शरीर अवांछनीय तत्वों के संचयन से मुक्त हो विशुद्ध हो जाता है।
आधुनिक युग में तनाव महामारी का रूप ले लिया है। इसके कारण शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य तथा मानव की कार्यक्षमता एवं उत्पादकता बुरी तरह कुप्रभावित हो रहा है। योग द्वारा हमें शारीरिक तथा मानसिक शांति प्राप्त करने की व्यवहारिक तकनीक मिलती है जिससे हमारे जीवन में सांमजस्य एवं समन्वय का संचार होता है। व्यायाम, आहार, पथ्यापथ्य, ध्यान, विश्राम के तरीके एवं श्वसन तकनीक द्वारा तनाव को दूर कर स्वस्थ जीवन यापन करने तथा अनेपेक्षित घटनाओं से बचने के निमिŸा उचित मार्गदर्शन मिलता है। तनावरहित होकर ही हम अपना सकारात्मक वैयक्तिक विकास कर सकते है।
उपनिषद्ों में प्राण, जो ऊर्जा का सूक्ष्म रूप है, उसे मौलिक जीवन तत्व बताया गया है और यह मन और पदार्थ के बीच एक सेतु का काम करता है। प्राणोपनिषद् में प्राण को मूल तत्व के तौर पर परिभाषित किया गया है जिससे पूरे ब्रहमाण्ड की रचना हुई है। नोबेल पुरस्कार विजेता, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जोसेफसन का स्पष्ट मत हैः ‘आधुनिक भौतिकशास्त्रियों को इस संसार की रचना के सूक्ष्मतर आयामों को ढूढ्ने में उपनिषदों से नई दिशाएँ प्राप्त हो सकती है। प्राण का गहरा अध्ययन किया जाना है तथा इसके रहस्य को सुलझाया जाना है ताकि यथार्थ की खोज की दिशा में प्रगति हो सके।’  स्वामी विवेकानंद के अनुसार मनुष्य जीवन का लक्ष्य इस दिव्य प्राणशक्ति का समावेश अपने अंदर करना है। इस कला में जितनी निपुणता हासिल होगी, उतना ही मनुष्य का विकास होगा। प्राणायाम का शाब्दिक अर्थ प्राण का विस्तार है जिसका उद्धेश्य शरीर में प्राणशक्ति का समुचित प्रवाह, नियंत्रण, नियमन तथा संतुलन से है। मन के शुद्धिकरण के लिए ये प्रक्रियाँए अनिवार्य हैं। इसके नियमित अभ्यास से ज्ञानेन्द्रियों तथा मन पर काबू पाया जा सकता है। व्यास भाष्य में वर्णित हैः
“दद्वयन्ते ध्यायमानानां धातूनां हि यथा मलाः।
तथेन्द्रियाणां दह्यन्ते दोषाः प्राणस्य निज्यहात्।।
जिस तरह से धातुओं की अशुद्धियों को तपाकर दूर किया जाता है, उसी तरह प्राणायाम के द्वारा विभिन्न इन्द्रियाँ अपनी अशुद्धियों को हटाती है।
प्राण ऊर्जा के प्रवाह से किसी भी व्यक्ति को सृजनात्मकता और उत्कृष्ट उपलब्धियाँ प्राप्त होती है। प्रवाह की अवस्था में पहुँचने के लिए योग सबसे पुरानी ज्ञात तकनीकों में से एक है जो भारत में बहुत पहले विकसित की गयी थी। श्वास लेने की गति में नियंत्रण से तनाव, अवसाद तथा चिंता के स्तर में काफी कमी आती है। एमिनो एसिड के स्तर बढ़ने से पूरे शरीर का शिथिलीकरण होता है। ऐन्डोरफिन हारमोन के निकलने से आनंद की अनुभूति होती है। एड्रिनलीन, कोर्टिसोल तथा रक्त चाप के स्तर में भी कमी आती है। गामा-एमिनो बुटीरिक एसिड (जी0ए0बी0ए0), जो रसायन मस्तिष्क में बनता है, चिन्ता दूर करने तथा मानसिक अवस्था में वांछित सुधार में काफी मददगार होती है। योग के नियमित अभ्यास से शरीर का रोगप्रतिरोधक तंत्र मजबूत बनता है तथा विभिन्न ब्याधियों से छूटकारा मिलने में कामयाबी हासिल होती है। फेफड़ों की कार्यक्षमता में चमत्कारिक वृद्धि होती है तथा शरीर में एंटीआक्सीडेन्ट्स का स्तर बढ़ता है।
