यूपी में माया की चमक के सामने फीके पड़ेंगे मोदी *

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{ वसीम अकरम त्यागी ** }
जैसे जैसे आम चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं वैसे ही राजनितिक दल अपनी निगाह चुनाव पर लगाने और मत दाताओं पर डोरे डालने में लग गये हैं। समाजवादी पार्टी ने सत्ता में आते ही मिशन 2014 का नारा देना शुरु कर दिया था और मुलायम सिंह यादव खुद को देश का अगला प्रधानमंत्री बनने के सपने सजोने लगे उनका ये ख्वाब कितना सच साबित होगा ये तो आने वाला वक्त ही बतायेगा ? फिलहाल मौजूदा हालात को देखते हुऐ बसपा सुप्रिमो मायावती के उस बयान को लेता हैं जो उन्होंने 2012 में चुनाव हारने के बाद दिया था मायावती ने कहा था कि “मुसलमानों को बीजेपी के सत्ता में आने का डर था, इसलिए उन्होंने समाजवादी पार्टी को वोट दिया और अगड़ों के बंटने से बीएसपी को नुकसान हुआ. आप जानते हैं कि वोट पाने के लिए कांग्रेस ने चुनाव के ऐन पहले मुस्लिम रिजर्वेशन का ऐलान किया और बीजेपी ने इसका कड़ा विरोध किया. इसकी वजह से मुस्लिम बिरादरी में डर पैदा हो गया कि बीजेपी सत्ता में आ जाएगी. उन्होंने सोचा कि कांग्रेस कमज़ोर है. ओबीसी और ऊंची जाति के मतदाता बीजेपी के लिए वोट करेंगे. इसलिए मुसलमानों ने कांग्रेस को नहीं बल्कि एसपी को वोट किया.” मायावती के इस बयान से इतना तो साफ हो गया था कि उत्तर प्रदेश का मुसलमान कांग्रेस के बजाय दूसरे कथित सैक्यूलर दलों को पसंद करता है और वह इस स्थिती में है कि उसके बगैर उत्तर प्रदेश में सरकार नहीं बन सकती। अब चूंकि लोकसभा चुनाव नजदीक हैं ऐसे में में एक ओर भाजपा चुनाव की कमान मोदी को सौंप चुकी है तो दूसरी और सूबे में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी से मुस्लिमों का मोहभंग हो रहा है, उनका वह उत्साह इस समय देखने को नहीं मिल रहा है जो विधानसभा चुनाव के दौरान देखन को मिला था, इसकी वजह प्रदेश में होने वाला मुस्लिम उत्पीड़न, और सांप्रदायिक दंगे हैं कहीं न कहीं उसके दिमाग में यह बात घर करती जा रही है कि सपा से बेहतर तो बसपा भले ही भ्रष्टाचार हो रहा था मगर आम आदमी तो सुरक्षित था। खैर यहां मुद्दा मौजूदा सरकार के मूल्यांकन का नहीं बल्कि सवला यह है कि क्या आगामी लोकसभा चुनाव में बसपा नरेंद्र मोदी को पछाड़ पायेंगी, जबकि बसपा सुप्रिमो खुद गुजरात दंगो के बाद उनका चुनाव प्रचार करने गुजरात गई थीं। हालांकि राजनितज्ञ उस प्रचार का मतलब गुजरात में भाजपा के सहारे बसपा के लिये सियासी जमीन तैयार करना मानते हैं जिस तरह उत्तर प्रदेश में बसपा वजूद में आयी थी। अब जबकि भाजपा मोदी फोबिया चला चुकी है और इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ के आरोपी, अमित शाह, के साथ ही पिछले चुनाव 2009 में एक संप्रदाय विशेष को काटने की धमकी देने वाले वरुण गांधी को यूपी की कमान सोंप चुकी है, उधर नरेंद्र मोदी भी जल्द ही अयोध्या से चुनावी उदघोष करने का एलान कर चुके हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि प्रदेश की राजनीती मे निर्णायक भूमिका निभाने वाला मुस्लिम समुदाय का रुझान किधर होगा ? क्योंकि सपा से मुस्लिमों का मोह भंग होता जा रहा है क्योंकि मुलायम सिंह यादव कई बार भाजपा और आडवाणी की तारीफ कर चुके हैं और बची हुई कमी अखिलेश सरकार ने वरुण गांधी पर दर्ज मुकदमे वापस लेकर कर दी है।