क्लेश (मन की ब्याधियाँ), साक्षी भाव (तटस्थ दर्शक के रूप में) तथा प्रतिपक्ष भाव (सकारात्मक प्रवृतियों द्वारा नकारात्मक विचारो का प्रतिकार) आदि के प्रति जागरूकता से जीवन के प्रति उदार एवं ब्यापक दृष्टिकोण पनपता है जिससे भौतिकवादी सीमाओं को लांघकर अपने जीवन को मूल्यवान बनाने में मदद मिलता है।
मूर्धन्य योग वैज्ञानिक महिर्ष पतंजलि ने योग को जीवन का अनुशासन की संज्ञा दी है। योग मानव जीवन की नैसर्गिक विधि है। यह ध्यान की प्रक्रिया से संबंधित आध्यात्मिक ज्ञान है। ध्यान, आसन की क्रियाओं-मुद्राओं से एकाग्रता के साथ असीम ऊर्जा का संचार होता है। योग वस्तुतः दर्शन और विज्ञान का समुच्चय है। योग विज्ञान का पहला सूत्र है-योगः चित्तवृति निरोधः-चित्त की वृतियों का निरोध ही योग है। हमारे अर्न्तमन में विचारों, विकल्पों, स्मृतियों, कल्पनाओं के रूप में जो तरंगे उठती रहती है उनका सर्वथा निरोध ही योग है।
योग मानव संसाधन विकास का एक शक्तिशाली माध्यम है। यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के उच्चतम स्तर तक पहुँचने की प्रेरणा प्रदान करता है जिससे परम अनुभूति की दशा प्राप्त होती है जो मानव को सर्वोत्तम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। स्वस्थ मन के साथ ओज में वृद्धि, सोच-विचार में स्पष्टता, काम के दौरान भ्रमरहित तथा तनावमुक्त महसूस करना दक्षता एवं उत्पादकता बढ़ाने में सहायक होती है। योगिक अभ्यास जीवन के हर क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त करने की सीढ़ी है।
स्वामी परमहंस सत्यानंद सरस्वती ने, जिन्होंने बिहार के मुंगेर में अंतरराष्ट्रीय स्तर के ख्यातिप्राप्त योग स्कूल की स्थापना की, बहुत पहले यह भविष्यवाणी की थीः ‘योग एक प्रखर विश्व शक्ति के रूप में उभरेगा तथा विश्व की घटनाओं की दिशा को प्रभावी ढ़ंग से परिवर्तित करेगा।’ विश्व योग दिवस का वैश्विक स्तर पर मनाया जाना उक्त कथन की सत्यता को प्रमाणित करता है।
अमेरिका से ईरान तक 177 राष्ट्रों द्वारा, जहाँ विश्व के विभिन्न धर्मो को माननेवाले निवास करते हैं, स्वेच्छा से योग को अपनाया जाना आह्लादकारी है। योग का किसी धर्म-संप्रदाय से कोई संबंध नहीं है बल्कि यह आत्मिक विकास और मानव-कल्याण की एक वैज्ञानिक पद्यति है जो विश्व के सभी धर्मो से पहले अस्तित्व में आया। जीवन के प्रति अपने नजरिए में विस्तार उदारता तथा व्यापकता में मानव-जाति का कल्याण सन्निहित है। संकीर्णता को त्याग कर सार्वभौमिकता और समग्रता की ओर अग्रसर होकर अपने जीवन को सुखमय बनाकर एक नये विश्व का निर्माण हम योग के माध्यम से करने की ओर प्रवृत हों तभी विश्व योग दिवस सार्थक हो पायगा।
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prabhat-raiBIHAR-invc-newswriter-prabhat-raiinvc-news-prabhat-rai-prabhat-kumar-raiपरिचय -:

प्रभात कुमार राय
( मुख्य मंत्री बिहार के उर्जा सलाहकार )

पता: फ्लॅट संख्या 403, वासुदेव झरी अपार्टमेंट,  वेद नगर, रूकानपुरा, पो. बी. भी. कॉलेज, पटना 800014

E_Mail : pkrai1@rediffmail.com , energy.adv2cm@gmail.com
Mobile  :  09934083444

*लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं।

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