जिसका खामियाजा उसे आगामी लोकसभा उठाना पड़ सकता है क्योंकि उत्तर प्रदेश की जेलों में बंद बेकसूर नौजवानों की लड़ाई लड़ रहे रिहाई मंच और इमाम बुखारी भी कह चुके हैं कि आगामी चुनाव में सपा को उसकी हैसियत का पता चल जायेगा, सपा से होने वाले इसी मोहभंग का लाभ बसपा को मिल सकता है क्योंकि नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने पिछले दिनों मुस्लिम समाज को एक जुट होने की अपील करते हुऐ कहा था कि “दुर्भाग्य है कि देश में इतनी आबादी होने के बाद भी मुस्लिम समाज की कोई नहीं सुनता। जिन कौमों की तादाद कम है, वे फायदा उठा रहे हैं। उन्होंने समझाया था कि जिन काफिलों के रहनुमा नहीं होते हैं, वे काफिले लुट जाते हैं। मुसलमानों में राजनीतिक चेतना जाग्रत करते हुए उन्होंने कहा था कि राजनीति वह चाबी है जिससे हर तरह के ताले खोले जा सकते हैं। इसलिए मुस्लिम समाज को सियासत में बहुत समझदारी से दखल देना चाहिए। उन्होंने एक शेर पढ़ा-
तमाम उम्र लड़ाई लड़ो उसूलों की,
और जी सको तो जिंदगी जियो रसूलों की
वफा करके हम बेवफा ही रहे,
यह सजा है हमारे बुजुर्गों की भूलों की।
उन्होंने सपा, कांग्रेस, भाजपा को एक ही थैली के चट्टे-बट्टे बताते हुए आरोप लगाया कि भाजपा को केवल चुनाव के समय ही रामलला की याद आती है। उन्होंने कहा कि बसपा के शासन में कहीं सांप्रदायिक दंगे नहीं होते। दंगे सपा के शासन में होते हैं और दंगों में सर्वाधिक नुकसान मुसलमान ही उठाते हैं। जाहिर सी बात है कि वे सपा सरकार में हो रहे दंगों और अराजकता का लाभ उठाना चाहती, और साथ ही इस दशक के सबसे अधिक सांप्रदायिक व्यक्ति नरेंद्र मोदी भी अप्रत्यक्ष रूप से बसपा को लाभ पहुंचा सकते हैं, क्योंकि जिस तरह भाजपा को मोदीमय बनाया जा रहा है वह कथित सैक्यूलर पार्टियों के वोट बैंक को मजबूती प्रदान कर रहा है प्रदेश का मुस्लिम भाजपा को हराने के उद्देश्य से उन पार्टियों को वोट देना पसंद करता आया है जो कथित तौर से सैक्यूलर हैं। मुस्लिम वोटों की प्राप्ती के लिये सपा और बसपा द्वारा प्रदेश में भाईचारा अभियान चलाया जा रहा है. यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि प्रदेश की दोनों मुख्य पार्टियां सपा और बसपा मुस्लिम और ब्राहम्ण वोट पर नजरें जमाये हैं, उत्तर प्रदेश में 18 प्रतिशत मुस्लिम और 12 प्रतिशत ब्राह्मण वोट बैंक है। राजनीति के जानकार मानते हैं कि 30 प्रतिशत का यह बड़ा वोट बैंक वोट की राजनीति में अहम भूमिका निभा सकता है। राज्य में ब्राह्मण वोट बैंक को जोड़ने के लिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का अभियान गति पकड़ चुका है। सपा ब्राह्मण−मुस्लिम सम्मेलनों के मार्फत तो बसपा भाईचारा सम्मेलनों के द्वारा इन कौंमों को लुभा रहे हैं। बसपा ने तो बकायदा अपने महासचिव सतीश मिश्रा को पूरी तरह से इस काम में लगा रखा है। वह पूरे प्रदेश में भाईचारा सम्मलेन करा रहे हैं। बसपा की काट के लिये पिछले दिनों सपा ने परशुराम जयंती के मौके पर 12 मई को अयोध्या, काशी मथुरा, वृन्दावन व चित्रकूट से संत महात्माओं को बुलाया। वहीं बसपा ब्राह्मण वोट बैंक को वर्ष 2007 की तर्ज पर अपने खेमे में बनाये रखने की कोशिश कर रही है। बसपा की ओर से पूरे प्रदेश में ब्राह्मण सम्मेलनों की शुरुआत हो चुकी है। सम्मेलनों के जरिये यह संदेश दिया जा रहा है कि ब्राह्मणों को आरक्षण चाहिए तो केन्द्र में मायावती के नेतृत्व में सरकार का बनना जरूरी है।
मुस्लिमों की अगर बात की जाये तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा ने बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रत्याशियों को उतार कर रालोद की राह में मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। रालोद इससे निपटने के लिये किसान−मुसलमान एकजुटता पर काम कर रही है। यह उसका पुराना फार्मूला भी है, यहां पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की करीब एक दर्जन लोकसभा सीटों पर तीस प्रतिशत की मुस्लिम आबादी राजनैतिक हवा का रुख मोड़ने की ताकत रखती है। जिसका रुझान इस बार बसपा की जानिब हो सकता है क्योंकि विधान सभा चुनाव के दौरान सपा द्वारा किया गया 18 प्रतिशत आरक्षण का वादा अभी ठंडे बस्ते में है जिसे बसपा हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकती है। साथ ही कई मुद्दों जैसे सांप्रदायिक दंगे, प्रतापगढ़ में हुई मुस्लिम डीएसपी जिया उल हक की हत्या साथ ही सपा नेताओं की दबंगई का भी फायदा भी बसपा को मिलना लगभग तय माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषक सुभाष चंद्र कुश्वाहा कहते हैं कि मायावती को लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश के मतदाताओं (विशेषतः अल्पसंख्यक ) को इस बात की गारेंटी देनी होगी की वह मोदी के नेतृत्व वाले राजग में नहीं शामिल होंगी ! समाजवाद के नाम पर मुलायम सिंह ने जिस तरह से मुसलमानों का गला रेता है उसके मद्देनज़र मायावती की तरफ जाने वाला मुसलमान वोट बस एक अदद भरोसे का वादा चाहता है, उनके अनुसार मुस्लिम समाज को सरकारों से कोई खास उम्मीद नहीं रहती वह बस शान्ति से अपना कारोबार करना चाहता है, इसलिये उसे सुरक्षा चाहिये अगर मायावती मुस्लिम समाज को सुरक्षा देने का वादा कर लेती हैं तो दलित और मुस्लिम गठजोड़ उनके लिये हितकारी सिद्ध हो सकता है। साथ ही वे यह भी कहते हैं कि यह इतना आसान जितना समझा जा रहा है कुश्वाहा के अनुसार मुस्लिमों की पहली पसंद अभी तक समाजवादी पार्टी है।
बसपा बढ़ा सकती है मुस्लिम उम्मीदवार
मौजूदा परिस्थिती को देखते हुऐ बसपा घोषित किये जा चुके उम्मीदवारों में फेरबदल कर सकती है, जिसमें दलित और मुस्लिम बहुल क्षेत्र बिजनौर अहम हैं, सूत्रों के अनुसार इस सीट पर वर्तमान में बसपा ने मलूक नागर को प्रत्याशी बनाया है लेकिन उनकी जगह पूर्व मंत्री हाजी याकूब कुरैशी को यहां से चुनावव मैदान मैं उतार सकती है, उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों याकूब कुरैशी, और पूर्व विधायक योगेश वर्मा की फिर से बसपा में वापसी हुई थी। इस सीट पर मुस्लिम और दलित वोट सात लाख के करीब है जिस पर दोनों ही पार्टियां सपा, बसपा नजरें जमाये हैं, सपा ने यहां से अनुराधा की चौधरी की जगह पूर्व सांसद अमीर आलम को उम्मीदवार बनाया है। मेरठ से पूर्व सांसद हाजी शाहिद अखलाक को उम्मीदवार बनाया गया है क्योंकि 2004 के चुनाव में इन्होंने करिश्माई अंदाज में मेरठ की सीट पहली बार बसपा की झोली में डाली थी. उस समय इस सीट पर दलित मुस्लिम गठजोड़ हुआ था, जिसमें बसपा फायदे में रही, इस बार भी यही सोच कर इस सीट पर बसपा ने शाहिद को उम्मीदवार बनाया है, जबकि सपा से राज्यमंत्री शाहिद मंजूर और भाजपा से मौजूदा सांसद राजेंद्र अग्रवाल का आना तय माना जा रहा है कांग्रेस ने इस सीट पर अभी कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है, अटकलें ये लगाई जा रहीं है कि कांग्रेस यहां से या तो किसी ब्राहम्ण या मुस्लिम उम्मीदवार उतारने के मूड में है। मुजफ्फर नगर से मौजूदा सांसद कादिर राना बसपा के टिकट पर ताल ठोंक हैं तो सहारनपुर से जगदीश राणा को उम्मीदवार बनाया गया है। अमरोहा से एक तरफ सपा की उम्मीदवार राज्यमंत्री कमाल अख्तर की पत्नी हुमेरा अख्तर हैं तो दूसरी ओर बसपा से पूर्व विधायक हाजी शब्बन को टिकट दिया है, वहीं गाजियबाद से मौजूदा एमएलसी मुकुल उपाध्याय के भी टिकट कटने के कयास लगाये जा रहे हैं क्योंकि इस सीट पर भी मुस्लिम और दलित वोट भारी संख्या में है,मजे की बात यह है कि अभी तक किसी भी पार्टी ने मुस्लिम उम्मीदवार को यहां से टिकिट नहीं दिया है सपा ने जहां सुधन रावत को उम्मीदवार बनाया है वहीं भाजपा से राजनाथ सिंह के चुनाव लड़ने की उम्मीदें लगाई जा रही हैं। अगर बसपा दलित मुस्लिम गठजोड़ कर पाने में सफल हो जाती है तो कथित मोदीफोबिया टांय टांय फुस्स हो जायेगा।
यहां रहता है वर्चस्व
उत्तर प्रदेश एक ऐसा राज्य है जहां मुसलमान किसी भी सीट पर पक्की जीत तो नहीं दिलवा सकते हैं लेकिन एकाध सीट को छोड़कर उनकी संख्या हर सीट पर चुनावी नतीजों को प्रभावित करती है .आबादी के हिसाब से करीब 19 जिले ऐसे हैं जहां मुसलमानों की आबादी बहुत घनी है.रामपुर ,मुरादाबाद,बिजनौर मुज़फ्फर नगर,सहारनपुर, बरेली,बलरामपुर,अमरोहा,मेरठ ,बहराइच और श्रावस्ती में मुसलमान तीस प्रतिशत से ज्यादा हैं . गाज़ियाबाद,लखनऊ , बदायूं, बुलंदशहर, खलीलाबाद पीलीभीत,आदि कुछ ऐसे जिले जहां कुल वोटरों का एक चौथाई संख्या मुसलमानों की है . जहां तक बीजेपी का सवाल है उन्हें मालूम है कि उन्हने मुसलामानों के वोट नहीं मिलने वाले हैं इसलिए उनकी तरफ से केवल सांकेतिक कोशिश ही की जाती रही है
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Wasim-Akram-Tyagi-111111111111111111वसीम अकरम त्यागी
युवा पत्रकार
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journalistwasimakram@gmail.com

*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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